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२०१९ के लोकसभा चुनावों का शंखनाद

by अमोल पेडणेकर
in अप्रैल २०१७, संपादकीय
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पांच राज्यों के चुनाओं के नतीजे आ गए हैं। भले ही ये चुनाव पांच राज्यों में हुए है लेकिन इन चुनावों की आवाज पूरे देश में सुनाई देगी। ये चुनाव देश की राजनीति की दशा और दिशा तय करने वाले थे। अत: इन चुनावों को २०१९ के लोकसभा चुनावों की जमीन तैयार करने वाला भी माना जा रहा था। उत्तर प्रदेश के मतदाताओं ने जो ३२५ विक्रमी विजयी उम्मीदवार भाजपा की झोली में डाले हैं उससे भाजपा की झोली भर कर बह रही है। पंजाब के अलावा अन्य राज्यों में नरेंद्र मोदी का जादू जारी है। संकेत यह है कि प्रधान मंत्री के नोटबंदी के फैसले से भाजपा को क्षति नहीं हुई है जिसकी उम्मीद विरोधी दलों को थी। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर में भाजपा को पिछले चुनावों की तुलना में बड़ा लाभ हुआ है। इस चुनाव के नतीजों ने दो प्रश्नों का उत्तर दिया है, मोदी की लोकप्रियता का आलेख आज भी चढ़ता जा रहा है और दूसरी बात है कि कांग्रेस की फिसलन रुकी ही नहीं है। नोटबंदी का निर्णय आने वाले समय में अत्यंत महत्वपूर्ण होगा इस बात को ध्यान में रख कर नोटबंदी के मुद्दे पर बचाव का तरीका न अपना कर आक्रामक नीति अपनाने की बात भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शहा ने रखी थी। गरीबों की हितकारी नोटबंदी और सर्जिकल स्ट्राइक से लोगों का भाजपा पर विश्वास बढ़ा है। यह मत अमित शहा ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में स्पष्ट रूप से व्यक्त किया था।

यह चुनाव भाजपा और नरेंद्र मोदी के लिए बहुत खास है। वे इन चुनावों को ‘मिशन २०१९’ की तैयारी के रूप में देख रहे थे। ऐसा होना स्वाभाविक है। इसका कारण यह है कि २०१४ में भाजपा की अद्वितीय लोकप्रियता का परिचय उत्तर प्रदेश ने दिया था। उससे बढ़ कर स्थिति इस चुनाव में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में दिखाई दी है। यह जीत इसलिए भी जरूरी थी कि २०१५ और २०१६ में प्रधान मंत्री मोदी को दिल्ली और बिहार में हार का सामना करना पड़ा था, जिसका दर्द अब तक सभी भाजपाइयों के मन में बाकी था। इसकी सारी दारोमदार उत्तर प्रदेश के चुनावों पर आ टिकी थी। देश की राजनीति की मुख्य धारा में बहने के लिए उत्तर प्रदेश में राजनैतिक वर्चस्व स्थापित होना बहुत जरुरी है।
कांगे्रस और उसके उपाध्यक्ष राहुल गांधी के लिए भी यह चुनाव महत्वपूर्ण था। २०१४ में मिली हार के बाद कांग्रेस और राहुल गांधी उत्तर प्रदेश में सत्ता काबिज करने केप्रयास में थे। कांग्रेस को सब से ज्यादा चिंता उत्तर प्रदेश और पंजाब की थी। कांग्रेस को उत्तर प्रदेश का महत्व मालूम है। इस कारण राहुल गांधी को स्थापित करने के लिए कांग्रेस पार्टी ने सब कुछ उत्तर प्रदेश में झोंक दिया था। पंजाब अमरेद्र सिंह और नवज्योत सिद्धू पर छोड़ दिया था। उत्तर प्रदेश में राहुल के प्रयास नकारे गए और सरदारों के प्रयास सफल रहे। पंजाब में कांग्रेस को संजीवनी दिलाने में अमरेद्र सिंह और सिद्धू कामयाब रहे। पंजाब में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में मुख्य टक्कर थी। अकाली दल- भाजपा गठबंधन मुकाबले में ही नही रहा। वैसे पंजाब में अकाली दल की नापसंदगी मतदाताओं ने चुनाव के पहले ही जाहिर की थी। इस बात का खामियाजा भाजपा को भी भुगतना पड़ा।
हमेशा की तरह सब से ज्यादा ध्यान उत्तर प्रदेश के नतीजे पर केद्रित था। दिल्ली के तख्त का रास्ता लखनऊ से होकर जाता है। नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने ढाई साल के कार्यकाल में आम गरीब जनता के हित में जो महत्वपूर्ण निर्णय किए हैं उन पर उत्तर प्रदेश की जनता ने दिल से सहमति की मुहर लगाई है। साथ में मा. नरेंद्र मोदी, अमित शाह ने अपनी पूरी ताकत उत्तर प्रदेश में लगाई थी। उनकी छवि का भाजपा को फिर से लाभ हुआ है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने खुद को समाजवादी पार्टी की पुरानी विरासत से अलग कर खुद की प्रतिमा बढ़ाने की कोशिश की थी। कांग्रेस को साथ जोड़ कर असफल प्रयोग किया। सुरक्षा और कानून के बारे में जो जंगल राज पांच सालों में उत्तर प्रदेश में निर्माण हुआ था इसके बावजूद भी काम बोलता है जैसी फालतू बकवास भी उनके चुनावी मुद्दों में थी जिसका खामियाजा उत्तर प्रदेश की जनता ने उन्हें दे दिया है। इन दोनों ताकतों के बीच पूर्व मुख्यमंत्री मायावती, लोकसभा २०१४ से उन्हें जो नाकामी मिलनी प्रारंभ हुई है, उस नाकामी को वह विधान सभा चुनावों में भी सुधार नहीं पाई। वैसे भी मायावती की पूरी राजनीति उत्तर प्रदेश पर ही निर्भर है। उत्तर प्रदेश की जनता ने ही नकारा तो वह कहीं और जाने के काबिल भी नहीं रही है।
इन विधान सभा चुनावों ने लोकसभा २०१९ के चुनावों का चित्र स्पष्ट कर दिया है। एक दृष्टि से देखा जाए तो लोकसभा २०१९ के चुनावों का शंखनाद करने वाला यह चुनाव था। राज्यसभा में फिलहाल भाजपा को बहुमत न होने के कारण बहुत सारे विधेयक रुके पडे हैं। राष्ट्रीय राजनीति में राज्य महत्वपूर्ण होते हैं। भाजपा को इन विधान सभा चुनावों में जो कामयाबी मिली है उससे राज्यसभा की अटकलें खत्म हो जाएंगी। साथ में आने वाले समय में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति चुनाव होने वाले हैं। इस पृष्ठभूमि पर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड राज्य में मिला यश प्रचंड महत्वपूर्ण है।
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में बदले माहौल को ध्यान में रख कर सामान्य जनों की आकाक्षाओं को पूरा कर सकने वाली नीतियां अपनानी होंगी ताकि ५ वर्ष की अवधि में वह आधार बन जाए। कृषि विकास और किसानों की खुशहाली के लिए ठोस नीति बनानी होगी। कृषि को उद्योग से जोड़ना आज बहुत जरूरी है। जब तक कृषि और उद्योग को विकास के आधार के रूप में स्वीकार नहीं करेंगे तब तक न कृषि की उन्नति होगी और न ग्रामीण क्षेत्रों के उद्योगों की। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में प्राकृतिक संसाधनों का अनैतिक दोहन आज की प्रमुख समस्या है। परिवहन साधनों का विस्तार नहीं है। विशेषकर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड इन दो प्रदेशों में शिक्षा के स्तर के संदर्भ में जितना कहा जाए उतना कम होगा। शिक्षा के क्षेत्र में जो बदहाली का चित्र है उसका सीधा परिणाम बेरोजगारों की फौज बढ़ने में हुआ है। इसलिए नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में मिली अलौकिक विजय उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश राज्यों में भाजपा की राज्य सरकारों के सामने चुनौतियां भी खड़ी कर रही है। भाजपा की नई सरकार को इन सभी बातों पर गंभीरता से विचार कर ऐसी नीतियां बनानी होगीं, जिससे गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार से राज्य मुक्त हो सके। भाजपा को अलौकिक विश्वास से मतदान करनेे के आनंद भाव का एहसास भविष्य में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की जनता कर सके तो ही यह विजय सही मायने में जनता की विजय होगी।

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