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मन की अयोध्या में  दीपक जलाने का पर्व

मन की अयोध्या में दीपक जलाने का पर्व

by अमोल पेडणेकर
in नवम्बर २०१९, संपादकीय
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भारत सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रूप से उत्सव परंपरा का देश है। अनुष्ठान, यज्ञ, त्यौहार और समारोह का देश है। भारत में संपन्न होने वाला प्रत्येक उत्सव शुभ संकल्प से प्रारंभ होता है। प्रत्येक उत्सव में दीपक की उपस्थिति परिपूर्ण रूप से होती है। दीपक हमारी संस्कृति का श्रेष्ठतम प्रतीक है। इसलिए दीपावली हमारे यहां दीपक की प्रतिष्ठा, आराधना, पूजा- अर्चना का सबसे बड़ा त्यौहार है। दीपावली अर्थात नन्हे-नन्हे दीपकों का उत्सव। उत्सवों के निमित्त मन में बढ़ते हुए विश्वास को और दुगना किए जाने की भावना होती है। दिल से छूटते और टूटे हुए रिश्तों को फिर से जोड़ा जा सकता है। राग-लोभ  से आगे बढ़ कर दूसरों  को नजदीक ला सकते हैं। ऐसी ही सकारात्मक बातें करने के लिए मिला सुनहरा अवसर दीपावली उत्सव होता है। ऐसी भावना से जब हम अपने उत्सव को मनाते हैं तो मन को बहुत बड़ा आधार प्राप्त होता है।

इस पृथ्वी और यहां के लोगों का चांद के साथ गहरा रिश्ता है। यह रिश्ता कौन सा है यह सवाल बाल मन से विज्ञान तक, साहित्य से लेकर प्रत्येक मनुष्य तक सबको सदियों से सता रहा है। इसी अपनत्व के नाते मानव ने चांद से अपना रिश्ता जोड़ने का प्रयास गत कुछ वर्षों से शुरू किया है। ‘चंद्रयान’ यह इसी प्रयासों का एक हिस्सा था। चंद्रयान के मिशन पर इसरो के वैज्ञानिकों ने अपनी जिंदगी के 11 साल दिए। 3 लाख 80 हजार किमी के सफर पर निकला चंद्रयान महज 2  किलोमीटर पीछे रह कर पृथ्वी से अपना संपर्क तोड़ देता है। मानव को यह दर्शाता है कि कामयाबी के लिए 99% सही कदम उठाने के बाद अगर आपका आखरी कदम भी गलत पड़ जाए तो आप कामयाबी से दूर रह सकते हैं। वैसे भी विज्ञान की राह में सफलता और असफलता में न तो ज्यादा अंतर होता है और न खास दूरी। विज्ञान का पहला सबक यही है कि नाकामी से निकली निराशा और कामयाबी से उभरा उत्साह, दोनों को नियंत्रण में रखा जाना आवश्यक है। बड़े सपने देखने वाले की नियति यही होती है। बड़े सपने देखते हुए बड़ी असफलता का भी सामना करना पड़ता है। ऐसा होते हुए भी उसी दर्द को पीते हुए फिर से खड़ा होना पड़ता है। एवरेस्ट पर चढ़ाई की अपनी पहली नाकाम कोशिश के बाद एडमंड हिलरी ने एवरेस्ट को कहा था, मैं तुम्हें जीतने के लिए फिर आऊंगा, क्योंकि एक पर्वत के तौर पर तुम और बड़े हो नहीं सकते, मगर एक इंसान के तौर पर मेरा हौसला और बड़ा हो सकता है। इसके बाद जो हुआ वह इतिहास है। इसलिए चंद्रयान की कोशिशों के संदर्भ में जब हम सोचते हैं तो हमें फिर से चंदा मामा से अपना रिश्ता बनाने का सफल प्रयास करना है । इस अनुभव की प्राप्ति के लिए विज्ञान का पहला सबक यही है कि नाकामी से निकले मन के अंधियारे को दूर करना है। मन में विश्वास का दीपक जलाना है।

इस वर्ष कुछ राज्यों में इतनी वर्षा हुई कि सालों का रिकार्ड टूट गया, जबकि कहीं सिर्फ औसत पानी बरसा। मौसम धरती के साथ ऐसा खेल क्यों खेल रहा है? पर्यावरण के असंतुलन के कारण पृथ्वी का भविष्य घनघोर अंधेरे, अनिश्चितता और अस्थिरता की ओर बढ़ रहा है। ऐसे समय में पर्यावरण की जिम्मेदारी को समझ कर उसके नियमों का पालन करने वाला दिया जलाना  आवश्यक है। भारतवर्ष में दीपावली के दीपक इसी प्रकार की जागृति के प्रतीक हैं। दीपावली  केवल मर्यादा पुरुषोत्तम राम की अयोध्या वापसी का पर्व नहीं है, अपने मन की अयोध्या में दीया जला कर जगमग करने का पर्व है। मन जितना सकारात्मक सोच लेगा उतना ही भरा पूरा और प्रकाशमान होगा।

प्रत्येक उत्सव का मतलब एक ही होता है, पुनश्च हरिओम करके जीवन का प्रारंभ करने का। हमें अपने, समाज, देश, दुनिया के अंधकार को मिटाने के साथ-साथ अपने घर के परिवार के अंधकार को भी दूर करना है। इसलिए विचारों के दीपक से कर्म की बाती जलानी होगी। विषमता के बजाय समता को अपनाना होगा। तभी हम अपने मन के, और बाहर के अंधकार को मिटा कर प्रकाश लाने में समर्थ होंगे। व्यक्ति, समाज, देश और दुनिया प्रकाशमान होने की कामना हमे रखनी होगी। चेतना, जागृति, विचार, समरसता और संकल्प की रोशनी हमारे मन में निर्माण होना यही प्रकाश है।

आत्म प्रकाशित मनुष्य स्वयं एक दीपक है। हम तमसो मा ज्योतिर्गमय कहते हैं, तो तम से ज्योति की ओर हम प्रस्थान करते हैं। यह तम न केवल भौतिक है, विचारों का भी तम होता है। हमारे आसपास संकीर्ण सांप्रदायिकता और अनैतिक राष्ट्रीय विचारों का तम पनप रहा है। इसके विरुद्ध खड़ा होना ही दीपक का प्रकाश है। इनसे लड़ना ही दीपक का तूफान से संघर्ष है। दीपक का यह संघर्ष भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र  मोदी जी के रूप में हमें दिखाई दे रहा है। उनके राष्ट्र समर्पित प्रयासों से भारत के जन-जन के मन में देश के प्रति विश्वास की भावना साकार हो रही है। और हम सभी भारतीय नए विश्वास से पूर्ण भारत की ओर जाने के लिए निर्भयता पूर्वक करवट ले रहे हैं। महात्मा गांधी जी के 150वीं जन्म शताब्दी वर्ष के अवसर पर हमें स्मरण हो रहा है, भारतीयों के मन में स्वदेशी की कल्पना साकार करके उनमें राष्ट्रीय और सामाजिक भाव का दीपक प्रज्वलित करने का कार्य महात्मा गांधी जी ने किया था। भारत जुल्मी ब्रिटिश शासन की बेड़ियों से मुक्त होकर स्वराज की खुली हवा में सांसे लेने लगा। गांधी जी के कार्यों के कारण भारत के जन-जन के मन में स्वराज के साथ सुराज की कल्पना की भी उमंग थी। भारत देश स्वतंत्र होने के बाद से अब तक सुशासन की अपेक्षा लगाए भारत के लोग बैठे थे। आज महात्मा गांधी जी के इस सपने को और जन-जन की इच्छा को भारत देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साकार करने का संकल्प किया है। राष्ट्र विकास के संकल्प की प्रकाश ज्योति अद्भुत होती है। सुनने में बड़ा आसान सा सिद्धांत है। लेकिन यह दीपक तेल और बाती से नहीं जलता। यह संस्कार, संकल्प, संयम और प्रयासों के  इस्तेमाल से प्रकाशित होता है।

राम और कृष्ण ने जिन आदर्शों की स्थापना की थी, महात्मा गांधी जी के मन में रामराज्य की कल्पना निर्माण हुई थी, उसी  दिशा की ओर आज भारत अग्रसर हो रहा है। जो पूरे विश्व को आश्वासित करने का साहस कर रहा है, जिसमें विश्व को तेजोमय करने का संकल्प है। हमारा भारत देश तो क्षण-क्षण में दीपक के उत्सव का देश है। कोई पूजा दीप प्रज्वलन के बिना संभव नहीं। भारतीय संस्कृति प्रकाश अर्थात प्रातः काल से सूर्य को अर्घ्य देकर अपने दिन व्यवहार का प्रारंभ करती है और शाम होते ही दीप प्रज्वलन के साथ दीपक को नमन करती है। प्रकाश के प्रति यह भाव हमारे भारतीयों के मन में क्यों है? हम भारतीयों की अवधारणा है कि भले सूर्य का अस्त होता होगा लेकिन प्रकाश का अस्त कभी नहीं होता। इस धरती को अंधकार से मुक्त करने के लिए मनुष्य जाति ने दीपक का आविष्कार किया है। हम यह मानते हैं कि दीपक किसी सूर्य का विकल्प नहीं है। लेकिन दीपक अपने आसपास हो रहे अंधकार का विकल्प अवश्य है। दीपक छोटा हो या बड़ा, दीपक का होना प्रकाश का होना है। अंधियारी रात्रि के तिमिर के समय रास्ता भटकने से बचाने वाले प्रकाश शक्ति को ही हम दीप स्तंभ कहते हैं। आज पूरा भारत वर्ष इस प्रकार के प्रकाश में दीपस्तंभ का अनुभव कर रहा है। गहन अंधकार में जब किसी भी विभूति का उद्भव होता है तो लगता है, वह विभूति ना होकर एक प्रकार का प्रकाश पुंज है। उसका संघर्ष न केवल भौतिक अंधकार के विरुद्ध है, बल्कि उन समस्त अंधकारों के विरुद्ध है। भारत के जीवन में प्रकाश पुंज जैसी अनेक विभूतियों की परंपरा निरंतर प्रवाहित रही है। उन्ही के चिंतन और समर्पण के आधार पर भारतीय जीवन अपना ऐश्वर्य मनाता रहा है। हम भारतीयों के अंतर्मन में टीमटिमाते हुए दीपक की बाती अपने-अपने प्रयासों के कारण देखने में भिन्न होगी, लेकिन भारतवर्ष को रोशनी इन्हीं दीपकों के प्रयासों के कारण मिलती रही है।

‘हिंदी विवेक’ मासिक पत्रिका सकारात्मक पत्रकारिता के माध्यम से प्रकाशमान विचारों को अपने पाठकों तक पहुंचाने का प्रयास करती है। इस वर्ष ‘हिंदी विवेक’ मासिक पत्रिका अपने सकारात्मक पत्रकारिता के 10 साल पूरे कर रही है। यह 10वां दीपावली विशेषांक अपने पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत करते वक्त  हमारे मन में पहले से दुगना प्रकाश और उत्साह निर्माण हुआ है। इसी उत्साहपूर्ण भाव के आधार पर हमने यह दीपावली विशेषांक अपने देशभर के पाठकों को प्रस्तुत किया है। देश के गणमान्य विचारक एवं लेखकों ने इस  विशेषांक में आलेखों के माध्यम से अपने विचार प्रस्तुत किए हैं।

दीपावली विशेषांक के प्रस्तुतीकरण के संदर्भ में आपके विचार जानने के लिए हम उत्साहित हैं। दीपावली विशेषांक को प्रस्तुत करने में ‘हिंदी विवेक’ मासिक पत्रिका के विज्ञापनदाताओं, लेखकों, मार्गदर्शकों, पाठकों तथा सभी हितचिंतकों- आप सभी- को अपने जीवन में दीपक की तरह प्रकाशमान होने की इस दीपावली के शुभ पर्व पर अशेष शुभकामनाएं!

 

 

अमोल पेडणेकर

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