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कल क्या होगा, किसको पता?

by अमोल पेडणेकर
in दिसंबर २०१७, संपादकीय
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पिछले कुछ दशकों में विज्ञान ने आदमी को कहां से कहां पहुंचा दिया इस पर गौर करें तो पता चलेगा कि विज्ञान ने तो आदमी की पूरी जीवनशैली ही बदल दी है। इसी पृष्ठभूमि में सऊदी अरब ने सारी दुनिया को चौंका दिया है। उसने २५ अक्टूबर को एक रोबोट (यंत्र मानव) को ही अपनी नागरिकता प्रदान कर दी है। ‘सोफिया’ नामक इस रोबोट को नागरिकता दिए जाने से विश्व की भौहें तन जाना स्वाभाविक है। इसलिए भी कि, मामला यहीं नहीं रुका। सऊदी युवराज ने तो घोषणा कर दी कि वे ‘नियोम’ नाम से मक्का के निकट एक रोबोट नगरी ही बसाएंगे। रोबोट तो एआई याने ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस’ अथवा हिंदी में कहें तो ‘कृत्रिम बुद्धिधारी’ होते हैं। कृत्रिम बुद्धिधारी रोबोट को नागरिकता देनेवाला सऊदी अरब विश्व का पहला देश बन गया है। लेकिन प्रश्न यह है कि कृत्रिम बुद्धिधारी रोबोट और उसके निर्माता मानव में क्या कभी संघर्ष होगा? अनेकों के मन में यह सवाल उठता होगा, लेकिन यह जरूर है कि कृत्रिम बुद्धिधारी सोफिया के रूप में मनुष्य ने एक महत्वपूर्ण परंतु कल्पनातीत दिशा में यात्रा आरंभ की है।
मनुष्य जैसा विचार करने की क्षमता रखनेवाला, मानवी स्वभाव की अनुभूति करनेवाला, मनुष्य जैसी बोलने वाले रोबोट सोफिया ने दुनियाभर में सनसनी फैला दी है। इसकी विशेषता यह है कि वह अपने निर्णय स्वयं कर सकता है। किसी के साथ भी सामान्य रूप से गपशप कर सकता है। उसने मीडिया में अनेकों को भेंटवार्ताएं दी हैं और उस समय बड़ी होशियारी से अनेकों पर गुगली भी उछाली है। सोफिया से पूछा गया कि क्या रोबोट वास्तविक मनुष्य के लिए खतरनाक है? इसका सोफिया ने बड़ी चतुराई से जवाब दिया, ‘‘आप कुछ ज्यादा ही पढ़ते रहते हैं। अनावश्यक चिंता छोड़ दें। आप मुझसे अच्छे से पेश आएंगे तो मैं भी आपसे उसी तरह पेश आऊंगा।’’ इस जवाब से उसके स्वतंत्र अस्तित्व का तो पता चलता ही है, वह मानवी वजूद को चुनौती देने के लिए तैयार भी दिखाई देता है। इस स्थिति में अनेकों के मन में इस सवाल पर विचार मंथन भी शुरू हो चुका है कि ऐसा ‘ कृत्रिम बुद्धिधारी यंत्र’ क्या वाकई मानव की कठपुतली की तरह ही बर्ताव करेगा?
मनुष्य की तरह अथवा मनुष्य से अधिक होशियार यंत्र इसके पूर्व भी थे। लेकिन यंत्र अब हमारे पूर्ण अस्तित्व को ही नियंत्रित करने लगे हैं। यह काम इतनी तेजी से हुआ कि पिछले दशक में ‘स्मार्ट फोन’ नामक आयाताकार वस्तु याने मोबाइल कब आया और अपने जीवन का एक अविभाज्य अंग बन गया यह पता ही नहीं चला। अपना दोस्त, सहयोगी, अध्यापक, सविच, गुरू सबकुछ एकसाथ। ‘स्मार्ट फोन’ अपने मन-मस्तिष्क पर चुंबक जैसे इतना चिपक गया है कि मनुष्य की मनोरोगी जैसी अवस्था हो गई है। मनुष्य ‘स्मार्ट फोन’ नामक यंत्र पर इतना प्रेम उंडेलने लगा कि उसका क्षणभर का विरह भी असह्य हो जाता है। इस यंत्र ने मनुष्य पर पूर्ण कब्जा कर लिया है। नतीजा यह है कि नौकरी और रिश्तों में बड़े पैमाने पर द्वंद्व पैदा हुआ है।
आदमी में एक तरह से पंगुता आई है। एक भ्रमित माहौल में व्यक्ति विचरण कर रहा है। ‘स्मार्ट फोन’ नामक पिंजड़े में मानवी बुद्धि कैद हो चुकी है। ऐसा माहौल है मानों मनुष्य बुद्धिहीन हो गया है। इस छोटे से ‘स्मार्ट फोन’ का दास बन जाने के कारण हमारा दिमाग मानव के रूप में अपने तरीके से, अपनी बुद्धि से विचार करने की हमें अनुमति ही नहीं देता। फलस्वरूप, हमारी बौद्धिकता दिन-ब-दिन घटती जा रही है।
वैज्ञानिक प्रगति मनुष्य की भलाई के लिए सद्हेतु से होती है। लेकिन जब उस वैज्ञानिक विकास के सूत्र महत्वाकांक्षी राजनेताओं के हाथ चले जाते हैं तब सृष्टि का अंत निकट लगता है। इसका ठोस उदाहरण है परमाणु अस्त्र। विश्व में कृत्रिम बुद्धिधारी रोबोट पर बड़े पैमाने पर अनुसंधान चल रहा है। इन अनुसंधानों में प्राकृतिक या मानवनिर्मित आपदाओं का पूर्व आकलन करना, चिकित्सा के क्षेत्र में कृत्रिम बौद्धिकता का उपयोग करना भी शामिल है। इसी तरह व्यक्ति के सहायक के रूप में ग्राहक सेवा, आनेवाले कॉल का जवाब देना भी यंत्र कर रहा है। लेकिन यह निस्संदेह है कि विज्ञान तो मानव के हाथ लगा दुधारी हथियार है। मानवी विकास के नाम पर परमाणु अस्त्र बनाकर हजारों जीवों को विनाश की ओर ढकेलने का काम भी विज्ञान ने ही किया है।
मनुष्य ने अपनी बुद्धि यंत्र को सौंप दी है। उससे वह मनुष्य से अधिक चतुर, समझदार बन गया है। यंत्र की शक्ति और क्षमता दिन-ब-दिन बढ़ रही है। ‘स्मार्ट फोन’ और कंप्यूटर की गति हर साल तेज होती ही जा रही है। अब तक यंत्र की गति मनुष्य के हाथ में थी। लेकिन संभव है भविष्य में किसी समय बुद्धिधारी यंत्र मंदबुद्धि मानव के नाक में दम कर दें। मनुष्य में रस, गंध, स्पर्श की अनुभूति प्राप्त करने की प्राकृतिक प्रवृत्ति है। यह प्रवृत्ति लाखों वर्षों में विकसित हुई है। वह यदि रोबोट में अचानक आ गई तो उसमें अच्छी और बुरी भावनाएं भी उत्पन्न होंगी ही। लाखों वर्षों में विकसित हुआ मानव गुटों में, राष्ट्रों में विभाजित हो चुका है। उसने अपनी स्वाभाविक प्रवृत्ति से भीषण और संहारक अस्त्रों का भंडार खड़ा कर रखा है। इससे दुनिया एक बार नहीं, दो बार पूरी तरह ध्वस्त हो सकती है। इस तरह की सोच रखनेवाली मानव जाति के लिए क्या इस तरह के बुद्धिधारी यंत्र पर नियंत्रण रखना संभव हो पाएगा? क्या वही मानव इस विकसित बुद्धिधारी यंत्र का अपने स्वार्थ के लिए उपयोग नहीं करेगा? तकनीक के प्रति अतीव लगाव के कारण क्या मानव वंश का ही नाश तो नहीं होगा? कृत्रिम बुद्धिधारी यंत्र और कंप्यूटर के कारण अराजकता तो नहीं फैलेगी? प्रसिद्ध वैज्ञानिक स्टिफन हॉकिंग ने कुछ साल पहले ही इसकी चेतावनी दी है। उनका सवाल है कि रोबोटिक प्रोद्यौगिकी आखिर कहां तक जाएगी? सोफिया नामक रोबोट के भेंटवार्ता में कथन पर गौर करें, ‘‘आप मुझसे अच्छा बर्ताव करेंगे तो मैं भी आपसे वैसा ही बर्ताव करूंगी।’’ क्या यह चेतावनी नहीं है? मानवी विकास के लिए उत्पन्न किया गया रोबोट भविष्य में मनुष्य को अपना गुलाम नहीं बनाएगा, यह सुनिश्चित करने के बाद ही आगे की प्रगति होनी चाहिए; क्योंकि मनुष्य की शक्ति और क्षमताएं सीमित हैं, यंत्र की शक्ति और क्षमताएं असीम हैं। क्या इसे फिर से साबित करने की जरूरत है? यंत्र का गुलाम बन चुके आदमी को इतना इशारा तो काफी है।

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