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अष्टांग योग शिक्षा का दीपस्तंभ

अष्टांग योग शिक्षा का दीपस्तंभ

by सतीश एलकुंचवार
in जून २०१५, सामाजिक
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 ‘समाधानाय सौख्याय नीरोगत्वाय जीवने।

 योगमेवाभ्यसेत् प्राज्ञ: यथाशक्ति निरंतरम्।’

-जनार्दनस्वामी

प्रसिद्ध घोषमंत्र जिस एकमेवाद्वितीय संस्था का है उस नागपुर स्थित प्रसिद्ध ‘योगाभ्यासी मंडल’ की स्थापना परमपूज्य परमहंस परिव्राजकाचार्य ब्रह्मलीन श्री जनार्दन स्वामीजी ने सन १९५१ मे की। स्वामीजी महान तपस्वी, दशग्रंथी एवं घनपाठी वैदिक थे। उन्होंने आयुर्वेद तथा ज्योतिष शास्त्र में भी प्रावीण्य प्राप्त किया था। तंत्र मार्ग के तो वे उच्च श्रेणी के गुरु थे। यद्यपि, योग गुरु के आदेशानुसार इस वितरागी, मितभाषी, अयाचित व्रती स्वामीजी ने जनकल्याण हेतु जाति, पंथ, धर्म, लिंग भेद इत्यादि न मानते हुए अंतिम सांस तक नि:शुल्क योग प्रचार प्रसार तथा यौगिक रोगोपचार को ही अपना जीवन कर्तव्य मान लिया था।

१८९२ में जन्मे स्वामीजी सन १९५१ में नागपुर में पधारे और तत्कालीन मध्यप्रांत की इस राजधानी के शहर को अपने वास्तव्य से पुनीत कर दिया। १९५१ में स्थापित योगाभ्यासी मंडल के संविधान में मंडल के उद्देश निम्नलिखित हैं-

१) योगाभ्यास का प्रचार करना २) विभिन्न संस्थाओं में योगाभ्यास की शिक्षा देने की व्यवस्था स्थापित करना ३) यौगिक शिक्षा देने हेतु योग शिक्षक तैयार करना ४) योग विषयक साहित्य का शोधन करना तथा ५) योगाभ्यास विषयक पाठ्यक्रम तैयार करना।

हिमालय में कठिनतम तपश्चर्या, व्रतपालन, दो बार नर्मदा परिक्रमा और भारत भ्रमण करने के बाद स्वामीजी नागपुर में पधारे तब वे ५९ वर्ष के थे। अगले कई साल वे अनेक अत्यंत कठिन आसन, शुद्धि क्रियाएं इत्यादि स्वयं करके बताते थे। कई रोगग्रस्त लोगों के घरों में स्वयं जाकर यौगिक रोगोपचार कर उन्हें रोगमुक्त करते थे। स्वामीजी ने महिलाओं को योगाभ्यास करने के लिए प्रेरित किया। योगाभ्यास तब तक महिलाओं के लिए निषिद्ध माना जाता था। इस उपक्रम के लिए शास्त्राधार को प्रस्तुत कर उन्होंने श्री शंकराचार्य का आशीर्वाद तथा संमति प्राप्त की थी। श्रीमती निर्मलाताई जोगलेकर ने तो ९/३/१९६८ को अपनी ‘संगम कला मंदिर’ संस्था (रामनगर स्थित) १२५ बाय ७५ का प्लॉट और इमारत ‘योगाभ्यासी मंडल’ में विलीन की।

नर का नारायण बनाने हेतु योग शिक्षा तथा प्रचार हेतु प्रारंभ में स्वामीजी ने ‘सुलभ सांघिक आसन भाग १’ यह पुस्तक चित्रशाला प्रेस, पुणे के व्यवस्थापक श्री वसंतराव देवकुले की सहायता से प्रकाशित की। कुछ समय बाद उन्होंने ‘सुलभ सांघिक आसन भाग २’, ‘प्राणायाम’, ये पुस्तकें प्रकाशित कीं। कालांतर में ‘योगस्वरूप’ यह अत्यंत मौलिक पुस्तक, स्थूलता, शीर्षासन, यौगिक रोगोपचार आदि स्वयं लिखित पुस्तकें प्रकाशित कीं जो आज मंडल के पाठ्यक्रम के पाठ्यपुस्तक के तौर पर प्रकाशित होती हैं।

१९५६ के मई महीने से ग्रीष्मकालीन विशेष परीक्षा वर्ग शुरू हुए। यह वर्ग योग शिक्षक तैयार करने हेतु शुरू किए गए। पहले वर्ष १३ विद्यार्थियों ने परीक्षा उत्तीर्ण कर प्रमाणपत्र प्राप्त किए थे। यह प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम तब से चल रहा है। और १९८३-८४ से तो परीक्षार्थियों की संख्या लगातार बढ़ रही है।

स्वामीजी के अमृत महोत्सव के अवसर पर, सन १९६६ में योग विषयक साहित्य प्रसिद्ध करने हेतु तथा योगप्रचार का प्रमुख साधन मानते हुए ‘योगप्रकाश’ नामक मासिक पत्रिका प्रथम बार प्रकाशित हुई। इस पत्रिका का संपादकत्व श्री स्वामी ने प्रकांड पंडित प्रज्ञाभारती स्वर्गीय श्री. भा. वर्णेकर को सौंप दिया।

योगाभ्यासी मंडल ने जून १९६३ में नागपुर सुधार प्रन्यास से योग शिक्षा हेतु स्थायी भवन निर्माण करने के लिए जगह खरीदी। उसके लिए विधान सभा अध्यक्ष स्वर्गीय श्री मधुकरराव चौधरी तथा तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय श्री दादासाहेब कन्नमवारजी का सहयोग प्राप्त हुआ। जहां आज स्वामीजी का समाधि स्थल है और योग वर्ग चलते हैं उस इमारत का भूमिपूजन तथा नींव महाराष्ट्र राज्य के मुख्यमंत्री स्वर्गीय श्री वसंतरावजी नाईक के हाथों रखी गई थी।

स्वामीजी ने अपना इस धरती पर का वास्तव्य समाप्त करने के पहले अपने गुरु के आदेशानुसार भारत की महान धरोहर ‘योगशास्त्र’ का प्रचार और प्रसार जनसामान्यों में नि:शुल्क करने के लिए अथक परिश्रम किए। किसी भी तरह का भेदभाव न करते हुए नि:शुल्क योगाभ्यास तथा यौगिक रोगोपचार पढाया जाए यही उनकी मनोकामना थी। अनेक पतंजलि योगसूत्रों के वे आविष्कार थे, आध्यात्मिक क्षेत्र में परमपूजनीय नाना महाराज तराणेकर जैसे प्रासादिक, अत्यंत श्रेष्ठ संत भी उनका आदर करते थे। कई उच्च स्थान प्राप्त किए तांत्रिक, मार्गदर्शन के लिए उनके पास आते थे। योगक्षेत्र में स्वामी सत्यानंद सरस्वती जैसे महान योगी उनका बहुत सम्मान करते थे। ऐसे महान योगी सत्पुरूष ने २ जून १९७८ को निजधाम को प्रयाण किया।

योगाभ्यासी मंडल तथा उसकी शाखाओं में स्वामीजी द्वारा प्रचलित पारंपरिक पतंजलि अष्टांगयोग नि:शुल्क सिखाया जाता है। फिर भी जनाधार इतना व्यापक रूप में प्राप्त है कि मंडल में एक भी व्यक्ति वेतन प्राप्त नहीं करता। मंडल की वार्षिक रिपोर्ट में ‘आस्थापना’ शून्य है। सभी काम कार्यकर्ता सेवाभाव से अत्यंत आनंद से और स्वखुशी से करते हैं। यहां कोई भी किसी को भी कोई भी काम नहीं बताता!

योग वर्ग- वर्ष के सभी दिन (बिना अवकाश) सैकड़ों स्त्री-पुरुष योगाभ्यास के लिए रामनगर स्थित मंडल में आते हैं। एक महीने का वर्ग करने के बाद साधक ‘अभ्यास वर्ग’ में आता है जो कई सालों से अखंडित चलता आ रहा है। आजतक हजारों स्त्री-पुरुषों ने मंडल से नि:शुल्क योग शिक्षा प्राप्त की है। नागपुर में सर्वसाधारण व्यक्ति को मंडल ज्ञात है। आज योगाभ्यासी मंडल की सौ से अधिक शाखाओं में नागपुर में नि:शुल्य योगाभ्यास पढ़ाया जाता है। यही उपक्रम नियमित वर्ग द्वारा यवतमाल, अकोला, अमरावती, चंद्रपुर, उमरेड, सांगली और अनेक जगहों पर होता है। महाराष्ट्र, भारत और विदेश में भी मंडल से शिक्षा प्राप्त योग शिक्षक विशेष शिविर द्वारा योग नि:शुल्क सिखाते हैं! बालकों तथा युवक युवतियों को योग शिक्षा तथा संस्कारित करने हेतु मंडल में ग्रीष्मकालीन विशेष वर्ग चलते हैं जिसमें ४ साल से १२हवीं तक के बच्चों के लिए विभिन्न योग वर्ग होते हैं।

योग शिक्षक- स्वामीजी द्वारा आरंभ ग्रीष्मकालीन प्रमाणपत्र योग वर्ग में ‘आसन प्रवेश’ और ‘आसन प्रवीण’ के माध्यम से हर वर्ष ५०० से अधिक योग शिक्षक तयार होते हैं, जिन्हें सर्वसामान्य व्यक्ति द्वारा करनेयोग्य योगाभ्यास पढ़ाने की क्षमता प्राप्त होती है। ये योग शिक्षक-शिक्षिकाएं, समाज के विभिन्न स्तरों से, विभिन्न व्यवसाय, नौकरी करने वाले होते हैं और इनके माध्यम से असंख्य जगहों और संस्थाओं में योग शिक्षा और उसके बारे में जनजागरण हो रहा है।

योग साहित्य निर्मिति- स्वामीजी लिखित अद्वितीय पुस्तक- १) सुलभ सांघिक आसन भाग १ व २, २) प्राणायाम ३) योगस्वरुप ४) स्थूलता और ५) शीर्षासन आदि मराठी पुस्तकों की तथा उनका हिंदी अनुवाद कर उन पुस्तकों का भी पुनर्प्रकाशन की प्रकिया जारी रहती है। उनकी मांग इतनी इसलिए है कि इन में अत्यंत सुलभ रीति से विभिन्न आसन, शुद्धिक्रिया, प्राणायाम, के संबंध में उपयुक्त जानकारी का खजाना है। इनका मूल्य इतना कम रखा गया है कि कोई भी इसे आसानी से खरीद सके। इसमें मुनाफे का उद्देश्य ही नहीं है। स्वामी महाराज की पुस्तकों के अलावा प्रज्ञाभारती वर्णेकर लिखित ‘योगमूर्ति’ यह मराठी स्वामी चरित्र, उनकी ही लिखित ‘सुबोध ज्ञानेश्वरी’ (मराठी) श्रीस्वामी की पोथी, संत गुलाबराव महाराज लिखित ‘योग प्रभाव’ तथा अन्य योग प्रकाशन उपलब्ध कराया जाता है।

‘योगप्रकाश’ नामक मराठी मासिक पत्रिका ने तो एक तरह का कीर्तिमान स्थापित किया है। आज इस मासिक पत्रिका के १०,००० पंजीकृत ग्राहक हैं। योग विषयक लेख प्रकाशित करने वाली इस ४० पृष्ठीय मासिक पत्रिका का वार्षिक शुल्क मात्र रु. ५०/- और आजीवन शुल्क मात्र रु. ५०० है। इसमें ११ सामान्य और एक विशेष दीपावली अंक की प्राप्ति होती है। हिंदी भाषा में कुछ लेख भी इसमें अवश्य प्रकाशित होते हैं। महाराष्ट्र के ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित वाचनालयों में इसकी बड़ी मांग है। दीपावली अंक ‘मधुमेह’, ‘उच्च रक्तदाब’, ‘रीढ़ की बीमारियां’, हृदय रोग आदि विषयानुरुप होते है। यह ‘योगप्रकाश’ की खासियत है।

योगोपचार- रामनगर स्थित मंडल में अनेक रोगों पर स्वयं गुरुजी नि:शुल्क उपचार करते हैं और विभिन्न रोगों से ग्रस्त हजारों रुग्ण केवल योगोपचार से स्वस्थ होकर सामान्य जीवन जीने लगे हैं। श्री रामभाऊ खांडवेजी की यह विशेषता है! मानो उन्हें श्री स्वामी स्वयं मार्गदर्शन करते हैं। (उनका मानना यही है।) विभिन्न रोगों पर, मंडल के ही शिक्षक/कार्यकर्ता, जो तज्ज्ञ डॉक्टर हैं, और जिनका नागपुर में सन्मान हैं, श्री गुरुजी के मार्गदर्शन में ३-३ महीनों के विशेष शिविरों का आयोजन किया जाता है। आजतक अनुसंधान के तौर पर मधुमेह, रक्तदाब, हृदय विकार, रीढ़ की बीमारी, वृद्धावस्था, दमा, डिप्रेशन, मेनोपॉस, स्थूलता, पार्किन्सन की बीमारी और अभी चल रहे ‘थायरॉइड की बीमारियां’ इनके बारे में योगोपचार का मार्गदर्शन हुआ है। इन शिविरों में प्राप्त निष्कषोंं पर आधारित विश्लेष्णात्मक लेख अंतरराष्ट्रीय परिषदों में पेश किए गए हैं तथा वैज्ञानिक पत्रिकाओं में छपे हैं।

योग सम्मेलन- स्वामीजी की जन्मशताब्दी के अवसर पर सन १९९२ में त्रिदिवसीय संमेलन वर्णेकर जी के आशीर्वाद से संपन्न हुआ। ‘योगप्रकाश’ मासिक के लिए भी यह एक विशेष कालखंड की शुरूआत थी। इसके बाद ९४, ९६, २००२ में योग संमेलन आयोजित किए गए। इन संमेलनों में पद्मश्री सदाशीवराव निंबालकर, डॉ. नागेन्द्र, संप्रसाद विनोद, पीताम्बर झा आदि मान्यवरों का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। २६ से २८ नवम्बर २०११ में नागपुर में विराट योग संमेलन आयोजित किया गया, जहां योग शिक्षा के विभिन्न अविष्कारांें के अलावा आध्यात्मिक गुरुवर्योका- गोविंदगिरी महाराज, विवेकजी घलसासी, साध्वी ऋतंभरा, जितेंद्रनाथ महाराज का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ।

१०,००० शालेय विद्यार्थियों का अति भव्य योगासन कार्यक्रम नागपुर में सन २०१३ में आयोजित किया गया, जिससे मंडल का नाम और कार्य सर्वदूर पहुंच गया।

स्वामीजी जो चाहते थे वह रोगनिवारण तथा अनुसंधान केंद्र निर्माण तथा उपलब्ध वास्तु का विस्तार इस कार्य का बीजारोपण हुआ है और अगले कुछ महीनों में यह कार्य का प्रारंभ होने की आशा है।

स्वामी महाराज के सभी कार्यों के लिए, संकल्पानुसार निधि स्रोत जनता जनार्दन, सहजता से उपलब्ध करा देता है। यह स्वामीजी की कृपा है और असंख्य कार्यकर्ताओं का उसमें सहयोग है।

 

सतीश एलकुंचवार

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