हिन्दू-बौद्ध संयुक्त रूप में आज भी विश्वगुरु हैं हम

 

बु द्ध जयंती अर्थात बुद्ध पूर्णिमा या वेसाक या हनमतसूरीबौद्ध धर्मावलम्बियों के साथ-साथ सम्पूर्ण भारत वर्ष के लिए एक महत्वपूर्ण, आस्थाजन्य और उल्लासपूर्वक मनाया जानेवाला पर्व है। भगवान् बुद्ध के अवतरण का यह पर्व वैशाख पूर्णिमा के दिन पड़ता है। विश्व के अनेक भागों में फैले हुए बौद्ध मतावलंबी इस पर्व को वेसाक के नाम से भी जानते हैं। वेसाक शब्द भारतीय माह के नाम वैशाख का ही अपभ्रंश है। भगवान् बुद्ध के संकिसा में ५६३ ईसा पूर्व में आज के दिन अवतरण होने के साथ-साथ इसी दिन को भगवान् बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति का दिन भी माना जाता है। आश्चर्यजनक संयोग है कि ४८३ ईसा पूर्व की वैशाख पूर्णिमा के दिन को भगवान् बुद्ध को देवरिया जिले के कुशीनगर में महा परिनिर्वाण प्राप्त हुआ था। बुद्ध पूर्णिमा का यह पावन पर्व भारत, चीन, तिब्बत, जापान, कोरिया, नेपाल, सिंगापुर, विएतनाम, थाईलैंड, लाओस, कम्बोडिया, मलेशिया, श्रीलंका, म्यांमार, श्रीलंका, ताइवान, हांगकांग, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, रूस, तुर्किस्तान, मंगोलिया, बांग्लादेश आदि अनेक देशों में मनाया जाता है। विश्व के इतने देशों में भारतजन्य धर्म को श्रद्धा पूर्वक मनाया जाना भारत की प्राचीन विश्वगुरु की अवधारणा को सुस्पष्ट और संपुष्ट करता है। इन देशों का राजनैतिक नेतृत्व परिस्थिति और सामरिकता वश चाहे जो भी बोले किन्तु यहां के आस्थावान बौद्ध बंधू भारत भूमि के प्रति अपने बौद्धजन्य आदर को कभी भी विस्मृत नहीं कर सकते हैं। यही वह तथ्य है जो भारत को विश्वगुरु के स्थान पर विराजित करने के नए अवसर प्रदान कर रहा है। इन देशों में बौद्ध धर्म पहली शताब्दी में ही प्रवेश कर गया था। इन देशों में हजारों की संख्या में सांस्कृतिक और धार्मिक स्मारक, पूजन स्थान, ग्रन्थ, संस्थान, शिलालेख, खगोलीय अनुसंधान केंद्र, ज्योतिषीय संस्थान, व्याकरण सिद्धांत, गणितीय सिद्धांत, विशाल प्रस्तर निर्माण आदि ऐसे अमिट और अक्षुण्ण श्रद्धा केंद्र हैं जो यहां भारत का नाम बरबस ही नहीं अपितु श्रद्धापूर्वक लेते रहने का अवसर प्रदान करते रहते हैं। हजारो वर्षों से इन देशों में ये बौद्ध और हिंदुत्व आधारित विचार संस्थान प्रज्ञा, संज्ञा और विज्ञा के प्रवाह को सतत बनाए हुए है जिसके सकारात्मक उपयोग का समय अब आ गया है। अवसर है कि इन देशों के बुद्धत्व प्रवाह का उपयोग भारत को विश्वगुरु बनाने की दिशा में पुनः प्रारम्भ हो। हिन्दू-बौद्ध संयुक्त रूप में हम विश्व के दुसरे सबसे बड़े धर्मावलंबी समुदाय के रूप में स्थापित हैं किन्तु बौद्ध और हिन्दू को अलग-अलग देेखे जाने की दृष्टि के विकसित होते जाने की स्थिति से हम धार्मिक आकार में चौथे और पांचवें स्थान पर देखे जाते हैं।
विश्व के प्रथम पांच विशाल धर्मों में से दो धर्म भारत भूमि से उत्पन्न हैं, एक हिंदुत्व और एक बुद्धत्व। भारतीय मूल से अभिन्न रूप से जुड़े इन दो धर्मों के अनुयाइयों की संख्या की दृष्टि से देखें तो गौरव भान होता है कि हम बौद्ध और हिन्दू मिलकर विश्व के सबसे धर्म के रूप में स्वीकार्य और मान्य हैं। सम्पूर्ण विश्व में संस्कृति स्त्रोत और सांस्कृतिक पुनर्जागरण के रूप में हमें जो वैश्विक मान्यता और आस्था प्राप्त है उसमें एक बड़ा कारण बौद्ध धर्म से जुड़ा हुआ ही रहा है। भारत की विश्वगुरु की पृष्ठभूमि और इतिहास की वैश्विक मान्यता हिन्दू-बौद्ध की संयुक्त सांस्कृतिक पीठ का ही परिणाम है। भारत के विभिन्न जगत प्रसिद्ध शैक्षणिक संस्थानों के विषय में भी यही तथ्य शत प्रतिशत पुनरावृत्त होते हैं। आज भारत वैश्विक राजनीति में अपनी भूमिका को नए सिरे से तराश रहा है। आज भारत अपने अतीत के अनुरूप विश्व का नेता नहीं बल्कि विश्वगुरु या जगतगुरु बनना चाह रहा है। इन परिस्थितियों में भारत भूमि या हिन्दू जनित बौद्ध धर्म के विश्व भर में फैले अनुयायी, ग्रन्थ, संस्थान और विचार संपदा भारत को गुरुतर स्थान पर विराजित करते दृष्टिगत होते हैं।
बौद्ध धर्म आधारित चार आर्य सत्य एवं आर्य अष्टांग मार्ग समूचे आर्यावर्त ही नहीं अपितु कई यूरोपीय देशों में भी अपने विचार प्रभाव का विस्तार करता दृष्टिगत हो रहा है। यदि हम इन मूल बौद्ध सिद्धांतों पर विचार करें तो हमें स्वाभाविक ही प्रतीत होता है कि वैश्विक स्तर पर हम किस प्रकार सहज स्वीकार्य ही नहीं वरन श्रद्धेय व पीठाधीश की भूमिका में हैं। आज सम्पूर्ण विश्व में अनेक राष्ट्र जिन चार बौद्ध जनित आर्य सत्य के मार्ग पर चल रहें हैं वे हैं दुःख, दुःख कारण, दुःख निरोध तथा दुःख निरोध का मार्ग। इस आर्य सत्य सिद्धांत की वैज्ञानिकता ने विश्व भर में भारतीयता को श्रद्धा से देखने की दृष्टि विकसित कर दी है किन्तु यह दुखद ही रहा कि इस विश्व भर में विस्तारित इस श्रद्धा भाव को हम पिछले कुछ सौ वर्षों के कालखंड में नेतृत्व का भाव नहीं दे पाए हैं। बुद्ध धर्म में आर्य अष्टांग मार्ग में प्रस्तुत किये जो सूत्र हैं उनकी आज विज्ञान आधारित मान्यता निर्विवाद हो गई है। ये अष्टांग मार्ग हैं सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प, सम्यक वाक्, सम्यक कर्म, सम्यक जीविका, सम्यक प्रयास, सम्यक स्मृति, सम्यक समाधि। जीवन के प्रारम्भ से लेकर समाधि तक के प्रत्येक अंश को अपने में समाहित कर लेने वाले यह आर्य अष्टांग मार्ग अपने आप में एक ऐसी जीवन शैली को समेटे हुए हैं जो आगामी कई हजार वर्षों की अति विकसित होने वाली जीवन शैली में और अधिक से अधिक प्रभावी, प्रासंगिक और प्रदीप्त होते जायेंगे। प्रज्ञा, शील और समाधि आधारित विचार हमें अरिहंत भाव भी देते हैं और समूचे विश्व को ही नहीं अपितु ब्रह्माण्ड का सकारात्मक कालजयी सिद्धांतों, मान्यताओं, विचारों और सकारात्मक उपयोग कर लेनें का विचार और क्षमता दोनों भी प्रदान करते हैं। कालातीत या हर समय में संवेदनशील, सटीक और समर्थ जीवन शैली को जन्म देने वाले हमारे हिन्दू-बौद्ध सिद्धांत और संस्कार हमें विश्व नेतृत्व की अद्भुत क्षमता प्रदान करते हैं।
आज की भारतीय विदेश नीति में दो शब्द निर्भीकता और बहुलता से कहे जा रहें है, एक लिंक वेस्ट एंड लुक ईस्ट अर्थात पश्चिम से जुड़ो और पूर्व की ओर देखो। अर्थात पश्चिम के तकनीकी सकारात्मक पक्ष को अपनाते चलो और उसमें सांस्कृतिक, शैक्षणिक, विश्व शांति और पर्यावरण आधारित सकारात्मकता प्रवाहित करते चलो। ईस्ट अर्थात पूर्व की ओर देखते रहने और संवाद बढाने की इस नीति के अंतर्गत आने वाले अधिकांश देशों में बौद्ध धर्म का प्रभाव और भगवान बुद्ध के भारत से जुड़े होने के कारण भारत के प्रति आदर और श्रद्धा भाव इस नीति को परिणामों की ओर तेजी से अग्रसर कर सकता है। दक्षिण प्रशांत महासागरीय १३ देशों का समूह राष्ट्र संघ में एक मुश्त बड़े वोट बैंक के रूप में काम आ सकता है। संयुक्त राष्ट्र संघ में सुरक्षा परिषद् में स्थायी सीट के लिए दशकों से प्रयासरत भारत के लिए इन १३ देशों से सांस्कृतिक रूप जुड़े होने को राजनैतिक कूटनीतिक बायस से देखने और तराशने की आवश्यकता है जो कि भारत के प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में प्रारम्भ हो गई है। भारतीय वैदेशिक गलियारों में जो दूसरा सकारात्मक शब्द इन दिनों बहुलता से चल रहा है वह है बौद्ध सर्किट। हिन्दू बौद्ध सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से जुड़े हुए देशों को बौद्ध सर्किट से जोड़ना और नए सांस्कृतिक, शैक्षणिक आयामों पर काम करते हुए एक नए नहीं अपितु प्राचीनतम आयाम के नए स्वरूपों पर काम करना अभूतपूर्व अवसरों को जन्म दे रहा है। वस्तुतः हाल के चार-पांच सौ वर्षों की वैश्विक राजनीति सैन्य, आर्थिक, तकनीक और अन्य प्रकार के भौतिकतावादी दृष्टिकोणों से बेतरह प्रभावित रही है। इस प्रकार की राजनीति में परस्पर प्रेम, अहिंसा, गुरुतर भाव, सांस्कृतिक विकास, शैक्षणिक आदान प्रदान आदि शब्दों का प्रचलन कम से कमतर ही नहीं अपितु समाप्तप्राय ही हो गया है। यही वह कोण है जहां से भारत को हिन्दू-बौद्ध पृष्ठभूमि उसे सम्पूर्ण विश्व में चौतरफा सन्देशवाही हो जाने के अवसर प्राप्त हो रहे हैं। बौद्ध सर्किट के राजनैतिक सिद्धांत पर अधिकतम काम से भारत को वैश्विक नेतृत्व की पीठ का स्वाभाविक और नैसर्गिक अधिकारी समझने के अवसर उत्पन्न किये जा सकते हैं। भारत-चीन के मध्य आ गए सैन्य और संप्रभुता आधारित तनाव को भी (अति सतर्कता और सचेत रहकर) यदि बुद्धत्व के आधार पर सुलझाने के नए कोणों से प्रयास हो तो यह समूचे विश्व के लिए नूतन और प्रेरणास्पद हो सकता है।

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