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भारत को प्रतिष्ठा दिलाने वालासमर्पित समाज

भारत को प्रतिष्ठा दिलाने वालासमर्पित समाज

by आचार्य किशोरीजी व्यास
in सामाजिक, सितंबर- २०१५
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काहा जाता है कि माहेश्वरी समाज भगवान शिव से उत्पन्न हुआ, यह समाज मूलत: क्षत्रिय है, पर महेश ने उन्हें वैश्य बनाया। राजस्थान का यह समाज केवल भारत में ही नहीं; बल्कि सारी दुनिया में बसा है। यह समाज पूर्ण रूप से हिंदू है। माहेश्वरी समाज के बारे में आचार्य किशोरजी व्यास ने बड़े अपनत्व और तन्मयता से कई बातें बताईं, जिन्हें यहां शब्दबद्ध किया गया है।

देशसेवा करने के प्रकार अनेक हैं; देश की समस्याएं भी अनेक हैं। केवल माहेश्वरी ही नहीं, पूरे भारतीय समाज में बड़ी संख्या में लोग अनपढ़ हैं। देश की समस्याएं सुलझाने हेतु राजनीतिज्ञ और समाज के मुखिया प्रयत्नशील होते हैं। उसमें रुकावटें बहुत आती हैं; क्योंकि सामाजिक जिम्मेदारी समझ कर काम करने वाला कार्यकर्ता दुर्लभ होता है।

जिम्मेदारी लेने की क्षमता रखने वाला कार्यकर्ता बनाना समाज की प्राथमिक जरूरत है। अभिभावक और नेता यह उम्मीद करते हैं कि यह शुरुआत पाठशाला से हो; पर आजकल शिक्षा ‘कमाने का साधन’ बन गया है। यह बात दुर्भाग्यपूर्ण है। जीने के लिए धनप्राप्ति की आवश्यकता है, पर उसे पाने का तरीका योग्य हों। आज के युग में शिक्षा क्षेत्र के विषय सिर्फ चरितार्थ के साधन हैं, जीवन बनाने के नहीं। केवल माहेश्वरी समाज के ही नहीं, अपितु सारे समाज के युवक ‘योग’ में रूचि रखने वाले न बन कर ‘भोग’ में रूचि रखने वाले बन रहे हैं। इसलिए हमने भगवद्गीता के विचारों पर आधारित जीवन मूल्य सहेजने वाला समाज निर्माण करने की बात सोची है। ऐसे प्रयत्न कुछ संस्थाओं द्वारा किए जाते हैं। इस दिशा में संगमनेर के माहेश्वरी समाज के युवा कार्यकर्ता संजय मालपानी यह कार्य सुचारू रूप से करते हैं। इस प्रकार सुसंस्कारित, सक्षम युवा बनाने का काम देश के विविध (सोलह) प्रांतों में चल रहा है।

हम सब आस्तिक हैं, भगवद्गीता हमें प्रिय है, स्वामी विवेकानंद हमारे आदर्श हैं। इन विचारों को केन्द्र में रखकर कार्य चल रहा है। केवल धार्मिक आधार पर निर्भर न रहकर हमने वैज्ञानिकता का भी स्वीकार किया है।

गीता पढ़ें, पढाएं… जीवन में उतारें

भगवद्गीता स्वयं सीखें, दूसरों को भी सिखायें, अपने जीवन में उसका आचरण करें। यह हमारा व्रत है।
इससे सम्बंधित व्याख्यान महाराष्ट विधान सभा के विधायकों को देने का सम्मान संजम मालपाणी को मिला है। ‘बाल संस्कार’ उपक्रम का सर्वोत्तम साहित्य गीता परिवार का है। गीता परिवार ने ‘सत् – चरित्र व्यक्ति’ बनाने की मूलभूत संकल्पना को प्रगति की दिशा दी है। हमें संतोष है कि यह जिम्मेदारी सही तरीके से निभाई जा रही है, देशभर में माहेश्वरी समाज का योगदान मिल रहा है।

माहेश्वरी समाज के पूर्वज सीदे-सादे पर ढंग से रहने वाले थे। व्यापार उनकी आय का स्रोत था। व्यापार और लेनदेन में अत्यंत कुशल पर सावधानी बरतने वाला यह समाज है। हर माहेश्वरी परिवार धार्मिकता निभाता है। स्वयं सीदेसादे रह कर अपनी आय का कुछ हिस्सा समाज और धर्म के लिए खर्च करने की उनकी मानसिकता है। आज भी यह दानपुण्य करने की प्रवृत्ति कायम है।

तत्कालीन राजस्थान की सामजिक, भौगोलिक स्थिति की ओर ध्यान देने पर एक बात ध्यान में आती है कि इस समाज के लोग बड़ी संख्या में इधर-उधर बिखर गए। वे जिस प्रदेश में गए, वहां के समाज से एकरूप हुए। स्वयं मिलजुल कर रहना और दूसरों को अपने में समा लेना, यह इन लोगों का सहज स्वभाव है। सामाजिक ऋण चुकाने हेतु ये स्थानीय सामाजिक संस्थाओं को चंदा देते हैं। चंदा देकर संस्था बनाना उनकी जीवनशैली में शामिल है।

पहले इस समाज का मुख्य काम व्यापार ही था। अब उन्होंने कारखानों की ओर रुख किया है। इससे रोजगार निर्मिति के क्षेत्र में इस समाज का बहुत बड़ा हिस्सा है। स्थानीय भाषा बोलने में वे इतने सिद्धहस्त हैं कि वह कभी कभी मातृभाषा को भी पीछे छोड़ देता है। उदा. मशहूर लेखक शंकर सारडा का मराठी पर अधिकार है, पर उन्हें मारवाड़ी भाषा नहीं आती।

रोजगार निर्मिति के क्षेत्र में अग्रसर औद्योगिक परिवारों में बिड़ला परिवार, ब्रिजलाल बियाणी (विदर्भ केसरी) वारकरी संप्रदाय में श्रीकृष्णदास लोहिया महाराज (पंढरपुर), मदन महाराज बियाणी, मुरलीधर धूत, ब्रिजलाल भुतडा, भक्तराज सारडा, माधवदास राठी जैसे प्रमुख हैं। नन्दलाल, वेणुगोपाल,राजकुमार व प्रदीप धूत इस समाज की जानी-मानी हस्तियां हैं।

इस समाज में सुसंस्कारिता है। भारत के सर्वोच्च न्यायलय के न्यायमूर्ति आर. सी. लाहोटी ने शपथ विधि के बाद दर्शकों में बैठी अपनी मां के चरण छुए तथा विनम्रता का आदर्श निर्माण किया। यह समाज शाकाहारी है।

भारत वर्ष के सारे घटक अपनी भव्य दिव्य परंपरा का स्वाभिमान रखें, मानवी जीवन के हर क्षेत्र में प्राचीन काल से हमने कुछ ठोस योगदान दिया है, इसका जतन करें। समाज का कोई भी हिस्सा एकसंध भारत में बाधा न बनें। सारे व्यवहार प्रेम और भाईचारे से हों।
विभिन्न प्रदेश, जाति, संप्रदाय, भाषा, रीति-रिवाज से युक्त यह समाज रंगबिरंगी फूलों से बने गुलदस्ते जैसा है। यह भारत माता के चरणों में उसका गौरव बढ़ाने हेतु समर्पित हों।

आचार्य किशोरीजी व्यास

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