नाम को सार्थक करता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

कहा जाता है मेहनत इतनी खामोशी से करो कि सफलता शोर मचा दे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का काम करने का तरीका भी कुछ इसी प्रकार है। चाहे कोई दुर्घटना हो या प्राकृतिक आपदा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक वहां सहायता करने के लिए उपस्थित हो ही जाते हैं। अपनी स्थापना से लेकर आज के कोरोना कालखंड तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने पूरे जीवन काल में कई आपदाएं न केवल देखी हैं, वरन उनका सामना करते हुए दूसरों की सहायता भी की है। इसका परिणाम यह हुआ कि आपदा काल में जिन लोगों की संघ ने सहायता की थी, वे हमेशा के लिए संघ से जुड़ गए।

सन 1962 में के युद्ध में जब सेना को आवश्यकता थी तब स्वयंसेवकों ने उन्हें सहयता प्रदान की। जब गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश में भूकंप आया तब स्वयंसेवक सहायता के लिए उपस्थित थे। केदारनाथ और अन्य स्थानों पर जब बाढ़ की परिस्थिति थी तब स्वयंसेवकों ने अपनी जान की परवाह किए बिना कमर से ऊपर तक के जलस्तर में खडे होकर अन्य लोगों का जीवन बचाया था। वर्तमान समय में भी जिस दिन से कोरोना की भीषणता का अनुमान लगा और देश में लॉकडाउन की प्रक्रिया शुरू हुई उस दिन से ही स्वयंसेवक सहायता कार्यों में जुट गए थे।

संघ की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि सेवा कार्यों को करने के दौरान संघ ने केवल सेवा की भावना को ही कायम रखा है। परंतु वह किसी एक प्रकार के ‘पैटर्न’ या ‘फॉर्मेट’ में कार्य नहीं करता और न ही इस सेवा के पीछे उसका कोई छिपा एजेंडा होता है। अत: संघ उस समय की परिस्थिति को देखते हुए आवश्यकता के अनुरूप बिना किसी भेदभाव के समाज को साथ लेकर समाज के प्रत्येक व्यक्ति तक सहायता पहुंचाने के लिए कटिबद्ध होता है। कोरोना कालखंड में जिस तरह परिस्थितियां बदलीं, जैसे-जैसे दिन गुजरे समस्याएं भी बदलती गईं। अब चुंकि समस्याओं का स्वरूप बदला अत: संघ ने अपने सेवाकार्यों के स्वरूप भी बदले।

लॉकडाउन शुरू होते ही दिहाडी पर काम कर रोज दो समय का भोजन जुटाने वाले लोगों को तुरंत संघ स्वयंसेवकों द्वारा भोजन वितरित करने की व्यवस्था की गई। दूसरा संकट यह था कि रोजगार के साधन बंद हो जाने के कारण लोगों की आर्थिक परिस्थिति बिगड चुकी थी। अत: कुछ दिनों तक लोगों को नियमित रूप से राशन सामग्री वितरित की गई। यह सहायता पहुंचाई जा ही रही थी कि महानगरों से मजदूरों ने अपने-अपने गृहनगरों की ओर वापिस जाना शुरू कर दिया। उनकी समस्याएं तो और गंभीर थी। संघ स्वयंसेवकों ने उनके लिए भी विभिन्न पडावों पर भोजन पानी की व्यवस्था तो की ही थी, साथ ही कई लोगों को चप्पलें और स्वास्थ्य सुविधाएं भी उपलब्ध कराई गईं।

इन सेवाकार्यों के अतिरिक्त जांच के लिए आवश्यक प्रशिक्षण लेकर स्वयंसेवक उन क्षेत्रों में भी कार्य करने लगे जिन्हें प्रशासन की ओर से ‘रेड जोन’ घोषित किया गया था। इन सेवा कार्यों का सबसे उत्तम उदाहरण मुंबई का धारावी क्षेत्र है। धारावी विश्व की सबसे बडी झोपडपट्टी है। इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि सघन बस्ती, अस्वच्छता और किसी भी तरह का अनुुशासन न पालने के कारण यहां का वातावरण कोरोना फैलाने में कितना पोषक रहा होगा। एक समय ऐसा था जब मुंबई और महाराष्ट्र में कोरोना के आंकडे बढ़ाने का सारा ठीकरा धारावी पर ही फोडा जा रहा था, जो कि गलत भी नहीं था। परंतु यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों के निरंतर सेवाकार्यों का ही सुपरिणाम है कि अब धारावी के आंकडे निम्नतम हो चुके हैं।

धारावी में सर्वप्रथम दमकल विभाग की गाड़ियों की मदद से पूरे क्षेत्र को सैनिटाइज करवाया गया। डॉक्टरों व पेरामेडिकल स्टाफ के द्वारा हर बस्ती में लोगों की जांच व चिकित्सा की गई। भय व भ्रम को दूर करने के लिए बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाया गया। स्वयंसेवकों ने हाथों में मेगाफोन लेकर हर गल्ली बस्तियों में जाकर इस संदर्भ में जागरूकता फैलाई। इससे लोग फिजिकल डिस्टेन्सिग का पालन करने लगे। डॉक्टरों के पास जाकर जांच करवाने लगे और स्वास्थ्य लाभ लेने लगे। बड़ी संख्या में लोगों की थर्मल स्क्रीनिंग की गई। इसमें जो लोग पॉजिटिव थे उन्हे अलग जगह पर रखा गया। अगर इन लोगों का पता नहीं चलता तो स्थिति को नियंत्रित करना मुश्किल था। बड़ी संख्या में मास्क, सैनिटायजर एवं अन्य सुरक्षा सामग्री का वितरण किया गया। एक ओर लोगों के स्वास्थ्य की देखभाल की जा रही थी, जन जागरण किया जा रहा था, वहीँ दूसरी ओर अपने गांव लौटने वाले लोगों का मार्गदर्शन किया जा रहा था। कोरोना का प्रभाव धारावी से कम करने के लिए हर छोटी-बडी बात का ध्यान रखा गया। धारावी में कोरोना के मरीजों के आंकडे भले ही कम हो चुके हों परंतु यह ध्यान रखना होगा कि खतरा टला नहीं है। बिना किसी चूक भूल के धारावीवासी अपने दैनंदिन कार्य करेंगे तभी इस खतरे से बचे रहेंगे और स्वयंसेवकों की मेहनत भी जाया नहीं होगी।

जिस संख्याबल के साथ और सुनियोजित पद्धति से संघ ने कार्य किया उसका कोई सानी नहीं। इतने कार्य करने के बाद भी संघ आडम्बर और खबरों की चकाचौंध से दूर है। परंतु बडे पैमाने पर निरंतरता के साथ और लगन से जब सत्कार्य किए जाते हैं तो विरोधियों को भी उसका लोहा मानना ही पडता है।

आज जो कांग्रेस संघ का इतना विरोध करती है किसी जमाने में उसके मुखिया रहे भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने सन 1962 के युद्ध के बाद स्वयंसेवकों के कार्यों की प्रशंसा की थी और उन्हें परेड में शामिल होने को कहा था। बरखा दत्त और उसके जैसे कई संघ विरोधी पत्रकार भी धारावी में किए गए संघकार्यों की प्रशंसा करने को बाध्य हैं।

इन सभी उदाहरणों से यह कहा जा सकता है कि संघ अपने नाम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को सार्थक कर रहा है क्योंकि उसके सेवा कार्यों की व्याप्ति पूरे राष्ट्र में है, उसके स्वयंसेवक स्वयं प्रेरणा से सेवाकार्य करते हैं तथा सभी लोग संगठित होकर, एक संघ होकर कार्य कर रहे हैं।

This Post Has 3 Comments

  1. Sanjay Patil

    सामान्य नागरिक सहज समजू शकेल अस संघ कार्य सहज सोप्या भाषेत

  2. Ravinder Singh

    बहुत बढ़िया लेख मैम! बधाई एवं भविष्य के लेखन के लिये शुभकामनायें!

  3. Shailesh Sureshrao Choudhary

    एकदम सटिक विश्लेषण

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