संगीतज्ञ विवेकानंद

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विवेकानंद की आत्मिक ऊर्जा का स्रोत नाना धाराओं से प्रवाहित होता था। इनमें से एक प्रवाह था संगीत। अन्य कुछ भी न करके यदि उन्होंने केवल स्वरसाधना की होती, तो भी वह अमर हो जाते।जब विवेकानन्द तेईस साल के थे, तभी उनका ‘संगीत कल्पतरू’ नामक ग्रंथ प्रकाशित हुआ था।

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