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विश्व शांति का स्रोत ‘योग’

विश्व शांति का स्रोत ‘योग’

by अमोल पेडणेकर
in जून २०१५, संपादकीय
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योग! भारतीय जीवन पद्धति का एक ऐसा आयामजिसका लोहा पूरी दुनिया मान चुकी है। इसलिए ही जब भारत के प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने यूनो में यह प्रस्ताव रखा कि २१ जून को ‘विश्व योग दिवस’ के रूप में मान्यता दी जाए तो उस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया। भारत का ‘योग’ अब पूरी दुनिया में ’योगा’ के रूप में विख्यात है और दुनिया के लगभग हर देश में लोग इसे अपना रहे हैं। खास बात यह है कि पहले जो लोग इसे हिंदू धर्म से जोड़ कर देखते थे और इसका विरोध करते थे, वे भी अब मान चुके हैं कि योग का किसी भी धर्म, सम्प्रदाय या उपासना पद्धति से कोई सरोकार नहीं है। योग अर्थात जोड़। मानव मन का आत्मा से जोड़ अर्थात योग। मनुष्य को आत्मचैतन्य की अनुभूति होना, उसका अपने आप से तथा अपने परिवेश से जुड़ना, संज्ञान प्राप्त करना ज्ञानयोग है। मनुष्य का अपने आराध्य से जुड़ना, उसकी भक्ति में लीन हो जाना भक्तियोग है। गीता में योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने संदेश दिया है ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन्’ अर्थात फल की कामना किए बिना अपने कर्म करते जाओ। यही कर्मयोग है। अपने चित्त को कुंडलियों पर एकाग्र करना कुंडलिनी योग है। भारतीय जीवन दर्शन के इन सभी योगों का संबंध मन तथा चित्त से है। परंतु योग केवल मन, चित्त, आत्मा इत्यादि जैसी आंतरिक बातों तक ही सीमित नहीं है। योग का सीधा संबंध शारीरिक स्वास्थ्य से है और आजकल यही ज्यादा प्रचलित भी है। उत्तमशारीरिक स्वास्थ्य हेतु आसनों तथा सूर्य नमस्कार कानियमित अभ्यास किया जाता है। लोग प्राणायामके द्वारा श्वासोच्छवास पर नियंत्रण रखने की कला आत्मसात कर रहे हैं। जिसका उनके स्वास्थ्य पर उत्तमपरिणामभी हो रहा है।

सामान्यत: योग के मानव शरीर और मन पर पड़ने वाले प्रभाव को अलग-अलग करके देखा जाता है। मूलत: ये दोनों भिन्न हैं ही नहीं। अगरसाधक आसनों के माध्यमसे अपने शरीर को सिद्ध नहीं कर लेता तो वह लंबी कालावधि तक एक स्थान पर नहीं बैठ सकता। और अगर उसका चित्त स्थिर नहीं है तो घंटों तक एक जगह पर बैठने का कोई लाभ नहीं होगा। अत: योग को पूरी तरह आत्मसात करने के लिए उसेे शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक तीनों रूपों में स्वीकारना होगा। भारतीय जीवन दर्शन के इस आयामका प्रसार करने के लिए स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविंद, अय्यंगार, इत्यादि से लेकर आज बाबा रामदेव तक कई लोगों ने प्रयत्न किए। इन सभी के प्रसार का तरीका भले ही अलग-अलग रहा हो परंतु उद्देश्य एक ही था कि विश्व के सभी लोग मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रहें। देश, काल, परिस्थिति के अनुरूप इन योग प्रसारकों ने लोगों को योग के विभिन्न प्रकारों से अवगत कराया। इन योग प्रसारकों के सान्निध्य में आकर लोगों को जब वांछित परिणाममिलने लगे तो योग का विस्तार अधिक होने लगा। जिस प्रकार संगीत को किसी भी भौगोलिक सीमा, जातिपाति, या उपासना पद्धति में नहीं बांधा जा सकता क्योंकि उसका संबंध लोगों के मनों से होता है; उसी प्रकार योग को भी किसी भौगोलिक सीमा में नहीं बांधा जा सकता। अब तो सारे विश्व में योग की व्याप्ति को देखकर इसका प्रमाण भी मिल चुका है। अमेरिका के प्रसिद्ध मेडिसन स्क्वेयर पर हजारों लोगों द्वारा एक साथ योगासन करना इसका उत्तमउदाहरण है। आज के दौर में योग आसन, प्राणायाम, सूर्य नमस्कार और कुछ शारीरिक क्रियाकलापों तक सिमट गया है। हालांकि योग का एक अंग होने के नाते इसे पूर्णत: गलत भी नहीं कहा जा सकता। कुछ नियमित आसनों के द्वारा अगर कमसमय में स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है तो लोगों का इस ओर आकर्षित होना स्वाभाविक है। परंतु योग का यह एक भाग शारीरिक स्वास्थ्य तक ही सीमित है।

मनुष्य के स्वास्थ्य का दूसरा पहलू मानसिक स्वास्थ्य भी है। आज पूरे विश्व में जो अशांत वातावरण हमदेख रहे हैं उसका मूल कारण यही है कि मानव मात्र का चित्त शांत नहीं है। आज की तनावपूर्ण जीवनशैली ने उसके मन में क्रोध, ईर्ष्या, निराशा, जैसी नकारात्मक भावनाओं को भर दिया है। लोग अपने आप से ही दूर होते जा रहे हैं। योग व्यक्ति को स्वयं के पास आने का अवसर प्रदान करता है। योग का नियमित अभ्यास उसके मन में इतनी सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है कि धीरे-धीरे उसके मन की सारी नकारात्मक भावनाएं अपने आप ही दूर हो जाती हैं। उसका चित्त शांत हो जाता है। चूंकि व्यक्ति से ही समाज, समाज से देश और देश से विश्व बना है अत: जब सबसे छोटी इकाई अर्थात व्यक्ति का चित्त शांत हो जाएगा तो धीरे-धीरे विश्व में भी शांति स्थापित हो जाएगी। वैश्विक शांति के लिए योग से कारगर उपाय और कोई नहीं है। इसे योग की शक्ति ही कहा जा सकता है कि अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की घोषणा होने के बाद ही पहला अंतरराष्ट्रीय योग सम्मेलन चीन जैसे देश में हो रहा है, जिसके भारत के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध नहीं हैं। फिर भी चीन ने भारत की अगुआई में शुरू किए गए योग सम्मेलन का मेजबान बनना स्वीकार किया। इस सम्मेलन में दुनिया के विभिन्न देशों से हजारों की संख्या में लोग भाग लेनेवाले हैं। इसे एक ऐसा संकेत कहा जा सकता है कि लोग अब धीरे-धीरे जानने लगे हैं कि शांति को बाहर ढूंढना व्यर्थ है। सही मायने में शांति प्राप्त करने के लिए उसे अपने अंदर ही ढूंढना होगा। जिस दिन व्यक्ति की यह खोज समाप्त हो जाएगी उस दिन पूर्णत्व का अनुभव करने लगेगा।

‘योग’ की भारतीय संकल्पना को ’योगा’ के रूप में मिली वैश्विक प्रसिद्धि इसका सकारात्मक पहलू है परंतु इसे शारीरिक स्वास्थ्य तक सीमित होने से बचाना होगा। भारतीय जीवन दर्शन में निहित ‘योग’ को उसकी सम्पूर्णता के साथ अपनाना ही ‘विश्व योग दिवस’ को सही मायनों में चरितार्थ करना होगा।

अमोल पेडणेकर

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