रा.स्व.संघ राष्ट्रनीति करता है राजनीति नहीं……रा.स्व.संघ के अखिल भारतीय सम्पर्क प्रमुख मा. अनिरुद्ध देशपांडे जी

रा.स्व.संघ के अखिल भारतीय सम्पर्क प्रमुख मा. अनिरुद्ध देशपांडे जी ने ‘हिंदी विवेक’ से हुई एक प्रदीर्घ भेंटवार्ता में नए भारत की संकल्पना, संघ-कार्यों के विस्तार और 2025 में संघ शताब्दी, राजनीति और राष्ट्रनीति पर अपने विचार रखे। उन्होंने राम मंदिर निर्माण, धारा 370, आतंकवाद, नक्सलवाद, समान नागरिक संहिता जैसी देश के समक्ष मौजूद समस्याओं पर भी संघ की भूमिका स्पष्ट की। प्रस्तुत है महत्वपूर्ण अंश-

भारत सदा ही  दुनिया के लिए उत्सुकता का विषय रहा है। आज भी विश्व के लिए भारत के अतीत और भविष्य का महत्व है। भारत में ऐसी कौन सी विशेषताएं हैं?

यह बात तो सच है कि पूरे विश्व का ध्यान भारत की ओर दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है। आज पूरा विश्व संघर्ष की कगार पर खड़ा है। कहीं मानसिक संघर्ष है तो कहीं अमीरी-गरीबी का संघर्ष दिखाई दे रहा है। एक प्रकार की अस्थिरता का अनुभव हम सब कर रहे हैं। ऐसे संघर्ष के समय सम्पूर्ण दुनिया को आश्वासित कर सके इस प्रकार की शक्ति भारत के पास है। इस बात के कई कारण हो सकते हैं लेकिन मैं दो या तीन कारणों का उल्लेख यहां पर करना चाहूंगा। विश्व में कई देश भौतिक दृष्टि से सम्पन्न हैं; पर मानसिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अशांत हैं। वह शांति भारत में दिखाई देती है। भारत कभी भी संघर्षरत नहीं रहा है। भारत ने कभी किसी पर आक्रमण करने की कल्पना भी नहीं की है। इस कारण विश्व शांति का विचार भारत में ही पनपा है।

दूसरा कारण हमें यह दिखाई देता है कि भारत का अतीत आध्यात्मिकता के आधार पर खड़ा है। अतीत के भारत में विभिन्न क्षेत्रों में बहुत बड़ी परंपरा हमने खड़ी की है। एक तो महान संतों ने सदियों से ही सामाजिक परिवर्तन का कार्य किया है। समाज में सुधार करने वाले राजा राममोहन राय से लेकर डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर तक महान समाज सुधारकों की एक बड़ी श्रृंखला हमें भारत में दिखाई देती है। इसी कारण भारत में एक सकारात्मक वायु मंडल का निर्माण हुआ है। उसी वायुमंडल का आकर्षण विश्व भर के लोगों के मन में है।

तीसरी बात जो हमारे सामने भारत की विशेषता के रूप में आती है वह है, भारत दुनिया की बहुत सारी अच्छी बातों को स्वीकार करता है, जो भारत के विकास के लिए अनुकूल है। पंडित दीनदयाल जी कहते थे कि विदेश से कोई भी अच्छी बातें लेने में गैर बात नहीं है। हम ऐसी बात लेंगे जो भारत को युगानुकूल बनाने के लिए सहायक हैं। ऐसी बातों का स्वीकार करके हम उसे दिशा अनुकूल कर देंगे। इसी भाव से भारत ने विश्व से कई बातों का स्वीकार किया है, और उसे भारत के हितों के अनुकूल बनाया है। वर्तमान में भारत भौतिक दृष्टि से भी सम्पन्न हो रहा है। मंगलयान, चंद्रयान से लेकर सुरक्षा विषय के लिए चल रहे आवश्यक अनुसंधानों के कारण विश्व में भारत का रुतबा बढ़ रहा है। आध्यात्मिक और भौतिक इन दोनों बातों का संतुलन भारत में दिखाई दे रहा है। इसी कारण विश्व भारत की ओर आश्वासक दृष्टि से देख रहा है।

न्यू इंडिया अथवा नया भारत इस संकल्पना को लेकर पूर्ण भारत में जोर-शोर से चर्चा चल रही है। नए भारत की संकल्पना के संदर्भ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ किस प्रकार की सोच रखता है?

देखिए, नया और पुराना इस प्रकार का भेद हम करना नहीं चाहते। हर पल कुछ नया आता है। कभी कुछ नया भाता है तो कभी- कभी पुराना भी भाता है। पुरानी बातें हमारे संदर्भ के लिए उपयुक्त और महत्वपूर्ण होती हैं। इस प्रकार का क्रम चलता ही रहा है। इस प्रकार का क्रम चलना यह सुस्थिति का प्रतीक है। ‘न्यू इंडिया’ यह शब्दप्रयोग भारत के प्रधानमंत्री ने किया है। उस शब्दप्रयोग के बारे में कोई दो मत होने का कारण नहीं है। लेकिन नया भारत अपने सपने को साकार करने की दिशा में ले जाने वाला होना चाहिए।

आज भारत की जनसंख्या के बारे में हम सोचें तो भारत विश्व में बड़ी संख्या वाला युवाओं का देश है। डेमोग्राफिक डिविडेंड जिसे कहते हैं, वह भारत के पास है और आगे 40-45  वर्षों तक रहने वाला है। अतः वास्तविक नई बातें, नई सोच, नई ऊर्जा, नई कल्पना, नवाचार, नया अनुसंधान ये सब बातें करने की शक्ति भारत के युवाओं के पास है। गत 6 वर्षों में जो सत्ता परिवर्तन आया है उसके बाद भारतीय युवाओं का उत्साह और दुगना हो गया है। समाज की बुराइयां समाप्त हो, व्यक्ति की भौतिक सम्पदा ब़ढ़े और व्यक्ति का मन संतुष्ट रहे यह संघ की अपेक्षा है।

हमें दिखाई दे रहा है कि नई अत्याधुनिक तकनीक का हम स्वीकार कर रहे हैं और दूसरी ओर योग जैसी अध्यात्मिक बातों का प्रचार भी बढ़ रहा है। इस प्रकार का संतुलन जहां दिखाई देता है वह अपना भारत है। अन्य देशों के संदर्भ में हम विचार करें तो वहां का विकास एकांगी होता है। परंतु भारत में विकास की सोच बहु अंगों से की जा रही है। इसी कारण संघ की सोच नए भारत के संदर्भ में स्वागत करने वाली है। नए भारत की कल्पना का संघ स्वागत ही करता है।

वर्तमान समाज में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का महत्वपूर्ण स्थान है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस संगठन में ऐसी कौन सी विशेषताएं हैं, जिनसे वह समूचे देश को आकर्षित कर रहा है?

स्वयंसेवी संगठन इस नाते राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विश्व का एक बड़ा संगठन है। यह गत 94 वर्षों की तपस्या का फल है। अब तक संघ के विभिन्न संगठनों में कोई भी कलह नहीं दिखाई दिया है।  संघ में चलने वाले विभिन्न प्रकल्पों में कभी संघर्ष दिखाई नहीं दिया है। संघ की विशेषता, जो दिखाई देती हैं, वह यह है कि संघ समर्पित कार्यकर्ताओं का संगठन है। देशहित को अपने जीवन में स्थान देने वाले लोगों का संगठन संघ ने किया है। संघ में जो संस्कार दिए जाते हैं, वे अपने तत्वज्ञान के प्रति श्रद्धा और निरंतर राष्ट्रहित का विचार करने के दिए जाते हैं। इन सारी बातों का प्रभाव समाज पर हो रहा है। और इसी कारण समाज में संघ के संदर्भ में आकर्षण है। विपरीत परिस्थितियों में समाज को संघ ही आधार लगता है। यह संघ की विशेषता है। राजनीतिक संगठनों के संदर्भ में यह विशेषता लोगों के मन में दिखाई नहीं देती है। संघ इन कारणों से राजनीतिक संगठनों से अलग है। समर्पित वृत्ति से कार्य करने वाला कार्यकर्ता, संघ के अंतर्गत चलने वाले विभिन्न संगठनों में एकवाक्यता और निस्वार्थ वृत्ति से काम करने वाले कार्यकर्ता संघ ने निर्माण किए हैं। संघ की यही बातें विश्व को आश्वासक लगती हैं। संघ के अलावा अन्य संगठनों में ये बातें न होने के कारण वहां अनुशासन नहीं होता है। संघ में अनुशासन का पालन किया जाता है। इसी कारण संघ के बारे में आदर की भावना समाज के मन में है।

जिन समस्याओं के कारण समाज में भेद निर्माण हुआ है उन सारी गलत बातों को समाज ही दूर करने का प्रयास करेगा। राजनीति से पूर्ण समाधान कभी नहीं होगा। राजनीति को यह काम करने के लिए बाध्य भी समाज ही करेगा।

पिछले कुछ दशकों से देश की सामाजिक एवं राजनीतिक दिशा और दशा तय करने में संघ विचारों का प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है। साथ ही विश्व में भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को निकट से जानने की उत्सुकता बढ़ रही है। इस स्थिति पर आपके विचार स्पष्ट कीजिए।

देखिए, संघ का इतिहास अगर आप देखेंगे तो राजनीतिक स्वार्थ के कारण संघ के बारे में अस्थिरता का वातावरण निर्माण करने का प्रयास संघ विरोधी तत्वों के माध्यम से निरंतर किया गया था।  लेकिन संघ के इतने वर्षों के देशहित और सामाजिक कार्य के कारण समाज में संघ के बारे में स्पष्टता निर्माण हो रही है। समर्पित वृत्ति और राष्ट्रहित का भाव निर्माण करने वाले कार्यकर्ता निर्माण करने का काम संघ ने किया है। समाज हित के विभिन्न उपक्रमों में कार्य करने वाले कार्यकर्ता संघ ने खड़े किए हैं। विद्यार्थी जगत, मजदूर विश्व, किसानों का क्षेत्र, महिलाओं का क्षेत्र याने समाज के सभी क्षेत्रों को समाने वाले संगठनात्मक कार्य संघ ने खड़े किए हैं। देशहित की ओर समान ध्येय को लेकर मार्गक्रमण करने वाली शक्ति संघ ने निर्माण की है।

संघ की शक्ति संघ के निर्माण किए हुए विभिन्न उपक्रमों में है। भारत के उज्ज्वल भविष्य के लिए समर्पित भाव से कार्य करने वाले लाखों कार्यकर्ता हमें भारत के गांवों में, शहरों में और विश्व के विभिन्न देशों में भी भिन्न-भिन्न स्तर पर काम करते हुए दिखाई दे रहे हैं। इस कारण संघ से भारतीय समाज को अपेक्षाएं हैं। उन अपेक्षाओं को पूर्ण करने की जिम्मेदारी भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने स्वीकार कर ली है। इसी कारण विश्व में संघ को नजदीक से जानने की उत्सुकता है।

                           

 

                                   राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी के साथ रा.स्व. संघ के अ.भा. सम्पर्क प्रमुख अनिरुद्ध देशपांडे एवं विनय सहस्त्रबुद्धे गत 4 वर्षों से Join RSS यह उपक्रम संघ के माध्यम से चलाया जा रहा है। अब तक 10 लाख से अधिक नए लोग स्वयं प्रेरणा से संघ से जुडे हैं और जुड़ रहे हैं। लोगों के अंतर्मन में संघ के संदर्भ में उत्सुकता होने के कारण संघ प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है। राजनीतिक दिशा और दशा का उल्लेख आपने किया पर संघ ने कभी भी राजनीति की नहीं है। लेकिन राजनीति पर जन-प्रभाव रहे इसका ध्यान संघ ने जरूर रखा है। भारतीय समाज विकसित होने में राजनीति का योगदान बहुत बड़ा है। लेकिन किसी पक्ष का झंडा संघ ने अपने कंधे पर कभी नहीं लिया है। भारत को सभी क्षेत्रों में विकसित करने वाले मुद्दों की राजनीति भारत में होनी चाहिए इस बात पर संघ ने हमेशा ध्यान  दिया है। राजनीति और सामाजिक क्षेत्र में संघ के स्वयंसेवक बहुत बढ़िया तरीके से काम कर रहे हैं। इस बात का भी आकर्षण समाज में हमें दिखाई दे रहा है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने समय-समय पर वक्तव्य किया है कि हमारा काम राजनीति नहीं है, व्यक्ति निर्माण का है। संघ राजनीति में नहीं पड़ता लेकिन राष्ट्रनीति पर मौन भी नहीं रखता। ऐसा क्यों?

आपने बहुत बढ़िया प्रश्न पूछा है। राष्ट्रनीति और राजनीति में बहुत बड़ा अंतर है। राष्ट्रनीति सम्पूर्ण राष्ट्र के हितों के लिए होती है; जबकि राजनीति का परिणाम राष्ट्र के हित अथवा अहित पर होने वाला होता है। ऐसे समय में संघ चुप कैसे बैठेगा? राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सम्पूर्ण भारत के समाज का संगठन है, किसी एक राजनीतिक दल या राजनीतिक संगठन का नहीं। संघ की उपलब्धियां समाज में दिखाई दें और समाज का सर्वस्पर्शी चित्र संघ में दिखाई दें यही संघ कार्य का  मुख्य उद्देश्य है। इसलिए संघ दलगत राजनीति में नहीं जाता है। राजधर्म का पालन समाज में हो, जो भी राजनेता हो वह व्यक्ति, समाज और राष्ट्र को स्वस्थ रखने वाला हो। राष्ट्रनीति से ही राष्ट्र का हित होना है, राष्ट्रनीति से ही राष्ट्र के भले-बुरे की चिंता होनी है। ऐसी स्थिति में संघ राष्ट्रनीति की बातों पर अपना ध्यान रखेगा ही। परंतु राजनीति संघ कभी नहीं करता। ऐसे बहुत सारे उदाहरण हैं कि राष्ट्रहितों को ध्यान में रखकर राजनीति पर संघ ने अपने विचार व्यक्त किए हैं। जैसे इस लोकसभा चुनाव में संघ ने कहा, शत-प्रतिशत मतदान होना आवश्यक है और नोटा का प्रयोग ना करने का आवाहन भी मतदाताओं को किया था। संघ के इस आवाहन के बाद हमें दिखाई दिया कि इन बातों का भारतीय समाज पर बहुत ही बड़ा असर हुआ। राष्ट्रहितों पर परिणाम करने वाला राष्ट्र सुरक्षा का विषय है, उस पर संघ अपने विचार रखेगा। घुसपैठ, मतांतरण, धार्मिक आक्रमण, आतंकवाद -नक्सलवाद ये राष्ट्र की प्रमुख समस्याएं हैं। इन्हें ध्यान में रखकर उनका समाधान निर्माण करने के लिए संघ कार्य करता है। यह राष्ट्रनीति है और इस प्रकार की राष्ट्रनीति करने में संघ गौरव अनुभव करता है। दलगत राजनीति को राष्ट्रनीति से अलग करके देखने का काम कौन करेगा? राष्ट्रहितों के उद्देश्य को लेकर व्यक्ति निर्माण करने का कार्य करने वाला राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ही करेगा। इसलिए  राजनीति और राष्ट्रनीति इन दोनों मे अंतर है, उस अंतर को समझ कर  राष्ट्रनीति को प्राथमिकता देकर संघ अब तक आगे बढ़ा है और आने वाले भविष्य में भी आगे बढ़ता जाएगा।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की दृष्टि में भविष्य के भारत की संकल्पना क्या है?

इस बात के अनेक पहलू हैं। भविष्य के भारत में समरस समाज निर्माण हो, जिसमें जाति-पांति के बीच निर्माण होने वाले भेद ना हो। सुरक्षा पर आघात करने वाले विषयों पर भविष्य के भारत में निश्चित समाधान मिलना आवश्यक है। स्वदेशी का विचार आज भी बाजार पर आधारित अर्थव्यवस्था को चुनौती देता है। धर्म के आधार पर मतदाताओं को अनावश्यक बातों में आश्वासित करना इस बात का संघ विरोध करता है। संघ यह कभी नहीं मानता कि इस देश का  मुसलमान-ईसाई नागरिक देशभक्त नहीं है। लेकिन कभी मुसलमान  अथवा ईसाई होने का आधार लेकर वह समुदाय यदि देश के विभाजन  वाली कोई बात देश में निर्माण करता है तो संघ उसका जरूर विरोध करेगा। समाज के हर क्षेत्र में हिंदुत्व का, राष्ट्रीयत्व का मानस लेकर आगे बढ़ने का काम संघ करता रहा है। भविष्य के भारत में समरस समाज, स्वदेशी  के आधार पर चलने वाली अर्थव्यवस्था, हर हाथ को काम, हर पेट को भोजन इस प्रकार का भविष्य का भारत संघ चाहता हैं। सुजल- सफल भारत यह संघ की भविष्य के भारत के संदर्भ में कल्पना है।

भविष्य के भारत की संकल्पना तय करते समय हिंदुत्व और हिंदू राष्ट्र इन विषयों पर संघ की धारणा किस प्रकार होगी?

ऐसा है कि हिंदुत्व और हिंदू राष्ट्र यह संघ की मूलभूत संकल्पना है। पहले तो यह बात स्पष्ट करनी चाहिए कि हिंदुत्व यह कोई संकुचित संकल्पना नहीं है। भारत का पूरा मानस ही हिंदुत्व से प्रभावित है। हम भारतीय हिंदुत्व के निकषों के आधार पर ही अपना जीवन चलाते हैं। मैं तो कहता हूं कि हिंदुत्व यह एक स्वयंसिद्ध  सिद्धांत है। भविष्य के भारत में हिंदुत्व की संकल्पना हिंदुत्व के आधार पर सारे समाज में उत्पन्न हो, यह अपेक्षित है। हिंदुत्व की संकल्पना किसी के विरोध में अथवा विस्तारवाद को लेकर चलने वाली कल्पना नहीं है। हिंदुत्व एक मानसिकता है। हिंदुत्व विश्वव्यापी है। इस देश में हिंदुत्व प्रभावी होने के कारण ही सेकुलरिज्म सुरक्षित रहा है। यह बात सभी समझते हैं। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अन्य मुस्लिम राष्ट्रों में  सेक्युलरिज्म क्यों नहीं है? ऐसी बातें स्वाभाविक रूप में मन में आती हैं। हिंदुत्व और हिंदू संघ की दृष्टि से भारतीयों की जीवन पद्धति है। यह कोई राजनीति का सूत्र नहीं है। हिंदुत्व के संदर्भ में गलत धारणाएं बहुत हैं। वह कम करने के लिए हमें और शक्ति लगाकर समाज में सकारात्मक काम करने की जरूरत है। जैसे-जैसे संघ और समाज का सम्पर्क और संवाद बढ़ता जाएगा वैसे-वैसे ये गलतफहमियां कम होती जाएंगी।

‘न्यू इंडिया’ यह शब्दप्रयोग भारत के प्रधानमंत्री ने किया है। उस शब्दप्रयोग के बारे में कोई दो मत होने का कारण नहीं है। लेकिन नया भारत अपने सपने को साकार करने की दिशा में ले जाने वाला होना चाहिए।

नए भारत के निर्माण में राम मंदिर, जनसंख्या नियंत्रण, धर्मांतरण, समान नागरिक संहिता जैसे विषयों पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारों की दिशा किस प्रकार होगी?

इन विषयों को लेकर संघ की आज तक की जो दिशा है उसी दिशा को ही संघ आगे चलाएगा। राम मंदिर हमारे पूरे हिंदू समाज की अस्मिता का प्रतीक है। अब तक की खोज में यह सिद्ध हुआ है कि वहां राम मंदिर था। वहां का राम मंदिर गिराकर उस पर मस्जिद बनाई गई है। यह सिर्फ संघ नहीं कहता तो इतिहास संशोधन संस्थानों ने भी इस बात को सिद्ध किया है। वास्तव में परस्पर सामंजस्य से इस बात का निराकरण होना आवश्यकता था। ऐसा हुआ नहीं। जैसे सोमनाथ मंदिर के बारे में परस्पर सामंजस्य की बात हुई थी वही बात यहां भी होनी जरूरी थी। लेकिन मुस्लिम समाज अपने समाज को गलत धारणाओं में ही रखना चाहता है। इस कारण यह विषय लटकता रहा। संघ की स्पष्ट धारणा है कि भव्य राम मंदिर राम जन्म स्थान पर ही निर्माण हो। हिंदू समाज की अस्मिता की परिपूर्ति हो। राम मंदिर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का यही दृष्टिकोण है।

जनसंख्या नियंत्रण के बारे में सोचें तो अपनी कोई जनसंख्या नीति ही नहीं है। वह नीति ठीक से बनाई जाती है तो विधिबद्ध पद्धति से उसे आगे प्रयोग में लाया जा सकता है। जनसंख्या नियंत्रण हिंदू  समाज करता है। जनसंख्या नियंत्रण की समस्या तो मुसलमानों में आती है। तीन तलाक जैसी बातों पर समाज का मन धीरे-धीरे अनुकूल बनाने का काम सरकार की ओर से चल रहा है। वैसे ही जनसंख्या पर भी मुस्लिम समाज के साथ संवाद प्रस्थापित करना आवश्यक है।

धर्मांतरण तो रोका ही जाना चाहिए। कोई भी धर्म विस्तारवादी नहीं हो सकता। जिसनेे जिस धर्म में जन्म लिया है उसे उसी धर्म में कायम रहने का अधिकार है। धर्म परावर्तित व्यक्ति को धर्म में वापस लाने का काम जरूर करना चाहिए। बल, छल, प्रलोभन, आकर्षण या अन्य किसी भी माध्यम से धर्मांतरण को चलाने वाले लोग भारत में दिखाई देते हैं। ऐसे लोगों पर रोक लगाने के कानून अब तक बने हैं। कानून के माध्यम से ही उन पर और ज्यादा नियंत्रण लगाना आवश्यक है।

समान नागरिक संहिता के संदर्भ में समाज मन तैयार होने की आवश्यकता है। अब तीन तलाक के संदर्भ में समाज मन तैयार हो गया है। वैसे ही भविष्य में होने की संभावना है। इन प्रश्नों के समाधान के लिए जल्दबाजी करके या कोई हड़बड़ी करके कुछ करने की हमारी मंशा नहीं है। इन समस्याओं के समाधान की ओर जाने का हमारा प्रयास निरंतर रहेगा।

जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाने का जो ऐतिहासिक निर्णय केंद्र सरकार ने लिया है उस संदर्भ में रा.स्व.संघ का क्या विचार है?

धारा 370 और 35 ए का हटना अपेक्षित ही था। यह प्रधान मंत्री और गृह मंत्री के द्वारा लिया गया बहुत ही साहसपूर्ण निर्णय है। वास्तविक रूप से देखा जाए तो यह तत्कालीन और कुछ दिनों के लिए क्रियान्वित निर्णय था, परंतु इसे हटाने में सात दशक लग गए। अब कश्मीर भी अन्य राज्यों की तरह ही एक सामान्य राज्य बन गया हैं। यह कश्मीर के परिवर्तन की ओर इंगित करता है। अब कश्मीर के युवक-युवतियों को अन्य राज्यों में पढ़ने, नौकरी करने, विवाह करने के अवसर प्राप्त हो सकेंगे। अन्य राज्यों के लोग भी कश्मीर में व्यवसाय कर सकते हैं।  वहां पर इंडस्ट्रीज की शुरुआत हो सकती है, जिससे कश्मीर के युवाओं को रोजगार मिलेगा। कश्मीर के लोगों ने भी इसका स्वागत किया है। मेरा मानना है कि निश्चित ही कश्मीर नए भारत को समृद्ध करने में नई भूमिका निभाएगा।

जाति-पांति में भेद, आरक्षण की राजनीति, शिक्षा व्यवस्था, हिंदी भाषा- क्षेत्रीय भाषाओं का संघर्ष ये सभी बातें  नए भारत के विकास के लिए समस्या निर्माण करने वाले  विषय हैं। ऐसे में इन समस्याओं का समाधान करने के लिए संघ कौन सा दृष्टिकोण रखता है?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने विद्यमान आरक्षण को सुरक्षित रखने की भूमिका ली है। सालों से अन्याय सहने वाले समाज में क्षमता होते हुए भी समानता के व्यवहार से उन्हें दूर रखा गया था। उस बात का उपाय आरक्षण के माध्यम से किया गया है। आरक्षण की नीति समान अवसर प्रदान करती है। आरक्षण की राजनीति का विचार संघ नहीं करता है। लेकिन स्वस्थ समाज के लिए समाज में एकवाक्यता निर्माण होने की आवश्यकता है। इस कारण संघ आरक्षण के पक्ष में है। शिक्षित समाज ही विकसित समाज का निर्माण करता है। नई शिक्षा नीति मोदी सरकार ने चलाई है, उसका मैं स्वागत करता हूं। शिक्षा के संदर्भ में हमारी जो मूलभूत संकल्पना है वह यह है कि मनुष्य निर्माण, चरित्र निर्माण और स्वावलंबी समाज शिक्षा के माध्यम से निर्माण होना चाहिए। यह बात अब तक शिक्षा के क्षेत्र में नहीं हुई है। उसे जोर-शोर के साथ करने की आवश्यकता है।

श्रीगुरुजी कहा करते थे कि भारत की प्रत्येक भाषा राष्ट्रभाषा है। क्योंकि इस देश के राष्ट्र जन ही स्थानीय भाषा बोलते हैं। भाषा के संदर्भ में सारे संघर्ष राजनीतिक दृष्टि से निर्माण किए जाते हैं। इस बात को संघ का विरोध है। जाति-पांतियों में भेद तो होना ही नहीं चाहिए। सम्पूर्ण देश भर में सामाजिक समरसता के लिए संघ बहुत बड़ा काम चला रहा है। संघ की मूलभूत कल्पना है कि जातिभेद के कारण निर्माण होने वाले संकट को हम जड़ से ही नष्ट कर दें और समाज में जाति-पांति की जो भावना है उस भावना को ही क्षीण करें। शायद यह सामाजिक विषय होने के कारण इन प्रयासों की गति कम होगी परंतु लक्ष्य तो वही है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सम्पूर्ण भारत के समाज का संगठन है, किसी एक राजनीतिक दल या राजनीतिक संगठन का नहीं। संघ की उपलब्धियां समाज में दिखाई दें और समाज का सर्वस्पर्शी चित्र संघ में दिखाई दें यही संघ कार्य का  मुख्य उद्देश्य है। इसलिए संघ दलगत राजनीति में नहीं जाता है।

नए भारत की ओर रुख करते समय इस्लामी आतंकवाद, खालिस्तान, नक्सलवाद जैसे विषय किस प्रकार से सुलझाने आवश्यक हैं?

देखिए, ये सारी बातें राष्ट्र विरोधी हैं। सिख समाज इतिहास  से लेकर वर्तमान तक अपने पराक्रम के सारे विषयों में भारत माता की रक्षा के लिए ही लड़ा है और आगे लड़ेगा भी। वह समाज आज अलग राष्ट्र निर्माण करने की बात करता है तो यह आश्चर्य की बात है।  खालिस्तान हो या नक्सलवाद ये राष्ट्र को तोड़ने वाली बातें हैं। भारत तेरे टुकड़े होंगे यह घोषणा नक्सलवाद की ही देन है। अभी तो यह भी सिद्ध हो रहा है कि उनका संबंध हिजबुल जैसे खतरनाक आतंकी संगठन से है। ये अत्यंत खतरनाक गतिविधियां हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है। लेकिन हमें कानून के माध्यम से ही इस समस्याओं का समाधान ढूंढना है। आंतरिक संघर्ष निर्माण करके इस समस्या का कोई मार्ग निकलना संभव नहीं है।

आतंकवाद से निपटने के लिए हमारी सेना, सुरक्षा बल पूरी ताकत से प्रयास कर रहे हैं। समाज में आतंकवाद के संदर्भ में सतर्कता का वातावरण निर्माण करने का काम संघ करता है। मेरी दृष्टि से तीन प्रकार से समाधान निकल सकता है। इन सारे विषयों के संदर्भ में जनमानस जागृत करना, जहां भी डटकर खड़े रहने की आवश्यकता है वहां दृढ़ता से डटकर खड़े रहना, प्रबोधन के माध्यम से आतंकियों की कार्यपद्धति समाज के सामने लाने का प्रयास करना। ये तीन बातें संघ कर रहा है। समाज के भीतर जो शक्ति है उस शक्ति को जागृत करके ही इन सारी समस्याओं का समाधान निकल सकता है। बाहर से कोई समाधान निर्माण होगा ऐसा हमें नहीं लगता। कानून अपना काम करेगा। आतंकवादियों और नक्सलवादियों की सहायता करने वाले शहरी नक्सलियों का असली चेहरा समाज के सामने लाने की जरूरत है।

वर्तमान राजनीति के द्वारा इन सभी समस्याओं में परिवर्तन लाने की अपेक्षा क्या हम कर सकते हैं?

वर्तमान राजनीति में इन सारी समस्याओं का सम्पूर्ण समाधान है ऐसा मैं बिल्कुल नहीं मानता। राजनीति के कारण समस्याओं का समाधान होना यह एक मार्ग है। कानून और न्यायिक बातों का संबंध जहां तक आता है  वहां तक राजनीति ठीक है। जिन समस्याओं के कारण समाज में भेद निर्माण हुआ है उन सारी गलत बातों को समाज ही दूर करने का प्रयास करेगा। राजनीति से पूर्ण समाधान कभी नहीं होगा। राजनीति को यह काम करने के लिए बाध्य भी समाज ही करेगा। राजनीति अपने वोटों के लिए कुछ गलत धारणाओं का निर्माण कर रही है तो उसको रोकने का काम समाज के माध्यम से ही होगा। समाज की शक्ति राजनैतिक शक्ति से कई गुना अधिक है। इस बात के उदाहरण अपने देश में हैं। अमरनाथ यात्रा को उस समय के सरकार ने रोकने के लिए बहुत रोड़े डालने का प्रयास किया था। हजारों अमरनाथ यात्री वहां इकट्ठे हो गए जहां उन्हें यात्रा की अनुमति नहीं दी जा रही थी। तब जो आंदोलन हुआ वह आंदोलन किसी एक राजनीतिक दल का आंदोलन नहीं था। वह आंदोलन पूरे समाज का आंदोलन बन गया था। आपातकाल के विरोध का आंदोलन सम्पूर्ण भारत के समाज का आंदोलन बन गया था। उस आंदोलन का असर सम्पूर्ण भारत में महसूस किया गया है। जनशक्ति को जागृत रखने का काम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के माध्यम से भिन्न-भिन्न मार्ग से होता ही रहता है। राजनीति सहायक होती है लेकिन वह अकेले ही देश की सारी समस्याओं का समाधान नहीं कर सकती है।

नया भारत और विश्वगुरु भारत इन दो कल्पनाओं में समानता किस प्रकार है?

भारत देश को विश्वगुरु बनाने की जो संकल्पना है वह बड़ी व्यापक संकल्पना है। अब नए भारत की जो कल्पना है वह बहुत अच्छी है; परंतु तुलना में व्यापक नहीं है। नए भारत की कल्पना में  भौतिक सुरक्षा, स्वच्छता, राष्ट्र सुरक्षा, विधि-न्याय की समानता, शिक्षा व्यवस्था को प्रभावी बनाना, आतंकवाद का पूर्ण समाधान ढूंढना, वैश्विक स्तर पर भारत का सम्मान बढ़ाना, सुरक्षा संसाधनों में जो खामियां हैं उन खामियों को दूर करना इन सब बातों का नए भारत की संकल्पना में प्रबंध करना है। इस प्रबंध में ये सभी प्रमुख कार्य राजनीति पर अवलंबित हैं। लेकिन भारत को विश्वगुरु बनाने की संकल्पना में   विश्व में शांति, सहमति, भाईचारा, विश्व में चलने वाले अच्छे विचारों को स्वीकार करना, उन विचारों को और प्रेरणादायी बनाने का काम करना, सभी क्षेत्रों में राष्ट्रहित को लेकर सोचने की भारत की क्षमता निर्माण करना… ये सब बातें भारत को विश्वगुरु बनाने की संकल्पना में अपेक्षित है। विश्वगुरु बनना यानी सुपर पावर बनना ऐसी बात नहीं है। सुपर पावर मे आक्रामक कल्पना है। समाज को सुपर पावर शब्द जल्द   समझता है इसलिए सुपर पावर शब्द का इस्तेमाल किया जाता होगा। लेकिन सुपर पावर कहना और विश्वगुरु कहना इन संकल्पनाओं मे  बहुत बड़ा अंतर है। भारत विश्वगुरु पद पर सदियों से था ही। मानवता का, विश्व के सभी जीवों के हितों का विचार विश्वगुरु संकल्पना में है। नए भारत की जो संकल्पना है उसका हम स्वागत करते हैं। उस कल्पना में भौतिक विकास पर अधिक बल देना स्वाभाविक है।

भारत विश्वगुरु पद पर सदियों से था ही। मानवता का, विश्व के सभी जीवों के हितों का विचार विश्वगुरु संकल्पना में है। नए भारत की जो संकल्पना है उसका हम स्वागत करते हैं। उस कल्पना में भौतिक विकास पर अधिक बल देना स्वाभाविक है।

नए भारत की संकल्पना यशस्वी करने में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का योगदान किस प्रकार होगा?

जो-जो नई बातें समाज के भरण-पोषण के लिए आवश्यक है संघ उन सारी बातों को सहायक रहेगा। नए भारत के निर्माण के लिए जिन क्षेत्रों में प्रयास हो रहा है उन सारे क्षेत्रों में संघ का सहयोग उपलब्ध होगा।

पर्यावरण की रक्षा यह विषय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों में सम्मिलित हुआ है। पानी, पेड़ और प्लास्टिक बंदी इन  विषयों पर संघ अपना ध्यान केंद्रित कर रहा है। पर्यावरण का पोषण होना चाहिए, शोषण नहीं। समाज में जागृति लाने के लिए संघ प्रयास करेगा। प्रगति चाहिए, विकास चाहिए  तो सृष्टि के संतुलन का विचार  प्राथमिकता से करना आवश्यक है ।

2025 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है। शताब्दी वर्ष के निमित्त संघ ने भव्य उपक्रमों का आयोजन किया होगा?

हां, 2025 राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का शताब्दी वर्ष है। संघ इसे अपना उत्सव नहीं मानता है। इस बात का कोई उत्सव मनाना है ऐसी कोई बात नहीं है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शताब्दी वर्ष की बात को ध्यान में रखकर नए कार्य का प्रारंभ करने जा रहा है जैसे पर्यावरण का विषय है। संघ स्वयंसेवकों का सर्वेक्षण, शाखा स्थान के आसपास के परिसर में संघ कार्यों का प्रभाव निर्माण करना, पुराने स्वयंसेवकों को संघ कार्यों के साथ जोड़ना ये बातें अभी से होने लगी हैं। शताब्दी वर्ष में संघ के विशाल कार्य की जानकारी समाज तक प्रभावी रूप से पहुंचाने का प्रयास होगा। संघ स्वयंसेवकों की संख्या बढ़े, शताब्दी वर्ष में ज्यादा से ज्यादा संघ प्रचारक समाज कार्य के लिए निकले इन बातों का प्रयास किया जाएगा। संघ ही समाज है, समाज का उत्सव नहीं होता है। शताब्दी वर्ष तो रहेगा पर वैसे संघ का भी कोई उत्सव नहीं होगा।

परिवर्तन के मार्ग पर मार्गक्रमण कर रहे भारतीय समाज को आप कौन सा संदेश देना चाहेंगे?

मैं इतना ही कहूंगा, स्वस्थ समाज की निर्मिति करने के लिए सामान्यतम व्यक्ति का भी योगदान महत्वपूर्ण है। सारा समाज अपने स्वयं के पास जो शक्ति है, उस शक्ति का उपयोग करें तो देश की विभिन्न समस्याओं का समाधान हो सकता है। इस बात में समाज अपना सहयोग देने का प्रयास करें। देश की सर्वांगीण उन्नति को प्राप्त करने के लिए केवल स्वयंसेवक नहीं तो संपूर्ण समाज साथ में रहे।

Leave a Reply