हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
द ग्रेट ग्रेटा

द ग्रेट ग्रेटा

by अमोल पेडणेकर
in जून २०१९, संपादकीय
1

विश्व के जलवायु ढांचे में तीव्र गति से परिवर्तन हो रहा है। बेमौसम बरसात और आंधी-तूफान से करोड़ों लोक त्रस्त हैं। विभिन्न प्रकार के जीव-जंतु नष्ट होने के कगार पर हैं। वर्तमान समय में जिस प्रकार पर्यावरण प्रदूषण से देश व विश्व के सामने विभिन्न प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं, उससे अब भी यदि मानव समाज में  जागरूकता उत्पन्न नहीं हुई तो निकट भविष्य में ही मानव समाज के सामने और अधिक परेशानियां उत्पन्न हो सकती हैं।

नदियां मनुष्य के विकास के लिए महत्वपूर्ण स्रोत मानी जाती हैं। नदियों के निरंतर बहते रहने का मानव जीवन के प्रवाह पर भी सीधा असर पड़ता है। पर इंसानों ने अपने लालची स्वभाव के कारण सम्पूर्ण प्रकृति को ही संकट में डाल दिया है। सम्पूर्ण विश्व में कोई भी नदी अपने उद्गम स्थान से समुंदर तक के अपने मार्ग में कहीं भी प्राकृतिक रूप से सुरक्षित नहीं है। पर्यावरण में हो रहे ऐसे परिवर्तन का प्रभाव सारी दुनिया में व्यापक रूप ले चुका है। पर्यावरण के बिगड़े मिजाज से विश्व में कई प्रकार की समस्याएं खड़ी हो रही हैं।

प्राकृतिक संसाधनों का दोहन और पर्यावरण संरक्षण के लिए विश्व के सभी देशों की सरकारों के माध्यम से हो रहे प्रयास नाकाफी हैं। इसमें आम जनता का बड़े पैमाने पर सहयोग अनिवार्य है। अत: पर्यावरण के संबंध में सामान्य जनता में जागरूकता फैलाना अत्यंत आवश्यक है। पर्यावरण के विषय पर पूरे विश्व को एकजुट होकर प्रयास करने होंगे। ऐसी स्थिति में स्वीडन की एक स्कूली छात्रा ग्रेटा का उदाहरण द्रष्टव्य है। इस छात्रा ने  पर्यावरण की सुरक्षा के लिए जो कदम उठाया, वह लाजवाब और अत्यंत सराहनीय है। 15 साल की ग्रेटा पढ़ाई के दौरान हरदम यह सोचती थी कि, पर्यावरण में हो रहे परिवर्तन के कारण यह पृथ्वी नष्ट होने को है। इतना भीषण संकट समस्त मानव जाति के सामने खड़ा है। ऐसे समय में स्वीडन में इस बात पर बहस छिड़ी हुई है कि स्वीडन यूरोप महासंघ से बाहर निकले या ना निकले? ऐसी बातों पर चर्चा करते रहने से पर्यावरण की सुरक्षा के लिए किस प्रकार से हम कदम उठा सकते हैं?

ग्रेटा सोचती थी कि पर्यावरण जैसे महत्वपूर्ण विषय पर स्वीडन की संसद में चर्चा होनी चाहिए। ग्रेटा अत्यंत अमीर घर से ताल्लुक रखती है। उसके पिता स्वीडन के लोकप्रिय अभिनेता और माता विख्यात नृत्यांगना हैं। ग्रेटा का मन उसे शांति से बैठने नहीं देता था। एक दिन उसने ‘पर्यावरण रक्षा के लिए स्कूली आंदोलन’ लिखा बैनर तैयार किया और स्वीडन के संसद भवन के सामने जाकर बैठ गई। आने जाने वाले सांसद, राजनीतिक नेता, लोग उसे उत्सुकता से देखते थे। उसका बोर्ड पढ़ते थे। लेकिन उसके इस आंदोलन में कोई सहयोग नहीं दे रहा था। लेकिन ग्रेटा बिल्कुल विचलित नहीं हुई। सुबह 6 से लेकर अपराह्न 3 बजे तक वह लड़की संसद भवन के सामने बैठती थी। कई महीनों तक यह सिलसिला चलता रहा।आखिर में लोग ग्रेटा से जुड़ते गए। ग्रेटा का विषय स्वीडन के साथ सम्पूर्ण विश्व में चर्चा का विषय बन गया।

15 साल की  स्कूली लड़की ग्रेटा थनबर्ग को सीकर परिषद में बुलाया गया। वहां उसने संक्षिप्त भाषण किया। उस भाषण में सभी बातें समाई हैं। ग्रेटा ने कहा कि, “आप सभी पर्यावरण के बारे में आशावादी होने की बात कहते हैं। परंतु, मुझे आपका आशावाद नहीं चाहिए। आपको पर्यावरण के प्रति चिंतित होना चाहिए। पर्यावरण के विनाश के कारण पूरी मानव जाति पर संकट मंडरा रहा है। इस बात की चिंता आपके प्रत्यक्ष कार्य में होनी चाहिए। आसन्न संकट से आपको भयभीत होना चाहिए और उससे मार्ग निकालने के लिए आपको समर्पित प्रयास करने चाहिए। इतनी ही मेरी आपसे इच्छा है।”

अभी भी ग्रेटा हर शुक्रवार को बोर्ड लेकर स्वीडन की संसद भवन के सामने बैठती है। आज  वह अकेली नहीं होती। पर्यावरण के विषय को लेकर आज सम्पूर्ण विश्व उसके साथ है। यूरोप, अमेरिका महाद्वीप के साथ सम्पूर्ण विश्व के युवा एवं सामान्यजन आज ग्रेटा के साथ जुड़ रहे हैं। उसके पर्यावरण सुरक्षा के आंदोलन का परिणाम क्या हुआ? क्या वह सफल रही? क्या सभी देश पर्यावरण के प्रति जागरूकता दिखाएेंंगे? इस प्रकार के प्रश्नों पर ग्रेटा कहती है, ”मैं जो कर रही हूं उससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा; यह सवाल मेरे जेहन में आता ही नहीं है। आज की स्थिति में मुझे जो करना जरूरी लगता है, वह मैं कर रही हूं। सभी उम्मीदें क्यों न टूटे, परंतु मैं अंतिम दम तक पूरी ताकत से प्रयास करती रहूंगी। पर्यावरण की रक्षा के लिए इतनी ही बात मुझे समझ में आती है।”

किशोरावस्था के संक्रमण काल में युवाओं में जीवन के संदर्भ में अनेक प्रश्न उठते हैं। यह संक्रमण काल जीवन का अत्यंत संवेदनशील मोड़ होता है। इस अवधि में व्यक्ति के रूप में युवाओं को भी कोई ना कोई व्यक्तिगत प्रश्न बेचैन अवश्य करते होंगे। लेकिन ग्रेटा अपने जीवन के व्यक्तिगत प्रश्नों से आगे बढ़कर अपने समाज, राष्ट्र एवं विश्व के भविष्य की चिंता से बेचैन होती है। पर्यावरण के संकट के समाधान के लिए क्या करना चाहिए? सरकार और समाज को क्या करना चाहिए? ऐसी उलझन में न पड़ते हुए ग्रेटा ने अपनी किशोरावस्था में पर्यावरण की रक्षा के लिए जो प्रयास किए हैं वह अनुकरणीय हैं। आज वर्तमान पीढ़ी की अपेक्षा भविष्य की ओर बढ़ने वाली युवा पीढ़ी के सामने प्रश्न खड़े हैं। उन प्रश्नों को लेकर ग्रेटा की तरह संवैधानिक मार्ग से आदर्श निर्माण करने का हम प्रयास कर सकते हैं। हम पर्यावरण दिन बड़े उत्साह से मनाते हैं, पर्यावरण के संदर्भ में चर्चा बड़ी जोर-शोर से करते हैं; लेकिन पर्यावरण दिन खत्म होते ही पर्यावरण को हानि पहुंचाने वाले काम हम जाने-अनजाने में करते रहते हैं। ऐसे समय में अपने स्कूल से समय निकाल कर संसद भवन के सामने धरना देने वाली ग्रेटा विश्व को मार्गदर्शन कर रही है। इस प्रकार की ग्रेटा विश्व के सभी देशों, राज्य, नगरों और गली-नुक्कड़ में निर्माण होना आज की आवश्यकता है।

 

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp

अमोल पेडणेकर

Next Post
आनंदयात्री प्रतिष्ठान

आनंदयात्री प्रतिष्ठान

Comments 1

  1. Surekha varghade says:
    6 years ago

    हिंदी वेक मासिक पत्रिका के अंक में अमोल पेडणेकर द्वारा लिखित संपादकीय ‘दी ग्रेट ग्रेटा ‘बहुत पसंद आया. संपादकीय पसंद आने का कारण छोटी सी ग्रेटा ने किया हुआ कार्य अनुकरणीय है। आज के दौर में आए दिन पर्यावरण के विषय को लेकर हम बड़ी बड़ी चर्चा करते रहते हैं। उनके परिणाम जो निकलते है वह हमारे सामने हैं। आज ही के अखबार में एक वृत्त आया है।एक गाय का मृत्यु उसके पेट में 30 किलो प्लास्टिक के जाने से हो गया। पर्यावरण के सुधार के लिए बड़ी-बड़ी परिषदों और चर्चा से कुछ भी हासिल नहीं हो रहा है। ऐसे में छोटी सी ग्रेटा के द्वारा किया हुआ कार्य मनभावन है। भारत के सभी स्कूलों में परीक्षा होती है । उनमें से 20 मार्क एक्स्ट्रा एक्टिविटी के लिए होते हैं। मुझे ऐसा लगता है कि प्रत्येक विद्यार्थी को वर्ष मे एक पेड़ लगाना और उस पेड़ की देखभाल सही ढंग से करने के लिए मार्क देने चाहिए। ऐसा होता है तो स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थी पर्यावरण में परिवर्तन लाने में बड़ी सहायक भूमिका निभा सकते है। मैं एक आम नागरिक हूं, हम जैसो के पास विचार है। परंतु विचारों को सही दिशा में वितरित करने का सही रास्ता नहीं है।हिंदी विवेक मासिक पत्रिका के माध्यम से मेरे यह विचार सरकार तक पहुंचाने का कार्य हो सकता है? हिंदी विवेक मे प्रस्तुत होनेवाले जादातर आलेख पठनिय होते हैं। हमारे ज्ञान में वृद्धि करने का कार्य विवेक पढ़ने से होता है।
    सुरेखा वरघाडे
    विलेपारले
    मुंबई

    Reply

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

- Select Visibility -

    No Result
    View All Result
    • परिचय
    • संपादकीय
    • पूर्वांक
    • ग्रंथ
    • पुस्तक
    • संघ
    • देश-विदेश
    • पर्यावरण
    • संपर्क
    • पंजीकरण

    © 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

    0