अपनी मेहनत रंग लाती है

भाजपा नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के विजय रथ पर सवार है, लेकिन इंडिया गठबंधन को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। भाजपा द्वारा पिछले 9 सालों में किए गए जन हितैषी कार्यों को अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाना आवश्यक है। साथ ही, उम्मीदवार चुनते समय उसके जन सम्पर्क पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।

मुंबई में 31 अगस्त तथा 1 सितम्बर को इंडिया गठबंधन की बैठक हुई। 28 विरोधी दल एकत्रित हुए और लगभग 68 राजनीतिक नेताओं ने बैठक में भाग लिया। लोकतंत्र में सत्ता के खेल में विरोधी दलों का एकजुट होना स्वाभाविक विषय होता है। परंतु अन्य समय आपस में झगड़ने वाले दल मोदी के विरोध में एक साथ आये, यह कोई सामान्य बात नहीं है।

सामान्य नहीं होने के कारण सभी प्रचार माध्यमों के प्रमुख खबरों का विषय यह बैठक रही। आगामी लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को कैसे पराजित किया जाए, इस बैठक का यही एकमात्र विषय था। राहुल गांधी ने कहा कि एनडीए को पराजित करना सम्भव है। हम 60% भारतीयों का प्रतिनिधित्व करते हैं। दूसरे एक नेता ने कहा, हमारी बैठक से भाजपा घबरा गई है। तीसरे नेता ने कहा कि, उन्होंने डरकर संसद का विशेष अधिवेशन बुलाया है। मोदी की पराजय निश्चित है क्योंकि मोदी का व्यवहार तानाशाह जैसा है। मोदी के कारण संविधान और लोकतंत्र खतरे में पड़ गया है। चौथा नेता बोला, ईडी और सीबीआई का गैरजरूरी इस्तेमाल कर मोदी विरोधियों को बदनाम कर रहे हैं। पांचवें नेता ने कहा कि, हममें मतभेद होने के बावजूद हमारी एकजुटता अखंड है। इंडिया के नेताओं का ऐसा वक्तव्य देना एकदम स्वाभाविक है। हम लोकसभा के चुनाव हारने के लिए एकत्रित हुए हैं, ऐसा कोई भी नहीं कह सकता। हम ही जीतेंगे, ऐसा सभी नेता कहते हैं।

अपेक्षा के अनुसार इस गठबंधन पर भाजपा और भाजपा समर्थकों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। सबके वक्तव्य यहां देना सम्भव नहीं है। भाजपा के वरिष्ठ नेता रविशंकर प्रसाद ने कहा कि बैठक की विषय सूची का एकमात्र कार्यक्रम पीएम मोदी को गालियां देना था और उसमें एकत्रित सभी नेताओं में प्रतियोगिता चल रही थी। उन्होंने आगे कहा कि इंडिया गठजोड़ के सामने कोई विजन नहीं है। गरीबों, महिलाओं, किसानों, आतंकवाद के विषय में, उनके पास कोई भी कार्यक्रम नहीं है। सोनिया गांधी को अपने भविष्य की चिंता है तो उधर लालू प्रसाद को अपने पुत्र के भविष्य की चिंता है। देश की चिंता किसी को भी नहीं। इंडिया गठबंधन वाले अपनी भूमिका का समर्थन करेंगे और भाजपा नेता अपनी भूमिका का समर्थन करेंगे, यह दोनों ही बातें स्वाभाविक हैं। केवल प्रश्न यह है कि मोदी का विरोध जनमानस में कितना प्रभावशील हो सकता है। उसे प्रभावशील बनाने के लिए मोदी के हाथों कुछ ऐसी गम्भीर गलतियां होनी चाहिए जिसके कारण जनता उन्हें नापसंद करे। लेकिन क्या ऐसी वस्तुस्थिति है?

नरेंद्र मोदी देश के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता हैं। गत 9 वर्षों में उन्होंने देश में जो बदलाव लाया है, वह प्रत्येक सामान्य व्यक्ति के जीवन से सम्बंधित है। स्वच्छता गृह की मुहिम, गैस सिलेंडर देने की योजना, जनधन योजना, मेक इन इंडिया, स्टार्टअप, मूलभूत सुविधाओं का विषय, अर्थव्यवस्था को विश्व में पांचवें क्रमांक पर लाना, महासत्ताओं की कतार में भारत को स्वतंत्र रूप से प्रभावशाली बनाना, चांद पर विक्रम लैंडर उतारना, आदित्य एल-1 का सफल प्रक्षेपण, ऐसी सब बातें भारत के सामान्य से सामान्य व्यक्ति को पता हैं। ऐसा होते हुए ‘मोदी नहीं चाहिए’ का नारा लोकसभा में कैसे चलेगा? यह एक बड़ा प्रश्न है।

ऐसा होते हुए भी जब देश के 28 विरोधी दल एक साथ एक मंच पर आकर पटना, बैंगलुरु तथा मुंबई में बैठकें करते हैं तब इस विषय को सरलता से टाला नहीं जा सकता। भाजपा के नेता गठबंधन की खिल्ली उड़ाते हैं। वह उनकी दृष्टि से अपरिहार्य होने के बावजूद हमारे जैसे सामान्य मतदाता उसे नजरअंदाज नहीं कर सकते। उसका गम्भीरता से विचार करना होगा। विचार करने के दो प्रकार हो सकते हैं। पहला यानी घबराकर विचार करना और दूसरा शांत चित्त से विचार करना। इंडिया गठबंधन का विचार यदि गम्भीरता से भी करना हो तो भी वह घबराकर विचार करने का विषय नहीं है। कारण गठबंधन में कांग्रेस को छोड़कर कोई भी अखिल भारतीय दल नहीं है।

गठबंधन के कुछ दल अपने-अपने क्षेत्र में प्रभावी हैं। केजरीवाल, ममता, स्टालिन, लालू यादव, नीतीश कुमार इत्यादि राजनीतिक नेता अपने-अपने क्षेत्र में प्रभावी हैं, इसलिए वे एक दूसरे की सहायता कैसे करेंगे? ईसाप नीति में एक कहानी है कि मछली और सिंह ने आपस में मित्रता का करार किया। सिंह ने हाथी पर हमला कर दिया। सहायता के लिए उसने मछली को आवाज दी। गठबंधन के करार के अनुसार वह आई भी परंतु किनारे तक, जमीन पर नहीं आ पाई। अंत मेें सिंह ने हाथी को पराजित कर दिया। गुस्से में वह मछली से बोला, वाह रे तुम्हारी दोस्ती… तुम पानी में बैठकर मजे में तमाशा देखती रही! मछली बोली मेरा सामर्थ्य पानी के अंदर ही है, जमीन पर मेरी मृत्यु निश्चित है। सिंह का सामर्थ्य जमीन पर होता है, वह यदि पानी में गया तो डूब कर मर जाएगा। केजरीवाल ममता की मदद कैसे करेंगे और ममता केजरीवाल की सहायता कैसे करेंगी? यह गठबंधन से स्पष्ट नहीं है।

परंतु यह गठबंधन है, यह निश्चित है। मोदी को हराने की मानसिकता, ईर्ष्या से यह सब एकत्रित हुए हैं। उनकी ताकत भले थोड़ी हो परंतु अपने-अपने क्षेत्र में वे प्रभावशाली हैं। इस ओर ध्यान देना ही पड़ेगा। कोई नगण्य विषय भी किसी अनर्थ का कारण हो सकता है। आग की एक छोटी सी चिंगारी यदि समय पर नहीं बुझाई गई तो वह प्रबल आग में परिवर्तित हो सकती है। शरीर का एक छोटा सा जख्म भी ध्यान न देने पर मनुष्य की मृत्यु के लिए कारणीभूत हो सकता है।

बर्मा (म्यांमार) की एक कथा है। एक राजा खिड़की में बैठकर शहद के साथ भात खा रहा था। खाते खाते शहद की एक बूंद नीचे गिरती है, जिसे खाने के लिए चूहा आता है। चूहे को खाने के लिए पड़ोस के घर की बिल्ली आती है और बिल्ली को खाने के लिये पास ही के घर से कुत्ता आता है। बाद में बिल्ली की मालकिन और कुत्ते के मालिक के बीच झगड़ा होने लगता है। झगड़ा समाप्त करने सेना की टुकड़ी भेजी जाती है। परंतु टुकड़ी में दो भाग हो जाते हैं। एक बिल्ली की मालकिन का पक्ष लेता है और दूसरा कुत्ते के मालिक का। सैनिक विभाजित होकर आपस में ही लड़ने लगते हैं और लड़ते-लड़ते वे राजभवन को आग लगा देते हैं। जान बचाने के लिए राजा भाग जाता है। बर्मा की इस कथा का तात्पर्य यह है कि शहद की एक बूंद ने राज्य का नाश कर दिया। इसलिए इंडिया गठबंधन के शहद की बूंद को महत्वहीन नहीं माना जा सकता।

इस गठबंधन के नेताओं की शक्ति गलत प्रचार, झूठा प्रचार, लोगों को भटकाने, उनकी दिशाभूल करने में बहुत बड़ी है। उसे समझने के लिए सामना के सम्पादकीय, शरद पवार के वक्तव्य, राहुल गांधी के भाषण पढ़ने और सुनने चाहिए। एक प्राचीन नियम ऐसा है कि असत्य बात यदि बार-बार दोहराई जाए तो वह सत्य लगती है। पृथ्वी समतल है एवं सूर्य पृथ्वी का चक्कर लगाता है, यह असत्य वर्षों से दोहराया जाता रहा और उसके कारण लोगों को यह सत्य भी लगता रहा।

असत्य प्रचार करने वाले इस गैंग से हम जैसे सामान्य व्यक्तियों को लड़ना है। भाजपा के नेता एवं दल उनकी पद्धति से यह लड़ाई लड़ेंगे ही, परंतु उन्हें जनसामान्य का साथ चाहिए। चुनाव कैसे जीते जाते हैं? एक बात तो हम सभी जानते हैं कि जिनकी ओर जनमत होता है वही दल चुनाव जीतता है। अब सवाल उठता है कि जनमत को अपनी ओर कैसे मोड़ना है? जनता का अपना एक राजनीतिक मत होता है। मतदाता क्षेत्र में कौन उम्मीदवार है, उनका जनसम्पर्क कितना मजबूत है,

मतदाताओं के सुख-दुख में वे कितना सहभागी होते हैं, मतदाताओं के कितने प्रश्न उन्होंने हल किए हैं, मतदाताओं की ओर देखने की उनकी दृष्टि कैसी है, मतदाताओं की ओर उनका दृष्टिकोण पालक का है या मालिक का? इन सब बातों से जनमत तैयार होता है।

नरेंद्र मोदी लोकप्रिय हैं, उनकी लोकप्रियता पर सवार होकर जो लोग जीतने का सपना देखते हैं, उनका कर्नाटक होता है। इसके पूर्व भी बंगाल में यह झटका भाजपा को लग चुका है। दिल्ली और पिछले चुनावों में मध्यप्रदेश में भी यह झटका लग चुका है। इसलिए नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता पर मैं जीत जाऊंगा इस भ्रम में कोई ना रहे। जिसने स्वयं कष्ट उठाए वही जीत सका, यह ध्यान में रखना चाहिए। इंडिया गठबंधन को उपहास का विषय ना बनाते हुए उसे आह्वान मानकर मैदान में उतरना होगा।

 

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