राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मूल में राष्ट्रभक्ति, व्यक्ति निर्माण कर हिंदू समाज का संगठन, समाजसेवा, धर्म एवं संस्कृति रक्षण तथा राष्ट्र को परम् वैभव तक पहुंचाना है। यह कार्य समाज के सहयोग से सर्व समाज को साथ ले कर करने का लक्ष्य है। इस कार्य को पूर्ण करने में परिवार व्यवस्था का जागरण हमारे कार्य का आधार है। संघ स्थापना के सौ वर्ष पूरे हो रहे हैं तथा इस शताब्दी वर्ष में संपूर्ण समाज के आधारभूत सकारात्मक परिवर्तन हेतु पाँच संकल्प लिए गए हैं जो क्रमशः सामाजिक समरसता, कुटुंब प्रबोधन, पर्यावरण संरक्षण, नागरिक कर्तव्यों का निर्वहन तथा स्व भावना के जागरण नामक परिवर्तन की पंचधारा के नाम से विख्यात् हैं। यह कार्य समाज को कर्तव्यबोध का स्मरण कराने तक सीमित नहीं वरन् स्वयंसेवकों द्वारा अपने आचरण से समाज को राष्ट्रनिर्माण में सहभागी बनाने का एक अभिनव प्रयास है।
परिवार भारतीय समाज की वह प्रथम कड़ी है जहाँ परिवर्तन की नींव सशक्त बनती है। यह समाज की सशक्त पाठशाला है। यहीं आत्मीयभाव से बालमन पर संस्कार जन्म लेता है। यह एक ऐसी सामाजिक संस्था है जिस पर समाज की नींव टिकी है। जीवन का आनंद लेना है तो परिवार का वातावरण आनंदमय होना चाहिए। परिवार संबंध बनाए रखने का प्रभावशाली माध्यम है। संपूर्ण समस्याओं का समाधान यहीं है। यहाँ संघर्षों को समझने में सहायता मिलती है। नए नियमों और संयम की स्थापना का केंद्रबिंदु कुटुंब होता है। परिवार के सदस्यों के आत्मविश्वास को यहीं बढ़ावा मिलता है। आचरण के नीतिगत मानदंडों की नींव यही संस्कारित होती है। कुटुंब ही सुखी और स्वस्थ परिवार सहित शांतिपूर्ण समाज की कुंजी है। भारतीय परिवारों ने अन्य देशों की तुलना में अधिक अनुपालन और लचीलापन दिखाया है। संस्कारों की नींव मजबूत परिवार की पहचान होती है, परंतु समय और काल के अनुसार भारतीय संस्कारों के लिए विश्वविख्यात हमारे परिवारों को अनेक परिवर्तनों का सामना भी करना पड़ा है। नए आर्थिक समीकरणों के कारण परिवार का आकार बदला है। परिवार अब बड़े नहीं छोटे एकल परिवार होने लगें हैं। विज्ञान के विकास ने नए-नए इलेक्ट्रॉनिक उपकरण परिवारों को उपलब्ध करायें हैं, जिससे मनुष्य का जीवन आसान बना हैं। सबसे अधिक परिवर्तन मोबाइल के अतिशय प्रयोग से परिवारों में उनके परस्पर संबंधों में आया है। शिक्षा में परिवर्तन आया है जिसके कारण पारिवारिक मूल्यों में गिरावट आई हैं, वहीं बच्चे समय से पहले वयस्क विचारों से अवगत हो रहें हैं। यद्यपि बच्चों के ज्ञान प्राप्ति की गति भी तेज हुई है। वे अधिक कुशाग्र बन रहें है। माँ और पिता दोनों के कामकाजी होने पर बच्चों के जीवन एवं संस्कारों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा है।
विदेशी भाषा के माध्यम से शिक्षा प्राप्त करने की ललक ने परिवारों में आधुनिकता का राग बजा तो है, तरक्की दिखी तो है, परंतु परिवारों ने बहुत कुछ खोया भी है। हमारे कुटुंब विकास का भारतीय प्रतिमान क्या होगा? मनुष्य हित में क्या रास्ता चुनना है, यह कैसे निर्धारित होगा? नया ज्ञान रखते हुए नए सृजन का रास्ता चुनना होगा। निर्माणों के पावन युग में हम चरित्र निर्माण न भूलें। अपने राष्ट्र में विकास कर सम्पूर्ण विश्व के लिए हम कल्याणकारी हों, तभी हमारा परिवार और हमारा जीवन सार्थक होगा। परिवार में रिश्ते बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। रिश्तों पर संकट संस्कृति और राष्ट्र पर संकट होगा। इसलिए रिश्तों की समझ, जितने रिश्ते उतनें कर्तव्य हैं, यह हमें समझना होगा तभी परिवार अपने उद्देश्य को पूरा कर पायेगा। भारत को ऐसा राष्ट्र बनाना है कि रिश्ते नाते बनाये रखते हुए हमें आर्थिक रूप से अधिक विकसित और समृद्ध बन सकें। योग से पूरी दुनिया आकर्षित हो रही है।
यदि हम कुटुंब प्रबोधन में यह सिखायें कि परिवार व्यवस्था बनाये रखते हुए भी अधिक शांति और ख़ुशी योग से अपने जीवन में ला सकतें हैं तो यह दुनिया के लिए आश्चर्य का विषय हो सकता है। भारत को यह सुविधा मिलनी ही चाहिए कि वह अपनी संस्कृति और संस्कारों की परिवार में रक्षा करते हुए, स्व की रक्षा करते हुए विकास के रास्ते पर आगे बढ़े। संघ के स्वयंसेवक समाज के सहयोग से भारत के हर परिवार में पहुंच कर यह बताने का प्रयास कर रहें हैं कि बच्चों को ऐसी शिक्षा देने और दिलाने का प्रयास करें जिससे बच्चों और पारिवारिक सदस्यों का जीवन स्व आधारित होनी चाहिए। स्व का अर्थ आधुनिकता विरोधी नहीं सर्वश्रेष्ठ होना चाहिए। हमारा परिवार पर्यावरण की भी रक्षा करेगा, अपनी जीवन शैली पर्यावरण के अनुकूल बने। घर की बनावट ऐसी होनी चाहिए कि उसे दिखने से ही हिंदू घर की छवि बने। घर में पूजा का स्थान अवश्य हो। घर चाहे कितना छोटा ही क्यों न हो, परंतु तुलसी का बिरवा अवश्य स्थापित हो। हो सके तो गमले में ही सही केले का पौधा भी लगा हो। घर पर ॐ का या स्वास्तिक का चिह्न अवश्य बना हो। घर पर यथा स्थान मंगल ध्वज भगवा रंग में स्थापित हो। सायंकाल संध्यावादन, संध्या पूजन की परंपरा डालनी चाहिए। मंगल ध्वनि, शंख, घंटा घड़ियाल बजने से, आरती पूजन होने से, सुविधानुसार समय-समय पर यज्ञ हवन से भी वातावरण शुद्ध और आनंददायक बनता है। घर का निर्माण या नवीनीकरण करें तो वास्तुशास्त्र का ध्यान अवश्य रखें। यह विज्ञान प्रकृति से तालमेल रखने की एक विधा है।
भारत में चेतना विज्ञान अत्यधिक विकसित था यह तथ्य निर्विवाद है। भारत का आध्यात्म संस्कृति विस्तार है, अतः विज्ञान और प्रकृति का समन्वय यहाँ पग-पग पर देखने को मिलता है। कुटुंब रचना में भी विज्ञान है। भारत का हैपीनेस इंडेक्स इस वर्ष आठ अंक बढ़ा है, यह प्रसन्नता का विषय है। परिवार में बालक को सिखाना चाहिए कि जैसी परिस्थिति हो, उसे सयंम पूर्वक स्वीकारना चाहिए। कुटुंब प्रबोधन में शिक्षा, संस्कार संगति, एकात्मकता और परिवार की भूमिका का बड़ा महत्व है। ध्यान रखना होगा कि बालक ठीक से शिक्षा प्राप्त कर रहें हैं की नहीं। मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। परिवार की घरेलू शिक्षा जो माँ, पिता और बड़े बूढ़ों से प्राप्त होती है, वह व्यवस्थित होनी चाहिए। माँ पिता द्वारा बच्चों को आध्यात्मिक, सांस्कृतिक गीत, श्लोक, भजन, प्रातः स्मरण आदि कंठस्थ कराने चाहिए। इसी प्रकार परिवार के बड़ों को संस्कार देने में सक्षम होना चाहिए। बिस्तर पर सोते समय कहानियों के माध्यम से संस्कार देने की परंपरा प्राचीनकाल से चली आ रही है। इसके लिए समय निकालना होगा। ध्यान देना होगा कि बालकों की संगति ठीक हो। मित्र, खेल समूह और बड़ों की संगति भी ठीक होनी चाहिए।
परिवार में सहयोग की भावना विकसित कर के पारिवारिक एकात्मकता का पाठ पढ़ाना आज की महती आवश्यकता है। यह भी ध्यान रखना होगा कि पूरा परिवार, समाज और राष्ट्र धर्म में योगदान दे कर अपनी भूमिका निभा रहा है की नहीं। बच्चों और बड़ों में यह संदेश जाना चाहिए कि देश हमें देता है सबकुछ तो हम भी कुछ देना सीखें। इसकी शुरुआत स्वयं से अर्थात् फर्स्ट पर्सन सिंगुलर नंबर आई से प्रारंभ होना चाहिए। भारत का अस्तित्व अब तक बचा हुआ है क्योंकि भारत ने अनेकों युद्ध और झंझावात झेले, परंतु अपनी परिवार व्यवस्था बचा कर रखा हुआ है। युग की माँग है कि यह परंपरा हम जारी रखें। चुनौतियां आज भी सामने हैं। छोटे बच्चों के हाँथ में मोबाइल हैं। ओटीटी प्लेटफार्म हैं। पारिवारिक संबंध टूट रहे हैं। माता-पिता दोनों को कमाना पड़ रहा है। देर से शादी हो रही है। हम दो हमारे एक का नारा चल पड़ा है। डिंक फैमिली की अवधारणा प्रबल है। विवाह फेल हो रहें हैं। माता-पिता में विवाह विच्छेद की संख्या बढ़ रही है। बच्चों को सिंगल पैरेंट के साथ जीवनयापन करना पड़ रहा है, परंतु इन चुनौतियों का सामना करने का संकल्प संघ ने लिया है तो उसे पूरी निष्ठा से निपटने के लिए कुटुंब प्रबोधन का प्रकल्प चलाया जा रहा है। संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा बेंगलुरु में भी विचार विमर्श और रणनीति बनाई गई है। कार्यक्रम की समीक्षा की जा रही है। सफलता के लिए समाज को एकजुट हो कर सामने आना पड़ेगा।
नारी की भूमिका परिवार प्रबोधन में सर्वाधिक अग्रणी है। इसके लिए परिवार में नारी का सम्मान होना चाहिए। नारी संचालक है, अतः सम्मानपूर्वक उसे भूमिका के संचालक में आगे आने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। जगह-जगह संवाद, संगोष्ठी, विचार गोष्ठी, सम्मेलन, प्रवचन, लेखन, परिचर्चा का आयोजन हो रहा है। नारी माँ जगतजननी शक्ति स्वरूपा, मातृ शक्ति है। कुटुंब प्रबोधन में नारी शक्ति की अपार संभावनाएं हैं, अतः वे आह्वान पर हर जगह आगे आ कर दायित्व संभाल रही हैं। सम्पूर्ण देशभर में कुटुंब प्रबोधन के कार्य में मातृशक्ति सबसे आगे चल रहीं है, यह हर्ष का विषय है।
संघ ने कुटुंब प्रबोधन में छ बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित किया है। यह हैं भाषा, भूषा, भोजन, भजन, भवन एवं भ्रमण। भारत में 45 संघ प्रांत निर्धारित है। प्रत्येक प्रांत में कुटुंब प्रबोधन के संयोजक दायित्व संभाल रहें हैं। महर्षि अरविंद का 15 अगस्त 1947 को रेडियो पर भाषण है जिसमें उन्होंने कहा था कि आज इस देश का विभाजन हुआ है, लेकिन यह देश अखंड हो कर रहेगा। इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। आपको संघर्ष करना पड़ेगा, सारी बातें होंगी, लेकिन एक दिन ऐसा आएगा, यह अखंड होगा। इस बिंदु को संघ ने ध्यान में रखा है। शताब्दी वर्ष में घर-घर पहुँच कर राष्ट्रीय एकता का संदेश देना है। परिवार को तैयार करना है कि वह नई ऊर्जा से भर कर पारिवारिक संस्कारों के संवर्धन का कार्य करे और परिवार जागरण के यज्ञ में अपना योगदान दें। भाषा के अंतर्गत मातृभाषा में बच्चों को प्राथमिक शिक्षा दिलाए। इसके अतिरिक्त एक अन्य भारतीय भाषा को संपर्क भाषा के रूप में पढ़ने दें। अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में एक विदेशी भाषा भी पढ़ने दें। भूषा में विशेष ध्यान दें कि बच्चे विशेषकर बच्चियाँ विदेशी फैशन की नकल न करते हुए शालीन भारतीय वस्त्र पहनें।
विदेशों की नकल न करते हुए जंक फ़ूड पिज़्ज़ा, बर्गर, डिब्बा बंद खाद्य पदार्थ से बच्चे। हेल्दी खाना देश काल परिस्थिति के अनुसार अपने क्षेत्रानुसार मोटे अनाज को सम्मिलित करते हुए खायें और उसमें रुचि उत्पन्न करने का प्रयास करें। घर में प्रातः या सायंकाल पूरा परिवार एकत्र होकर भजन में भाग लें। अपनी घर को भारतीय परम्परा के अनुसार सजाएँ। गाँव, देहात, नगर को स्वच्छ बनाये। हिन्दू प्रतीक चिन्हों को घर पर प्रदर्शित करें। भगवा ध्वज लहरायें और परिवार के साथ अपनें गांव, नगर, प्रांत के साथ-साथ देश के प्रमुख तीर्थ स्थलों का भ्रमण करें। परिवार के विवाह कार्यक्रमों में दिखावा न करें वरन् वास्तविक सप्तपदी, सातवचन, हिंदू संस्कार और विवाह के रस्मों, रिवाजों पर ध्यान दें। सादगी के साथ वास्तविक ख़ुशी प्राप्त करें। विवाहों का व्यापारीकरण न होने दें। वास्तविक परंपराओं को महत्व दें न कि आडंबर, दंभ, दिखावा करें। निश्चय ही हम इस यज्ञ में जहाँ हैं, जैसे हैं, उसी स्वरूप में वहीं से अपना योगदान दें।
-अशोक कुमार सिन्हा