मजदूरों को हानि पहुंचानेवाले सुधारों का विरोध -अण्णा देसाई

भारतीय मजदूर संघ आज देश का सब से बड़ा मजदूर संगठन है। महाराष्ट्र में, खास कर मुंबई में अन्य ट्रेड यूनियनों की तुलना में भारतीय मजदूर संघ की प्रगति उल्लेखनीय है। पेश है, भारतीय मजदूर संघ मुंबई के अध्यक्ष अण्णा देसाई के साथ मजदूर क्षेत्र पर हुई विशेष बातचीत के महत्वपूर्ण अंश-
अ पनी आयु के ७५ साल पूर्ण होने के बाद भी आप इतनीऊर्जा से काम करते हैं इसका रहस्य क्या है?
अपने काम के प्रति लगन, निष्ठा और प्रेम हो तो उम्र आडे नहीं आती। भारतीय मजदूर संघ, ट्रेड यूनियन का काम करते समय मुझे कोई परेशानी नहीं आती। मैं अगर कभी बीमार भी महसूस करता हूं तो उसकी दवा भी मेरा काम ही है।
आपके काम की शुरुआत कैसे हुई? अब तक का आपका अनुभव कैसा रहा?
मैं महाराष्ट्र वीज(विद्युत)कामगार महासंघ का कार्यकर्ता रहा हूं। २१ दिसंबर १९६३ से मैं यह कार्य कर रहा हूं। बालासाहब साठेजी मुझे भारतीय मजदूर संघ में लाए। उन्होंने मेरे मन में शोषित, पीड़ित व्यक्ति के लिए काम करने की, उसका साथ निभाने की ललक पैदा की। उन्होंने मुझे बताया कि भले ही व्यक्ति गलत हो, उसे उसकी गलती का अहसास करवाकर उसे सुधारो परंतु उसके साथ रहो।
अगर आप अपना काम मेहनत से, पूरी ईमानदारी से निष्ठापूर्वक करते हैं तो आपकी यूनियन या आपके साथ वाले लोग ही नहीं अन्य यूनियन या संगठनों के लोग भी आपसे जुड़ते जाते हैं। पिछले ५० वर्षों में मेरा यह अनुभव रहा है कि न केवल हमारे संगठन के लोग बल्कि अन्य लोग भी कहते हैं कि अगर आपको काम करवाना है तो अण्णा देसाई के पास जाइये।
भारतीय मजदूर संघ से आप कैसे जुड़े? कार्यकर्ता के रूप में आपकी क्या भूमिका रही?
मैं ग्रामीण भाग से आया हुआ आम आदमी हूं। महाराष्ट्र विद्युत मंडल में इनप्लाट ट्रेनी रूप में मैंने काम शुरू किया। ६ महीने के बाद परमनेंट हुआ। उस समय मैं पनवेल के संघ कार्यालय में रहता था। उस समय वहां के कुछ वरिष्ठ कार्यकर्ताओं ने मुझे ट्रेड यूनियन का काम सौंपा। ट्रेड यूनियन के जाइंट सेक्रेटरी से लेकर आज महाराष्ट्र के प्रदेश अध्यक्ष तक मैंने यात्रा की।
मेरा मूल स्वभाव सहकार क्षेत्र में कार्य करना है। मैं १९६४ से इस क्षेत्र में कार्यरत हूं। मैंने ठाणे जिले में क्रेडिट सोसायटी शुरू की उसका सात साल तक चेयरमैन रहा। उसके बाद मुंबई आया। यहां पर २० साल तक डायरेक्टर चेयरमैन रहा। मेरी सहकार क्षेत्र में पैठ बन रही थी उसी समय बालासाहब साठेजी ने मुझे ट्रेड यूनियन का भी काम करने को कहा।
जब आपने काम शुरू किया तो कर्मचारियों की ऐसी कौन सी समस्याएं थीं जिनका तत्काल हल निकालना आवश्यक था?
उस समय बिजली कर्मचारियों को १०५ रुपये मेहनताना मिलता था। अत्यंत गरीबी और कम मेहनताने के कारण कोई भी विद्युत महामंडल में कार्य करने के लिए राजी नहीं था। इसलिए हमारी यही कोशिश रहती थी कि इन लोगों को न्याय मिलना चाहिए। जब केन्द्र का डी. ए. विद्युत मंडल पर लागू हुआ उसके बाद कर्मचारियों की स्थिति बहुत अच्छी हो गई। बैंक कर्मचारियों को भी हमने पीछे छोड़ दिया। उस समय स्थिति यह हो गई कि लोग यूनियन के पास नहीं जाते थे, यूनियन लोगों को ढूंढती थी। परंतु हमने सदैव मजदूरों के हित का ध्यान रखा।
क्या अब कर्मचारियों की समस्याएं खत्म हो गई हैं या समय के साथ उनमें बदलाव आया है?
आज विद्युत महामंडल की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ है। हमारे हेल्पर को भी न्यूनतम २५०००/- मिलता है। परंतु आज सबसे बड़ी समस्या है कि उनके लिए पेंशन का प्रावधान नहीं है। मुझे बालासाहब साठे जी का वाक्य याद आता है कि ‘आपने कर्मचारियों के लिए तो सब कुछ किया परंतु उनके परिवारजनों के लिए क्या किया?’ वे कहते थे किसी कर्मचारी की मृत्यु के बाद उसके परिवार को आर्थिक मदद मिलनी चाहिए। हमने इसके लिए विद्युत कर्मचारी कल्याण निधि की स्थापना की। ५०० रुपए डिपाजिट लिए। पिछले २५ सालों में हमने लगभग सवा करोड़ रुपये बांटे।
उनके परिवार के लोगों के लिए मेडिक्लेम की स्कीम शुरू की। इस बार की वेतन बढोतरी के समय मैंने कर्मचारियों के परिवार के लिए कैश लेस मेडीक्लेम की स्कीम भी शुरू की। हमारे एमडी ने इसके लिए २० करोड़ रुपये हमें प्रदान किए। कर्मचारी और उसके परिवार के पांच सदस्यों के लिए यह स्कीम शुरू की गई है।
कर्मचारियों की मांगें कभी पूरी नहीं होती हैं। क्या आपने कभी ऐसी स्थिति का सामना किया जब मांग उचित नहीं थी। आपने उस समय क्या कदम उठाया?
ऐसी मांगें हमेशा ही होती हैं। इंडस्ट्री में हमने एक ट्रेंड रखा है कि हर बार वेतन में ८०% की वृद्धि हो। कर्मचारी की मांग होती है १००० गुना वृद्धि हो। उस समय हम उन्हें तुरंत मना नहीं करते उसे कंपनी की बेलेंसशीट दिखाते हैं, पिछली वेतन वृद्धि के बारे में बताते हैं। पिछले करार दिखाते हैं। २-४ बैठकों में यह बात उनको समझाते हैं। वेतन वृद्धि के ट्रेंड को समझाते हुए कहते हैं कि आज अगर हम १००० गुना वृद्धि करेंगे तो अगले २-३ सालों में कैसे होगी यह उनको समझाते है। हमारी पहली भूमिका है उद्योग या कंपनी चलती रहे, दूसरा उसमें बढोतरी हो, तीसरा उसे फायदा हो और चौथा उस फायदे में मालिक/कर्मचारियों को समान हिस्सा मिले। यह भूमिका मालिक और कर्मचारियों दोनों ही मान्य करते हैं।
पिछले ५० सालों में आपने किन-किन पदों पर कार्य किया है।
सबसे पहले मैं ब्रांच सेक्रेटरी बना। डिविजनल, सर्कल और जोनल सेक्रेटरी बना और अब महाराष्ट्र का अध्यक्ष हूं।
आप भारतीय मजदूर संघ के मुंबई अध्यक्ष भी रहे हैं। इस दौरान किया गया कोई कार्य बतायें जो संगठन की दृष्टि से अभिमानकारक है।
सन १९९० में मैं भारतीय मजदूर संघ सें पूर्ण रूप से जुड़ा। मुझे बालासाहब साठे ने जोड़ा। उनके साथ श्रीमती जयाबेन नाईक हुआ करती थीं। वो बालासाहब को छोडकर गईं तो बालासाहब ने मुझे बुलाया और कहा आपको ठाणे जिले का अध्यक्ष बनना है। उस समय उस क्षेत्र में मजबूत काम स्थापित करने के लिए मुझे बुलाया गया। मैं १२ वर्ष तक ठाणे जिले का अध्यक्ष रहा। तब भारतीय मजदूर संघ के पास ठाणे इंडस्ट्री की एक भी यूनिट नहीं थी। मैं इंडस्ट्री के काम नहीं करता था। ठाणे में पिरामल स्पिनिंग एक वीविंग इंडस्ट्री थी। उस समय इंडस्ट्री में एक रात में निर्णय लेना आवश्यक था। पिरामल कंपनी में काम करनेवाले सभी ३०० कर्मचारी दूसरी यूनियन की ओर जा रहे थे। मैंने उनसे बातचीत की और उनको भारतीय मजदूर संघ से जोड़े रखा। इसका प्रभाव यह हुआ कि ठाणे की १८

यूनिट भारतीय मजदूर संघ के पास वापिस आ गईं। इंडस्ट्री का कर्मचारी न होते हुए भी मैंने अब तक ४० युनिट खड़ी कीं। मुंबई में भी इसी तरह के हालातों में मैंने इंडस्ट्री का काम हाथ में लिया। उस समय भी कई यूनिट भा. म. संघ के हाथ से निकल रही थीं। अब मुंबई के ग्रंथालय, टैक्सी संगठन, घर का काम करनेवाले कर्मचारियों के संगठन आदि भा. म. संघ से जुड़ चुके हैं।
भारतीय मजदूर संघ और अन्य संगठनों की विचारधारा में क्या अंतर है?
अधिकतर ट्रेड यूनियन की यह भूमिका रही कि ‘हम हमारा हक लेकर रहेंगे, देखते हैं कौन नहीं देता।’ हमने यह भूमिका नहीं रखी। कर्मचारियों की आवश्यकता और कंपनी या इंडस्ट्री की बढत इन दोनों में तालमेल बनाना आवश्यक है। हमें रिस्पांसिव को-आपरेशन करना होगा। अगर मालिक सहायता करना चाहता है तो हमें भी उसकी सहायता करनी चाहिए और अगर वह सहकार्य नहीं कर रहा है तो उसे जो भाषा समझ में आती है उसमें बात करनी चाहिए। जब समन्वय की भावना से काम किया जाता है तो कंपनी और कर्मचारी दोनों की प्रगति होती है।
क्या आज की परिस्थिति में कर्मचारी संगठनों की आवश्यकता है?
बिलकुल हैं। हमारे देश या प्रदेश में किसी भी पार्टी की सरकार हो, कर्मचारियों पर अन्याय होता ही है। कोई भी सरकार देश चलाने के लिए आवश्यक बातों का फार्मेट तैयार करती है। वह उनकी दृष्टि से सही भी होता है परंतु उसका परिणाम कर्मचारियों पर पड़ता है। आज कर्मचारियों से संबंधित कानून बने हैं वे उनके लिए घातक हैं। हमारी सरकार से यही मांग है कि परिवर्तन करते समय कर्मचारी संगठनों से बातचीत की जाए। हमने अपना खून पसीना बहाकर ये कानून बनवाए हैं। इनमें रिफार्म के लिए हम मदद जरूर करेंगे परंतु हमें साथ लेकर कानूनों में बदलाव किए जाए जिससे कर्मचारियों का नुकसान न हों।
आज देश तथा प्रदेश में भारतीय मजदूर संघ की विचारधारा वाली सरकार है। क्या अभी भी कुछ संघर्ष हो सकते हैं अगर हां, तो किन मुद्दों पर?
अभी भी भले ही सरकार हमारी विचारधारा की है परंतु अगर हम पर कोई अन्याय हो रहा है तो हम उसके विरोध में आवाज उठाएंगे। वह हमारी स्वतंत्रता है, हमारा अधिकार है। भा. म. संघ का एक प्रतिनिधि मंडल प्रकाश मेहता जी से कुछ दिन पूर्व मिला। उन्होंने हमें विश्वास दिलाया कि राजस्थान और म. प्र. में हुए कर्मचारी कानूनों के बदलावों की तर्ज पर यदि महाराष्ट्र में भी बदलाव हुए तो वे निश्चित रुप से पहले कर्मचारी संगठनों से बात करेंगे। इससे हम भी प्रसन्न हैं।
आज कई मजदूर संगठनों में आपस में भी संघर्ष दिखाई देता है। इन्हें साथ लाने के लिए क्या किया जा सकता है?
भारतीय मजदूर संघ को तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने भारत के सबसे बड़े मजदूर संगठन के रूप में मान्यता दी है। उस मान्यता के कारण आय एल ओ (इंडियन लेबर आर्गनाइजेशन) में हमारे तीन प्रतिनिधि होते हैं। आज देश और राज्य में काम करते समय भी हमारी भूमिका समन्वय साधने की ही है। कोई भी सरकार हो हम सेन्ट्रल ट्रेड यूनियन को एकत्र करते हैं। हर माह उनकी बैठक लेते हैं। तथा किसी भी मुद्दे पर एक होकर लड़ते हैं।
कर्मचारी संगठनों के अलावा भी आप विभिन्न काम करते हैं। उनके बारे में बताइये।
मुझ पर भले ही केवल भारतीय मजदूर संघ की जिम्मेदारी है। परंतु हमने उसके पूरक संगठन भी खड़े किए। समान विचारों के अन्य क्षेत्रो में कार्यरत मजदूर संगठनों की शुरुआत की। टैक्सी चालक संगठन, पत्रकार संघ, पोस्टल यूनियन, ग्रंथालय संगठन, असंठित कर्मचारी, बांधकाम कम्रचारी, औद्योगिक कर्मचारी, सुरक्षा रक्षक आदि शुरु की। पत्रकारों का संगठन सन १९२६ एक्ट के अंतर्गत रजिस्टर्ड है। आज चैनल और मीडिया के २०० से अधिक पत्रकार हमारे सदस्य हैं। इसका भी मुख्य उद्देश्य पत्रकारों की मांग समझना, उनके हक के लिए लड़ना ही है। पत्रकारों के साथ मारपीट होने या उनका कैमरा इत्यादि फोड़ने पर कोई भी उनकी नुकसान भरपाई के लिए आगे नहीं आता। हम पत्रकारों या पत्रकारिता से संबंधित सभी कर्मचारियों को वही सारे लाभ दिलवाने की कोशिश करते हैं जो ट्रेड यूनियन में कर्मचारियों को मिलते हैं। अभी हमने पत्रकारों के लिए एक लाख का इन्श्योरेन्स और उसके परिवार वालों के लिए मेडिक्लेम की सुविधा उपलब्ध कराई है।
पिछले कुछ सालों में कर्मचारी संगठनों की ऊर्जा कम होती दिखाई दे रही है। उसे पुन: प्रस्थापित करने के लिए संगठनों को क्या बदलाव करने चाहिए?
जिस तरह स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेने वाले सेनानी थे वैसे ही कर्मचारियों के लिए लड़नेवाले ट्रेड युनियन के लोग थे। हमारे लोगों ने कई कानून बनवाए। आज फिर ऐसी स्थिति उत्पन्न हो रही है कि कर्मचारियों को यूनियन की आवश्यकता महसूस हो रही है। आजकल कर्मचारी शब्द की परिभाषा बदल रही है। आउटसोर्सिंग के आधार पर कर्मचारियों की नियुक्ति हो रही है। आज आय. टी. क्षेत्र के लोग भी हमारे पास आते हैं। उन्हें जो पैकेज दिया जाता है उसमें १८-२० घंटे काम करवाया जाता है। उन्हें कोई मेडिकल की सुविधा नहीं है। अत: ऐसे सभी क्षेत्रों के कर्मचारियों की जो ‘कॉन्ट्रेक्ट बेसिस वर्क’ करते हैं हम मदद करते हैं।
पचास वर्षों की इस निरंतर यात्रा में आपके संगठन से जुड़ी उन समस्याओं के बारे में बताएं जिन्हें सुलझाने का आपको संतोष है और न सुलझा पाने का दुख है।
हमारे विद्युत महामंडल में ७० से ८० के दशक में ४०००० कर्मचारी थे। ये लोग ढाई से तीन रुपये रोजंदारी पर काम करते थे। तंबू में रहते थे। उन लोगों को न्याय दिलाने की मेरी मन:पूर्वक इच्छा थी। मेरे लिए यह प्रसन्नता का विषय है कि उन सभी को मैं महाराष्ट्र विद्युत महामंडल के कर्मचारी के रूप में शामिल कर सका।
अभी तक जो कार्य मैं नहीं कर पाया वह यह कि हमारा जो सुरक्षा रक्षक है, या जो मेस में कर्मचारी काम करते हें, रोजनदारी पर कार्य करते हैं उन्हें हम उनके हक नहीं दिलवा पा रहे हैं क्योंकि कानून में इस तरह का प्रावधान नहीं है।
भविष्य में आपकी अन्य क्या योजनाएं हैं?
मुझे वही काम करने में संतोष मिलता है जो भारतीय मजदूर संघ द्वारा दिया जाता है। हमारे कई कार्यालय विभिन्न स्थानों पर चलते हैं परंतु वे भा. म. संघ के नाम पर नहीं हैं। हाल ही में मैंने आठ कार्यालयों को भा. म. संघ के नाम पर करवाया है। अब मेरा स्वप्न है कि दादर में भा. म. संघ का एक से डेढ़ हजार वर्ग फीट का कार्यालय हो जहां से सभी कार्य किए जा सकें। यह मेरा अभी का लक्ष्य है।
मो.: ९८६९२०६१०६

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