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गुरु ही मित्र, गुरु ही सखा…

गुरु ही मित्र, गुरु ही सखा…

by निहारिका पोल
in जुलाई -२०१५, सामाजिक
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सर : अरे अनिल कैसे हो ? तुम्हारी नई गाड़ी तो बहुत ही अच्छी है।
अनिल : अरे धन्यवाद सर जी, आपने सलाह दी तभी मैंन गाड़ी ली है।
सर : अरे अनिल! आगे भी जब भी जरूरत हो बोलना जरूर।
अनिल : जरूर सर।
आश्चर्य होगा आपको। यह संवाद दो दोस्तों के बीच न होकर शिक्षक और छात्र के बीच हो रहा है। गुरु और शिष्य की एक विशिष्ट छवि हमारे दिमाग में सालों से बसी हुई है. परन्तु समय के साथ इस छवि में कई बदलाव आए हैं।
गुरु ही मित्र गुरु ही सखा है,
जीवन पथ समक्ष गुरु ने ही रखा है.
बदला है यह रिश्ता है कुछ नया है।
पुत्रवत शिष्य मित्रवत हो गया है।

ये पंक्तियॉं आज के समय के अनुरूप गुरु शिष्य के आपसी रिश्ते को बयां करती है। जब भी हम गुरु शिष्य संकल्पना के बारे में सोचते हैं हमारी आंखों के सामने गुरुकुल की गुरु शिष्य परम्परा ही आती है। जब भी गुरुपूर्णिमा का विशेष अवसर आता है, गुरुशिष्य परंपरा को याद किया जाता है। विभिन्न गुरुओं और उनके शिष्यों के उदाहरण समाज के समक्ष रखे जाते हैं। और उनके आदर्शों के बारे में सीख दी जाती है। सही मायने में गुरुशिष्य परंपरा का इतिहास सभी को पता होना आवश्यक है ही। परन्तु आज की युवा पीढ़ी इस गुरु-शिष्य के रिश्ते को जीती है। पहले की तरह अब उन्हें गुरुकुल नहीं जाना पड़ता फिर भी वे गुरु के साथ काम करते हुए सीखते हैं। पहले की तरह उन्हें गुरुदक्षिणा के रूप में प्रत्यक्ष गुरु को कुछ देना नहीं पड़ता परन्तु फिर भी वे गुरु से आत्मीय भाव के साथ शिक्षा ग्रहण करते हैं। पहले की तरह गुरु और शिष्य में डर और बंधन नहीं होते। वास्तव में आज की पीढ़ी में गुरु और शिष्य के मध्य मित्रत्व, ज्ञान और आदर तीनों भावनाओं से युक्त रिश्ता होता है।

देखा जाए तो हमारी संस्कृति में गुरु शिष्य परम्परा बहुत पुरानी है। पर समय के साथ इसमें कई परिवर्तन हुए हैं। ऋषि मुनियों के गुरुकुल से लेकर आजकल के स्कूलों और कॉलेजों तक गुरु शिष्य परंपरा के अलग अलग रूप हमारे सामने आए हैं।
समय बदला, लोग बदले, लोगों के सोचने का तरीका भी बदला। और इसी बदलाव के साथ आपसी रिश्तों का स्वरूप भी बदला है। पहले के गुरुकुलों का स्थान स्कूल, कॉलेज, ट्यूशन क्लासेस और अब तो इन्टरनेट ने ले लिया है। बढ़ते तकनीकी बदलावों ने गुरुकुल की शिक्षा को सभी के लिए इन्टरनेट पर उपलब्ध कराया हैं जिस तरह शिक्षा का स्वरुप बदला, उसी तरह शिक्षा प्रदान करने वाले और शिक्षा ग्रहण करने वाले के बीच के संबंधों में भी कई बदलाव आए।

आज शालाओं से लेकर ऑफिस तक हमारे गुरु, हमारे सीनियर्स हमें बहुत कुछ सिखाते हैं। पर पहले की तरह शिष्यों के मन में डर का भाव नहीं होता। हमसे पहले की पीढ़ी के समक्ष गुरु की प्रतिमा अलग थी। हर शिष्य के मन में अपने गुरु के प्रति आदर युक्त डर की भावना होती थी। रिश्ते में आदर था परन्तु खुलेपन की और मैत्री के भाव की कमी थी। हमारी पीढ़ी में यह अंतर देखा जा सकता है। आज हम अपने गुरुओं से, ऑफिस में अपने सीनियर्स से किसी भी विषय पर खुल कर चर्चा कर सकते है। काम की बातों से लेकर निजी जीवन तक कुछ भी हम हमारे शिक्षकों को, गुरुओं को बता सकते हैं, उनकी सलाह ले सकते हैं। और वे भी हमसे खुलकर बात करते हैं। गुरु की जगह मित्र बनकर हमें समझाते हैं।

बदलते परिवेश में यह बदलाव बहुत जरूरी था। समाज में कई परिवर्तन आए हैं, और कई नई समस्याओं का भी उद्भव हुआ है। और आज के परिवेश में ये समस्याएं, शिष्य अपने गुरुओं को खुल कर बता सकते हैं और गुरु मित्र का रूप लेकर इन समस्याओं का हल निकलते हैं। शिष्यों को समझाते हैं. क्या यह सब पहले हुआ करता था? आज के युवा अपने गुरुओं का आदर तो करते ही हैं, साथ ही साथ उनसे खुल कर बात भी कर सकते हैं।

आज कई बड़ी शालाओं में काउंसलर का पद होता है। इस पद पर नियुक्त शिक्षक, शिष्यों की शाला से संबंधित, मानसिक, निजी, हर प्रकार की समस्या को समझ कर सुलझाने का प्रयत्न करते हैंं। इस तरह गुरु और शिष्य में मित्रत्व पनपता है और खुल कर बात करने से समस्याओं का निपटारा भी हो जाता है।

बदलती तकनीकों से शिक्षा का स्वरूप भी बदला है। जहां पहले स्थान का बंधन हुआ करता था, आज वह भी समाप्त हो गया है। दूर देश में बैठा हुआ शिष्य अपने गुरु से स्काइप के माध्यम से, वीडियो चैट के माध्यम से बात कर सकता है, शिक्षा ग्रहण कर सकता है। कई नए विशेष पाठ्यक्रम ऐसे छात्रों के लिए उपलब्ध कराए जाते हैं। विभिन्न कलाओं से सम्बंधित पाठयक्रमों में आज के समय में इस पद्धति का विशेष उपयोग किया जाता है। नृत्य, गायन, वादन, इन कलाओं में तो विशेष रूप से इन्टरनेट का उपयोग किया जाता है। गुरु शिष्य परंपरा का यह एक और बदलता स्वरुप है।

गुरु द्रोणाचार्य और अर्जुन, रामकृष्ण परमहंस और विवेकानंद इनसे लेकर क्रीड़ा क्षेत्र में रमाकांत आचरेकर और सचिन तेंडुलकर और नृत्य के क्षेत्र में पंडित बिरजू महाराज और माधुरी दीक्षित ऐसी कई गुरु-शिष्य जोड़ियां हैं जिन्होंने गुरु शिष्य संबंधों में मित्रत्व और ज्ञान के महत्व का उचित उदाहरण समाज के सामने रखा है। और आज भी ऐसे कई गुरु शिष्य हैं जो इस परंपरा को निश्चित ही आगे बढ़ाएंगे। समय भले ही बदल जाए लेकिन गुरु के लिए मन में आदर और गुरु का शिष्य के प्रति प्रेम कभी नहीं बदलेगा यह निश्चित है।
मो. : ९०९८२६८७५१

निहारिका पोल

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