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संविधान में ‘सेक्युलर’ शब्द कांग्रेस का पाप है..!

संविधान में ‘सेक्युलर’ शब्द कांग्रेस का पाप है..!

by प्रशांत पोल
in संघ
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खुशाल तालाक्षी शाह अर्थात टी के शाह (1988 – 1953) यह भारत के पहले राष्ट्रपति चुनाव में डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी के प्रतिद्वंद्वी रहे। अर्थात उन्हें मात्र 15.3% वोट मिले और वह पराजित हो गए थे।इन्होंने लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में पढ़ाई की। बाद में 1914 से मुंबई हाईकोर्ट में वकालत शुरू की। टी के शाह, अपने प्रखर समाजवादी विचारों के लिए जाने जाते हैं। 1930 के गोलमेज सम्मेलन में वें राजा-महाराजाओं के सलाहकार के रूप में शामिल हुए। 1938 में कांग्रेस ने इन्हें ‘नेशनल प्लानिंग कमेटी’ का महासचिव बनाया। 1946 में संसदीय प्रणाली की रूपरेखा बनाने के लिए कांग्रेस ने इन्हें एक्सपर्ट कमेटी में रखा। कांग्रेस की टिकट पर उन्होंने बिहार से कांस्टीट्यूशनल असेंबली के लिए चुनाव लड़ा और वह जीत गए।
इन के टी शाह महाशय जी का इतना विस्तार से वर्णन आज ही क्यों..?

भारत का संविधान बनाने हेतु देश में एक संविधान सभा (1946 – 1949) का गठन किया गया। इस संविधान सभा की बैठक में, इन के टी शाह महाशय ने, “संविधान में ‘सेक्युलर’ और ‘सोशलिस्ट’ शब्दों का समावेश हो” इसकी पुरजोर वकालत की थी। अनुच्छेद 1 में इसका समावेश India is a Secular, Federal and Socialist Union of States के रूप में हो, ऐसा आग्रह से वह कह रहे थे। डॉक्टर आम्बेडकर जी ने और संविधान सभा के अन्य सदस्यों ने, इसे बड़े ही स्पष्टता के साथ पूर्णतया खारिज किया। डॉक्टर आम्बेडकर जी ने कहा कि “भारत एक ऐसा राज्य होगा, जो सभी धर्म को समान दृष्टि से दिखेगा। किंतु ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द योग्य नहीं है। अतः यह जोड़ने की आवश्यकता नहीं।”

के टी शाह जी का समर्थन करने वाले कोई अन्य सदस्य नहीं थे। इसलिए सेक्युलर, सोशलिस्ट फेडरल यह शब्द संविधान में शामिल नहीं हुए।
1953 में के टी शाह की मृत्यु हुई और यह विषय भी उन्हीं के साथ समाप्त हुआ, ऐसा लोगों को लगा। किंतु विषय समाप्त नहीं हुआ था। 1956 में डॉक्टर बाबासाहेब आम्बेडकर जी की मृत्यु हुई।
बाद में 25 जून 1975 की रात को इंदिरा जी ने देश में आपातकाल लगाया। अब पूरे देश में कांग्रेस को रोकने वाला कोई नहीं था। संसद के दोनों सदनों में भी विपक्ष की संख्या न के बराबर थी।
कुल मिलाकर कांग्रेस के सामने संविधान में मनमाफक बदल करने के लिए खुला मैदान था। कांग्रेस में इसका भरपूर उपयोग किया।

बड़ी ही निर्लज्जता के साथ कांग्रेस ने संविधान में 42 वा संशोधन किया। 2 नवंबर 1976 को यह लोकसभा में पारित हुआ। 11 नवंबर 1976 में राज्यसभा में पारित होने के बाद 3 जनवरी 1977 से यह संविधान संशोधन लागू हुआ। इस संशोधन के अंतर्गत संविधान को बदलते समय कांग्रेस ने ‘सेक्युलर’ और ‘सोशलिस्ट’ यह शब्द संविधान में डाल दिए। जिन शब्दों को संविधान सभा ने नकारा था, डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर जी ने पूर्णत: खारिज किया था, उन्ही शब्दों को कांग्रेस ने विरोधियों को जेल में डालकर, संविधान में शामिल करवा लिया..!

इसलिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबळे जी ने ‘सेक्युलर’ और ‘सोशलिस्ट’ इन शब्दों को हटाने की जो बात की हैं, वह अत्यंत योग्य है। उचित है।
मूलतः यह शब्द हटाने का विषय नही हैं। कांग्रेस ने अत्यंत बरबर्ता से, डॉक्टर बाबासाहेब आम्बेडकर जी को नकारते हुए, संविधान में जो बदल किया हैं, उसे ठीक करने का हैं।
– प्रशांत पोळ

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प्रशांत पोल

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