भीगे मौसम की भीगी यादे..

बारिश के मौसम में कोंकण की यात्रा स्वर्ग की अनुभूति करने के समान हैं। इसलिए कश्मीर की तरह महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र को भी स्वर्ग कहा जाता है। यहां का प्राकृतिक सौंदर्य बरबस ही सभी को अपनी ओर आकर्षित करता हुआ प्रतीत होता हैं।

नए शहर, नए प्रदेश में हम यात्रा करते रहते हैं। इसी घुमक्कड़ी ने मेरे ज्ञान में वृद्धि और जीवन को सकारात्मक दृष्टि भी दी है। इस यात्रा को हम मनुष्य को समृद्ध बनाने वाली पाठशाला भी कह सकते हैं। अपने संपर्क में आने वाले प्रत्येक मनुष्य, परिसर, आसपास के वातावरण में अद्भुत अनुभव मौजूद है। यह अद्भुत अनुभूति हर मौसम में भी मौजूद होती है। जीवन के प्रत्येक मोड़ पर थोड़े से समय के लिए क्यों न हो, हमें उस मौसम का अनुभव करते रहना चाहिए। उस मौसम का एहसास लेते हुए हम कब उत्साह एवं ऊर्जा से भर जाते हैं, हमें पता ही नहीं चलता। यह यात्रा न केवल हमारे ज्ञान का विकास करती है बल्कि जीने का एक सकारात्मक दृष्टिकोण भी देती है।

इस मानसून में मुझे भी कुछ ऐसा ही अनुभव हुआ। बारिश का मौसम शुरू होते ही कई लोग घूमने-फिरने की योजनाएं बनाते हैं। हमारी प्रवास की ऐसी कोई योजना नहीं थी। कोंकण में एक रिश्तेदार के घर घटी घटना के कारण भारी बारिश होने पर भी हम कार से कोंकण गए। काम में व्यस्त रहते हुए मैंने मानसून के दौरान कोंकण में प्रवास की चार दिन की योजना बनाई। यूं तो हर किसी को प्रत्येक प्रवास याद नहीं रहता, लेकिन बारिश में किया गया प्रवास खूब याद रहता है। और अगर वह यात्रा कोंकण की हो तो कभी नहीं भूलती।

किसी ने मौसम का सुंदर वर्णन करते हुए कहा है कि मौसम खुद को विभिन्न अदाओं से अभिव्यक्त करता है। पूर्व में सह्याद्रि की लंबी हरी भरी श्रृंखलाएं और उन पर मेघराज का विशेष रूप से निरंतर बरसना। कोंकण के गांवों को समृद्ध करती सह्याद्रि से निकलने वाली सागर से मिलने की आतुरता एवं उफान से बहती नदियां। मानसून में सह्याद्रि की खड़ी ढलानों से गरजते हुए गिरने वाले झरने और साथ में पेड़-पत्तों पर बरसती, मधुर संगीत सुनाती हुई बारिश की थपथपाहट को मन की गहराईयों से सुनना, एक अद्भुत अनुभव होता है। पश्चिम की ओर समुद्रतट पर दिल को छू लेने वाले गहरे समंदर की उफनती तरंगें, तुफानी हवा का रौद्र संगीत और भीगे वातावरण में हवा के झोंकों के साथ हिलते हुए बांधी नावों को देखना एक अद्भुत अनुभव होता है। जो हम ले रहे थे।

कभी सौम्य, कभी मध्यम, कभी रौद्र स्वरुप में कोंकण को भिगोती यहां की बारिश न केवल कोंकण की पहचान है, बल्कि पूरे कोंकण के जीवन का अभिन्न अंग भी है। फिर भी यहां की बारिश पूरी तरह से समझ में नहीं आती है। कोंकण के लोग वैसे सीधे नहीं वह कब प्यार और कब गुस्सा करेंगे इस बात का अंदाजा नहीं होता, इसी प्रकार यहां की बारीश का भी व्यवहार है। हमें लगता है कि बारिश का हर जगह समान रूप से महत्व है। लेकिन असल में ऐसा नहीं है। बरसते बारिश को हर कोई अलग- अलग तरह से महसूस करता है। प्रत्येक की अनुभूति भिन्न होती है।

मुलरुप से खूबसूरत कोंकण मानसून के दौरान और संपन्न होकर हरी-भरी प्रकृति के साथ खील जाता है। आप प्रकृति में हरे रंग के विविध छटाओं को वहां देख सकते है। जंगल की हरीयाली में महसूस होने वाले हरे रंग की विभिन्न छटाएं। आसमान की ऊंचाई से निसर्ग को निहारते रंग-बिरंगे पंखों के विभिन्न पक्षी। अनेक प्रकार की सुगंधों से भरे हुए भिन्न-भिन्न फूल, साक्षात ईश्वर की अनुभूति हमें करा रहें थे। ऐसा लगता है कि हम शहरवासी तो इन सभी खुशबुओं, मनभावन दृश्य और रंगों से बहुत दूर हो गए हैं। आज हमारे चारों ओर फैले कंक्रीट के जंगल में हम कहीं गुम होते जा रहे हैं।

पहाड़ों पर घनघोर बादलों का घेरा, रुक-रुक कर बरसने वाली बारिश, मन मोह लेने वाली ओस और कुछ तेज एवं कुछ कोमल हवाएं। कहीं हवाएं परिचित होती हैं तो कहीं अपरिचित, लेकिन मन को गहराई तक झकझोर कर रख देती हैं। फिर भी वह  परिचित हवा कहीं गुजरे जमाने की याद दिलाती है। यह मौसम बहुत ही रोमांचक था। लंबी तपन भरी गर्मी के बाद प्यासा माहौल बारिश के स्पर्श से रोमांचित हो जाता है। यह गिला भीगा मौसम वातावरण में होने वाले सुखद परिवर्तनों का एक अजीब रसायन है।

वह बरसात की शाम, रिमझिम फुहारें, आंखों में बसाए किसी का इंतजार करना, सुनहरे मौसम में मेरा मन बीते पलों में खोने लगा। काले घने बादलों की भीड़ में जागी खोई पुरानी भीगी बीती यादें। धीरे-धीरे अपने मन के आंगन में सावन की पुरानी यादें, नए सिरे से बात करने लगती है। कुछ परिचित, कुछ अच्छी-बुरी यादें, कुछ खोई हुई, कुछ फिर से खोजी हुई। मन उन यादों के बादलों की भीड़ में फिर से भिगने लगता है। कभी-कभी अपना पागल मन भी ऐसे कुछ गुमनाम लम्हों का इंतजार करता है। वो मौसम की गीली हवा अनजाने में अपने कोमल मन को छू जाती है। मन की भावनाएं मुक्त हो जाती हैं। क्योंकि जीवन में ऐसे क्षण आते हैं जब शब्द काम करना बंद कर देते हैं और भावनाएं कुछ कहना चाहती हैं। कुछ भावनाएं कोमल हवा की तरह धीरे से हमारे मन को छू जाती हैं। अगर आप उन्हें पहचान नहीं पाते तो उनकी घुसपैठ कब तूफान को जन्म दे सकती है, कहा नहीं जा सकता।

बचपन में जब पहली बार बारिश से मुलाकात हुई तो मैंने बारिश में भीगना सीखा। बारिश की हल्की तेज बूंदों का यह जुनून तब से मन में घर कर गया। फिर मन ने बिना सोचे-समझे बारिश का इंतजार करना सीख लिया। तेज बारिश में छाते के नीचे खड़े रहना और मां की प्यारी नजरों से बचते हुए तेज बारिश में घूमते भिगते रहना!

आज फुरसत की शाम मैं काफी देर तक घर के आंगन में सुकुन से बैठकर बारिश सुनता रहा! अतीत में कभी सुनहरे पलों में महसूस की हुई मनभावन यादों की गंध, आज के इस गीले अंधेरे में वही परिचित गंध मन को महसूस होने लगी। छत पर टपकती बारिश की बूंदें… रात के कीड़ों की नीरस ध्वनि… चारों ओर घना अंधेरा और उस काले आसमान पर चमकते अनगिनत जुगनू … प्रकाश की रेखाओं से घूमते हुए! इस तस्वीर का वह नजारा अभी भी मेरे दिमाग से नहीं उतर रहा है! आज भी याद है वो बारिश… बारीश से भीगी स्कूल की वह सड़क और उसके दोनों ओर खिले गुलमोहर की गहरे लाल रंग के पंखुड़ियों से ढंकी गिली सड़क, कितनी खूबसूरती से वह पंखुड़ियां काली सड़क को लाल कर देती। बरसता बारीश और भीगते घुमते फिरते हम छात्र। हाथ में भुने, मसालेदार नमकीन शिंग के दानों का स्वाद और भी अच्छा लगता था।

युवावस्था में वो बारिश की एक छतरी में जानबूझकर दोनों का आधे-आधे भीगना, उन दिनों भी बारिश मेरी बहुत पसंदीदा थी। वह कृष्ण का नीला रंग पहन कर आती थी। उस हल्की-हल्की गीली बारिश में फूलों की रोमांचक महक थी। मन की बहुत सारी बातें कहता था मैं इस बारिश से। शायद वो भी मेरी बात सुनता था… मुझे भिगोने के लिए… कभी मेरी चाहतों का साथ देने के लिए, कभी मेरे होठों पर मुस्कान लाने के लिए। सावन के मौसम में यादें को गीला रहने से बचाना जरूरी है, वरना हम हमेशा ही यादों में भीगे रहेंगे… और यादों के घाव कभी नहीं भर पाएंगे। यह समझना भी जरूरी है।

 सुहाना सफर और ये मौसम हसीं

हमें डर है हम खो न जाएं कहीं

ये कौन हंसता है फूलों में छुप कर

बहार बेचैन है किसकी धून पर

कहीं गुमगुम, कहीं रुमझुम

के जैसे नाचे जमीं

सुहाना सफर…

हसीन वादियों से जुड़ा हुआ ये गाना खुद से एक सुखद बातचीत है। यह बात मैंने इस प्रवास में महसूस की है। यह उस मन का संगीतमय मुक्त आविष्कार है जो प्रकृति की सुंदरता से बहुत प्रसन्न होता है। यह गाना प्रकृति और मनुष्य के बीच के अटूट रिश्ते को उजागर करता है। मानव शरीर भी पंचमहाभूतों से बना है, इसलिए मुझे लगता है कि अगर व्यक्ति हमेशा प्रकृति के करीब रहेगा तो वह निश्चित रूप से स्वस्थ रहेगा।

हम मनुष्य अनादिकाल से ईश्वर की खोज कर रहे है। लेकिन हम अभी भी यह नहीं समझ पाए है कि यह भगवान प्रकृति में ही छिपा हुआ है। वह प्रकृति जो फूलों से हंसती है, खिले हुए वातावरण से चहकती है और असीम हरियाली से मधुर नृत्य करती है, वह प्रकृति अथवा मौसम वास्तव में भगवान का ही रूप है। चार दिन के इस कोंकण प्रवास में बारिश के माहौल ने मुझे शायद यही समझाने का प्रयास किया है।

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