एक दिन पू. गुरुजी के साथ बैठा था। मा. आबाजी थत्ते भी थे। तो पू. गुरुजी ने पूछा, ‘अब’ तुम’ शेडयूल्ड कास्ट फेडरेशन’ में काम करते हो तो सुबह शाखा पर जाना तो नहीं होता होगा?’ मैने कहा, ‘हाँ! अब शाखा पर जाना मुश्किल सा होता है।’ शेडयूल्ड कास्ट फेडरेशन’ के कार्यकर्ताओं की आदत ऐसी होती है कि शाम के समय बैठकें शुरू होती है तो रात देर तक चलती हैं। और सुबह जल्दी उठना नहीं होता है, ‘ फिर शेडयूल्ड कास्ट फेडरेशन के नेताओं के तथा कार्यकर्ताओं के साथ संपर्क करने में कहाँ तक कामयाबी प्राप्त हुई यह प्रश्न पू. गुरुजी ने पूछा।
मैंने सब बताया। श्रीगुरुजी ने कहा, ‘बहुत अच्छा काम किया है। इसमें मानसिक कष्ट भी आपने बहुत सहे होंगे।’ श्रीगुरुजी ने ऐसा कहने से मुझे आनंद हुआ। प्रतीत हुआ अब तक किए हुए काम को गुरुजी ने मान्यता दी है। एकाध मिनिट के बाद गुरुजी ने कहा, ‘शेडयूल्ड कास्ट फेडरेशन के लोगों से संपर्क करने में इतना समय देना पड़ता है और इसलिए स्वाभाविक है कि शाखा पर आना संभव नहीं होता। पिछले तीन चार दिनों से यह आबा कह रहा है कि दत्तोपंत शाखा पर नहीं आ रहे हैं। मैंने आबा को समझाया कि दत्तोपंत मानते हैं कि मैं जो काम कर रहा हूँ वह संघकार्य ही है। संघ की प्रेरणा से ही कर रहा हूँ। इस दृष्टि से मैं चौबीस घंटे संघ का ही कार्य कर रहा हूँ। उसी के कारण शाखा पर नहीं जा सका, तो उसमें आपत्ति क्या है? क्यों दत्तोपंत, ऐसा ही है न?’
अब मैं घबरा गया था। पहले मुझे लगा था कि मेरी प्रशंसा कर रहे हैं। अब ध्यान में आया कि पटरी एकदम बदल गई है। मैं गर्दन झुकाकर चुपचाप बैठा। श्रीगुरुजी ने फिर से पूछा, ‘क्यों दत्तोपंत, ऐसा ही है न?’ मैंने बड़ी मुश्किल से केवल गर्दन हिलाई । उस पर गुरुजी बोले, ‘आबा सुन लो, ये क्या कह रहे हैं?’ और फिर मुझसे कहा – “मैं तीन चार दिनों से आबा को समझा रहा हूँ। किन्तु मेरी बात इसके ध्यान में नहीं आती । यह मुझे भी हर दिन संघस्थान पर आने का आग्रह करता है। मैं उनको बता रहा हूँ कि अरे, मैं संघ का सरसंघचालक हूँ। संघ के अलावा मेरे जीवन में और कुछ है ही नहीं । मेरी जो कुछ भी हलचल रहती है वह संघकार्य का ही तो हिस्सा है। जब में चौबीस घंटे संघ के अलावा और कोई भी काम करता ही नहीं तो मेरे ऊपर यह सख्ती क्यों, कि मैंने हर दिन शाखा के लिए एक घंटा देना चाहिए। मैं समझाता हूँ लेकिन आबा मानता ही नहीं ।”
इसपर कुछ भी प्रतिक्रिया व्यक्त करना संभव नहीं था। श्रीगुरुजी क्या संकेत कर रहे हैं यह सब के ध्यान में आया। मेरे तो ध्यान में आया ही और तब से मैंने हर दिन शाखा पर जाना शुरू किया।
– दत्तोपन्त ठेंगड़ी (कार्यकर्ता : पृष्ठ-273)