हार्ट फेल

 

हार्ट फेल’ यह शब्द आपने कई बार सुने होंगे। ‘ओह! उस फलाने किसी का हार्ट फेल हुआ।’ ऐसा कहते आप को कभी अफसोस भी हुआ होगा। आइए! आज हार्ट फेल के बारे में ही कुछ बातचीत करें! हार्ट की ही जुबानी-

असल में अपनी ही अक्षमता के बारे में बात करना कुछ मुश्किल ही होता है, लेकिन अपनी पूरी कहानी जब सुनाना जरूरी होता है, तब इस हिस्से को छिपाया कैसे जा सके? इसीलिए मेरी क्षीण सी क्षमता की शिकायत कभी तो पेश करना जरूरी ही था। सोचा, आज ही उसे पूरा कर लें!

इसलिए शुरू में ही ‘मेरा फेल होना माने क्या’ यह कहना जरूरी है। इसका जवाब भी कहीं मुश्किल नहीं। पूरे शरीर को रक्त की आपूर्ति करना मेरा मुख्य काम है। उसमें अगर मैं असफल रहा तो मैं ‘फेल’! मुझ तक पहुंचे हुए रक्त में से कम से कम ५० प्रतिशत रक्त आगे भेजना यह अपेक्षित होता है। ६०-६५ प्रतिशत रक्त अगर हो, तो मेरा काम सही ढंग से चल रहा है, इसकी स्वीकृति। लेकिन मैं अगर ५० के लक्ष्य तक पहुंचने में असफल रहा, सिर्फ ३५-४० प्रतिशत रक्त ही आगे भेज सका, तो तब मैं अनुत्तीर्ण होता हूं। बच्चे विद्यालय में पढ़ते समय ३५ अंक पाने पर उत्तीर्ण होते हैं, ३४ पाने पर अनुत्तीर्ण होते हैं, वैसा ही कुछ यह मामला है!

यहां एक सवाल खड़ा हो सकता है कि आखिर मैं फेल क्यों होता हूं? वैसे तो इसका जवाब आसान है, शायद कभी मुश्किल, क्योंकि मेरी कोई भी बीमारी मुझे हानि पहुंचा सकती है। और तो और मेरे फेल होने से कोई भी बीमारी उभर सकती है। विभिन्न प्रकार के सर्वेक्षण अलग अलग आंकड़े पेश करते हैं। अपने देश में किसी भी बात का अध्ययन करने की प्रवृत्ति या रुचि नहीं है। ऐसा अध्ययन करने के लिए आवश्यक व्यवस्था नहीं है, पर्याप्त साधन सामग्री भी नहीं है। उसके फलस्वरूप अपने देश में मेरे फेल होने के कारण पूरी तरह स्पष्ट नहीं हैं। हमें दूसरे देशों के अध्ययन पर निर्भर रहना आवश्यक होता है। अमेरिका में हुआ एक अध्ययन कहता है, कि मेरे फेल होने में मुझे रक्त प्राप्त होना कम होने से हृदय विकार होने का ६२ प्रतिशत हिस्सा है, तो इटली के वैज्ञानिक उसी को ४० प्रतिशत पर लाते हैं।

उनके सर्वेक्षण की तालिका ही काफी कुछ कहने वाली है। दोनों सर्वेक्षणों में एकवाक्यता नहीं है। पानी में कोबाल्ट की मात्रा अधिक होने से मेरा स्नायु कमजोर होते हैं, इसे तो सभी जानते हैं। क्या इटली के पानी में कोबाल्ट की मात्रा ज्यादा होगी, इस पर वैज्ञानिक अनुसंधान कर रहे हैं, क्योंकि उधर पूरे ३२ प्रतिशत लोगों में मेरे स्नायु कमजोर बनने से मैं फेल होता हूं, ऐसा दिखाई देता है। अपने यहां हालत और भी बुरी हो सकती है। अपने देश में मेरे स्नायुओं को कमजोर बनाने वाली और कितनी सारी समस्याओं की भरमार है। कुपोषण भारी मात्रा में है। ब जीवनसत्त्व के अभाव के फलस्वरूप दिखाई देने वाली बेरीबेरी जैसी बीमारियां, हिमोग्लोबिन की कमी, यह सभी ओर पाया जाता है। हम तो मधुमेह की राजधानी ही हैं। छोटी उम्र में हमें हृदयविकार के आघात सहने पड़ते हैं। गंदगी की वजह रोगों के कीटाणु बड़े पैमाने पर पाए जाते हैं। उससे अपने यहां कई प्रकार के कीटाणु मेरे अंदर घुस कर मुझे नुकसान पहुंचाते हैं। यहां सुदूर इलाकों में रोग का निदान समय पर होने की सुविधा उपलब्ध होती ही है, ऐसा कहा नहीं जा सकता। एक-दो ही नहीं, कितनी सारी समस्याएं हैं। इसीलिए मेरा सुझाव है कि कोई भी अपने देश में एक अलग सा, अपने देश की स्थिति को सोच कर सर्वेक्षण करे, इसकी बहुत जरूरत है।

अचानक किसी का हार्ट फेल होने का संदेह अगर हुआ, तो उस व्यक्ति को लिटाइए मत। किसी कुर्सी पर या बिछौने पर पांव नीचे छोड़ कर बिठा कर रखिए। लिटा देने से उल्टे सांस ज्यादा फूलती है, क्योंकि पैरों का खून भी हृदय की ओर आता है। इसलिए कुर्सी पर वह भी पैर नीचे छोड़कर बिठाना अच्छा! हां! तुरंत अस्पताल में ले जाना चाहिए। वैसे तो पहले से कुर्सी पर ही बिठाए आदमी को कुर्सी के साथ ही उठाकर ले जाना आसान होता है। बिछौने पर बिठाए आदमी को फिरसे कुर्सी पर बिठाते समय उसके हृदय को पीड़ा होती है।

खैर! मैं तो काफी पीड़ा पहुंचाने वाले विषय तक पहुंचा। तो हम कहां थे? मुझ से ५० प्रतिशत से कम रक्त अगर आगे बढ़ रहा हो, तो उसे ‘हार्ट फेल’ कहा जाता है, ऐसा मेरा कहना था, लेकिन हर व्यक्ति भिन्न होने से ऐसे आंकडों में उलझा वर्गीकरण करना उचित नहीं होता। इसलिए सन १९२८ में सबसे पहले प्रयुक्त हुआ न्यूयॉर्क हार्ट एसोसिएशन का वर्गीकरण आज भी प्रचलित है। यह वर्गीकरण बिल्कुल साधारण है। इसमें से क्लास १ यानी हृदयरोग है, किन्तु चलते हुए, सीढ़ियों पर चढ़ते हुए कुछ भी परेशानी नहीं होती, सांस फूलती नहीं। क्लास २ यानी लक्षण हैं, पर वे कुछ खास परेशान न करने वाले। चलने पर कुछ थोड़ी थकावट या सीने में कुछ दबाव सा महसूस होना, लेकिन रोजमर्रा की गतिविधियों में कुछ खास परेशानी दिखाई न देना। क्लास ३ में मामला कुछ बढ़ा हुआ सा होता है। जब मामूली काम करने से ही थकावट महसूस होने लगती है, इने गिने ५०-१०० कदम चलना भी मुश्किल होता है, सिर्फ आराम करते आदमी संतोष अनुभव करता है, तब उस व्यक्ति का समावेश इस गुट में करते हैं तथा जब आदमी आराम करते समय भी चैन से नहीं होता, उस समय भी उसकी सांस फूलती है, तब वह क्लास ४ में गिना जाता है।

मेरी क्षमता का नाप करने के कितने ही आधुनिक तंत्र आज उपलब्ध होने पर भी यह ८७ वर्ष पुरानी पद्धति का अवलंब हो रहा है। कारण बिल्कुल साफ है। मेरा काम कैसे चल रहा है, इसका प्रमाण खुद पेशंट को होनेवाली पीडा में ही तो छिपा हुआ है ना?
परंतु मुझे अमेरिकन लोगों की दूरदर्शिता की दाद देनी चाहिए। अमेरिका में आज जिन मार्गदर्शक सूत्रों का प्रयोग किया जाता है, उनमें उन्होंने ‘अ’ गुट को अलग किया है। जिन्हें किसी भी प्रकार का हृद्रोग नहीं, लेकिन हृद्रोग को आमंत्रित करनेवाले कुछ सूत्र हैं, उनका उन्होंने इस ‘अ’ गुट में समावेश किया है। आप अनियंत्रित रक्तचाप से अगर पीड़ित हों, तो आप इस गुट में गिने जाते हैं, चाहे हृदय का कोई विकार आप को हो या न हो। मैं उन्हें दूरदर्शी मानता हूं, क्योंकि खतरा अगर कागज पर उतारा गया, तो लोग जाग उठते हैं, चुप-चाप दवाइयां लेते हैं। मेरी परेशानी कुछ कम होती है और तब जाकर आपने अगर सही माने में अपने रक्तचाप पर काबू रखा, शराब पीना काफी कम किया, मुझे परेशान करने वाले कोलेस्टोरॉल को नियंत्रित किया, धूम्रपान रोका, तो मेरी जिन्दगी कितनी सारी बढ़ती है, ऐसा प्रमाणित हुआ है। ऐसा अगर न हो, तो मेरे फेल होने पर दुनिया जाग उठती है, तब तो ‘चिडिया चुग गई खेत!’।

डॉक्टर मेरे फेल होने की ओर अलग अलग तरीके से देखते हैं। कितनी तेेजी से मैं फेल हुआ हूं, इसे देखते ऍक्यूट अथवा क्रॉनिक; मेरा कौन सा हिस्सा कमजोर है, उसे देखते लेफ्ट अथवा राइट हार्ट फेल्युअर; मेरी ओर आनेवाले रक्त की मात्रा में दोष है या जानेवाले प्रीलोड अथवा आफ्टर लोड; मेरे संकुचित में समस्या निर्माण हुई है या फैलाने में- सिस्टॉलिक डिस्फंक्शन अथवा अयक्टोलिक डिस्फंक्शन; मैं पूरे शरीर की कितना रक्त भेजने में सफल होता हूं-हाय आउट पुट फेल्युलर या लो आउटपुट फेल्युअर; क्या होने पर मैं फेल हुआ हूं, ऐसे कितने ही सूत्रों के माध्यम से मेरे फेल्युअर की ओर देखा जाता है। दृष्टिकोण चाहे कोई भी हो, फिर भी आखिर मेरा काम कितनी क्षमता से चल रहा है, यही महत्त्वपूर्ण होता है।
किसी को हृदयविकार होता है, तब उसके हृदय के स्नायु मृत होते हैं, उससे मैं एक अविकल अंग के रूप में काम नहीं कर सकता। मेरे फेल होने का सबसे महत्त्वपूर्ण कारण यही है। कुछ खास कीटाणु भी मेरे स्नायुओं को कमजोर बनाते हैं। उसमें भी ऐसा ही कुछ हो सकता है। इसे ‘व्हायरल मायोकार्डायटिस’ कहा जाता है। मुझसे फेफडों की ओर या शरीर के दूसरे हिस्सों की ओर रक्त ले जाने वाली रक्तनलिकाएं संकुचित हो गई तो भी मुझे थकान महसूस होती है और मेरा फेल होना शुरू होता है। रक्तचाप की वजह हार्ट फेल होता है वह इसी के फलस्वरूप। मेरा आकुंचन सही मात्रा में होने पर मेरी ओर रक्त पर्याप्त मात्रा में आना जरूरी होता है। वही अगर ‘आया नहीं, तो मैं सही ढंग से सकुचान पाऊंगा। इसलिए किसी भी कारणवश मेरी जवनिकाओं में पर्याप्त मात्रा में रक्त अगर आया नहीं, तो मेरा अनुत्तीर्ण होना अनिवार्य होता है। इसके विपरीत मेरी ओर भारी मात्रा में रक्त आने पर भी समस्या खड़ी होती है। सकुचाने की प्रक्रिया में आवश्यक जितनी शक्ति मैं लगा नहीं पाता। अरे भाई! क्या आप भी अचानक सौ किलो का बोझ उठा पाएंगे? लेकिन दस-दस किलो का बोझ सौ बार भी ले जा सकोगे।
मेरे आकुंचन-प्रसरण के लिए पर्याप्त जगह उपलब्ध होनी चाहिए। मेरे आवरणों मे अगर पानी जमा हुआ, तो मुझे सीमित क्षेत्र में ही अपना काम करना पड़ता है। इसके फलस्वरूप मेरी क्षमता घटती है। भारी मात्रा में रक्त की आपूर्ति करने की जिम्मेदारी अगर मुझ पर सौंपी गई, तो भी मैं थक ही तो जाऊंगा। थायरॉईड ग्रंथियों का स्राव काफी मात्रा में बढ़ने पर ऐसा होता ही रहता है। मेरे विद्युत प्रवाह में उलझन पैदा हुई, तो बड़ी समस्या निर्माण होती है। वह मेरे जीने की ऊर्जा ही तो है। संक्षेप में कहें तो, मेरी बुराई करने कितने सारे कारण घात लगाए बैठे होते हैं। उन से मुकाबला करते मैं जीता हूं। उनके आक्रमण का मुकाबला करने में मेरी लड़ाई जब कुछ पिछडती है, तब उसे आप ‘हार्ट फेल्युअर कहते हैं।

गौर करने लायक कुछ बाते

* हार्ट फेल अधिकांशतया वयस्क लोगों की समस्या होती है। साठ वर्ष की अवस्था में जहां एकाध प्रतिशत लोगों का हार्ट फेल होता है, वहां यही मात्रा ८० वर्ष की उम्र में एकाएक बढ़ कर दस प्रतिशत पर पहुंचती है।
* इसी उम्र में लोगों के जोड़ों में दर्द होना शुरू होता है, उस पर इलाज के रूप में वे लोग वेदनाशामक दवाइयों का सेवन करते हैं। वेदनाशामक दवाइयां हार्ट फेल का एक महत्त्वपूर्ण कारण है।
* और तो और कई लोग किसी के कहने पर दवाइयां बंद करते हैं और अन्य किसी चिकित्सा को स्वीकार करते हैं। हार्ट फेल्युअर के संदर्भ में ऐसा कुछ करना काफी खतरनाक होता है। दवाइयों का नियमित रूप से सेवन करना यही सही है।
* शराब का और हार्ट फेल होने का आपस में बड़ा रिश्ता होता है। हृदय रोग होने पर शराब न पीना उचित है। उसका अति सेवन तो टालना ही चाहिए।

आप बड़े होशियार हैं। अब तक आपको एक बात का आकलन हुआ होगा। सांस फूलना यह मेरे फेल होने का सबसे महत्त्वपूर्ण लक्षण है, इसे तो आप भलीभांति समझ गए होंगे, इसका मुझे पूरा यकीन है। लेकिन यह सही नहीं। मेरे अलग अलग चार खाने हों, तो भी अविकल इंद्रिय के रूप में काम करने का जब सवाल होता है, तब मेरे दो पंच बन जाते हैं। सांस फूलने का जो लक्षण आपके मन में बना हुआ है, वह बायां पंच फेल होने पर। दाहिनी ओर के पंप ने काम करना अगर रोक दिया, तो सारे शरीर में पानी भरकर सूजन बढती है। खैर! आखिर ये गुट वगैरह बनाने से कोई फायदा नहीं। आखिर चलकर मैं तो एक ही इंद्रिय हूं न? उससे कभी भी बायां-दायां ऐसा किया नहीं जा सकता। दोनों पंप कुछ मात्रा में एक ही समय फेल हुए पाए जाते हैं। इसलिए मेरे फेल होने की दिशा में उंगली उठाकर दिखानेवाले और सभी लक्षणों को अनदेखा करने से बनेगा नहीं। आपको हमेशा खांसी आ रही हो, खास करके यह खांसी आप के बिछौने पर लेटी अवस्था में आ रही हो और ऐसा होते हुए भी बलगम अगर बाहर निकल न रहा, तो मेरे बारे में सोचिए। आम तौर पर इतना सारा कहना जरूरी हुआ। मुझसे संबंधित बीमारी अगर आपको हो और रात के समय अचानक आपको पेशाब करने उठ कर दौड़ना पड़ा अथवा पेट फूलना, अपच ऐसा कुछ होने लगा, तो तुरन्त सावधान हो जाइए। कभी कभार मेरा काम करना धीमा पड़ गया, तो मूत्रपिंड तक रक्त कुछ कम मात्रा में पहुंचता है, पेशाब कम होती है। लेकिन आप लेट गए, तो उसके अनुसार मूत्रपिंड को ओर रक्त की आपूर्ति बढ़ती है। उसके फलस्वरुप रात को पेशाब की मात्रा बढ़ती है। मेरे फेल होने पर पूरे बदन पर जैसे सूजन होती है, वैसे ही अंतडियां भी सूजती हैं। सूजी हुई अंतडियां कमजोर होती हैं। पेट फूलना, अपच आदि पीड़ा उसी के फलस्वरुप होती है। खैर! आखिर और दूसरी बीमारियों में इन लक्षणों से दिखाई देने से सही छानबीन किए बगैर नाहक घबराने में कोई मतलब नहीं।

इनके चिह्न भी काफी साफ होते हैं। फेंफड़ों में पानी भरना, पेट में पानी भरना, चेहरे का हमेशा का गुलाबी रंग हटकर उस पर नीली झलक होना, पेट में जिगर जहां होता है, वहां हल्कासा धक्का लगने पर भी दर्द होना आदि लक्षण डॉक्टर पहचानेंगे। आपको आसानी से और साफ दिखाई देगा गेले की नीला का टपाटप उछलना। डॉक्टर इसे ‘ज्युग्युलर व्हेनस पल्स’ (गतझ) कहते हैं। गतझ अगर बढी हुई दिखाई दे, तो आप सहज ही समझ लें, कि मेरा काम अब ढलान पर है। फिर भी अगर यकीन न हो, तो सीने के पिंजड़े की दाईं ओर पेट की तरफ कुछ देर दबाव डालें। टपाटप उछलनेवाली इस रक्तवाहिनी का उछलना एकाध सें. मी. से बढा हुआ पाया जाएगा।

कहने लायक यही, कि आप ऐसी कुछ बारी आने ही न दीजिए। पहले ही सावधानी बरतें। मुझसे संबंधित कोई बीमारी न हो, इसलिए कोशिश करते रहिए। दुर्भाग्य से आखिर वह हुई, तो तुरंत चिकित्सा करवाएं। इलाज में खंड न होने दें। इस अवसर पर मुझे राम गणेश गडकरी रचित ‘एकच प्याला’ (मराठी) नाटक की याद आती है। उसमें कहा है, कि शराब छोड़ने की घडी एक ही है-वह उसे होंठों तक ले जाने के पहले की! उसी तर्ज पर मैं कह सकता हूं- फेल होने से मुझे बचाने की एक ही घड़ी, वह माने मेरे फेल न होने देने की।
अब इसका हमेशा स्मरण रखें, कि बात बन जाएगी!

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