एक लेखक, एक पत्रकार के साथ एक प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी प्रशांत वाजपेई के आकस्मिक निधन ने सबको झकझोर के रख दिया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से उनका गहरा लगाव था। उनकी लेखन शैली सहज ही लोगों को प्रभावित करती थी।
प्रशांत वाजपेई असमय चले गए। आज विमर्श की लड़ाई लड़ने वाले बौद्धिक योद्धाओं की नितांत आवश्यकता है। ऐसे समय में इनका जाना, एक अपूर्णनीय क्षति है।
प्रशांत वाजपेई ऊर्जावान थे। सदा हंसता हुआ चेहरा, हमेशा अपने काम में मग्न रहने वाले थे। सहसा पढ़ने-लिखने वाले लोग, कृतिशील या कर्मशील कम ही होते हैं। किंतु ये इसका अपवाद थे। वे पढ़ते-लिखते तो थे ही, साथ ही प्रत्यक्ष जमीन पर भी काम बहुत करते थे। प्रांत में खूब प्रवास करते थे।
नर्मदा मैया से उनका गहरा नाता था। नर्मदा नदी अमरकंटक से निकलकर मंडला होते हुए जबलपुर आती है। प्रशांत वाजपेई का प्रवास भी कुछ ऐसा ही रहा है। उनका परिवार मंडला से है। बाद में उनके पिताजी जबलपुर आए और यहां स्थाई हो गए। प्रशांत वाजपेई संघ के सम्पर्क में आए जरा विलंब से। स्नातक होने के पश्चात वह कोचिंग पढ़ाते थे। उन्हीं दिनों, उनका संघ से सम्पर्क हुआ। यह सम्पर्क भी ऐसा रहा कि वे संघ के होकर रह गए। पिछले 20 वर्षों में उनका जीवन संघानुकूल ही रहा। संघ उनके घर में था। संघ उनके मन में था। संघ उनके हृदय में था। अनेक पारिवारिक निर्णय भी वे संघ अधिकारियों से पूछ कर ही लेते थे।
प्रारम्भ में जबलपुर में महाविद्यालयीन विद्यार्थी प्रमुख रहे। किंतु उसके बाद वे संघ के प्रचार विभाग में आए और यही के होकर रहे। प्रचार विभाग में उन्होंने अनेक दायित्वों का निर्वाहन किया। मासिक पत्रिका शाश्वत हिंदू गर्जना का सम्पादन किया। कंपोजिंग किया और पत्रिका के वितरण में भी हाथ बंटाया। किसी भी कार्य को वह पूर्ण स्वयंसेवक भाव से करते थे। पिछले कुछ वर्षों से वे संघ के महाकौशल प्रांत के सह प्रांत प्रचार प्रमुख का दायित्व निभा रहे थे। इस बीच, वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने समन्वय का कार्य भी देखा।
लिखना प्रशांत वाजपेई का जुनून था। उन्होंने लिखा। खूब लिखा। किंतु उनके लेखन को हमेशा अध्ययन का आधार रहता था। वे तथ्यों के आधार पर लिखते थे और इसीलिए खूब पढ़े जाते थे। उन्होंने सोशल मीडिया पर सतत लेखन किया। वैचारिक जन जागरण में उनकी विशेष भूमिका रहती थी। वे अनेक विषयों पर लिखते थे। उनका लिखा हुआ पढ़कर पाठक को कुछ नया मिलता था। राफेल का सौदा, विश्व रामायण कॉन्फ्रेंस, कुपोषण, जनजातीय से जुड़े हुए विषय, चीन के शी जिनपिंग, कांग्रेस, कमलनाथ, कर्नाटक चुनाव, इजराइल आदि अनेक विषय पर अनवरत लिखा। राजस्थान में, राजसमंद जिले में पिपलांतरी नाम का एक छोटा सा गांव है। इस गांव में जल संरक्षण का एक अनूठा प्रयोग हुआ। पहले यहां पर पानी 700 फीट नीचे था। लेकिन जल संरक्षण के विविध प्रयोग अपनाने के बाद, अब यह मात्र 8 फीट पर है। इसपर इन्होंने विस्तार से लिखा हैं।
मासिक हिंदी विवेक और साप्ताहिक पांचजन्य में वे नियमित लिखते थे। पांचजन्य की अनेक कवर स्टोरी उन्होंने की है। 10 जनवरी 2019 को उन्होंने रफाल डील पर स्टोरी की है, रफाल और राहुल का पूरा चिट्ठा। इसमें वे लिखते हैं, इतिहास गवाह है की राहुल की कोई जवाबदेही नहीं है। शुरू से ही वह आरोपी की राजनीति करते आए हैं। याद करें, जब वह किसान आंदोलन करने उत्तर प्रदेश के भट्टापारसौल पहुंचे थे। देश भर के मीडिया कॅमरों के सामने, राहुल एक गड्ढे के किनारे जम गए, और बोले, कि यहां दर्जनों लाशें पड़ी हुई है। क्रेन लाई गई। खुदाई शुरू हुई। लाशें तो छोड़ो, हड्डी का टुकड़ा भी नहीं निकला। फिर राहुल ने कहा कि पुलिस ने कई महिलाओं के साथ बलात्कार किया है। मीडिया ढूंढती रही। क्षेत्र में कोई ऐसी महिला नहीं मिली। जिन महिलाओं को अत्याचार का शिकार बताया गया, वह राहुल के दावों पर खुद ही आश्चर्यचकित थीं पर राहुल बेलौस थे। ऐसी घटनाओं के सिलसिले हैं।
रफाल के मामले में भी राहुल यही कर रहे हैं। वे संसद में खड़े होकर कहते हैं कि मोदी के दबाव में रक्षा मंत्री झूठ बोल रहे हैं।
यह पूरा आलेख, आंकड़ों और तथ्यों पर आधारित है। इस विस्तृत लेख में वे लिखते हैं, श्रीलाल शुक्ल के प्रसिद्ध उपन्यास राग दरबारी में गांव के नेता पुत्र, एक युवा नेता रूप्पन बाबू का चरित्र है। रूप्पन बाबू के चरित्र का चित्रण करते हुए एक स्थान पर लेखक लिखते हैं, रूप्पन बाबू ज्यादा तेज चाल चलने के आदी हो गए थे, और कई बार दुल्की की जगह सरपट दौड़ने लगते थे। ज्यादा गति खींच देने से कभी-कभी मैदान तो चूक जाता था, पर उनकी गति नहीं चुकती थी, जिससे वह कई अवसरों पर शून्य में कबूतर की तरह उड़ते हुए नजर आते थे। रफाल पर कोहराम अब इसी दिशा में गतिमान हैं।
प्रशांत वाजपेई की एक पुस्तक दिल्ली के सुरुचि प्रकाशन ने प्रकाशित की है, धर्मक्षेत्रे। संघ स्वयंसेवक की सामाजिक भूमिका इस विषय पर लिखी गई यह पुस्तक है। धर्म का अर्थ विशद है। जब सभी अपने-अपने धर्म का पालन करते हैं, तो व्यक्तिगत जीवन, परिवार, समाज और राष्ट्र में, सब कुछ ठीक चलता है।
इस पुस्तक में, मानव धर्म की रक्षा हेतु कार्य, शक्ति, धर्म का संरक्षण करने के लिए किस तरह का आचरण रखना चाहिए, इस पर विशेष बल दिया गया है। इस धर्म का समाज के विभिन्न क्षेत्र में संघ के स्वयंसेवक निरंतर पालन कर भी रहे हैं। भारत का विविधतापूर्ण विशाल समाज, स्वयंसेवक का धर्मक्षेत्र है। यह पुस्तक उस धर्मक्षेत्र के विषय में बताती हुई एक छोटी सी झलक मात्र है।
मात्र 46 वर्ष की अल्पायु में प्रशांत वाजपेई हम सब को छोड़कर चले गए। उनके जैसे व्यक्ति के असमय जाने से परिवार को, संगठन को, समाज को, सभी को कष्ट पहुंचता है।
अपने लेखन के माध्यम से, आज भी हम सब के बीच में उपस्थित हैं। भावपूर्ण श्रद्धांजलि..!