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मेहमूद गजनवी का आक्रमण और सोमनाथ विध्वंस

मेहमूद गजनवी का आक्रमण और सोमनाथ विध्वंस

by रमेश शर्मा
in दिनविशेष
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8 जनवरी 1026 : हमलावर मेहमूद गजनवी द्वारा सोमनाथ विध्वंस

 

इतिहास में कुछ तिथियाँ और उनमें घटी घटनायें ऐसी हैं कि जिनके स्मरण से आज भी रोंगटे होते हैं । ऐसी ही एक घटना हैं गुजरात के सोमनाथ मंदिर की लूट, विध्वंस और वहां उपस्थित श्रद्धालुओं का सामूहिक नरसंहार है।
सोमनाथ मंदिर द्वादश ज्योतिर्लिंग में एक है । मान्यता है कि उसकी स्थापना भगवान् परशुराम जी ने की थी । यह मंदिर पूरे विश्व के आकर्षण का केन्द्र रहा है। संपूर्ण एशिया ही नहीं यूनान और रोम से भी पर्यटकों के सोमनाथ आने का वर्णन मिलता है । नौवीं शताब्दी से पहले यह मंदिर यदि विश्व भर के पर्यटकों और श्रद्धालुओं के आकर्षण का केन्द्र रहा तो नौवीं शताब्दी के बाद लुटेरों और आतताइयों के लालच का केन्द्र बना । मध्यकाल का हर आक्रांता और सल्तनतकाल के हर शासक की टेड़ी नजर सोमनाथ पर रही । सोमनाथ का इतिहास सैकड़ों सालों तक लूट, विध्वंस और नरसंहार से भर है । पर मेहमूद गजनवी की लूट इतनी बीभत्स और क्रूरतम थी कि उसका वर्णन हृदय को विदीर्ण कर देता है ।

सोमनाथ मंदिर में लूट और विध्वंस की यह घटना 8 जनवरी 1026 की है । उस दिन लुटेरे मेहमूद गजनवी और उसकी फौज ने केवल संपत्ति लूटकर सोमनाथ मंदिर का विध्वंस नहीं किया था बल्कि वहां उपस्थित एक भी व्यक्ति को जीवित नहीं छोड़ा था । वह या तो उन्हें मार गया था या उन्हें बंदी बनाकर अपने साथ ले गया था । यही हाल स्त्रियों का किया था । उन्हें भी या तो क्रूरता की मौत मिली या बंदी बनाकर ले जाईं गईं । बाद में इन सभी बंदियों को गुलामों के बाजार में बेचा गया ।

11 May, 1951: 70 Years Ago Today The Somnath Temple Was Restored

सोमनाथ मंदिर में विध्वंस पहला या अंतिम नहीं था । इससे पहले भी विध्वंस हुआ और बाद में भी । लेकिन यह विध्वंस क्रूरता की पराकाष्ठा थी इसलिये केवल इसी को याद किया जाता है ।
सोमनाथ मंदिर पर पहला हमला और लूट सिंध में तैनात अरब के गवर्नर जुनायद ने की थी । यह गवर्नर जुनायद वही था जो सिंध पर मोहम्मद बिन कासिम की जीत के बाद तैनात हुआ था ।जुनायद समुद्री रास्ते चलकर सोमनाथ आया और मंदिर पर सीधा हमला बोला । उसने मंदिर विध्वंस किया संपत्ति लूटी और लौट गया । उसका हमला अचानक हुआ था । इसलिए सुरक्षा और प्रतिकार का वर्णन कम मिलता है । जुनायद का उद्देश्य केवल संपत्ति लूटना और महिलाओं का हरण करना था । वह तेजी से लौट गया । इसलिये सिंध से सोमनाथ आने और लौटने का का उसने ऐसा मार्ग चुना था जिसमें किसी बड़ी रियासत से टकराव न हो । उसके जाने का बाद मंदिर का पुनरुद्धार हुआ । यह गुजरात के शासक नागभट्ट ने किया था । मंदिर पुनः अपने वैभव पर लौट आया । इसके बाद दूसरा और भयानक हमला मेहमूद गजनवी ने बोला । मेहमूद गजनवी ने भी रास्ते के लिये जुनियाद की रणनीति का पालन किया । उसने भी ऐसा मार्ग चुना जिसमें कम टकराव के साथ सोमनाथ पहुँच सके ।

इस लूट और विध्वंस का वर्णन भारतीय इतिहास के साथ अल्बरूनी के वर्णन में भी मिलता है । अल्बरूनी मेहमूद के लगभग हर अभियान में साथ रहा । बाद में जो भी लिखा गया उसका आधार अल्बरूनी का ही वर्णन है । अल्बरूनी ने लूट और विध्वंस का वर्णन के साथ आक्रमण की रणनीति का उल्लेख किया है । इस वर्णन के अनुसार मेहमूद ने अपने कुछ एजेन्ट पहले भेज दिये थे । ये लोग वेश बदल कर सोमनाथ के हर समूह में फैल गये थे, जो समूह जिस वेषभूषा का था उसी वेष में रहने लगे । पुजारियों के बीच पुजारी जैसे, फल बेचने वालों फल बेचने जैसे और व्यापारियों के बीच व्यापारी वेष में रहने लगे थे और कुछ तो फकीरों के वेष में भी थे । यही नहीं मेहमूद ने एक नजूमी को भी भेजा था । यह नजूमी यनि भविष्य बताने वाला व्यक्ति जासूस था । उन दिनों गुजरात पर भीमदेव का शासन था । राजा भीमदेव ज्योतिष पर बहुत भरोसा करता थे । इसकी सूचना मेहमूद गजनवी को थी । उसने इसका लाभ उठाया । मेहमूद गजनवी का यह नजूमी जासूस अपनी पूरी टोली के साथ राजा भीमदेव के दरबार में आया । गजनवी जब गुजरात की ओर बढ़ा इसकी जानकारी राजा भीमदेव को मिल गई थी । राजा सोमनाथ की सुरक्षा केलिये सेना भेजना चाहते थे । गजनवी का जासूस नजूमी दरबार में ही था ।

Somnath Series: How a decision to replace ruined old Somnath temple with a new grand one arrived at | DeshGujarat

उस ने राजा को चौबीस घंटे रुक कर मुक़ाबला करने की सलाह दी थी और कहा कि चौबीस घंटे तक कालग्रास योग है । यह योजना मेहमूद की ही थी। वह रास्ते में युद्ध लड़ना नहीं चाहता था और पूरी शक्ति के साथ सीधे सोमनाथ पहुंचना चाहता था । इसलिए उसने जो मार्ग चुना था वह भारतीय रियासतों के किनारे से निकलता रहा था । उसे रास्ते में केवल दो स्थानों में युद्ध लड़ना पड़ा । बाकी जगह रसद और भेंट लेकर आगे बढ़ता रहा । उसकी योजना थी कि गुजरात की धरती पर भी युद्ध न लड़ना पड़े । युद्ध टालने के लिये ही उसने राजा के पास नजूमी को भेजने की योजना बनाई थी । गुजरात के राजा ने चौबीस घंटे रुकने की बात मान ली । और राजा ने अपनी सेना को चौबीस घंटे रूकने का आदेश दे दिया। मेहमूद ने इस चौबीस घंटे के समय का पूरा फायदा उठाया और वह सीधा सोमनाथ पर धमक गया । मूहमूद गजवनी ने केवल नजूमी भेजकर ही राजा को रुकने का षड्यंत्र नहीं किया था । उसने राजा के जासूसों को एक भ्रामक सूचना भी भेजी थी । राजा को सूचना दी गई थी कि पहले हमला राजा पर होगा । इस जीत के बाद सेना सोमनाथ जायेगी। इसलिये राजा ने पहले राजधानी की सुरक्षा व्यवस्था केलिये सेना तैनात की। मंदिर की सुरक्षा के लिये सेना की टुकड़ी जाने वाली थी वह चौबीस घंटे के लिये रोक ली गई।

गजनवी यही चाहता था। उसकी रणनीति सफल रही और वह सीधा सोमनाथ पर धमक गया ।उस दिन वहां कोई उत्सव चल रहा था । श्रृद्धालुओ की भारी भीड़ थी । मेहमूद की सेना ने पहले वीरावल पर धावा बोला। उन दिनों वीरावल व्यापारियों की बस्ती थी । मेहमूद चाहता था कि वीरावल के व्यापारी भी अपना मालमत्ता लेकर मंदिर में छुपने के लिये भाग जायें । हुआ भी वही । मेहमूद ने वीरावल सहित आसपास की बस्तियों में लूट मचाई । लोग सुरक्षा के लिये मंदिर परिसर की ओर भागे । जब आसपास के तमाम लोग सुरक्षित होने केलिये मंदिर में एकत्र हो गये तब मेहमूद की सेना ने मंदिर परिसर को चारों और से घेर लिया ताकि कोई बाहर न निकल सके । मंदिर के भीतर कोई पचास हजार से अधिक स्त्री पुरुष और बच्चे एकत्र थे । इनमे उत्सव में भाग लेने आये लोगों के अतिरिक्त वीरावल के व्यापारी भी थे जो छुपने के लिये मंदिर परिसर आ गये थे । यह आकड़े भी अल्बरूनी ने ही लिखे हैं । अल्बरूनी के अनुसार गजनवी के सिपाही आँधी की तरह टूट पड़े । सबसे पहले पुरुषों का नरसंहार हुआ । फिर दस्ता शिवलिंग की ओर गया । इस दस्ते ने शिवलिंग का विध्वंस किया । वहां जितने लोग थे सबको यातनायें देकर धन एकत्र किया गया । पहले पुरूषों और बच्चो को मारा फिर महिलाओं पकड़ा गया । शायद ही कोई महिला ऐसी बची हो जिसके साथ बलात्कार न हुआ हो । सैकड़ो महिलाओं को पशुओं की भांति बांधकर ले जाया गया जिन्हे बाद में गुलामों के बाजार में बेचने के लिये भेज दिया गया ।

Satyayug' to 'Kaliyug': History of Somnath Temple | India News - The Indian Express

इस विध्वंस के बाद गुजरात के राजा भीमदेव और धार के राजा भोज ने जीर्णोद्धार कराया ।
लेकिन सोमनाथ में गजनवी की लूट अंतिम नहीं थी । इसके बाद दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने 1297 में लूट की विध्वंस किया । फिर 1397 में गुजरात के सूबेदार मुजफ्फर शाह ने लूटा, फिर 1442 में अहमद शाह ने । औरंगजेब के हमले को सोमनाथ मंदिर ने दो बार झेला । एक बार 1665 में और दूसरी बार 1706 में । जो मेहमूद ने किया वही औरंगजेब ने दोहराया ।
इस समय जो सोमनाथ मंदिर दिख रहा है इसका श्रेय के एम मुंशी और सरदार वल्लभ भाई पटेल को जाता है । स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, सुविख्यात लेखक और नेहरूजी की केबिनेट में मंत्री रहे के एम मुंशी जी ने पहली बार भग्न सोमनाथ के दर्शन 1922 में किये थे तभी उनके मन में संकल्प आया जो 1955 में पूरा हुआ । इसका वर्णन उन्होंने अपनी पुस्तक “पिलग्रिमेज टू फ्रीडम” में किया है । उन्होंने अपनी इस पुस्तक में एक कैबिनेट बैठक के बाद नेहरूजी से हुई बातचीत का भी विवरण दिया है जिसमें नेहरूजी ने सोमनाथ के जीर्णोद्धार के प्रति अपनी असहमति जताई थी । लेकिन उनके अभियान को राष्ट्रपति डा राजेन्द्र प्रसाद का समर्थन मिला और अभियान पूरा हुआ ।

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Tags: #hindivivek #mugal #india #akhandbharat #world #wide #somnath #temple

रमेश शर्मा

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