नागपुर, 26 दिसम्बर : आधुनिक तकनीकी युग में शिक्षा जगत के सामने अनेक चुनौतियाँ हैं। विद्यार्थियों को प्रत्येक विषय की जानकारी आज गुगल और समाज माध्यम से सहजता से मिल जाती है। फिर भी शिक्षक के बिना विद्यार्थी का जीवन अधूरा है, क्योंकि शिक्षक ही विद्यार्थियों के जीवन को सही दिशा देते हैं। विद्यार्थियों का जीवन गढ़ने में शिक्षक की सबसे बड़ी भूमिका होती है। यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहनजी भागवत ने आज कही । वे सोमलवार शिक्षण संस्था के 70 वे संस्थापक दिन के अवसर में आयोजित एक समारोह को सम्बोधित कर रहे थे। इस दौरान व्यासपीठ पर सोमलवार शिक्षण संस्था के उपाध्यक्ष रामदास सोमलवार तथा सचिव प्रकाश सोमलवार उपस्थित थे।
शिक्षा के उद्देश्य की चर्चा करते हुए सरसंघचालकजी ने कहा कि शिक्षा मात्र पेट भरने का साधन नहीं है। शिक्षा ‘मनुष्य’ बनने का माध्यम है। इसलिए मनुष्य-निर्माण को शिक्षा का मूल उद्देश्य कहा गया है। मानवता की रक्षा के लिए, मानवीय गुणों के सिंचन और जतन करने में शिक्षकों की शाश्वत भूमिका बनी रहेगी।
डॉ. भागवत ने आगे कहा कि चुनौतियों के आधार पर ही मनुष्य अपनी भूमिका निश्चित करता है। एक प्रतिशत चुनौती शाश्वत होती है जबकि 99 प्रतिशत चुनौतियाँ देश-काल और परिस्थिति के अनुसार तैयार होती हैं। लोकमान्य तिलक का उदाहरण देते हुए सरसंघचालकजी ने कहा कि स्वतंत्रता काल में तिलक ने केसरी में एक अग्रलेख लिखा, जिसका शीर्षक था – ‘ग्रंथ ही हमारे गुरु हैं।’ किन्तु आज पुस्तकों की भूमिका लगभग समाप्त होने लगी है। लोग हर जानकारी गूगल बाबा से लेने लगे हैं। इंटेलिजेंस भी आर्टिफिशियल हो गई है, ऐसी स्थिति में शिक्षकों की भला क्या आवश्यकता है, ऐसा प्रश्न उठता है। सरसंघचालकजी ने जोर देकर कहा कि संसार में सब कुछ बदल सकता है किन्तु विद्यार्थी के जीवन में शिक्षक की आवश्यकता सदैव रहेगी। पढ़कर, सुनकर और देखकर जानकारी तो मिल सकती है। किन्तु जानकारी ही सर्वस्व नहीं है। ज्ञान को विवेक और विनय की संगत चाहिए। विवेक अनुभव से प्राप्त होता है। यह अनुभव उसे शिक्षक के मार्गदर्शन से प्राप्त होता है। वास्तव में, शिक्षक, विषय को नहीं बल्कि विद्यार्थी को पढ़ाता है।
डॉ. भागवत ने कहा कि अंग्रेजों ने असत्य का प्रचार किया कि द्रविड़ और आर्य बाहर से आए। उन्होंने हमारे धर्म, संस्कृति और इतिहास को व्यर्थ बताया और हम उनके जाल में फँसते चले गए। अंग्रेजों की शिक्षा नीति के बावजूद हमारे देश में स्वामी विवेकानन्द, योगी अरविन्द, तिलक जैसे नायक हुए। क्योंकि उनके शिक्षक स्वदेशी भाव से ओतप्रोत थे। आज भी विद्यार्थियों में परिवार, समाज और राष्ट्र की सेवा का भाव जाग्रत करने के लिए शिक्षकों को बड़ी भूमिका निभाने की आवश्यकता है।