मीडिया में भाजपा और संघ के बीच दरार डालने वाली बेबुनियाद खबरें चलीं, झूठे विचार-विमर्श गढ़े गए, जबकि इसका सच्चाई से कोई सरोकार नहीं है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ राजनीति में प्रबल राष्ट्रनीति का समर्थन करता आया है।
जून 2024 के संसदीय चुनाव परिणाम आने के बाद अचानक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम राजनीति में घसीटा गया। संयोग ऐसा बना कि 4 जून को चुनाव परिणाम आया। 9 जून को एनडीए सरकार का शपथ ग्रहण समारोह हुआ और 10 जून को नागपुर में संघ के द्वितीय वर्ष के कार्यकर्ता विकास वर्ग के समापन समारोह में पू. सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने स्वयंसेवकों को सम्बोधित किया। सामान्यतः ऐसे अवसर पर देश समाज की चुनौतियों का सामना करने और सामाजिक, सांस्कृतिक, देश-विदेश की स्थिति परिस्थिति की चर्चा होती है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मानदंडों के शीर्ष व्यक्तित्व डॉ. मोहन भागवत हैं। उनका कथन स्वयंसेवकों के लिए संकेत है। संयोग था कि कुछ दिनों पूर्व भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने एक अंग्रेजी अखबार को साक्षात्कार देते समय कहा था कि जनसंघ स्थापना के समय कार्य बड़ा था, संगठन और पार्टी छोटी थी, तो संघ की सहायता की आवश्यकता थी अत: सहायता ली गई। आज भाजपा एक विशाल रूप ले चुकी है, यह विश्व की सर्वाधिक सदस्यता वाला संगठन है। पन्ना प्रमुख तक कार्यकर्ता का संगठन खड़ा है। अतः पार्टी सभी कार्य करने में स्वावलम्बी है। अब बाहरी सहायता की आवश्यकता नहीं है। राजनीति में इसका आशय यह लिया गया कि भाजपा को कभी संघ कार्यकर्ता की आवश्यकता रही होगी पर अब नहीं है, क्योंकि भाजपा स्वयं बड़ी पार्टी हो गई है। अतः संघ स्वयंसेवकों की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। भले ही नड्डा का यह मंतव्य न रहा हो, परंतु चर्चा यह चली कि इस बार चुनाव में संघ के स्वयंसेवकों की भूमिका नहीं रही और भाजपा को सीटें कम मिलीं। भाजपा से संघ नाराज है।
डॉ. मोहन भागवत ने कार्यकर्ता विकास वर्ग में अपने सम्बोधन में केवल इतना ही कहा था कि प्रत्येक पांच वर्ष के बाद चुनाव होते हैं। समाज ने अपना मत दिया, परिणाम क्या हुआ-क्यों हुआ, हम इस पचड़े में नहीं पड़ते। जो वास्तविक सेवक होता है वह मर्यादा से चलता है। यही हमारी संस्कृति है। सेवा कार्य में लिप्त हो कर अहंकार नहीं करना चाहिए। चुनाव स्पर्धा है, युद्ध नहीं। हमारी परम्परा परस्पर सहमति बना कर चलने की है। चुनाव प्रचार में तकनीक का सहारा ले कर असत्य बातें की गई। राजनीति में विरोधी नहीं होता प्रतिपक्ष होता है। इस चुनाव में आवेश में अतिरेक हुआ। उन्होंने यह भी कहा कि मणिपुर में कलह उपजाया गया। विगत एक वर्ष से अधिक समय से वहां संघर्ष हो रहा है। इसे शांत कराने का प्रयास होना चाहिए। उन्होंने आगे यह भी कहा कि विगत 10 वर्षों में अर्थजगत, कला, क्रीड़ा, ज्ञान-विज्ञान, संस्कृति एवं संसाधन विकास के क्षेत्र में तीव्र गति से विकास हुआ है। समाज अपने राजा को बनाता है और अपनी स्थिति का भी स्वयं निर्धारण करता है। फ्रांस-रूस में जनता ने खड़े हो कर परिवर्तन लाया। समाज परिवर्तन से व्यवस्था परिवर्तन होता है। भारत का स्व जागरण सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, संतो द्वारा जागरण तथा जनसंघर्ष पर आधारित है। विविधता ही हमारी एकता की अभिव्यक्ति है। अपने-अपने पथ और अपने-अपने विश्वास है। हमें सबका सम्मान करना चाहिए। बाहर की विचारधारा केवल अपने को श्रेष्ठ मानती है। हम ही सही, बाकी सब गलत है। अत: हमें पैगम्बर और ईसा को भी समझना होगा। उन्होंने आगे अपने सम्बोधन में यह भी कहा कि सामाजिक समरसता, पर्यावरण, स्व आधारित व्यवहार व जीवन, परिवार प्रबोधन, संस्कृति रक्षा और रोज के कार्य को समझना और सीखना चाहिए।
वस्तुतः डॉ. मोहन भागवत के सम्बोधन में कहीं भी यह परिलक्षित नहीं होता कि वे वर्तमान राजनीति या भाजपा से नाराज हैं। उन्होंने जो बातें कहीं वह सभी के लिए हितकर है। वास्तविकता यह है कि संघ अपने स्थापना काल से ही राजनीति में राष्ट्रनीति का समर्थक रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक अराजनैतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक संगठन है। उसका मुख्य उद्देश्य व्यक्ति निर्माण, समाज संगठन एवं समाजसेवा है। संघ चूंकि पूरे भारतीय समाज को संगठित करने का लक्ष्य लेकर चल रहा है अतः वह किसी राजनैतिक दल के अधीन रह कर कार्य नहीं कर सकता है। उसका वास्तविक कार्य राष्ट्र के सच्चे सांस्कृतिक जीवन को पल्लवित करना है। संघ अपने स्वयंसेवकों को यह छूट प्रदान करता है कि वे ऐसे किसी भी दल या विचारधारा में सहभाग कर राष्ट्र निर्माण में भाग ले सकते हैं, बशर्ते वह दल या संगठन अहिंसा में तथा भारतीय संविधान में विश्वास रखते हों। हिंदू समाज के संगठन का अर्थ सर्वसमाज, सब क्षेत्रों के सब घटकों का संगठन करना। स्वयंसेवक राष्ट्रहित में अपने मत का प्रयोग करता है। वह किसी से नाराज नहीं और न ही नाराज करता है। संघ एक केवल विचार नहीं अपितु जीवन जीवन जीने की पद्धति है। सब बराबर के मित्र हैं। आज्ञापालन और अनुशासन रीति है। संयमित व सादगीपूर्ण जीवन, नीतिपूर्वक धन अर्जन व्यवहार है। व्यक्ति निर्माण और समाज संगठन का कार्य राजसत्ता द्वारा सम्भव नहीं है, इसलिए संघ संस्थापक डॉ. हेडगेवार ने राजनीति से अलग हो कर संघ की स्थापना की। देशभक्ति एवं सामाजिक सरोकार समाज में निर्माण करना और इसके माध्यम से संगठित लोकशक्ति द्वारा राजसत्ता पर अंकुश रखने और नैतिकता पर आधारित राष्ट्र नीति युक्त साफ सुथरी राजनीति देश में चले यही संघ चाहता है। स्वयंसेवक एक राष्ट्रीय दृष्टिकोण लेकर समाज के विभिन्न अंगो में सक्रिय है। लगभग 43 समवैचारिक संगठनों के माध्यम से 1.32 लाख सेवा प्रकल्प वह देश में संचालित कर रहा है। जीवन के हर क्षेत्र में उसकी सक्रियता है। संघ को देश के विकास की एक विशिष्ट कल्पना एवं विचार है। उस विचार से जो दल सहमत होते हैं, उस दल के साथ स्वयंसेवकों की स्वाभाविक सहानुभूति हो जाती है।
भाजपा संघ के इस विचार को साझा करती है और इसलिए ये संघ के स्वयंसेवकों का स्वाभाविक समर्थन भाजपा को मिलता है, परंतु संघ किसी दल के लिए नहीं, देश के लिए कार्य करता है। सबको साथ ले कर चलने और विकास करने की उसकी स्वाभाविक प्रवृत्ति है। कोई बाहर से नहीं आया है। सब इसी देश के हैं। सभी की जीवन दृष्टि हिंदू एवं भारतीय है। सभी एक मां के पुत्र हैं। सबका डीएनए एक है इसलिए राष्ट्रहित और राष्ट्रनीति ही राजनीति का भी आधार हो, यही संघ चाहता है। हिंदू एक जीवन दृष्टि, एक जीवन पद्धति है। हिंदू उपासना, पंथ, मजहब या सिटीजन के नाते नहीं एक राष्ट्रीयता सूचक उद्बोधन है। हमारा काम सबको जोड़ना है। संगठन ही शक्ति है भारत से निकले सभी सम्प्रदायों का जो सामूहिक मूल्यबोध है उसका नाम ‘हिंदुत्व’ है। संघ का कोई शत्रु नहीं। परम्परा, राष्ट्रीयता, मातृभूमि और पूर्वजों के आधार पर ‘हम सब हिंदू’ हैैं। हमारी मूलभूत आवश्यकता है हमारे ‘स्व’ की पहचान। भारत की राजनीति को इसी राष्ट्रनीति पर चलना होगा। यदि देश को जातिगत या पांथिक गोलबंदी से या परिवारवाद के आधार पर चलाना चाहेगा तो यह राष्ट्रहित में नहीं होगा। देश इससे विखंडित होगा। यह कोई भारतवंशी नहीं चाहेगा। राजनीति की एक मर्यादा होनी चाहिए। इस मर्यादा का नाम है ‘राष्ट्र नीति’ अर्थात ‘राष्ट्र प्रथम’। एकता के आधार पर ही हम विश्व का मार्गदर्शन कर सकेंगे।