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भारत – चीन संबंध मे चाणक्य नीति और संयम आवश्यक ।

भारत – चीन संबंध मे चाणक्य नीति और संयम आवश्यक ।

by अमोल पेडणेकर
in विशेष
2
आज दुनिया में  बदहाली और अपने ही परिजनों कि हो रही मृत्यु को खुली आंखों से सिर्फ देखते रहने का माहौल है। अपना भविष्य क्या है? इस संदर्भ में लोगों के मन में गहरा डर  है । चीन के योहान से निकला कोरोना वायरस पूरी दुनिया में तबाही मचा रहा है । कोरोना वायरस ने संपूर्ण विश्व मे वर्तमान और  भविष्य के लिए बहुत गहरा संकट निर्माण किया है। इस संकट के समय अवधि कितनी होगी? इस संदर्भ में भी अभी कोई अटकलें नहीं लगाई जा सकती है। लेकिन भविष्य  भयानक स्वरूप में अपने सामने होगा। 1989 में चीन में प्रजातंत्र की मांग कर रहे हजारों चीनी विद्यार्थियों को दमनकारी बर्ताव करते हुए मार डाला था। उस बात से पूरी दुनिया में  चीन विरोधी माहौल निर्माण हुआ था। वर्तमान में कोरोना वायरस के कारण चीन विरोधी भावना विश्व में महसूस हो रही है।अमेरिका और चीन के बीच की तनातनी बढ़ रही हैं । अमेरिका और चीन इन दो महासत्ताओं के बीच शीत युद्ध का प्रारंभ हुआ है। उनके बीच के संबंध इतिहास से अब तक के सबसे बुरे दौर पर चल रहे हैं।  कोरोना वायरस की स्थिति काबू में आने के बाद चीन को उसके गलती का अंजाम देने के बारे में अमेरिका सोच रही है। यह अंजाम  व्यापार युद्ध या इससे आगे बढ़ कर भी हो सकता है।
चीन के संदर्भ में पूरे विश्व में गुस्से की लहर चल रही है। उस प्रकार के गुस्से की लहर भारत में भी हैं ।चीन  से भारत में आने वाले सभी वस्तुओं का हम बहिष्कार करें। इस प्रकार की आवाज भारतीय जनमानस से आ रही है । हम चीनी माल का बहिष्कार कर सकते हैं ? यह बात हमे संभव हो सकती है ? इस बात का हमारे दैनिक जीवन में किस प्रकार का असर हो सकता है? हमारे दैनंदिन जीवन को चीन ने इस प्रकार से जकड़ लिया है? हमारे जीवन में उपयोग में आने वाली वस्तुओं की सूची हम निकाले , तो उनमें से 70%  चीजें चीन से होती है। सुबह के  दंत मंजन करने वाले ब्रश से लेकर दिन भर उपयोग में आने वाली असंख्य चीनी चीजें हमारे घर में  है।चीन में कुछ दशक पहले मैन्युफैक्चरिंग कल्चर अस्तित्व में आया ।उसी दरमियान 1991 में भारत में उदारीकरण की हवा चलने लगी।आज जो भी कुछ चल रहा है उसमे चीन और भारत की नीतियों के परिणाम ही है। हमारी रोजमर्रा की जरूरतें बनी इन चीनी  चीजों को अपने जीवन से बाहर निकालना हमें संभव है?
आज कोरोनावायरस  के कारण  संपूर्ण विश्व के साथ भारत को भी चीन ने बहुत नुकसान पहुंचाया है। इस कारण चीन के विरोध में भारतीय जनमानस में क्रोध  की लहर चल रही है । दुनिया में हो रहे इन सब बातों का  हम भारतीयों के जीवन पर किस प्रकार से परिणाम हो सकता है ? इस बात पर  नजर रखना अत्यंत आवश्यक है.पाकिस्तान और नॉर्थ कोरिया छोड़कर संपूर्ण विश्व चीन के विरोध में खड़ा है। अमेरिका को अपने आज तक के  इतिहास मे सबसे बडी जीवितहानी एवं आर्थिक नुकसान सहना पड़ा है। प्रथम विश्वयुद्ध में 53402 ,कोरियन युद्ध में 36574 और  वियतनाम युद्ध में 58200 अमेरिकी सैनिक मारे गए थे। कोरोनावायरस के कारण अमेरिका में अब तक  मरने वाले की संख्या 75000 के आसपास पहुंची है। भविष्य में यह संख्या कहां तक पहुंच सकती है ,उसका आज कोई भी अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है। कोरोना वायरस की इस बीमारी को अमरीकी जनता  अमेरिका पर किया हुआ हमला मान रही है। अमरीकी राजनैतिक दृष्टिकोण मे अमेरिकन लोगों की जीवन को  बहुत मौलिक माना जाता है। 1941 में जापान ने अमेरिका के पर्ल हार्बर पर हवाई हमला कर सैकड़ों अमेरिकी लोगों की जान ली थी। उसी समय अमेरिका ने विश्वयुद्ध में सहभाग लेते हुए जापान पर विनाशकारी परमाणु बम का प्रयोग किया । जापान को तहस-नहस कर दिया। वर्तमान मे अमेरिकी प्रशासन पर चीन पर कार्रवाई करने का दबाव बढ़ रहा है। अमेरिका कोरोना वायरस को लेकर चीन को दोषी ठहरा रही है।चीन को अपने अंजाम तक पहुंचाने  की बात अमेरिका बारंबार कर रही है। अब यह बात व्यापार युध्द से लेकर सैनिक कार्रवाई तक पहुंचती है ?  भविष्य में घटनेवाले किसी भी संभावना को हम नकार नहीं सकते।
चीन ने  कोरोना वायरस की शुरुआत को छुपाकर  गैर जिम्मेदाराना वर्तन किया हुआ है। इस बात को ध्यान में लेकर चीन पर बड़ी कार्रवाई की जाए इस प्रकार का माहौल संपूर्ण विश्व के साथ भारत में भी बन रहा  है।लेकिन चीन के संदर्भ मे जल्दबाजी में कोई भी निर्णय लेना  भारत के लिए ठिक नहीं है।
इतना सहज भी नहीं है । भारत का व्यापार और बाजार दोनों चीनी माल से घिरा हुआ है। लेकिन चीन के इस अमानवीय व्यवहार को भारत ऐसे ही छोड़ दें, ऐसा भी नहीं हो सकता। चीन का विरोध करते वक्त हमें अपनी सोच चाणक्य नीति की तरह रखनी अत्यंत आवश्यक है । सिर्फ विरोध की भावना से चीन को ना देखे। अमेरिका और चीन के व्यापार युद्ध से  निर्माण होने वाली परिस्थितियां उपलब्धियों के रुप मे भारत की ओर  संकेत दे रही है ।उसे हमें समझना चाहिए।अमेरिका के चीन विरोधी वातावरण को आगामी होने वाले अमेरिकन चुनाव की  दृष्टि से  डोनाल्ड ट्रंप देख रहे हैं। ऐसे समय में भारत का दृष्टिकोण भी भारत के हित में होना जरूरी है। दुनिया भर से विरोध झेल रहे  चीन में भविष्य में बड़ी उलट फेर होने की संभावना है । दुनिया भर की बड़ी कॉरपोरेट कंपनियां चीन से बाहर निकलने के संदर्भ में सोच रखी है। भारत को यहीं पर बड़ा अवसर दिखाई दे रहा हैं। चीन से बाहर निकलने वाले उद्योगों को हम भारत की ओर किस प्रकार से मोड़ सकते हैं? इन उद्योगों को बेसिक इन्फ्राट्रक्चर किस प्रकार से उपलब्ध करवा सकते हैं?
भारत के अनेक राज्यों में  मैन्युफैक्चरिंग हब  हम कैसे  निर्माण कर सकते हैं?इस बात के लिए आवश्यक एवं परिणाम कारक  योजनाएं हम किस प्रकार बना सकते हैं । क्या हम अपने चीन विरोधी  भावना को इस दिशा में ले जा सकते हैं ? चीन को घर में बैठकर विरोध करना  सीधी साधी बात है। कोरोना के बाद कुछ ही महीनों मे  हम चीन विरोध को भूल भी सकते हैं ।यह हमारी आदत है।चीन के विरोध में खड़ा रहना है तो हमें पूरी ताकत और सोच  के साथ खड़ा होना पड़ेगा। हमारे सम्मुख उपस्थित सभी अवसरों  को  ध्यान में रखना आवश्यक है।  सकारात्मक सोच की इच्छा शक्ति सरकार और जनमानस में भी होनी चाहिए । यह बात सही है कि  चीन के विरोध में पूरे विश्व में एक माहौल निर्माण रहा है । ऐसे समय में हम अपने भारत का विकास किस प्रकार से कर सकते हैं ? इसी सुनियोजित सोच को अंजाम तक पहुंचाना है। सही मायने में आज के युग में यही राष्ट्रभक्ति है। नियति ने भारत के सम्मुख अवसरों को खड़ा किया हुआ है।अब  नियति के संकेत को अच्छी तरह पहचान कर हमें मार्गक्रमण करना है। हम कहां तक पहुंचेंगे यह बात , आने वाला भविष्य मे  भारत  सरकार और हम भारतीयों  के चाणक्य नीति  और संयम पर निर्भर करता है।

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Tags: #India #China #indiagrowth #america #japan #Coronavirus #COVOD19

अमोल पेडणेकर

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Comments 2

  1. Yashvi Rana says:
    5 years ago

    Now a days the Chinese are thinking that they will be a super power in the post COVID-2019 World which is why they are following Xi Jing Ping blindly, but as the whole world stands one and boycott China in every aspect be it manufacturing and exports, then the manufacturing hub will be bound to face money crisis or even existential crisis in this world market only if all countries decide to boycott the import or trade from China or take out their industries from there (which many countries have already started doing it) in the span of next 3-6 months. The labour and industries will fall out and we can see demonstrations of protest by the industries owners and labourers against the Communist Government and Dictator Xi just like what happened in Hong Kong last year. These circumstances can lead to big changes in China with respect to its politics and leadership. There are even conjectures that China will meet the same fate just like USSR which broke up in pieces in 1990s suddenly because of internal revolts by people.

    Reply
    • Amol Pednekar says:
      5 years ago

      Thank you.

      Reply

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