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धारावी: संघशक्ति से काबू में आया कोरोना

धारावी: संघशक्ति से काबू में आया कोरोना

by मुकेश गुप्ता
in जुलाई - सप्ताह चार, सामाजिक
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एशिया की सबसे बड़ी झोपड़पट्टी धारावी (मुंबई) में कोरोना महामारी को नियंत्रित करने वाला मॉडल अब पूरे विश्व में अब चर्चित है और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अन्य देशों को इसे अपनाने की सलाह दी है। इस सफलता का श्रेय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल, निरामय फाउंडेशन, हिन्दू युवा वाहिनी आदि संघ प्रेरित संगठनों व अन्य स्थानीय सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक संस्थाओं के संयुक्त प्रयासों को है। कर्तव्य की भावना से की गई हजारों स्वयंसेवकों की मेहनत रंग लाई है।

‘संघशक्ति कलियुगे’ यानि संगठन की शक्ति से विजयश्री निश्चित है। सामूहिक शक्ति द्वारा बड़ी से बड़ी समस्या, विपदा – आपदा एवं चुनौतियों का सामना किया जा सकता है और उस पर विजय भी पाई जा सकती है। इसकी एक बानगी एशिया वह सबसे बड़ी झोपड़पट्टी धारावी में देखने को मिलीअ वैश्विक महामारी कोविड -19 ने एक समय धारावी को अपने चपेट में ले लिया था। देखते ही देखते कोरोना पूरे धारावी को अपने संक्रमण के गिरफ्त में तेजी से लेता जा रहा था। धारावी में कोरोना संक्रमण के सर्वाधिक खतरे को लेकर देश विदेशों में इसकी चर्चा होने लगी। आये दिन धारावी कोरोना के चलते सुर्ख़ियों में आने लगी। ऐसे मुश्किल वक्त में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कोरोना से निपटने के लिए कमर कसी और मैदान में आ डटा। संघ ने अपने सभी सहयोगी एवं अन्य संगठनों के साथ व्यापक बैठक कर रणनीति बनाई और हजारों स्वयंसेवकों एवं कार्यकर्ताओं के संग प्रत्यक्ष राहत कार्यों में जुट गए।

इस दौरान कोरोना के खतरे और लॉकडाउन की मार से त्रस्त धारावीकरों ने अपने गांव जाने में ही अपनी भलाई समझी और आनन – फानन में धारावी छोड़कर भागने लगे। अब कोरोना के साथ ही पलायन का भी बड़ा गंभीर संकट खड़ा हो गया। संघ ने दोनों मोर्चों पर एक साथ लड़ाई लड़ी। तत्काल संघ ने बीएमसी, पुलिस, आदि शासन – प्रशासन से सामंजस्य स्थापित कर अपनी पूरी ताकत झोंक दी। संघ ने स्वयंसेवकों की अनेक टोलियां की रचना कर सभी को अलग – अलग कामों में लगा दिया। धारावी की जनसंख्या की तुलना में पुलिस बल की भारी कमी थी। पुलिस को बड़ी संख्या में स्वयंसेवकों की आवश्यकता थी। तब पुलिस एवं अन्य प्रशासन की मांग पर उन्हें पर्याप्त संख्या में स्वयंसेवक उपलब्ध कराए गए। इससे पुलिस एवं अन्य प्रशासनों का भार और तनाव कम हुआ। स्वयंसेवकों की निस्वार्थ समर्पण भावना व कार्य को देखकर सभी में उत्साह, आत्मबल व आत्मविश्वास का संचार हुआ। इसके बाद सभी के द्वारा सामूहिक प्रयास किया जाने लगा।

धारावी में राहत कार्यों का नेतृत्व कर रहे कोरोना योद्धा राजीव चौबे ने बताया कि सर्वप्रथम उन्होंने दमकल विभाग की गाड़ियों से पूरी धारावी को चारों ओर से सैनिटाइज करवाया। डॉक्टरों व पेरामेडिकल स्टाफ को साथ लेकर हर नगर, बस्ती में कैम्प लगवाए गए। जहां पर लोगों की जांच व चिकित्सा की गई। कुछ लोगों के मन में यह भय व्याप्त हो गया था कि जांच के नाम पर कहीं उन्हें अस्पतालों में भर्ती तो नहीं कर दिया जाए या फिर उन्हें क्वारनटाइन में तो नहीं भेज दिया जाए। इस आशंका से लोग डॉक्टरों के पास नहीं जा रहे थे। इस तरह के भय व भ्रम को दूर करने के लिए बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाया गया। स्वयंसेवकों ने हाथों में मेगाफोन लेकर हर गल्ली बस्तियों में जाकर इस संदर्भ में जागरूकता फैलाई। इस अभियान को सफल बनाने के लिए स्थानीय गणेशोत्सव मंडलों, संस्थाओं, सोसायटी, मंदिरों आदि से संपर्क किया गया। इस तरह देखते ही देखते बेहद कम अवधि में इस अभियान ने जनांदोलन का रूप ले लिया। सभी लोग सोशल डिस्टन्स से लेकर फिजिकल डिस्टन्स का पालन करने लगे और जरूरी अहतियात बरतने लगे।

सेवा कार्य उपकार नहीं, कर्तव्य
जब भी राष्ट्र पर कोई संकट आता है तब तब संघ के स्वयंसेवक मैदान में डटे रहते हैं। हर बार संघ ने सेवा व राहत कार्यों के माध्यम से यह सिद्ध किया है। भारत देश हमारी मातृभूमि है। मेरा मानना है कि भारत माता की सेवा करना यही हमारा परम दायित्व है। इसलिए जब भी हम सेवा कार्य करते हैं तो किसी पर उपकार नहीं करते, बल्कि यही हमारा कर्तव्य है।
–राजीव चौबे, विश्व हिन्दू परिषद विभाग सह मंत्री (मुंबई शहर विभाग)

डॉक्टरों के पास जाकर जांच करवाने लगे और स्वास्थ्य लाभ लेने लगे। बड़ी संख्या में लोगों की थर्मल स्क्रीनिंग की गई। इसमें 200 के करीब लोगों को डिटेक्ट किया गया। उन्हें प्रशासन के हवाले कर दिया गया। यदि समय रहते इन्हें डिटेक्ट नहीं किया जाता तो 200 से 2000 लोगों को संक्रमण का खतरा बना रहता। बड़ी संख्या में मास्क, सैनिटायजर एवं अन्य सुरक्षा सामग्री का वितरण किया गया। एक ओर लोगों के स्वास्थ्य की देखभाल की जा रही थी, जन जागरण किया जा रहा था, वहीँ दूसरी ओर पलायन करने वाले प्रवासी लोगों का मार्गदर्शन कर उनकी मदद की जा रही थी और उन्हें सही सलामत ट्रेनों में बैठा कर उनके गांव भेजा जा रहा था। इस दौरान स्वयंसेवकों द्वारा हजारों की संख्या में मुफ्त फॉर्म बांटे गए. लगभग 65 हजार से अधिक लोग ट्रेन द्वारा अपने गृह राज्य पहुंचे और इससे 3 गुणा अधिक लोग स्वयं के साधन ट्रक, बस, जिप आदि वाहनों से अपने गांव गए। कुल मिलाकर 3 लाख से अधिक लोग धारावी से अपने गांव की ओर कूच कर गए। इसका फायदा यह हुआ कि धारावी में जनसंख्या कम हो गई। लोगों को रहने के लिए स्पेस मिल गया। छोटे छोटे घरों में अधिक लोग रहने के कारण पहले संक्रमण का खतरा ज्यादा था लेकिन लोगों के गांव जाने से यह खतरा भी कम हो गया।

कोरोना की अपेक्षा उसके डर से अधिकतर मौतें हुई हैं। कोरोना के भय को दूर करने के लिए सबसे अधिक जागरूकता फैलाई गई। लोगों को यह बताया गया कि कोरोना से डरना नहीं लड़ना है। डेंगू, मलेरिया जैसे ही यह संक्रामक बीमारी है। इस बीमारी से बड़ी संख्या में लोग ठीक हो रहे हैं। इससे डरने की कतई जरूरत नहीं है। यदि कोरोना का संक्रमण हो भी जाए तो कुछ साधारण गाइडलाइंस का पालन करने और चिकित्सा सेवा का लाभ लेने से आसानी से ठीक हुआ जा सकता है। इसके अलावा संघ द्वारा पंचगव्य से बनी औषधि, काढ़ा, ओर्सेनिक आल्बम, गोमूत्र अर्क, आदि इम्युनिटी बढ़ाने वाले दवाओं का वितरित किया गया। इन आयुर्वेदिक दवाओं का भी लोगों के स्वास्थ्य पर सकारात्मक परिणाम हुआ। कुल मिलकर देखा जाए तो प्रशासन के साथ बेहतर तालमेल, जनजागरूकता, दिनचर्या में बदलाव व सुधार, जरूरी एहतियात बरतने और लोगों के आत्मविश्वास के साथ इम्युनिटी बढ़ने से धारावी में कोरोना संक्रमण पर काबू पाया गया है। हालांकि इन राहत कार्यों के दौरान संघ के भी 4 स्वयंसेवक हुतात्मा हुए हैं।

संक्रमण से ठीक होकर फिर कोरोना योद्धा बने
धारावी के अंतर्गत 2 पुलिस थाने आते हैं- एक धारावी पुलिस थाना और दूसरा साहू नगर पुलिस थाना। धारावी की लगभग आधी आबादी कुल 6 लाख से अधिक साहू नगर पुलिस थाना क्षेत्र में आती है। सबसे पहला कोरोना का केस हमारे ही क्षेत्र में मिला था और यही से संक्रमण फैलने की शुरुआत हुई। कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए हमने एड़ी चोटी का जोर लगा दी। 2 से 3 महीने पुलिस अधिकारी व कर्मचारी अपने घर नहीं गए। उनमें से मैं भी एक था। बीएमसी, डॉक्टर, सामाजिक संस्थाओं व संगठनों के स्वयंसेवकों के साथ मिलकर हमने रात-दिन काम किया। इस दौरान मुझे और मेरे साथी 18 पुलिसकर्मियों को कोरोना संक्रमण का शिकार होना पड़ा। हम सब ठीक होकर फिर से अपनी ड्यूटी करने लगे लेकिन उनमें से एक पुलिस अधिकारी एपीआई अमोल कुलकर्णी हमारा साथ छोड़कर दुनिया से चल बसे। वे दुबारा हमारे साथ ड्यूटी पर हाजिर न हो सके। हमें उसका बहुत दुःख और शोक है। कोरोना के संक्रमण की चेन तोड़ने में सभी धारावीकरों का महत्वपूर्ण योगदान है इसलिए पुलिस का साथ देने वाले उन सभी लोगों के प्रति आभार प्रकट करता हूं और हुतात्मा हुए कोरोना योद्धाओं को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। इसके साथ ही ‘हिंदी विवेक’ के माध्यम से मैं सभी से आवाहन करता हूं कि शासन – प्रशासन द्वारा सूचित किए जा रहे दिशानिर्देशों व सुरक्षा एहतियात का पालन करें और सुरक्षित रहें। सर्वप्रथम अपनी सुरक्षा करें, अपने परिवार की सुरक्षा करें और फिर समाज की रक्षा में अपना योगदान दें।
– विलास गगावने, वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक – साहू नगर पुलिस थाना
———–

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल, निरामय फाउंडेशन, हिन्दू युवा वाहिनी, संघ प्रेरित संगठन एवं स्थानीय सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक आदि संगठनों सहित जनप्रतिनिधियों का राहत कार्यों में विशेष सहभाग रहा। इसके साथ ही मनपा, डॉक्टर, पुलिस, सफाई कर्मचारी, दमकल विभाग, मीडिया, सभी राजनैतिक पार्टियों सहित सभी धारावीकरों के त्याग, संयम, हिम्मत से कोरोना के फैलते संक्रमण को नियंत्रित करने में सहायता मिली है।

कोरोना के बीच काम करने वाले सरकारी कर्मचारियों को यदि कुछ हो जाता है तो उनके परिवार के भरण पोषण के लिए सरकार द्वारा प्रबंध किए गए हैं और कुछ सुविधाएं दी गई हैं लेकिन जो निःस्वार्थ भाव से अपने प्राणों को खतरे में डाल कर समाज की रक्षा में कोरोना योद्धा हुतात्मा हुए हैं उनके लिए भी मानवता की दृष्टि से विचार करना चाहिए। जो आम लोग कोरोना से जंग लड़ते हुए शहीद हुए हैं उनके परिवार की आर्थिक स्थिति सरकारी कर्मचारियों की अपेक्षा अच्छी नहीं है। जिनके घर का दीपक बुझ गया है अब उस घर को रोशन करने वाला कोई नहीं है। वे परिवार बेसहारा हो गए हैं। कोरोना से लड़ने वालों को कोरोना योद्धा कहा जाता है, उन्हें सैनिकों जैसा सम्मान भी दिया जाता है। लेकिन सैनिकों या सरकारी कर्मचारियों की तरह मिलने वाली कुछ सुविधाएं नहीं दी जातीं। जब आम आदमी बिना वेतन के राष्ट्र – समाज की रक्षा में सैनिकों की भांति अपने आप को कुर्बान कर देता है तो क्या उसके परिवार के भरण पोषण का दायित्व सरकार का नहीं है? अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले राष्ट्र व समाज के अनमोल रत्न हुतात्मा कोरोना योद्धाओं के परिवार जनों को भी कुछ न कुछ राहत जरूर प्रदान की जानी चाहिए। जनप्रतिनिधियों को इस संदर्भ में अपनी आवाज बुलंद करनी चाहिए।

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