आज भी भगवान महावीर के विचारों में इतना शक्ति सार्मथ्य है कि वह युद्ध, संघर्ष, हिंसा और आतंकवाद के चुनौती भरे समय में भी दुनिया को शांति, सद्भावना, सदाचार की दिशा में प्रेरित कर सकती है। इसलिए उनके संदेश व विचारों को आत्मसात करना आवश्यक है। जीवन के हर पहलू में महावीर के विचारों की आवश्यकता है।
जीवन में हर प्रकार के संतुलन के लिए मानसिक संतुलन आवश्यक है। अवचेतन मन को नियंत्रित करके, हिंसक सिद्धांतों से दूर रहकर, नैतिक मूल्यों की रक्षा करके इस मानसिक स्थिति की प्राप्ति हो सकती है। इस प्रकार के विचारों को समाज में प्रसारित करने में सनातन भारत के विभिन्न पंथों के संस्थापकों एवं विचारकों का योगदान महत्वपूर्ण है। मनुष्य में आत्म शक्ति, आंतरिक परिवर्तन और प्रेरणा लाने के लिए आवश्यक मनोवैज्ञानिक प्रभाव पैदा करने में विभिन्न धर्मों और पंथों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। समाज में लोग जितने संयमी और सकारात्मक सोच वाले होंगे, राजनैतिक -सामाजिक व्यवस्था उतनी ही सफल होगी। इसलिए राजनैतिक व्यवस्था स्थापित करने से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है व्यक्ति में सकारात्मक परिवर्तन लाना। केवल एक ही हथियार है जो दुनिया में इस समय भड़की हिंसा की आग को बुझा सकता है और वह कोई परमाणु बम नहीं है अपितु प्रेम और अहिंसा से जुड़े विचार हैं। इसी भूमिका को निभाते हुए भगवान महावीर ने 2600 साल पहले पाया कि मानव सभ्यता की इमारत अहिंसा की नींव पर मजबूती से खड़ी हो सकती है। 2600 साल पहले भगवान महावीर द्वारा दिया गया अहिंसा और शांति का संदेश आज भी दुनिया भर के लोगों को प्रभावित कर रहा है।
छब्बीस शताब्दी पहले प्रचलित उस महान व्यक्ति को हमें वर्तमान में क्यों याद रखना चाहिए? आज संसार और जीवन का स्वरूप बदल गया है। ऐसा मानने वालों के एक वर्ग का कहना है कि क्या पुराने आदर्श उन्नत भौतिक विज्ञान के इस आधुनिक युग में उपयोगी होंगे? लेकिन अतीत की महान परम्पराओं के समर्थन के बिना मानव जीवन का वर्तमान और भविष्य स्थिर नहीं हो सकता। सम्पूर्ण अतीत को अस्वीकार करना समाज एवं राष्ट्र के लिए आत्मघाती होगा। सदियों पहले अपने पराक्रम से इतिहास रचने वाले महापुरुषों के विचारों में एक प्रकार की ताजगी बनी रहती है। महापुरुषों के विचार और उनके द्वारा बताए हुए आचार कभी अप्रासंगिक नहीं होते। सम्पूर्ण मानवता को अहिंसा और प्रेम का संदेश देने वाले भगवान महावीर के विचारों की आज के समाज को नितांत आवश्यकता है। भगवान महावीर के विचारों से दीप स्तम्भ के समान अनंत प्रकाश निरंतर मिल रहा है।
आज हर ओर हिंसा की आग देखने को मिल रही है। भय, अविश्वास, अन्याय, उत्पीड़न और शोषण के कारण घातक वातावरण निर्मित हो गया है। मानव ही मानव का शत्रु बन गया है।
कई देश एक-दूसरे के विरूद्ध प्रतिबंधों का प्रयोग कर रहे है। द्वेष, ईर्ष्या, लालच हर जगह हैं। दुनिया में प्रेम, करुणा और शांति दुर्लभ हो गई है। छब्बीस शताब्दी पहले भगवान महावीर ने कहा था, ‘मिट्टी में सव्व भुवेसु वेरं मजजं न केंदु’ मैं सभी का मित्र हूं। मेरी किसी से कोई शत्रुता नहीं है। इस घोषणा में महावीर का जीवन दर्शन समाहित है। उन्होंने समस्त मानवता को ‘जियो और जीने दो’ का जीवंत विचार प्रदान किया। वर्तमान में जीवन को प्रेम और शांति की आवश्यकता है। कोई भी व्यक्ति केवल अपने हथियार की धार तेज करतेहुए जीवित नहीं रह सकता। इसलिए महावीर ने अहिंसा के सर्वव्यापी विचार की व्याख्या की। उन्होंने अपनी जीवन शैली के माध्यम से बताया कि अहिंसा, जीव दया का विचार ही जीवन जीने का मूल विचार है।
महावीर के समय में धर्म के नाम पर हजारों निर्दोष जानवरों की हत्या कर दी जाती थी। उस दौरान तरह-तरह के बलिदान चल रहे थे। पशुवध, मांस-भक्षण, नशाखोरी, हिंसक जीवनशैली, कुटिल भावनाओं का प्रदर्शन, सामाजिक अन्याय, जातिगत हीनता और असमानता को दी जाने वाली गरिमा के दृश्यों से महावीर का मन बहुत व्यथित था। एक राजकुमार ने विद्रोह कर दिया। सनातन धर्म के श्रेष्ठ मूल्यों की इन विकृतियों को रोकने के लिए, अधर्म और अन्याय से लड़ने का निश्चय कर समाज सुधार के लिए सर्वस्व अर्पण करते हुए एक राजकुमार तीर्थंकर भगवान महावीर की उपाधि को प्राप्त हुआ। महापुरुषों के विद्रोह नवअर्चना के विचारों से ही उत्पन्न होते हैं। वे अन्याय को दूर करते हुए समाज के मन में धर्म और न्याय का सकारात्मक विचार पैदा करना चाहते हैं। अहिंसक और शांतिपूर्ण विश्व के निर्माण के लिए महावीर ने अहिंसा को जीवन का केंद्र माना है, लेकिन ऐसा करते समय मनुष्य के हृदय में मित्रता और क्षमा का भाव भी उत्पन्न होना चाहिए। प्रेम, सहनशीलता और सहयोग के गुण जीवन के बहुमुखी विकास में योगदान करते हैं। यह सैद्धांतिक विचार भगवान महावीर ने सकल विश्व को दिया है।
जब पूरी दुनिया में हिंसा की तूती बज रही थीं, तब महावीर ने अहिंसा की मधुर, कोमल धुन को बड़ी लगन के साथ गाया। जीवन के एक नए पर्व की शुरुआत की। उन्होंने भोगवादी, अज्ञानी एवं कट्टर धार्मिक संस्कृति की धारा को अहिंसा की ओर मोड़ने का प्रयास किया। उस समय यज्ञों में बलि की अंधश्रद्धा के चलते लाखों जानवरों की बलि दी जाती थी। वह यज्ञीय हिंसा आज नहीं हो रही है। इस परिवर्तन में मानव समाज के साथ-साथ सनातन धर्म पर भगवान महावीर का बहुत बड़ा प्रभाव है। वर्तमान में मानव समाज का मांस खाना और शराब पीना कम हो गया है, यह भी महावीर के अहिंसक विचारों का ही प्रभाव है। भगवान महावीर का यह विचार दया और अहिंसा के आग्रह पर विकसित हुआ है, वह स्थिर है और अनंत काल तक स्थिर रहेगा। सनातन संस्कृति से निर्माण हुए इस जीवन कल्याण के विचारों का केवल भारत में ही नहीं विश्व के विविध देशों में अध्ययन किया जा रहा है। इसी समय भगवान महावीर, गौतम बुद्ध, रामकृष्ण, विवेकानंद, अरविंद योगी, रमण महर्षि, कृष्णमूर्ति के आध्यात्मिक नेतृत्व का भी अध्ययन किया जाने लगा। उनसे प्रभावित होकर दुनिया भर के विचारक नतमस्तक हो गए। कई वैज्ञानिकों ने जीव या आत्मा का अध्ययन किया, लेकिन वे भगवान के सामने झुक गए क्योंकि विज्ञान की प्रगति के बाद भी विश्व और जीवन से जुड़े हुए मूल रहस्यों को वे समझ नहीं पा रहे थे, वे उसे समझना चाहते थे। सनातन धर्म के विविध विचारों के साथ-साथ अहिंसात्मक जीवन के मंत्र को भी महावीर से लेकर कई विचारकों ने प्रेमपूर्वक अपनाया है।
केवल सत्ता के लिए, हिंसा के विचार से ग्रस्त तथा रक्तपात को ‘धर्म’ मानकर हजारों लोगों की हत्या कर देने की भयंकर विकृति हमारे सामने प्रस्तुत हो रही है। इस संसार में अनैतिक और अधार्मिक प्रदूषण बढ़ रहा है। सत्ता के भूखे देशों के हाथों में लाखों लोगों को पल भर में खत्म करने वाले भयानक हथियार तैयार हैं। कट्टरता से उन्मादित लोग इन हथियारों के माध्यम से मानव सभ्यता को नष्ट कर सकते हैं। खून का दाग कभी भी खून से नहीं धुलता। इस जघन्य हिंसा से दुनिया ने कौन सी प्रगति की है? कब तक यह दुष्चक्र जारी रहेगा? विश्व को विनाशक विचारों से दूर करना अत्यंत आवश्यक है। इसे रोकने के लिए अहिंसा, अनेकांतवाद और संयम की आवश्यकता है। इसीलिए आज हमें भगवान महावीर के अहिंसात्मक विचारों को आत्मसात करना होगा।
अहिंसा की व्याख्या करते हुए भगवान महावीर ने कहा है कि मन में हिंसा का विचार करना भी हिंसा ही है। ‘सभी प्राणियों के प्रति स्नेह, सज्जनों के प्रति आनंद, पीड़ितों के प्रति करुणा, विरोधियों के प्रति तटस्थता ही आत्मा में होनी चाहिए।’ महावीर का यह अहिंसा का विचार किसी भी दृष्टि से कायरता या पलायनवाद को प्रोत्साहित नहीं करता। जैनियों का भी साम्राज्य था। उनकी रक्षा के लिए शासकों को युद्ध लड़ना पड़ा, लेकिन इन युद्धों की उत्पत्ति का सम्बंध सत्ता और धन के विस्तार से नहीं था। यह युद्ध प्रजा की रक्षा और धार्मिक मूल्यों की रक्षा के उद्देश्य से लड़ा जाता था। इस युद्ध को अहिंसा के विचार के साथ असंगत नहीं कहा जा सकता। जैन धर्म का यह आग्रह निरंतर रहा है कि जीवन का समग्र आचरण, चिंतन, अहिंसा और प्रेम, समानता और परस्पर स्नेहभाव, संयम और त्याग किसी भी समय जुड़े रहें।
आज त्याग की जगह भोगवाद, चरित्र की जगह दुराचार और वासनाओं का बोलबाला है। लोभ और मोह के साथ-साथ जातिगत ऊंच-नीच और असमानता की भावना भी बढ़ रही है। ऐसी स्थिति में हमारी सुंदर दुनिया आज हिंसा और अज्ञानता के ज्वालामुखीय पहाड़ पर खड़ी है। यह इतनी भयावह स्थिति है कि यह किसी भी क्षण जलकर राख हो सकता है। एक बार फिर महावीर के विश्व बंधुत्व प्रेम की धारा इस संसार पर बरसनी चाहिए। आज की स्थिति में यदि महावीर का चरित्र, साधुत्व, ज्ञान दृष्टि, विचार समता का भाव हर क्षेत्र में उभर आए तो यह दुनिया बदल जाएगी। आज भी जीवन के सभी पहलुओं में महावीर जी के विचार बहुत ही प्रासंगिक हैं।
महावीर ने ज्ञान और प्रेम के दो सिद्धांतों पर आधारित समाज की कल्पना की। सत्य कई प्रकार से प्रकट होता है, व्यक्ति अथवा उसके विचार बहुआयामी होते हैं। उन आयामों को समझने के लिए व्यक्ति का दृष्टिकोण अनेकांतवादी होना चाहिए, इसके बिना सत्य की खोज नहीं हो सकती। अनेकांतवाद आज की सभी समस्याओं का उत्तर हो सकता है, इसे अस्वीकार करना अज्ञानता है। आज और कल की दुनिया को इस तर्कसंगत विचार को स्वीकार करना होगा। भगवान महावीर द्वारा अपने उपदेशों में उल्लिखित अपरिग्रह और अनेकांतवाद भी अहिंसा के ही रूप हैं।
महावीर के विचार को समय और परिस्थिति की सीमा में नहीं बांधा जा सकता। उन्होंने जीवन में वीरता और धैर्य, धर्मपरायणता और मूल्य की बात की जो किसी सम्प्रदाय विशेष के लिए नहीं है। जीवन के सभी क्षेत्रों के सभी प्रकार के लोग, पुरुष और महिलाएं, महावीर की विचारधारा में स्वतंत्र रूप से प्रवेश कर सकते हैं। महावीर वाणी को ‘दिव्य ध्वनि’ की संज्ञा दी गई, क्योंकि उनकी बातों में सभी के प्रति गहरा स्नेह था। वे महासभा को ‘भव्य जीवहो’ कहकर सम्बोधित करते थे। उनकी नजर में सब कुछ भव्य था। उनकी आवाज हर जीव कल्याण की कामना करने वाली थी, इस कारण सभी के दिल को छूती थी। ऐसे महापुरुषों के विचार और व्यक्तित्व में असीमित शक्ति होती है। भारतीय संस्कृति एवं मानव जीवन को ऊंचाई पर पहुंचाने वाले महापुरुषों की श्रृंखला में भगवान महावीर का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। ‘तीर्थंकर’ शब्द का अर्थ है जो संसाररूपी समस्या की नदी को पार करने के लिए घाट यानी तीर्थ बनाता है। इस तीर्थंकर को मानव जाति को हिंसा, रक्तपात और प्रतिशोध के अंधेरे युग से अहिंसा के प्रकाश पथ पर लाने का श्रेय दिया जाता है।
भारत का धर्म कभी भी आक्रामक और पीड़ादायक नहीं रहा। हमारी नींव ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ के आदर्श पर आधारित है। सनातन सिद्धांत ‘हठधर्मिता’ और दुराग्रह से बंधे नहीं हैं, बल्कि सार्वभौमिक जीवनमूल्य हैं। आज जब देश, समाज एवं व्यक्ति की आपसी दूरी बढ़ गई है, ऐसे में इस दूरी को कम करने के लिए शाश्वत नैतिक मूल्यों की आवश्यकता है। वैश्विक स्तर पर एकता और परस्पर स्नेह भाव स्थापित करने की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक महसूस की जा रही है। व्यक्ति एवं समाज मन में अस्थिरता, बेचैनी है, जीवन मूल्यों की कमी है। कई अजीबोगरीब विचारों ने मनुष्य और मानव संस्कृति के जीवन प्रवाह को अवरुद्ध और अंधकारमय कर दिया है। मानवता को बचाने के लिए शुद्ध, प्रबुद्ध और प्रेमपूर्ण विचारों की निरंतर आवश्यकता है। यही कारण है कि आज की दुनिया को तीर्थंकर भगवान महावीर नामक एक महान, विशाल व्यक्तित्व के सर्वव्यापी एवं सकारात्मक विचारों की ओर देखने की जरूरत है, क्योंकि जीवन के हर पहलू में आज भी महावीर के विचारों की उपयोगिता है।