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बिहार में विकास बनाम परिवारवाद

बिहार में विकास बनाम परिवारवाद

by अमोल पेडणेकर
in जुलाई - सप्ताह एक, विशेष, संपादकीय
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बिहार में कोरोना संक्रमितों की संख्या 8000 को पार कर चुकी है। इस तरह बिहार में खतरनाक चीनी वायरस की चपेट में आ रहे लोगों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। अब इस वर्ष के आखिर तक विधान सभा के चुनाव भी होने वाले हैं। कोरोना और चीनी वायरस बिहार के लोगों के सिर पर जिस तरह सवार है, उसी तरह विधान सभा चुनाव का बुखार भी आहिस्ता आहिस्ता बिहारियों के सिर चढ़कर बोल रहा है। इस चुनावी बुखार के लक्षण अबं नजर आने लगे हैं।

बिहार के उपमुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के नेता सुशील कुमार मोदी ने कहा है कि युद्ध के दौरान कभी कमांडर नहीं बदला जाता। इस बात का संकेत यह है कि नीतीश कुमार ही राज्य के अगले मुख्यमंत्री होंगे। पिछले विधान सभा चुनाव के समय राजद-जदयू की दोस्ती हुई थी। जदयू कार्यकर्ताओं ने इस दोस्ती को कभी स्वीकार नहीं किया। इस कारण यह दोस्ती अधिक दिनों तक चली नहीं थी। विकास को चाहने वाला कोई भी व्यक्ति कभी लालू प्रसाद और उनके ’लालूवाद’ को स्वीकार ही नहीं कर सकता। लालू प्रसाद अगर विधान सभा चुनाव से पहले जेल से बाहर आ जाते हैं तो भाजपा और नीतीश कुमार की राह और आसान हो जाएगी। साल 2010 में लालू प्रसाद जेल से बाहर ही थे, मगर तब भी लालू प्रसाद कोई करिश्मा दिखा नहीं सके थे, राजग ने उन्हें 22 सीटों पर सिमटा दिया था।

नीतिश कुमार वह कमांडर हैं जिसके चेहरे पर कोई दाग नहीं, भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं, गुण्डागर्दी, भ्रष्टाचार, गरीबी, जातिपात जैसे कठिन दौर से बिहार को निकालकर विकास की नई रास्ते पर पहुंचाया हो, उसे बदलना बिहार की राजनीति में सही बात नहीं हो सकती है। इतना राजनैतिक ज्ञान तो भाजपा नेता रखते ही हैं। भाजपा-राजग का गठबंधन नैसर्गिक और सुशासन का प्रतीक है ऐसा दावा भाजपा नेता कर रहे हैं। इस बात में भी सौ फीसदी दम नहीं है, ऐसा वहां की जनता मानती है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार प्रारंभ से ही बिहार में राजग के नेता रहे हैं और आगे भी वे ही मुख्यमंत्री का चेहरा रहे तो भारतीय जनता पार्टी को लाभ हो सकता  है। उन्होंने सुशासन की एक ऐसी लंबी लकीर खींच दी है, जिसे मिटाना या बराबरी करना लालू प्रसाद यादव की पार्टी और लालू परिवार के लिए कतई संभव नहीं है। आज तो बिहार की जनता  विकस की सोच रखकर आने वाले विधान सभा चुनाव की ओर देख रही है। लालूप्रसाद यादव एक ऐसी पार्टी के नेता हैं, जो आज भी अपराधियों और बाहुबलियों के साये से बाहर निकलने के लिए तैयार नहीं हैं। यदि वे अपने 15 साल के गुनाहों के लिए बिहार की जनता से सार्वजनिक माफी मांगे तो कुछ हद तक चुनाव में टक्कर हो सकती है। लेकिन, वे ऐसा करने की हिम्मत नहीं बटोरेंगे।

बिहार में अगले महीने विधान परिषद की नौ सीटों के लिए होने वाले चुनाव तथा इस साल के अंत में होने वाले विधान सभा चुनाव के पहले लालू प्रसाद और परिवार को एकसाथ दोहरा झटका लगा है। विधान परिषद के पांच सदस्यों ने लालू प्रसाद यादव की पार्टी छोड़कर नीतिश कुमार का दामन थाम लिया है। वहीं लालू प्रसाद यादव की पार्टी के कद्दावर नेता और उपाध्यक्ष रघुवंश प्रसाद सिंह ने उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। इस साल होने वाले विधान सभा चुनाव के पहले राजद के लिए ना केवल यह बहुत बड़ा झटका माना जा रहा है, बल्कि राजद नेता तेजस्वी यादव के नेतृत्व को लेकर भी अब सवाल उठने लगा है। ऐसा कहा जा रहा है कि राजद के कई विधायक भी नीतीश कुमार और भाजपा के संपर्क में हैं।

मजदूरों की पीड़ा पर राजनीति करने की सजा तेजस्वी यादव को मिली है। लालू के बेटे तेजस्वी यादव ने कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन जैसी विषम परिस्थितियों में भी जिस निर्लज्जता के साथ सरकार के राहत कार्यों की आलोचना की उसका उन्हें खामियाजा भुगतना पड़ा। उस अंधी नकारात्मकता का फल है कि पार्टी के पांच विधान परिषद सदस्यों ने लालू यादव की पार्टी से नाता तोड़ लिया। अब आने वाले विधान सभा चुनाव में गरीबों-मजदूरों की पीड़ा पर राजनीति करने और विकास में अडंगेबाजी करने की सजा तेजस्वी यादव को बिहार की जनता से मिलना तय है। लालू प्रसाद ने अपने अच्छे-बुरे हर दौर के साथी रघुवंश प्रसाद सिंह को खो दिया है। रघुवंशी प्रताप सिंह की सलाह न मानकर पुत्र मोह में लालूप्रसाद यादव उनकी लगातार उपेक्षा करते रहे हैं। इसी बात का यह फल हो सकता है की एम्स में बीमारी के कारण भर्ती रघुवंश प्रताप सिंह ने बिस्तर से ही पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद से  इस्तीफा दे दिया है। इस बात से ही पता लगता है कि लालू प्रसाद यादव के राजद को परिवारवाद किस हद तक निगल चुका है। लोकसभा चुनाव में जीरो पर आउट होने वाली पार्टी से एकसाथ पांच माननीय सदस्यों का मोहभंग और वरिष्ठ पदाधिकारी का इस्तीफा देना तेजस्वी यादव के नेतृत्व को दूसरा बड़ा झटका है। नीतीश कुमार के विकास कार्य बनाम लालू प्रसाद यादव का परिवारवाद जैसे मुद्दे इस विधान सभा चुनाव में किस प्रकार से रंग भरते हैं, यह आने वाले कुछ ही दिनों में स्पस्ट हो जाएगा।

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Tags: #Election #nitishkumar #ChiefMinisterofBihar

अमोल पेडणेकर

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