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बरसात कि सुहानी यादे

बरसात कि सुहानी यादे

by वैशाली कुलकर्णी
in जुलाई -२०१५, साहित्य
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मेरी सहेली के साथ महाबलेश्वर-पंचगनी जा रही थी। उसके बच्चे पंचगनी के स्कूल में पढते थे। हम उनसे मिलने और विद्यालयीन नये सत्र की प्रारंभिक तैयारी के लिये वहां जा रहे थे।

हमने वाई से घाट चढना प्रारंभ किया ही था कि बारिश शुरू हो गई। देखते ही देखते अंधेरा होने लगा। बादल गरज रहे थे, बिजली चमक रही थी। बारिश की तेज बौछारें भी होने लगीं। रास्ते के दोनों ओर के पेड हरे भरे दिखाई देने लगे। सारा वातावरण बदल चुका था। मन में एक अलग खुमारी छा रही थी। ठीक उसी समय गाडी में इजाजत फिल्म के लिये गुलजार द्वारा लिखा गीत बजने लगा……
छोटी सी कहानी से, बारिशों के पानी से
सारी वादी भर गई….
न जाने क्यूं दिल भर गया,
न जाने क्यूं आंख भर गई।
हम प्रत्यक्ष रूप से इसका अनुभव ले रहे थे।

बचपन से आजतक बारिश के प्रति मेरी चाहत कम नहीं हुई है। इस गीत में गुलजार ने बारिश का, हरे-हरे जंगलों का, पडों के पत्तों का, बारिश की बूंदों का बहुत सुंदर वर्णन किया है। जो बारिश से प्यार करता है, निश्चित रूप से वो इस गीत पर भी मोहित होगा ही।

एक और सुंदर गीत श्री४२० फिल्म का। प्यार हुआ, इकरार हुआ है…..। राज कपूर और नर्गिस दोनों एक ही छत्री में। बारिश के कारण दोनों ही भीगे हुए हैं, परंतु प्रेमी के साथ बारिश में चलने का आनंद दोनों के चेहरों पर दिखाई दे रहा है।

परंतु मुंबई जैसे महानगर में जब बारिश के कारण लोकल ट्रेन बंद पड जाती हैं, हर स्टेशन पर लोगों की भीड जमा होती है और ठीक ऑफिस छूटने के समय पर ही बारिश शुरू हो जी है ….यह सब एक साथ होना एक अनबुझी पहेली है। कई बार कुर्ला-घाटकोपर रोड पर हम सहेलियां ऐसे ही बारिश में भीगते-भीगते घर लौटती थीं। सडक पर पानी, रेलवे ट्रैक पर पानी और चलना दूभर कर देनेवाली बारिश।

इन सबके बीच बारिश का एक संस्मरण बहुत अच्छा है। मेरी सहेली की मौसी घाटकोपर मेन रोड पर ही रहती थी। उस जमाने में मोबइल फोन नहीं थे। सहेली ने कहा चल! मौसी को सरप्राइज देते हैं।

थोडा सा रास्ता बदलकर हम मौसी के घर पहुंचे। पहले तो उन्होंने बारिश में यूं भीगते हुए आने के कारण हमें प्यार भरी झिडकी दी। फिर सिर पौंछने के लिए टावेल दिये। फिर दौर चला मसालेवाली चाय और प्याज की गरमागरम पकौडियों का, वह भी पेटभर कर। यह घटना हमेशा के लिये मन पर अंकित हो चुकी है।

आजकल रिश्तों में कहां इतना अपनापन दिखाई देता है। हां, मित्रों और सहेलियों के ग्रुप जरूर बढ गये हैं। आज सभी के सबसे ज्यादा नजदीक है वॉट्सएप। मैसेज का लेन-देन बहुत होता है पर मिलना बहुत कम। इस वॉट्सएप पर भी बारिश से संबंधित कविताएं, जानकारियां बहुत होती हैं। कई पुराने किस्से यादें ताजा हो जाती हैं।
इस कविता ने भी ऐसी कुछ यादें ताजा कर दीं।

बरसात की आती लहराती हवा
वर्षा सेे धुले आकाश से
या चंद्रमा के पास से
या बादलों की सांस से
आती मदमाती, इठलाती हवा
यह खेलती बच्चों बूढों के साथ
यह खेलती प्रेमियों के साथ
यह खेलती हरी लता के साथ
आती मदमाती इठलाती हवा।

बारिश के मौसम का सजीव चित्र सामनेवाली कविता पढकर अन्य कविताओं का भी सिलसिला चल निकला।
मेरे जीवन से जुडी बारिश की एक और घटना जो मानस पटल पर अंकित है। रात के लगभग ८-८.३० बजे थे। धूआंधार बारिश हो रही थी। जल्दबाजी में मैं घर से छतरी लाना भूल गयी थी। मेरे पति मेरा लोकल स्टेशन पर इंतजार कर रहे थे। मुझे देखकर उनकी जान में जान आई। हालांकि छतरी लेकर आने का कोई फायदा नहीं था। मैं पहले ही पूरी भीग चुकी थी पर छतरी लाने के पीछे की उनकी भावना, चिंता, और प्रेम को मैंने पहचान लिया। हम बस की कतार की ओर बढे। घर जाने में देर हो रही थी। मेरी आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे। कैसे भी करके घर पहुंच जाऊं, यही खयाल बार-बार मन में आ रहा था। घर पहुंचकर देखा तो बेटी बेसब्री से मेरा इंतजार कर रही थी और सासू मां चाय की प्याली लिये तैयार थीं। ऐसे कुछ पल इंसान को जीने का हौसला देते हैं। कोई अपनी राह देख रहा है, यही काफी होता है।

कालिदास के मेघदूत में यक्ष अपनी प्रेमिका को मिलने के लिये आतुर है। यक्ष बादलों के माध्यम से उसके लिये संदेश भिजवाता है। संदेश काव्य ही है मेघदूत।

मुझे प्रसिद्ध व्याख्याता धनश्री लेले का मेघदूत पर व्याख्यान सुनने का अवसर प्राप्त हुआ था। ४ दिन उन्होंने इस विषय पर व्याख्यान दिया। हॉल खचाखच भरा रहा था। उनकी आवाज के अलावा कोई आवाज नहीं आती थी। इसे काल्पनिक वर्णन नहीं कहा जा सकता क्योंकि कालिदास ने उज्जैन से अलकपुरी तक मेघों को जो यात्रा करने के लिये कहा था, वह वर्णन आज भी सही लगता है। उनके द्वारा बताये गये स्थल, दी गयी सूचनाएं, स्थलों का सौंदर्य वर्णन लाजवाब था।

बारिश के बारे में जो कहा जाये वो कम है। परंतु यही बारिश कभी किसानों को इंतजार करवाकर उनकी आंखों में पानी ले आती है तो कभी इनती ज्यादा होती है कि अपने साथ घरबार मनुष्य सब ले जाती है।

अंतत: वह है तो प्रकृति ही। वह कभी आशिर्वाद देगी तो कभी नाराज होगी। हमें यह धुन रखना होगा कि जब हम उससे प्रेम करेंगे तो ही वह हमसे प्रेम करेगी। सही है ना!

वैशाली कुलकर्णी

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