हिंदू राष्ट्र : एकात्म भाव की संकल्पना

       हिंदू एक जीवन प्रणाली है। वह एक संस्कृति है। यह शाश्वत सत्य है। हमारे देश में स्वयं को प्रगतिशील समझनेवाले, धर्मनिरपेक्ष होने का दावा करनेवाले, ‘वोट बैंक’ की राजनीति करनेवाले और सनसनीखेज खबरों के लिये लालायित कुछ तथाकथित बुद्धिवादी लोगों की एक जमात है। हिंदू शब्द सुनाई देते ही उनकी प्रतिक्रिया कुछ इस प्रकार होती है जैसे उन पर छिपकली गिर गई हो। हिंदू शब्द को विवादास्पद, संकुचित बनाकर उसे साम्प्रदायिक शब्द से जोड़ने का प्रयत्न इन लोगों की ओर से लगातार होता रहता है। ऐसे लगता है जैसे इन तथाकथित बुद्धिवादी लोगों ने हिंदू शब्द की प्रतिष्ठा को नष्ट करने का षड्यंत्र रचा हो। अगर कोई व्यक्ति अपनी संस्कृति, राष्ट्रीयता और अस्मिता के संदर्भ में अपना मत व्यक्त करता है तो भी ये लोग अपना हिंदू विरोधी अभियान जोरशोर से शुरू कर देते हैं।
     गोवा सरकार के एक मंत्री पांडुरंग ढ़वलीकर ने अपने एक वक्तव्य में कहा, ‘नरेन्द्र मोदी भारत को हिंदू राष्ट्र बनायेंगे।’ ढवलीकर के इस वक्तव्य पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए गोवा के उपमुख्यमंत्री फ्रांसिस डिसूजा ने कहा, ‘भारत एक हिंदू राष्ट्र है। मैं पहले हिंदू हूं और बाद में धर्म से ईसाई हूं। जब डिसूजा को अपना वक्तव्य फिर से समझाने का आग्रह किया गया तब उन्होंने पुन: कहा, ‘इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत एक हिंदू राष्ट्र है। यह हमेशा हिंदू राष्ट्र था और रहेगा। हिंदुस्थान के सभी नागरिक प्रथम हिंदू हैं। हिंदू मेरी संस्कृति है, अत: मैं संस्कारों से प्रथम हिंदू हूं, बाद में धर्म से ईसाई हूं।’
       सनसनीखेज खबरों के लिये व्याकुल मीडिया और तथाकथित बुद्धिवादियों ने इसमें नमक-मिर्च लगाया और चर्चा शुरू कर दी। हालांकि उनके इस काम में कुछ नया नहीं है। जब-जब हिंदू या हिंदुत्व पर सकारात्मक चर्चा होती है तब-तब ये लोग हमेशा गैर जिम्मेदार व्यवहार करते नजर आते हैं। जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी तब इन लोगों ने एक गैर जिम्मेदार आरोप लगाया था कि अटल सरकार संघ के गुप्त एजेंडे पर काम करती है। आज भी नरेन्द्र मोदी सरकार पर यही आरोप लगाया जा रहा है कि वह संघ के छुपे एजेंडे पर काम कर रही है। वास्तविक रूप से डिसूजा ने सत्य ही कहा कि भारत हिंदू राष्ट्र था और आगे भी रहेगा। किसी ईसाई व्यक्ति को यह सत्य कहने की आवश्यकता क्यों महसूस हुई इस बात को समझने के बजाय हिंदू राष्ट्र में गैर हिंदुओं का क्या होगा? क्या उन्हें मार दिया जायेगा या देश से निकाल दिया जायेगा? इस तरह के निरर्थक विषयों पर चर्चा करवाने का प्रयत्न किया जा रहा है। इन पाखण्डी विचारकों ने अपनी दुकानें चलाने के लिये गलत कल्पनाओें को लोगों के मत्थे मढ़ने का बीड़ा उठा रखा है। इन टीकाकारों ने हिंदू शब्द का अर्थ अपनी मर्जी से निकाला है। हिंदू शब्द का अर्थ धर्मवाचक कर दिया है। हिंदू धर्म का पालन करने वाले हिंदू, हिंदू धर्म को माननेवालों का राष्ट्र अर्थात हिंदू राष्ट्र, यहां पर अन्य धर्म के लोगों का स्थान दोयम हो इस तरह की कई गलफहमियां इन लोगों द्वारा फैलाई गई हैं। मूलत: हिंदू धर्मवाचक शब्द नहीं है। वह संस्कृति, परंपरा से संबंधित शब्द है। वह अन्य धर्मों की तरह संप्रदाय सूचक नहीं है। भारत भूमि की विशिष्ट जीवन प्रणाली और संस्कारों के कारण हम एक दूसरे से अभिन्न रूप से जुड़े हुए हैं। अनादि काल से इस भूमि पर विकसित हुई संस्कृति, परंपरा और जीवन प्रणाली को दर्शानेवाला शब्द है हिंदू।
      हिंदू एक सनातन जीवन प्रणाली है। वह ८ से १० हजार वर्ष पुरानी है। यह जीवन प्रणालीे सभी के कल्याण की कामना करती है। उसी प्रकार आचार-विचार करती है। प्रत्येक को उसकी रुचि के अनुसार उपासना करने की स्वतंत्रता देती है। उपासना करने या न करने की भी स्वतंत्रता देती है। इस तरह की जीवन प्रणाली, समाज व संस्कृति को सामूहिक रूप से हिंदू कहा जाता है। अत: हिंदू शब्द जिस आशय तथा संदर्भ में प्रयुक्त होता है उसे समझना आवश्यक है। परंतु दुर्भाग्य से जानबूझकर ऐसे प्रयत्न किये जा रहे हैं जिससे हिंदू या हिंदू राष्ट्र शब्द के प्रति संदेह निर्माण हो।
       हिंदू या हिंदू राष्ट्र के मूल अर्थ को न समझ कर जो लोग टिप्पणी कर रहे हैं, वे स्वयं को भले ही धर्मनिरपेक्ष कहें, परंतु देश की सांप्रदायिक कटुता को यही लोग प्रोत्साहन दे रहे हैं। गोवा के उपमुख्यमंत्री फ्रांसिस डिसूजा के हिंदू और हिंदू राष्ट्र की संकल्पना पर चर्चा शुरू हो चुकी है। अब भारतीयों की समान सांस्कृतिक परंपरा पर भी चर्चा होना अत्यंत आवश्यक है। फ्रांसिस डिसूजा ने जो सत्य कथन किया उसमें एकात्मता का भाव निहित था। परंतु अल्पसंख्यकों में समान संस्कृति, परंपरा का संज्ञान जागृत होना इन तथाकथित बुद्धिवादियों को नहीं सुहाता। भारत का हजारों वर्षों का इतिहास सामने होने के बावजूद ये लोग अल्पसंख्यकों में जानबूझकर समान संस्कृति और परंपरा का भाव निर्माण नहीं होने देते। तथाकथित बुद्धिवादी, राजनेता, अलगाववादी और प्रसार-माध्यम के गैरजिम्मेदार लोग एक प्रकार से कटुता को प्रोत्साहन देने का ही कार्य कर रहे हैं।
धर्मनिरपेक्षता के नाम पर भारत के सांप्रदायिक स्वरूप को नकारने का प्रयत्न करना अनुचित है। क्योंकि प्रत्येक राष्ट्र की स्वयं की एक विशिष्ट सांस्कृतिक रचना होती है। इंडोनेशिया इस्लामिक राष्ट्र है। उनकी संस्कृति में अनेक ऐसे तत्व हैं जो इस्लाम में वर्जित हैं परंतु इंडोनेशिया ने अपने पूर्वजों के ऐसे सांस्कृतिक मूल्य और प्रतीकों को संजोया है, जो इस्लाम आने के पूर्व प्रचलित थे। उनकी सरकारी एयरलाइन का नाम गरुड एयरलाइन्स है। इंडोनेशिया ने ऐसे अनेक प्रतीकों को स्वीकारा है जो हिंदू संस्कृति का अंग माने जाते हैं।
       हिंदू राष्ट्र कोई राजनैतिक प्रतिक्रिया नहीं है। वह एक अमर, अनादि काल से प्रकट हो रही सामाजिक व सांस्कृतिक संकल्पना है। भारत के सभी जाति धर्म के लोगों की संस्कृति, इतिहास, परंपरा एक है। पूर्वज एक हैं। यही धारणा सभी भारतीयों में एकात्मता का भाव लाने वाली तथा विश्वास निर्माण करनेवाली है। ऐसे विश्वास से ही देश प्रबल बनता है। उसी विश्वास का नाम है ‘हिंदू राष्ट्र’। अतः फ्रांसिस डिसूजा ने जो कुछ कहा उस पर निरर्थक बवाल न मचाते हुए उसका सही अर्थ समझने का प्रयास तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लोगों को करना चाहिए।

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