पत्रकारिता में महिलाओं की दशा और दिशा

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पत्रकारिता के क्षेत्र में महिलाओं की संख्या तो बढ़ी है लेकिन अभी भी वो हाशिए पर है। लेकिन कई ऐसी जुझारु पत्रकार हैं जो अपनी कार्य-कुशलता के बल पर अपने अधिकारों के लिए आवाज बुलंद करती हैं और उन क्षेत्रों में जाकर साहसिक रिर्पोटिंग करती हैं जहां पुरुषों का क्षेत्र  माना जाता था।  

नशे की अजगरी बांहों में महिलाएं

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फैशन के नाम पर सिगरेट, शराब, ड्रग्स का नशा करना और इसके साथ ही तस्करी एवं अन्य अपराधिक गतिविधियों में महिलाओं की संख्या में लगातार वृद्धि होना चिंता की बात है। संवेदनशील भारतीय महिलाएं संवेदनहीन व दिशाहीन होकर विकृति की ओर बढ़ती जा रही है।

राजनीति में मजबूत दावेदारी

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वर्तमान मोदी सरकार ने महिलाओं को विकास के पंख दिए तो महिलाओं ने भी सपनों की ऊंची उड़ान भरनी शुरु की। राजनीति की पुरपेंच गलियों से होते हुए वो राष्ट्रपति और राज्यपाल के पद पर स्थापित हैं। वह क्षेत्र जहां अब तक केवल पुुरुषों का वर्चस्व था, उन क्षेत्रों में भी महिलाओं ने स्वयं को स्थापित किया है।

साहित्यकार राजाश्रित नहीं, राजपुरस्कृत होना चाहिए – डॉ. शीतला प्रसाद दुबे

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मुंबर्ई। महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा विगत दिवस चर्चगेट स्थित जय हिंद कॉलेज के सभागार में वर्ष 2023-24 के पुरस्कार वितरण समारोह का आयोजन किया गया। इस अवसर पर महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के कार्याध्यक्ष डॉ. शीतला प्रसाद दुबे ने कहा कि साहित्यकार राजाश्रित नहीं बल्कि राजपुरस्कृत होना…

शौर्य की प्रतिमूर्ति रानी दुर्गावती

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इतिहास के पन्नों में अलग से रेखांकित है महानतम वीरांगनाओं में रानी दुर्गावती का नाम। इस साल उनका शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा हैं। जिन्होंने देश की रक्षा और आत्मसम्मान के लिए अपने प्राणों की आहुति तक दे दीं। राज्य की रक्षा के लिए कई लड़ाईयां भी लड़ी और मुगलों से युद्ध करते हुए वे वीरगति को प्राप्त हुईं।

राष्ट्रीय पत्रकारिता का मापदंड प्रस्थापित करती पुस्तक ‘मुद्दा’

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लेखन के विविध प्रकारों में से पत्रकारिता को सर्वथा उपयुक्त माना जाता है. पत्रकारिता से राष्ट्रीय विचारधारा को बल मिलना चाहिए. समाज को जागरूक कर उसे सही दिशा देना ही वैचारिक पत्रकारिता है. यही कार्य विगत एक दशक से अमोल पेडणेकर अपनी लेखनी से सतत करते आ रहे है. दिग्भ्रमित, फेक न्यूज और गुमराह करनेवाली पत्रकारिता के दौर में अमोल पेडणेकर द्वारा लिखित पुस्तक ‘मुद्दा’ सही अर्थों में राष्ट्रीय पत्रकारिता का मापदंड कही जा सकती है.

लव जिहाद: राष्ट्रीय व धार्मिक संकट

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समय-समय पर मैंने हिन्दी विवेक पत्रिका के पाठकों के समक्ष उस समय के सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक क्षेत्र में होने वाली गतिविधियों से मेरे मन में जो कम्पन पैदा हुआ उसे प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। इसके साथ ही मैंने विभिन्न विषयों पर नियमित लिखता रहा। मुझे अपने बारे में या अपने अन्दर के विचारों को लेखों के रुप में पाठकों के सामने प्रस्तुत करने का अवसर मिला। उन लेखों के संकलन का बिन्दु पुस्तक है।

कर्तृत्व, नेतृत्व व मातृत्व का आदर्श

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नारी विमर्श से ही सनातन संस्कृति की भारतीय परम्परा को मजबूत करना है। नारी ही समाज, परिवार व राष्ट्र की आधारशिला है। जिसका एक उदाहरण जीजाबाई के मातृत्व, अहिल्याबाई के कर्तृत्व तथा लक्ष्मीबाई के नेतृत्व में मिलता है।

कर्तव्य पथ पर महिला सशक्तीकरण की गूंज

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महिलाएं अब हाशिए पर नहीं है। फर्श से उठकर वो अर्श पर पहुंचकर अपने सपनों को ऊंची उड़ान दे रही हैं। जल, थल, नभ और यहां तक कि अंतरिक्ष तक में एक नया इतिहास रच रही हैं। ये महिला सशक्तिकरण नहीं तो और क्या है?

बंगाल पर कलंक

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किसी भी देश और राज्य की प्रगति तभी सम्भव है जब वहां शांति हो। परंतु पश्चिम बंगाल में असामाजिक तत्वों का बोलबाला है। राज्य में सनातन संस्कृति को मानने वाले नागरिकों पर हमला किया जा रहा है। यहां के कुछ क्षेत्रों में महिलाओ पर अत्याचार का भी मामला प्रकाश में आ रहा है।

भाजपा विजय का फार्मूला राष्ट्रवाद और विकास का एजेंडा

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रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद से प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में और अधिक बढ़ोत्तरी हुई है। देश में इस बार केवल मोदी लहर ही नहीं बल्कि बाढ़ आने वाली है जिसमें कांगे्रस सहित विपक्षी दलों के इंडी गठबंधन का सुपड़ा साफ होने की सम्भावना दिखाई दे रही है। इस बार 400 पार के लक्ष्य पर भाजपा जी-जान से जुटी हुई है।

आगे बढ़ें अपनी उन्नति के लिए

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समानता आने की यह प्रक्रिया बहुत लम्बी और निरंतर चलने वाली है, क्योंकि महिलाएं अगर आगे बढ़ रहीं हैं तो पुरुष भी रुके नहीं हैं, वे भी प्रगति कर ही रहे हैं, नए-नए आयाम विकसित कर रहे हैं। ऐसे में प्रतिस्पर्धा होना तय है, परंतु यह प्रतिस्पर्धा उचित मानकों पर होनी चाहिए। अंग्रेजी में इसे ‘हेल्दी कॉम्पीटीशन’ कहा जाता है।

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