पाकिस्तान संबंध मोदी सरकार के सामने चुनौती

 बैरूत से लंदन तक, बगदाद से न्यूयार्क तक और नैरोबीसे मुंबई तक दुनिया का हर शहर अतंकवादियों का निशाना बना हुआ है। चाहे नाइजीरिया में आतंकवादियों द्वारा सवा दो सौ लड़कियों का अपहरण कर उन्हें बंधक बनाए रखने की घटना हो, नैरोबी मॉल में बेलगाम गोलीबार करना हो, पाकिस्तान के विद्यालय में निरपराध मासूमों की हत्या करना हो, पैरिस के चार्ली हेब्दो पत्रिका के दफ्तर पर हमला हो या फिर दुनिया के कोने-कोने में हो रहे आतंकवादी हमले हों, इन सभी से इस्लामिक आतंकवाद का भयानक चेहरा सामने आ रहा है। एक ओर मानवता असहाय होती जा रही है तो दूसरी ओर आतंकवादियों की ताकत और दुस्साहस बढता जा रहा है। पेशावर में हुई घटना के बलि चढे मासूमों का खून अभी तक सूखा भी नहीं था कि पाकिस्तान की सरकार और न्याय व्यवस्था ने मिल कर मुंबई हमले के मास्टर माइंड जकीउर रहमान लखवी को रिहा कर दिया।
दुनिया के कोने-कोने में आतंकवादी हमले करके अस्थिरता निर्माण करने के आतंकवादी संगठनों के मनसूबों में जरा सी भी कमी नहीं आई है। ऐसी परिस्थिति में गिरफ्त में आए आतंकवादियों को रिहा करने के कारण पाकिस्तान का असली चेहरा सारी दुनिया के सामने आ गया है। जब २६/११ को मुंबई पर हमला हुआ तो केवल मुंबई या भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया इस हमले से हिल गई थी। मुंबई जैसे अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शहर में तीन दिन तक आतंकवादी खुले आम घूम रहे थे। १० आतंकवादियों ने १६६ लोगों की जान ले ली। तीन दिनों तक पूरे शहर को बंधक बनाए रखा था। उनमें से ९ आतंकवादी मारे गए थे और अजमल कसाब इकलौता जीवित पकड़ा गया था। ये आतंकवादी पकिस्तान से आए थे और इसमें पाकिस्तानी सरकारी एजेन्सियों का भी समावेश था। इस हमले के दौरान मुंबई हमले का मास्टर माइंड जकीउर रहमान लखवी पाकिस्तान से सैटेलाइट फोन के द्वारा कसाब और अन्य आतंकवादियों को निर्देश दे रहा था। लखवी ने मुंबई हमले की सारी योजना बनाई। कसाब और अन्य आतंकवादियों की मदद से उस योजना को प्रत्यक्ष रूप दिया। अजमल कसाब ने पकड़े जाने के बाद दिए अपने बयान में यह बात स्वीकारी थी कि लखवी और अन्य लोग इस साजिश में शामिल हैं।
मुंबई पर हुए हमले में लखवी के शामिल होने के स्पष्ट संकेत होने के बावजूद भी पाकिस्तान सरकार ने उसके खिलाफ ठोस सबूत पेश नहीं किए और न्यायालय ने भी सरकार का साथ देते हुए उसे रिहा कर दिया। यह घटना सामान्य नहीं है। जिसने सैकडों निर्दोष लोगों की जान ली, सारी दुनिया को हिला दिया, उसकी गिरफ्तारी सही है या गलत, कानूनी है या गैरकानूनी इस पर चर्चा करनेवाली पाकिस्तानी न्याय व्यवस्था तथा उसके लिए अनुकूल वातावरण उपलब्ध कराने वाली पाकिस्तान सरकार दोनों की भूमिकाएं आतंकवादियों का बचाव करने वाली ही है। पाकिस्तानी सरकार के साथ ही वहां की न्याय व्यवस्था भी आतंकवादियों के साथ मजबूती से खड़ी है। दुनिया को दिखाने के लिए आतंकवादियों के विरोध में बोलना, भारत से संबंध सुधारने की चर्चा करना, और वास्तविकता में आतंकवादियों से नाता रखना- पाकिस्तान की यह पद्धति कम से कम भारत के लिए कोई नई बात नहीं है।
पाकिस्तान आखिर कब तक लखवी जैसे आतंकवादियों को बचाता रहेगा? शायद हमेशा ही, क्योंकि लखवी जैसे आतंकवादी की पहुंच जबरजस्त है। उसने हाफिज सईद जैसे लोगों को साथ लेकर लश्कर-ए-तैयबा नामक आतंकवादी संगठन की स्थापना की थी। उस आतंकवादी संगठन को पाकिस्तान के साथ ही दुबई जैसे अन्य इस्लामी स्थानों में रहनेवाले पाकिस्तानियों का भी समर्थन प्राप्त है। उनका यह मत है कि पकिस्तान लश्कर-ए-तैयबा की मदद से कश्मीर पर अपना हक साबित कर सकता है।
सन १९८० में जकीउर रहमान लखवी तथा हाफिज सईद जैसे लोगों ने मिलकर लश्कर-ए-तैयबा की स्थापना की। लश्कर-ए-तैयबा का अर्थ है आर्मी ऑफ प्योर अर्थात पवित्र सेना। सन १९९० के दौरान लश्कर का पूरा ध्यान कश्मीर पर था। इसी दौरान उन्होंने जेकेएलएफ और हिजबुल मुजाहिदीन के माध्यम से कश्मीर घाटी में छापामार युद्ध शुरू किया। आज लश्कर-ए-तैयबा एक मजबूत आतंकवादी संगठन है। उसका हर एक आतंकवादी ‘हाइली ट्रेंड’ है। पाकिस्तानी आर्मी, आईएसआई और लश्कर-ए-तैयबा के लोग एकसाथ आकर भारत पर हमले की तैयारी कर रहे हैं। मुंबई हमले से यह जाहिर हो जाता है कि पाकिस्तानी आर्मी लश्कर-ए-तैयबा की मदद कर रही है। पाकिस्तान का यह आतंकवादी संगठन केवल आतंकवादियों से ही संबंधित नहीं है, अपितु यह पाकिस्तान का एक राजनैतिक संगठन भी है। उसकी रचना भी मिनी गवर्नमेंट जैसी ही है। उनके भी विदेश, मीडिया, एज्यूकेशन, फायनान्स से संबंधित विभाग होते हैं।
कश्मीर के मुसलमानों को आजादी के नाम पर इस कार्य के प्रति इस्लामी राष्ट्रों में रहनेवाले पाकिस्तानी लश्कर-ए-तैयबा के लोग सहानुभूति रखते हैं। उनकी हर तरह से मदद की जाती है। इतने शक्तिशाली संगठन के नेता जकीउर रहमान लखवी को जेल में बंद करके रखना कमजोर पाकिस्तान सरकार के बस की बात नहीं। आज जब आतंकवाद के विरोध में सारी दुनिया को एकसाथ लड़ने की आवश्यकता है, ऐसे समय में पकिस्तान का आतंकवाद को विरोध दिखावा ही कहा जाएगा। आतंकवाद के विरोध में पकिस्तान की भूमिका कमजोर है। ऊपरी तौर पर आतंकवादियों के विरोध में खड़े रहने की बात करना और वास्तविक रूप से उनका समर्थन करना इस नीति को वहां की सरकार और न्याय व्यवस्था दोनों का समर्थन प्राप्त है। इसका कारण यह है कि ये आतंकवादी संगठन इतने शक्तिशाली हैं कि वे पाकिस्तान की सरकार को पलट सकते हैं और वहां के प्रमुख नेताओं की हत्या भी कर सकते हैं। पाकिस्तान की आतंकवाद के विरोध की इस कमजोर नीति के कारण क्या इस आशंका को नकारा जा सकता है कि भविष्य में लखवी जैसे नेताओं से लादेन जैसे क्रूरकर्मा निर्माण नहीं होंगे?
फिलहाल इसिस जैसा संगठन इराक में तथा आयएएस अफगानिस्तान में सत्ता में आने के लिए लालायित है। पाकिस्तान में आंतरिक कलह चल रही है। वहां अस्थिरता भी बहुत है। पाकिस्तान और अन्य इस्लामी राष्ट्रों में अशांतता और अस्थिरता भारत के सामने भी समस्याएं खड़ी करने वाली हैं। सीमा पर गोलीबारी, आतंकवादियों को छोड़ना, कश्मीर में घुसपैठ आदि जैसी कई खुरापातें पाकिस्तान ने कीं और संघर्ष करने का प्रयत्न किया तो भी वह हमारा पड़ौसी देश है। यह कठोर सत्य है। पाकिस्तान का विरोध करने का अर्थ है उसके पक्ष के सभी देशों का विरोध मोल लेना। साथ ही आतंकवाद को आमंत्रण देना। भारत पाकिस्तान संघर्ष का अर्थ है महासत्ताओं को हस्तक्षेप करने का मौका देना। यह भी भारत के लिए नुकसानदायक सिद्ध होगा। भारत की पाकिस्तान से दूरियों का अर्थ है चीन को पाकिस्तान से नजदीकी बढ़ाने का सुनहरा मौका देना। भारतीय नेतृत्व के सामने ऐसी अनेक समस्याएं हैं। स्वदेश हित के लिए थोड़ा नरम रुख अपनाना आवश्यक है। ‘पाकिस्तान के साथ संबंध’ सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती है। हमेशा संघर्ष या हमेशा समझौता दोनों ही ठीक नहीं है॥नए वैश्विक संबंधों और दो देशों के बीच के संबंधों की गुत्थी में पाकिस्तान जैसे पड़ौसी देश के संबंध में विदेश नीति निश्चित करना बड़ी चुनौती है। इस चुनौती को मोदी सरकार किस तरह से स्वीकार करती है तथा उससे क्या प्राप्त किया जाएगा यही देखना हमारे हाथ में है।
मो.: ९८६९२०६१०६

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