विवेकानंद का कृतिरूप दर्शन
समाज में संन्यासी की स्थिति पहले से ही बहुत ऊंची मानी जाती रही है। मनु ने लिखा है कि जो मनुष्य तीनों ऋणों (देव ऋण, पितृ ऋण और ऋषि ऋण) से उऋण हो चुका हो, वही मोक्ष प्राप्ति के उद्देश्य से संन्यास ग्रहण करे।
समाज में संन्यासी की स्थिति पहले से ही बहुत ऊंची मानी जाती रही है। मनु ने लिखा है कि जो मनुष्य तीनों ऋणों (देव ऋण, पितृ ऋण और ऋषि ऋण) से उऋण हो चुका हो, वही मोक्ष प्राप्ति के उद्देश्य से संन्यास ग्रहण करे।