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मुसलमानों  में ” न्यूक्लियर बम”  की मानसिकता क्यों ?

मुसलमानों में ” न्यूक्लियर बम” की मानसिकता क्यों ?

by अमोल पेडणेकर
in विशेष
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“इस्लामी आतंकवाद केवल भारत का ही नहीं, बल्कि समस्त दक्षिण एशिया के साथ यूरोप और अब अमेरिका में गंभीर खतरा है। भारत में आतंकवादी संगठन, जैसे कि जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन हमेशा से भारत की संप्रभुता को चुनौती देते रहे हैं। इनके द्वारा किए गए हमले और विस्फोटों ने अब तक हजारों नागरिकों की जान ली है।”

दिल्ली के लाल किले के पास आतंकवादियों द्वारा किए गए कार विस्फोट में १२ निर्दोष लोगों की जान चली गई, 25 से ज्यादा लोग गंभीर रूप में घायल हो गए हैं। लाल किला विस्फोट मामले की जांच में राष्ट्र विरोधी खतरनाक आतंकी साजिश के कई राज सामने आए हैं। 38 कारों को विस्फोटों से लैस कर देश भर में सीरियल ब्लास्ट करने की साजिश रची गई थी।

इस घटना एवं साजिश ने फिर से यह साबित कर दिया कि इस्लामी आतंकवाद, एक वैश्विक खतरा बन चुका है। इस घटना के पीछे के सभी मुख्य आरोपी डॉक्टर और उच्च शिक्षित है। इस्लाम की पैरवी करने वाले सेकुलर विचारधारा के दोगले विद्वान इस देश के नागरिकों को गुमराह करने के लिए निरंतर यह कहते हैं कि गरीबी और शिक्षा के अभाव के कारण मुस्लिम समाज गलत रास्ते पर चल रहा है। लेकिन भारत में हुए अब तक के सारे हमलों को हम गौर से देखेंगे तो 1992 में हुए मुंबई सीरियल बम ब्लास्ट से लेकर अब तक जितने भी बड़े आतंकी हमले हुए हैं उन सारे आतंकी हमलों के सरगना मुस्लिम समाज के उच्च शिक्षित लोग थे ।

इससे हमें किसी भ्रम में ना आकर मुस्लिम समाज के आतंकी विचारों के लोगों की मानसिकता और उनके द्वारा प्रचारित कट्टरपंथी विचारधारा को समझना बेहद जरूरी है। हमे यह समझने की आवश्यकता है कि भारत के साथ संपूर्ण विश्व में इस्लामी आतंकवाद का खतरा लगातार क्यो बढ़ रहा है?

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इस्लामी आतंकवाद केवल भारत का ही नहीं, बल्कि समस्त दक्षिण एशिया के साथ यूरोप और अब अमेरिका में गंभीर खतरा है। भारत में आतंकवादी संगठन, जैसे कि जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन हमेशा से भारत की संप्रभुता को चुनौती देते रहे हैं। इनके द्वारा किए गए हमले और विस्फोटों ने अब तक हजारों नागरिकों की जान ली है। आज दुनिया भर में इस्लामी आतंकवाद ने अपने पांव पसार लिए हैं। इनकी प्रमुख मानसिकता यही है कि वे ‘जिहाद’ के नाम पर दुनिया भर में हिंसा फैलाने का अधिकार रखते हैं। यह मानसिकता केवल अशिक्षित और गरीब मुस्लिमों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि शिक्षित और संपन्न वर्ग के कट्टरपंथी विचारधारा वाले मुस्लिम भी इसे अपने धर्म कार्य का हिस्सा मानते हैं। दिल्ली में हुए कार विस्फोट में सहभागी उच्च शिक्षित आतंकवादीयों ने इस बात पर मुहर लगा दी है।

मसूद अजहर, जैसे आतंकवादी नेता, जिहादी मानसिकता को फैलाने में माहिर हैं। अभी-अभी मसूद अजहर की जो जहरीले भाषन के कैसेट मुसलमानों के धार्मिक उत्सव में बजाए गए| उसमें मसूद अजहर मुस्लिम समाज को उकसाने के उद्देश्य से कहा रहा है कि “अल्लाह के लिए किए गए जिहाद की ताकत बहुत बड़ी है और वह इस्लामि जिहाद की ताकत पूरी दुनिया को दिखाना चाहते हैं।” अजहर मसूद के बेटे ने जो एलान किया, वह भारत के लिए एक गंभीर चेतावनी है। उन्होंने कहा कि, ” कब तक दिल्ली बचाओगे? आज नहीं तो कल हम जिहाद करेंगे।” दिल्ली में कार धमाका होने से कुछ ही दिन पहले इस प्रकार का ऐलान करना और उसको अंजाम देना यह दिखाता है कि आतंकवाद केवल कुछ सीमित स्थानों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक वैश्विक समस्या बन चुका है।

प्रत्येक आतंकवादी खूनी घटना के बाद, यह स्पष्ट हुआ है कि आतंकवादियों में उच्च शिक्षा लिए हुए इस्लामी युवक थे। उनमें से कई डॉक्टर ,प्राध्यापक या चार्टर्ड अकाउंटेंट है। उन्होंने इस्लाम धर्म के लिए जिहाद किया है। दुनिया भर से गैर -मुस्लिमों की शक्ति को हटाना यह उनके धार्मिक कार्यक्रमों का पहला चरण है। इस्लाम को शांतिपूर्ण धर्म कहा जाता है लेकिन शांति की हत्या करने वाले इस्लामी आतंकवादियों का विरोध इस्लामी लोग बड़े पैमाने पर क्यों नहीं करते हैं? अब दिल्ली में उच्च शिक्षित इस्लामी आतंकवादियों ने कार विस्फोट करने के बाद कितने मुस्लिम संगठनों ने इस आतंकवादियों का या आतंकी विचारधाराओं का विरोध किया है? ऐसा सवाल हिंदूओं के मन में आता है| सभी मुसलमानों को एक आदर्श मुस्लिम होने के बजाय एक न्यूक्लियर मुस्लिम होना आवश्यक क्यों लगता है?

इस्लामी धर्मग्रंथों मे सांस्कृतिक इस्लामी साम्राज्य स्थापित करने के लिए अल्लाह के लिए जिहाद करना और तेज़ी से मुसलमानों की आबादी बढ़ाना, इन दो मुख्य बातों का आदेश दिया गया है। यहाँ जिहाद का अर्थ है, गैर-मुसलमानों को किसी भी प्रकार से मुसलमान बनाना और उनके देशों में इस्लामी राज्य व्यवस्था स्थापित करना है। इसके लिए मुसलमान बड़ी कूटनीति से, अपनी अपनी शक्ति और परिस्थिति के अनुसार जिहाद करते हैं। वे किसी देश में कमज़ोर और कम संख्या में होते हैं, तो वे वहाँ सह-अस्तित्ववादी और शान्ति-पूर्ण जिहाद अपनाते हैं। और जहां वे शक्तिशाली एवं सत्ता में होते हैं जैसे पाकिस्तान, बांग्लादेश एवं अन्य मुस्लिम देशों में तो वे गैर-मुसलमानों पर भी आक्रामकता और शरियाई जिहाद अपनाते हैं। सीधी बात कहें तो , जिहाद के बिना इस्लाम का कोई अस्तित्व नहीं है। यही कारण है कि कश्मीर घाटी, बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान आदि देशों से हिन्दुओं को इस्लाम स्वीकारने व पलायन करने को विवश किया या उनका कत्ल कर दिया गया।

यूरोप के अनेक देश मुस्लिम जनसंख्या-विस्फोट से भयभीत एवं राजसत्ता खो जाने से चिन्तित हैं। भारत के जनसंख्या आँकड़े बताते है कि मुसलमानों की वृद्धि दर गैर-मुसलमानों की वृद्धि दर से लगभग दुगनी है। 2060 तक भारत में मुसलमानों की संख्या हिन्दुओं से अधिक हो जायेगी और वे यहाँ की सरकार पर कब्जा कर लेंगे। इस्लाम का अन्तिम उद्देश्य सभी मनुष्य जाति को एक अल्लाह की शरण में लाना है। इसके लिए अमीर गरीब , शिक्षित – अशिक्षित मुसलमान अपनी ज़िन्दगी सहित, जो कुछ उनके पास है, वह सब कुछ दाव पर लगाने को तैयार रहते हैं । संपूर्ण विश्व को मुस्लिम बनाने के उद्देश्य को प्राप्त करने का यह जो खतरनाक तरीका है उसे जिहाद कहते है। इस्लाम एक धर्म प्रेरित मुहम्मदीय राजनैतिक आन्दोलन है, जिहाद जिसकी कार्य प्रणाली, विश्व भर के सारे मुसलमान जिसके सैनिक, मदरसे जिसके प्रशिक्षण केन्द्र, गैर-मुस्लिम राज्य जिसकी युद्ध भूमि और विश्व में इस्लामी साम्राज्य स्थापित करना जिसका अन्तिम उद्देश्य है। इसलिए भारत में इतिहास काल से 1400 साल तक चल रहा यह संघर्ष मुसलमानों के आक्रमण का रक्तरंजित इतिहास है।

1947 में भारत आज़ाद नहीं हुआ बल्कि भारत का विभाजन हुआ जिसका एक भाग पाकिस्तान के नाम से मुसलमानों को दे दिया गया। और शेष भारत की सत्ता मुस्लिम परस्त नेहरू-कांग्रेस को दे दी गई। पीड़ा की बात तो यह है कि जब भारत का विभाजन हिन्दू और मुसलमान के आधार पर हुआ तो विभाजन से पहले, पाकिस्तान और हिन्दुस्तान के बीच, हिन्दू-मुस्लिम आबादी की अदला-बदली क्यों नहीं की गई? जबकि 1946 में पाकिस्तान के मुस्लिम नेताओं ने 15 अगस्त 1947 से पहले, सम्पूर्ण हिन्दू-मुस्लिम आबादी की अदला-बदली पर बल दिया था। डा. भीमराव अम्बेडकर ने तो आबादी की अदला-बदली को सभी हिन्दू-मुस्लिम समस्याओं का हल बतलाया जिसका सरदार पटेल और डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भी समर्थन किया। परन्तु हिन्दू विरोधी जवाहरलाल नेहरू ने इसे अस्वीकार कर दिया। सच्चाई यह है कि 1947 में हिन्दू मुस्लिम आबादी की अदला-बदली न करना विभाजन से भी बड़ी भूल थी। यह भारत के हिंदुओं के विरूद्ध एक इस्लामिक षडयंत्र था । उसके लिए कांग्रेस पूरी तरह जिम्मेदार है।

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पाकिस्तान इस महाद्वीप के मुसलमानों के लिए इस्लाम धर्म का पुरस्कार करने वाला देश है। जो कश्मीर, हैदराबाद,जूनागढ़ के बिना अपने आपको अधूरा समझता है। क्योंकि इन राज्यों ने पाकिस्तान में विलय होने की घोषणा की थी, लेकिन तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल जी ने उन्हें अपने अधीन कर लिया। इसीलिए पाकिस्तान अपना कर्त्तव्य मानता है कि कश्मीर, हैदराबाद , जूनागढ़ को हिन्दुओं के कब्जे से मुक्त कराऐं। संपूर्ण पाकिस्तान के मुसलमानों का यह लक्ष्य है। भारत में हर प्रकार के इस्लामी जिहाद द्वारा उन राज्यों को वापिस लेंने के लिए प्रयासरत हैं। मुसलमानों ने शेष भारत को इस्लामी राज्य बनाने की अनेक दीर्घ एवं अल्पकालीन योजनाएँ चला रखी हैं। बांग्लादेशी मुस्लिमों की घुसपैठ द्वारा पूर्वोत्तर भारत का इस्लामीकरण; कश्मीर को हिन्दूविहीन कर स्वतन्त्र मुस्लिम देश बनाना। भारत के लगभग सौ से अधिक मुस्लिम बहुल जिलों को इस्लामी अलगाववादी गतिविधियों का केन्द्र बनाया गया है । जिससे देश के इस्लामीकरण में सहायता प्राप्त हो सकें।

मुसलमानों की इन सारी नीतियों का सामूहिक राजनैतिक एजेंडा एक ही होता है। इसके लिए सभी मुस्लिम सांसद और विधायक भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर किसी भी राजनैतिक दल से चुनकर क्यों न आए हों, भारत में मुस्लिम नीतियों को मजबूत करने पर बल देते हैं। विचारणीय प्रश्न यह है कि जब भारतीय मुसलमान सरकारी नीतियों जैसे परिवार नियोजन, समान आचार संहिता, वन्दे मातरम् गान आदि को नहीं मानते, उल्टे मुस्लिम पर्सनल कानून, शरिया कानून आदि पर बल देते हैं, शाहबानो मामले में तो सभी दलों से चुनकर आए मुस्लिम सांसदों ने सुप्रीम कोर्ट का फैसला ही नहीं माना और तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को संविधान में परिवर्तन करने को विवश किया और संविधान बदला गया। तो इसका परिणाम हमें आज भी भुगतना पड़ रहा है। भारत में मुस्लिमों के बढ़ते हुए राजनीतिक प्रभाव ने इस्लामी आतंकवाद को और मजबूत किया है। भारत के इस्लामीकरण के उद्देश्य से आ रहे बांग्ला देशी मुस्लिम घुसपैठियों, जिन्हें कांग्रेस व सेक्यूलर पार्टियाँ भारत में बसाकर नियमित वोटर बना रही हैं, भारत में उनकी संख्या अब तक बढ़कर लगभग छः करोड़ हो गई जब मुसलमान सभी सम्भव उपायों द्वारा अपनी जनसंख्या 30-35 प्रतिशत तक बढ़ा कर और राजनैतिक दृष्टि से शक्तिशाली हो कर, वे किसी भी राजनैतिक दल के सहयोग के बीना, केवल अपने बल बूते पर केन्द्र व राज्यों में अपनी सरकारें बनाना चाहते हैं।

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इसके अलावा सभी सैक्यूलर पार्टियों के हिन्दू नेता अपने व्यक्तिगत स्वार्थों, क्षेत्रवादी व जातिवादी राजनीति के कारण सब कुछ देखते हुए भी इस इस्लामीकरण का विरोध नहीं कर रहे हैं। एक बार भारत में इस्लामी राज्य स्थापित हो जाने के बाद यहाँ न प्रजातंत्र रहेगा और न सैक्यूलरवाद। बल्कि धीरे-धीरे शरियाई कानून व्यवस्था हो जाएगी। परिणामस्वरूप तब शेष भारत में भी हिन्दुओं की स्थिति, वर्तमान पाकिस्तान व बांग्लादेश के हिन्दुओं जैसे ही हो सकती है। सच्चाई यह है कि साम्राज्यवादी इस्लाम की कूटनीति, मानसिकता और विश्वव्यापी रक्तरंजित इस्लाम का इतिहास न जानना या उसकी अनदेखी करना ही भारतीयों को सबसे अधिक घातक सिद्ध हुआ है। हमारे सैक्यूलर विपक्ष अपने स्वार्थवश भारतीयों को इस इतिहास से अनजान बना रहें है। कितने आश्चार्य की बात है कि जब सारा संसार इस्लामी आतंकवाद से लोहा लेने के लिए ठोस एवं प्रभावी रक्षात्मक कदम उठा रहे हैं, वहीं भारत की सत्ता लोलुप कांग्रेसी, समाजवादी, सेकुलर राजनेता इस्लामी कट्टरपंथी राजनैतिक शक्तियों के सामने आत्मसमर्पण कर रहीं हैं।

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भगवत गीता में एक श्लोक है, सर्वे धर्मः राजधर्मप्रधानः। अर्थात् ‘राजधर्म सब धर्मों में श्रेष्ठ है। यही सभी की सुरक्षा करता है। हमारे राजधर्म का आधार सांस्कृतिक राष्ट्रवाद है। इसके स्थापित होने पर ही राष्ट्र की सुरक्षा संभव है और इसके तत्वावधान में व्यक्ति अपने सांस्कृतिक, धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक और राष्ट्रीय कर्तव्यों का पालन कर सकते हैं, अन्यथा नहीं। अतः आज की परिस्थितियों में हमारी सबसे पहली आवश्यकता है कि सर्वप्रथम हिंदू , वर्तमान चुनौतियों और उसके भावी परिणामों को समझें और फिर उन चुनौतियों से मुकाबला करने का संकल्प लें। तथा हम अपने सभी क्षेत्रीय, भाषायी, जातीय आदि भेद-भावों को भुलाकर भारतीय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के आधार पर एक सुदृढ़ और संगठित हिंदू समाज बनने का दृढ़ निश्चय करें। इस राष्ट्र-रक्षा और धर्म रक्षा अभियान में सभी स्तर से हिंदूओं की सहभागिता होनी जरूरी है। मुसलमानों की जिहादी नीति का विरोध करना और देश को बचाने का राष्ट्र एवं हिंदू जागरण भाव ही वर्तमान में ईश्वर-भक्ति है।

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भारत में इस्लामी आतंकवाद और जिहादी मानसिकता की बढ़ती चुनौतियां भारत और समस्त विश्व के लिए एक बड़ा संकट हैं। शिक्षित- अशिक्षित, अमीर- गरीब सारे मुसलमान जिहाद के एक ही प्लेटफार्म पर आकर भारत को हानि पहुंचाने के इरादे मन में रखने के प्रयास कर रहे हैं, इस प्रकार का चित्र लाल किला विस्फोट मामले से सामने आ रहा है। इस खतरे से निपटने के लिए हमें न केवल सख्त सुरक्षा उपायों की जरूरत है, बल्कि हमें अपने समाज में एकजुटता को भी बढ़ावा देना होगा। इस्लामी आतंकवाद पर काबू पाने के लिए केवल सैन्य और पुलिस उपाय पर्याप्त नहीं होंगे; इसके लिए एक सशक्त राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जागरूकता की भी आवश्यकता है। भारत को अपनी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की धारा को मजबूत करना होगा और इस्लामी आतंकवाद के खिलाफ एक सशक्त राष्ट्रीय रणनीति विकसित करनी होगी। यही हमारी सुरक्षा की कुंजी है।

लेखक:- अमोल पेडणेकर

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अमोल पेडणेकर

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