हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
एनपीए- देश के समक्ष आर्थिक संकट

एनपीए- देश के समक्ष आर्थिक संकट

by अमोल पेडणेकर
in अगस्त २०१९, संपादकीय
0

बड़े पूंजीपतियों की ओर बैंकों के भारी बकाया कर्ज देश के समक्ष चिंता का विषय है। आए दिन बैंकों के घोटाले उजागर हो रहे हैं। इससे साफ दिखाई देता है कि बैंकिंग क्षेत्र संकट में है। वित्तीय क्षेत्र में कार्यरत बैंकों, बीमा कम्पनियों में देश के लाखों लोगों का धन लगा हुआ है। देश की अर्थव्यवस्था सुचारू रूप से चलनी हो तो बैंकों, बीमा कम्पनियों का ठीक से चलना आवश्यक है। देश के कुल निवेश में से 63 प्रतिशत निवेश बैंकों में होता है। क्योंकि, बैंकों को पैसे सुरक्षित रखने की दृष्टि से विश्वसनीय माना जाता है, और उनसे व्यवहार करना भी आसान होता है। अभी तो ये बैंक ही दिवालिया होने की कगार पर दिखाई देते हैं और इसलिए जमाधारकों के मन में इन दिनों कुछ चिंता दिखाई देती है।

इसका एक कारण बैंकों के समक्ष उत्पन्न डूबत कर्ज अर्थात एनपीए का संकट है। हमारे सरकारी और सहकारी बैंक प्रचंड एनपीए के कारण दीनहीन अवस्था में पहुुंच चुके हैं। भारतीय स्टेट बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, आईडीबीआई, बैंक ऑफ बड़ौदा जैसे बड़े-बड़े सरकारी बैंकों को एनपीए ने संकटापन्न बना दिया है। संकट में पड़े 12 में से 11 सरकारी बैंक हैं। जून 2019 के अंत तक बैंकों के एनपीए की राशि लगभग 11 लाख करोड़ रु. तक पहुुंच चुकी है। इनमें से कोई 88 प्रतिशत राशि इन ग्यारह बड़े सरकारी बैंकों की है। इन आंकड़ों से सरकारी बैंकों की हालत किस कदर बिगड़ चुकी है इसका पता चलता है। प्रचंड़ डूबत कर्जों के कारण इन बैंकों की मुनाफे की क्षमता घट चुकी है। इससे उद्योगों को दीर्घ अवधि की कर्ज आपूर्ति पर मर्यादाएं आ गई हैं। अर्थव्यवस्था के सुचारू रूप से चलने और जमाधारकों के वित्तीय हितों की रक्षा के लिए इन बीमार बैंकों को आर्थिक संकट से उबारना अत्यावश्यक है। इसके लिए स्थायी व्यवस्था होनी चाहिए, जो विकसित अर्थव्यवस्था का एक लक्षण है।

गड़बड़ी के कारण यदि कोई बैंक डूब जाए तो उस बैंक के जमाधारकों का क्या होगा? वे कहां न्याय पाए? आम जनता का सरकारी बैंकों पर सर्वाधिक विश्वास होता है। आम आदमी अपना पैसा इन बैंकों में रखते समय कभी उस बैंक के तुलन-पत्र की जांच-पड़ताल नहीं करता। यह संभव भी नहीं है। देश के लोगों में आर्थिक साक्षरता लगभग न के बराबर है। इसलिए केवल विश्वास के आधार पर ही बैंकों में पैसा रखा जाता है। भारत में सरकारी क्षेत्र के बैंकों पर ग्राहकों का सर्वाधिक भरोसा है, क्योंकि ये बैंक भारत सरकार के स्वामित्व के हैं। देश की आम जनता सरकारी क्षेत्र के बैंकों में पूरे भरोसे के साथ इसलिए पैसा रखती है क्योंकि उनका सरकारी व्यवस्था के प्रति विश्वास होता है। लेकिन एनपीए के कारण वर्तमान में सरकारी बैंकों की हालत दयनीय हो गई है। इसी कारण आम जनता के सरकारी बैंकों के प्रति विश्वास में दरार आते दिखाई दे रही है।

भारतीय बैंकों में बढ़ते एनपीए के कारण आज अभूतपूर्व संकट निर्माण हुआ है। तिस पर सत्ता पक्ष और विपक्ष में तू-तू-मैं-मैं चलती रहती है। वर्तमान सत्ता पक्ष का दावा है कि पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारों से विरासत में उसे यह संकट मिला है। इस धूलधक्कड़ में यह मूल प्रश्न कायम ही है कि आखिर इतनी बड़ी राशि का क्या हुआ? कहां चली गई वह? 11 लाख करोड़ रु. के कर्जों के ऐवज में कुछ सम्पत्ति तो खड़ी हुई ही होगी; तो फिर उसे बेचकर यह पैसा क्यों वसूल नहीं किया जाता? यदि सम्पति खड़ी नहीं हुई हो तो वह पैसा फिर गया कहां? बैंकों के पास आया यह पैसा आम लोगों ने जमा किया है। अपना पसीना बहाकर पाई-पाई इकट्ठी कर उन्होंने यह जुटाया है। जनता का सरकारी बैंकों पर ही अधिक विश्वास है और वहां भी यदि उनकी जमापूंजी सुरक्षित नहीं होगी तो भविष्य में वे अपनी जमापूंजी वहां नहीं रखेंगे। एक और बात यह है कि बैंकों में रखे एक लाख रु. तक के निवेश को ही बीमा-कवच प्राप्त है। उससे अधिक जमापूंजी को आज भी कोई सुरक्षा प्राप्त नहीं है। वित्तीय क्षेत्र के बैंक, कम्पनियां संकट में फंस गए तो करोड़ों लोगों को उसकी मार सहनी पड़ेगी। इसलिए सरकार पहल कर सकारात्मक भूमिका से विचार कर बैंकों के निवेशकों, सम्बंधित अन्य निवेशकों, बीमा कम्पनियों के ग्राहकों की सुरक्षा का प्रावधान करने वाला कोई सर्वसमावेशी कानून बनाए यह जनता की स्वाभाविक अपेक्षा है। वह भारतीय अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक परिणाम करने वाला मील का पत्थर साबित होगा।

फिलहाल जो चल रहा है उसके अर्थव्यवस्था पर दूरगामी परिणाम होंगे। देश में स्थैर्य की दृष्टि से आर्थिक क्षेत्र में उत्साहपूर्ण वातावरण होना आवश्यक है। हमारी अर्थव्यवस्था में उद्योगों की महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें ग्रामीण उद्योग, कुटीर उद्योग, लघु उद्योग, मध्यम उद्योग, बड़े उद्योग इस तरह की शृंखला होती है। इस शृंखला में जीवंतता का प्रवाह बनाए रखने का काम बैंक करते हैं। लेकिन अभी देश के लगभग सभी बैंक प्रचंड संकट का अनुभव कर रहे हैं। इन बैंकों का बकाया कर्ज इसका एक बहुत बड़ा कारण है। इन सभी बातों का देश के सभी उद्योगों, बैंकों, विभिन्न संस्थाओं और देश की लगभग 80 फीसदी जनता पर भविष्य में विपरीत असर होने की संभावना है। बकाया कर्ज याने एनपीए। इस संकट के कारण देश का एक बड़ा वर्ग भविष्य में आर्थिक, सामाजिक और औद्योगिक संकट में पड़ सकता है। आनेवाले भविष्य में देश की अर्थव्यवस्था 3 ट्रिलियन से लेकर 5 ट्रिलियन बनाने का लक्ष्य देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रखा हैं। ऐसे समय में देश की अर्थव्यवस्था को खोखली करनेवाली इन बातों पर ध्यान देना आवश्यक हैं। इसलिए राजनीतिक हस्तक्षेप को दूर रख बैंकों के स्वामित्व के हक, बकाया कर्ज की वसूली, जमाधारकों की सुरक्षा, बैंकिंग प्रणाली की पुनर्रचना आदि बातों पर व्यापक सहमति पैदा कर हम इन प्रश्नों के उत्तर खोजें तो इस अराजकता पर अंकुश लग सकता है।

 

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp

अमोल पेडणेकर

Next Post
ग्रामीण सहकारी बैंक:    एनपीए समस्या और समाधान

ग्रामीण सहकारी बैंक:   एनपीए समस्या और समाधान

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0