भारत के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने चीन के पोर्टे सिटी किंगदाओ में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को बेनकाब करते हुए संयुक्त घोषणापत्र में हस्ताक्षर करने से मना कर दिया। घोषणापत्र में बलोचिस्तान की चर्चा की गई थी किन्तु पहलगाम के क्रूर आतंकवादी हमले का कोई विवरण नहीं था। यह पाकिस्तान तथा चीन दोनों की उपस्थिति में आतंकवाद तथा उसके वित्त पोषकों और परोक्ष सहयोगियों का किसी भी प्रकार से बचाव व महिमामंडन करने वाले राष्ट्रों को कड़ा संदेश है। भारत के आतंकवाद के विरुद्ध इस दृढ़ता की चर्चा विश्वव्यापी हो गई है।
गलवान की घटना व मई 2020 में पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सैन्य गतिरोध के बाद भारत के रक्षा मंत्री व एनएसए अजीत डोभाल की यह पहली चीन यात्रा थी। जब भारत की यह दोनों हस्तियां चीन की यात्रा पर जा रही थीं तब विश्लेषक अनुमान लगा रहे थे कि इस यात्रा से दोनों देशों के मध्य बनी दूरियों में कुछ कमी आएगी, किंतु ऐसा नहीं हुआ। एससीओ की बैठक के बाद संयुक्त घोषणापत्र के विषय चयन से तनाव कम होने के स्थान पर बढ़ता दिखाई दे रहा है।
भारत ने एससीओ के संयुक्त घोषणापत्र पर अपनी प्रतिक्रिया से विश्व को आगाह कर दिया है कि अब आतंकवाद के मुद्दे पर दोहरे मापदंड नहीं चलेंगे। भारत ने शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में संयुक्त घोषणापत्र पर इसलिए हस्ताक्षर करने से मना कर दिया क्योंकि इसमें 22 अप्रैल को पहलगाम आतंकवादी हमले का उल्लेख तक नहीं किया गया है, जिसमें 26 निर्दोष लोगों का धर्म पूछकर मारा गया था। भारत ने साफ कहा कि यह घोषणापत्र आतंकवाद के विरुद्ध भारत के मजबूत पक्ष को नहीं दिखा रहा है। यह बहुत ही आपत्तिजनक है क्योंकि इसमें पहलगाम की जगह बलूचिस्तान का उल्लेख किया गया है। शंघाई सहयोग संगठन का घोषणापत्र ऐसा संदेश दे रहा था कि आतंकवाद से सबसे अधिक पीड़ित पड़ोसी पाकिस्तान है और बलूचिस्तान में अशांति पैदा करने के लिए भारत जिम्मेदार है।
शंघाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन में वर्तमान में दस सदस्य देश शामिल हैं जिसमें बेलारूस, चीन, भारत, ईरान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान शामिल हैं। यह संगठन 2001 में क्षेत्रीय और अंतरर्राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित विषयों पर चर्चा करने के लिए बनाया गया था। संगठन की बैठक में भाग लेने के लिए भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह चीन पहुंचे थे।
संयुक्त घोषणापत्र आने के पूर्व रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पाकिस्तान पर कड़ा प्रहार करते हुए कहा कि आतंकवाद के दोषियों, वित्तपोषकों व प्रायोजकों को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि कुछ देश आतंकवादियों को पनाह देने के लिए सीमापार आतंकवाद का प्रयोग नीतिगत साधन के रूप में कर रहे हैं। हमारी सबसे बड़ी चुनौतियां शांति, सुरक्षा और विश्वास की कमी से संबंधित है। इन समस्याओं का मूल कारण बढ़ती कट्टरता, उग्रवाद और आतंकवाद है। शांति समृद्धि और आतंकवाद साथ नहीं चल सकते। उन्होंने कहा कि सरकार से इतर तत्वों और आतंकवादी समूहों के हाथों में सामूहिक विनाश के हथियार सौपने के साथ शांति नहीं रह सकती।
रक्षा मंत्री ने कहा कि इन चुनौतियों से निपटने के लिए निर्णायक कार्रवाई की आवश्यकता है और हमें अपनी सामूहिक सुरक्षा के लिए इन बुराइयों के खिलाफ एकजुट होकर लड़ना होगा। अपने संकीर्ण एवं स्वार्थी उद्देश्यों के लिए आतंकवाद को प्रायोजित, पोषित तथा प्रयोग करने वालों को इसके परिणाम भुगतने होंगे।
रक्षा मंत्री ने कहा कि भारत अब आतंकवाद का शिकार नहीं रहेगा। अब भारत आतंकी कृत्यों के उत्तर में सैन्य शक्ति और रणनीति दोनों स्तर पर उत्तर देगा। रक्षा मंत्री ने फिर एक बार स्पष्ट कर दिया कि ऑपरेशन सिंदूर समाप्त नहीं हुआ है।
रक्षा मंत्री से पूर्व भारत के एनएसए अजीत डोभाल ने भी बैठक में वक्तव्य दिया और आतंकवाद से जुड़े सभी विषयों की चर्चा की। शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में संयुक्त हस्ताक्षर के लिए जो घोषणापत्र तैयार किया गया, उससे साफ पता चलता है कि चीन अब पूरी ताकत के साथ हर मंच पर पाकिस्तान के पक्ष में कूटनीतिक बिसात बिछा रहा है। इसी बीच समाचार आ रहा है कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग अब ब्रिक्स समूह के शिखर सम्मेलन में भी नहीं जाएंगे।