वीर शिरोमणी महाराणा प्रताप सिंह

महाराणा प्रताप के वंशज महाराणा भगवत सिंह जी विश्व हिन्दू परिषद के अध्यक्ष बने। सम्पूर्ण देश का दौरा किया तथा अमेरिका में हुए अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की अध्यक्षता भी की। इस तरह ‘हिंदुओं के सूरज’ चरितार्थ करने की इस राजघराने की परंपरा अखंड चल रही है। महाराणा प्रताप की (२० मई) जयंती पर विशेष-

तमग्रगण्यम् धीराणाम् स्वत्व रक्षण तत्परम्।
प्रतापसिंहम् वन्देऽहम् लोकोत्तर पराक्रमम्॥
आ सेतु हिमालय जिस नाम से देशभक्ति का ज्वार उमड़ जाताहै उस ‘प्रताप’ का आज हम स्मरण कर धन्य हो रहे हैं। इतिहास में इस दैदिप्यमान सूर्य को राष्ट्र ने ‘हिन्दुओं का सूरज’ कह कर अपनी श्रद्धा व्यक्त की है।
मेवाड़ के अधिपति, आराध्य देव, श्री एकलिंग महादेव के आशीर्वाद से कृषि हरित ने गौपालक युवक को १४०० वर्षों पूर्व धर्म रक्षा के लिए चुना, वह वीर बाप्पा रावल नाम से प्रसिद्ध हुआ। महाराणा अर्थात् श्री एकलिंग जी दीवान बन कर सुशासन स्थापित किया। महाराणा सांगा, महाराणा हम्मीर, रानी पद्मश्री के नामों से कौन अपरिचित हैं? चितौड़ दुर्ग उत्तर पश्चिम भारत की राजनीति का केंद्र रहा है। ५०० वर्षों तक विदेशी आक्रमणों और जौहर की ज्वालाओं का साक्षी बना, जहां वीरों ने रक्षा के लिए सदा केसरिया बाना धारण किया। मेड़ता से मीरा का विवाह चित्तौड़ के राज परिवार में हुआ। वर्षों तक गृहकलह और षड्यंत्रों के शिकार के परिणाम स्वरूप मीरा को जहर दिया गया। श्री कृष्ण की प्रेम दीवानी भक्तिमति मीरा ने वृंदावन की राह पकड़ी और चित्तौड़ दुर्ग का त्याग किया।
महत्वाकांक्षी बलवीर ने स्वयं को राजा घोषित कर महाराणा सांगा के उत्तराधिकारी शिशु उदयसिंह को मारने के लिये नंगी तलवार लेकर महल मे प्रवेश किया, परन्तु पन्ना घाय ने स्वामीभक्ति रख कर अपने शिशु को उदयसिंह के स्थान पर सुला दिया और भावी महाराणा को छिपा कर दुर्ग से बाहर लेजाकर बचा लिया। इसी महाराणा उदयसिंह ने मेवाड़ के पहाड़ों के बीच उदयपुर बसाया। इन्हीं महाराणा उदयसिंह की संतान हमारे चरित्र नायक महाराणा प्रताप सिंह थे।
मांई एड़ो पूत जण, जेड़ो राणा प्रताप।
अकबर सूता ओझके, जाण सिराणे सांप॥
मां ऐसे पुत्र को जन्म दे जैसा राणा प्रताप हुआ जिसके डर से सोता हुआ अकबर चमक कर उठ बैठ जाता था मानो बिस्तर पर सांप घूम रहा हो। नाम सुनने मात्र से शत्रु कांप उठते हैं।
महाराणा उदयसिंह ने सघन जंगल और पहाड़ों के बीच गोगुन्दा को राजधानी बनाया। उनके पांच पुत्रों में प्रताप दूसरे पुत्र थे। परंपरा के अनुसार प्रथम पुत्र को राजगद्दी मिली। वह इतना योग्य नहीं था कि युद्धों का संचालक और राज्य की सुव्यवस्था कर सके; अत: सभी राव उमराव और सरदारों ने मिल कर उसे गद्दी से उतार कर प्रतापसिंह का राजतिलक कर दिया।
महाराणा प्रताप को लगातार २२ वर्षों तक युद्धरत रहना पड़ा। अनेक बार जंगलों में रहना पड़ा। राजपुताना के प्राय: सभी राजाओं ने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली। जयपुर के राजा मानसिंह ने अकबर के दूत और सेनापित बन कर मेवाड़ पर चढ़ाई कर दी। एकांत में प्रताप से भेंट की, परन्तु निराशा ही मिली। दूसरी बार बड़ी सेना लेकर फिर आक्रमण किया। वह युद्ध हल्दी घाटी में लड़ा गया। भयानक युद्ध हुआ। राणा प्रताप का चेतक घोड़ा घायल हो गया, उसका एक पैर कट गया, परन्तु स्वामी भक्त चेतक महाराणा को युद्ध से बाहर ले गया तथा नदी पार कर दूसरे किनारे ले जाकर स्वयं गिर पड़ा। यह दृश्य प्रताप के छोटे भाई शक्ति सिंह, जो द्वेषवश मुगल सेना के साथ लड़ रहा था, प्रताप के पास पहुंचा और अपनी गलती स्वीकार कर गले मिला तथा अपना घोड़ा देकर राणा प्रताप को सुरक्षित जाने दिया। कवि ने चेतक की प्रशंसा में लिखा
चार टांग वाले खड़े देखते ही रहे,
तीन टांग वाले ने कमाल कर डाला था।
महाराणा प्रताप राजधानी गोगुन्दा पहुंचे परन्तु खजाना खाली था एवं सैनिक थक चुके थे। ऐसे कठिन समय में देश के भाग्य से प्रताप की सेवा में मंत्री मामा शाह उपस्थित हुए। उन्होंने अपने पूर्वजों का संचित कोष महाराणा के चरणों में धर दिया। बीच में शांति काल आया तो प्रताप ने अनेक तालाब, किले और जनकल्याण के कार्य करवाए।
पुन: युद्ध काल आया तो वीर शिरोमणी प्रताप ने मेवाड़ के प्राय: सभी किलों को जीत लिया। मात्र दो किले वे अपने जीवन काल में नहीं जीत पाए, जो थे चित्तौड़ गढ़ और मांडल गढ़। दोनों किलों को जीतने के आश्वासन के पश्चात् ही उनके प्राणों ने देह त्याग किया।
एक बार कोई कलाकार महाराणा प्रताप के दरबार में उपस्थित हुआ। प्रसन्न होकर महाराणा ने उसको सम्मानित कर पगड़ी भेंट की। वही कलाकार जब अकबर के दरबार में गया, वहां उसने उस पगड़ी को सिर से उतार कर अपने एक हाथ में रख कर दूसरे हाथ से सलाम करने के लिये। सभी दरबारी चौंके कि नंगे सिर सलाम कर रहा है। उसने बताया कि यह पगड़ी महाराणा प्रताप की है, मेरा सिर झुक सकता है, परन्तु यह पगड़ी किसी के भी आगे नहीं झुक सकती है।
अब तक यही परंपरा सूर्यवंशी राजघराने की बनी रही। महाराणा राजसिंह ने औरंगजेब को अपने राज्य में घुसने नहीं दिया। कालांतर में अंग्रेजों के राज दरबार में महाराणा फतह सिंह ने जाकर सलाम नहीं किया। वहां उनकी कुर्सी खाली रही। क्रांतिकारी केसरी सिंह बारहठ ने उन्हें चेताया कि आज ‘हिन्दुओं का सूरज’ होकर किस प्रकार दरबार में स्टार ऑफ इंडिया कहलाओगे?
आगे चलकर अंग्रेजों के साथ संधि में समान स्तर रखते हुए दोस्ती लंदन का सिक्का जारी किया गया। उस समय कर्नल टॉड ने मेवाड़ का इतिहास लिखा तो उसने लिखा कि मेवाड़ में धर्मोपोली जैसे एक नहीं सैंकड़ों युद्ध होते रहे हैं। मेवाड़ के भूगोल में ९ नदियां और ११ नालों का वर्णन आता है। आज भी मेवाड़ के नाम से देश भर का सीना फूल जाता हैं।
देशी राज्यों के विलय के समय सरदार वल्लभ भाई पटेल स्वयं महाराणा भोपाल सिंह जी से मिलने उदयपुर आए। उनके लिए लगाए आसन पर पटेल नहीं बैठे तथा खड़े-खड़े प्रार्थना की कि हम आपको दिल्ली बुलाना चाहते हैं। दोनों की आंखें नम थीं।
इन्हीं के वंशज महाराणा भगवत सिंह जी विश्व हिन्दू परिषद के अध्यक्ष बने। सम्पूर्ण देश का दौरा किया तथा अमेरिका में हुए अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की अध्यक्षता भी आपने की थी।
मो. : ०८७६४३५७३३७

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