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जलवायु परिवर्तन और हम

जलवायु परिवर्तन और हम

by लक्ष्मीकांत देशपांडे
in पर्यावरण, फरवरी २०१३
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‘जलवायु परिवर्तन’ आज पृथ्वी पर मंडराता हुआ सबसे गहरा संकट है; जिसके प्रति अधिकांश लोगों में पर्याप्त जागरूकता नहीं है। आइये जानते है जलवायु परिवर्तन को।

‘जलवायु परिवर्तन’ को समझने का आसान तरीका है इस शब्द को जानना। परिवर्तन मतलब बदलाव! बारिश, समुद्री लहरें, हवाएं, ऋतु में होनेवाले बदलाव जलवायु परिवर्तन के प्रमुख अंग हैं।

चलिए, एक कदम आगे बढ़ते है और जानते है जलवायु में परिवर्तन क्यों हो रहा है? इस का प्रमुख कारण है ‘ग्लोबल वार्मिंग’ (वैश्विक उष्मीकरण) हर साल पृथ्वी अधिकाधिक गरम हो रही है। पृथ्वी के वातावरण में मौजूद वायु, पृथ्वी को एक चादर की तरह लपेटकर उसका तापमान बढा रही है। तो क्या यह वायु अचानक से वातावरण में निर्माण हो गयी है?

जी नहीं! पृथ्वी के निर्माणकाल से ही, उसके वातावरण में वायु मौजूद रही है। लेकिन जब कारखानों में और बिजली के निर्माण हेतु कोयले का इस्तेमाल बढ़ने लगा तब इस वायु का प्रमाण भी वातावरण में बढ़ने लगा। आसपास एक नजर डालने पर ध्यान में आता की कैसे हमारा जीवन बिजली पर बहुत ज्यादा निर्भर है। जितनी ज्यादा जनसंख्या और उसकी बढ़ती जरूरतें हैं, उतना ही ज्यादा बिजली के निर्माण हेतु कोयले का इस्तेमाल है। और परिणाम स्वरुप है ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन।

लेकिन, सिर्फ बिजली का उत्पादन ही इस समस्या का एकमात्र कारण नहीं है। कई अन्य मानव क्रियाएं इन तत्वों की मात्रा बढ़ा रही है। जैसे गाड़ियों से और विमानों से निकलनेवाला धुंआ,कचरे के सड़ने से उत्सर्जित वायु,गाय-बैलों के गोबर से निकलनेवाला मीथेन,लकडियों के जलने पर निकलनेवाला धुँआ इत्यादि।

आज यह जरुरी है की हम सब खुद से एक सवाल करें कि ‘जलवायु परिवर्तन की शुरुआत किसने की और इसे कौन बढ़ा रहा है?’ जवाब स्पष्ट और हमारे सामने है। हम सब जलवायु परिवर्तन के लिये जिम्मेदार हैं। कोयले को जलाकर निर्माण होनेवाली बिजली का उपयोग क्या हम हमारे घर में और कार्यालय में नही करते? क्या ये उपयोग हम बंद कर सकते है? जी नहीं लेकिन हम सौर ऊर्जा, पवनचक्की, जल-ऊर्जा ऐसे बिजली के साफ स्त्रोतों का इस्तेमाल तो बढ़ा सकते है। इन स्रोतों को ‘नवीकरणीय स्रोत’ कहा जाता है क्योंकि इस्तेमाल के बाद ये स्रोत नैसर्गिक रूप से तुरंत उपलब्ध होते हैं। इन से वातावरण में प्रदूषणकारी तत्वों का उत्सर्जन नहीं होता है। इस के अलावा कई अन्य उपाय है जो हम सामान्य जीवन में अपना सकते हैं-

1. जलवायु परिवर्तन के बारे में पढ़िए और अपनी जानकारी बढ़ाइए.

2. घर में बिजली का उपयोग कम कीजिये, ‘ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफिशिंसी’ द्वारा प्रमाणित बिजली बचाने वाले इलेक्ट्रोनिक उपकरण खरीदें।

3. स्थानिक प्रजातियों के पेड़ बढ़ाइये। पेड़ कार्बन डायऑक्साइड ग्रहण करते है और उसे जकड़कर रखते है।

4. घरेलू पानी के पम्पिंग के दौरान बिजली का बड़ा इस्तेमाल होता है। पानी बचाइये। पानी की बरबादी मतलब बिजली की बरबादी।

5. अपनी खरीदारी पर नियंत्रण रखे। पैक की गयी चीजें कम खरीदें। पैकिंग का अधिक कचरा मतलब हरित वायु का अधिक उत्सर्जन।

6. नजदीकी खेतों में उगा हुआ अनाज और सब्जीयाँ खरीदे। दूर से लायी हुई सब्जीयों के और अनाज के परिवहन समय, हरित वायुओं का उत्सर्जन होता है।

7. शाकाहारी खाना पर्यावरण को लाभदायक है। मांसाहारी भोजन के निर्माण समय ज्यादा पौधे कटते है और ज्यादा पानी इस्तेमाल होता है क्योंकि मुर्गी, बकरी, सूअर जैसे जानवर शाकाहरी है; उन्हें पालते समय पौधे और पानी आवश्यक है।

8. अपना ‘सूखा’ (पेपर, प्लास्टिक, धातु ई.) और ‘गीला’ (सब्जीयो के जड़, फलों के छिलके ई.) कचरा अलग-अलग रखे। कचरे के पुनरुपयोग और पुनर्प्रक्रिया में उसका अलग-अलग रखना आवश्यक है। सूखा कचरा रद्दीवाले और कबाड़ीवाले को बेचे। गीले कचरे का आप कम्पोस्ट खाद बना सकते है।

9. रेल या बस जैसे सार्वजनिक वाहनों से सफर करे। चलना और सायकलिंग पर्यावरण और सेहत दोनों के लिए लाभदायक है।

10. अन्य लोगों को इन उपायों की जानकारी दे।

कौन लेगा पृथ्वी की जिम्मेदारी?

इस मुश्कील वक्त में जब वसुंधरा मानवजाती पर ‘जलवायु परिवर्तन’ से अपना प्रकोप प्रकट कर रही है, बहुत कम लोग इसके बारे में सोच रहे है। हम मानवों ने पृथ्वी पर जो अत्याचार किये है, उसका बदला शायद वो ले रही है। हम अपनी जरुरतें पूरी करने हेतु पृथ्वी को बिना कुछ वापस दिए नोंच रहे है।

क्या हमने कभी ये सोचा भी है कि ये पृथ्वी हमारे अस्तित्व और विकास का प्रमुख आधार है। फिर भी, हम क्यों इतने बेपरवाह है? क्या हम यह सोचते है की पृथ्वी की चिंता करना सिर्फ हमारी सरकारों की जिम्मेदारी है? जी नहीं, हर व्यक्ति और संस्था पृथ्वी के प्रति जिम्मेदार है।
कारण कुछ भी हो, पृथ्वी का भविष्य अनिश्चित है। क्या हमें ये एहसास है की सिर्फ अकेली मानवजाती ही नहीं बल्कि कई अन्य सजीव पृथ्वी की हकदार है?

हम पृथ्वी की मिट्टी को, हवा को और समुन्दरों को लगातार प्रदूषित और जहरीला कर रहे है। लोहा और अल्युमिनियम जैसे खनिज जमीन के अन्दर जंगलों के नीचे दबे हुए है और उनकी प्राप्ति हेतु हम जंगल काट रहे है। पानी की जरूरत के करण हम नदियों पर बांध बना रहे है और खेती के लिए जंगल काट रहे है। हमसे पृथ्वी को जो नुकसान हो रहा है उसका शायद कोई अंत ही नहीं है।

फिर भी हम एक मायावी दुनिया में जीते है और विश्वास रखते है कि इस विनाश में हमारा कोई हिस्सा या जिम्मेदारी नहीं हैं। हम हमेशा दुसरों पर उंगलीयाँ उठाते है। हमेशा सोचते है ये ‘अन्य’ लोग है जो इस प्रदूषण और विनाश का कारण है। भाई हम कैसे गुनाहगार है? हमें खुदसे ये पूछना चाहिए क्या हम घरों में नहीं बसते? वो कैसे बनते है? ये लकड़ी, स्टील और सीमेंट कहां से आयें? हमारा खाना कहां से आया- ऐसी जमीन से जो पहले जंगल नहीं था क्यां हम गाड़ियां और बस इस्तेमाल नहीं करते? और हमारे नालों में आनेवाले पानी का और उपकारों में आवश्यक बिजली का क्या? ये सब कहांसे आया? जी हाँ, हम सारे दोषी है। हम सारे पृथ्वी के गुनाहगार है- हमने इस पृथ्वी से अनगिनत संसाधन उसे वापस दिए बिना खींच निकाले है। जो पृथ्वी हमें संभालती है उस का हमने अनादर किया है। ना ही हमने उसे समझा है ना ही हमने शान्ति बनायी रखी है। हम पृथ्वी पर कैसे जी रहे है ये सोचने का यही वक्त है। हमें संसाधानों को जानना होगा, ये कहां से आते है समझना होगा और हमें सिर्फ नवीकरणीय संसाधन इस्तेमाल करने होंगे। हमें अपनी जरूरतें कम करनी होंगी, कचरा कम करना होंगा और प्रदूषण को रोकना होंगा। हमें चर्चा बंद कर कृती करनी होंगी। क्योंकि वक्त खत्म हो रहा है और पृथ्वी से ज्यादा अहम कुछ भी नहीं है।

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