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अल्पसंख्यक तुष्टिकरण और वोट बैंक

अल्पसंख्यक तुष्टिकरण और वोट बैंक

by दिलीप धारुलकर
in अप्रैल -२०१४, सामाजिक
2

इतने सालों की अल्पसंख्यक वर्ग के तुष्टिकरण की राजनीति के बावजूद अब भी अल्पसंख्यक वर्ग की हालत बिगड़ती ही जा रही है। इसके पीछे छिपे तथ्य एवं कारण क्या हैं यह देखना चाहिए। राजनीतिक दलों से ज्यादा अल्पसंख्यक वर्ग को इस बारे में चिंतन करना चाहिए। यह चिंतन वोटों के रूप में भी बदलना चाहिए तभी योग्य व्यक्ति व उचित दल सत्ता में आएगा और अल्पसंख्यकों का सही विकास होगा।

हमारे देश में आजादी की जंग से लेकर आज तक अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण ने न तो देश का फायदा हुआ है और न ही अल्पसंख्यक वर्ग की स्थिति में कुछ सुधार आया है। इस नीति के बारेे में राजनीतिक दल, समाजशास्त्री एवं अल्पसंख्यक वर्ग के सोचने का समय आ गया है। जब चुनाव आते हैं तो हर बार वोट बैंक की राजनीति देश को अल्पसंख्यक वर्ग के तुष्टिकरण के दिखावे पर ले जाती है।

आजादी के बाद आज तक इस देश में ज्यादातर सरकारें कांग्रेस की रही हैं। वोट बैंक की राजनीति में और तुष्टिकरण में कांग्रेस सब से आगे रही है। इतने साल की तुष्टिकरण की राजनीति और सरकार की नीति के बावजूद मुसलमानों की स्थिति कैसी है? सच्चर कमेटी ने जो तथ्य सामने रखे हैं वे चौंकाने वाले हैं। इन तथ्यों पर राजनीतिज्ञों से ज्यादा अल्पसंख्यक वर्ग के विचार करने की आवश्यकता है।

वोट बैंक की राजनीति करनेवाले लोग सियासी खेल खूब खेलते हैं। चुनाव के चलते आचार संहिता की परवाह किए बिना बेनीप्रसाद वर्मा हो या सलमान खुर्शीद हो मुसलमानों को आरक्षण देने की बात कहने के लिए हिचकिचाते नहीं। आंध्र प्रदेश में तो सरकार ने आरक्षण देने की घोषणा तक कर डाली,जबकि उन्हें पता था कि न्यायालय में संविधान के विपरीत इस निर्णय की धज्जियां उड़ने वाली है। दिखावा खड़ा करना और मुसलमान या अन्य अल्पसंख्यकों के हाथ कुछ न लगने देना यही भारतीय तुष्टिकरण की राजनीति की विशेषता रही है।

प्रधान मंत्री ने संसद में यह बयान दिया था कि भारतीय लोकतंत्र के ढांचे के भीतर सरकारी संसाधनों पर पहला अधिकार अल्पसंख्यकों का है। परंतु उनके इस बयान से अल्पसंख्यकों को फायदा होने के लिए एक इंच भी नीतिगत कदम नहीं उठाए गए। प्रधानमंत्री का यह बयान महज आलोचना का एक मुद्दा बन कर रह गया।

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (एन एस एस ओ) के अनुसार भारत के मुसलमान औसतन बत्तीस रुपये छियासठ पैसे प्रति दिन पर गुज़ारा करते हैं। जबकि सिख समुदाय पचपन रुपये तीस पैसे और ईसाई इक्यावन रुपये तैंतालीस पैसे प्रतिदिन खर्च करता है। इसके अतिरिक्त सरकारी योजनाओं का लाभ भी मुस्लिम समुदाय को मुकम्मिल तौर पर नहीं मिल पा रहा है। राहुल गांधी हो या कांग्रेस के विज्ञापन हो उसमें मनरेगा का जिक्र तो प्रमुखता से किया जाता है लेकिन वास्तविकता यह है कि अल्पसंख्यकों की मनरेगा में भागीदारी लगभग नगण्य है। उन्हें जॉब कार्ड जारी करने में नज़रंदाज़ किया जाता है। यही नहीं उनको मास आंगनवाड़ी प्रोग्राम, प्राइमरी और एलिमेंटरी शिक्षा कार्यक्रम और मास माइक्रो क्रेडिट प्रोग्राम में शामिल नहीं किया गया है।

प्रमुख बैंकरों की कमेटी की हाल ही में आयी एक रिपोर्ट के अनुसार सरकार की उदासीनता के कारण आजकल बैंक भी अल्पसंख्यकों को आसानी से क़र्ज़ नहीं देते हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार देश के 121 अल्पसंख्यक बहुल जिलों में सिर्फ 26 प्रतिशत खाते अल्पसंख्यकों के हैं, जबकि क़र्ज़ का आंकड़ा सिर्फ 12 फीसदी है।

तुष्टिकरण का चित्र

जो चित्र आज अल्पसंख्यक तुष्टिकरण से उभर कर सामने आया है वह कुछ ऐसा है। हिन्दुओं की जनसंख्या का प्रतिशत कम करने के लिए मुसलमानों को चार-चार शादियां करने का अधिकार, जबकि उच्चतम न्यायालय कई बार देश के सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता बनाने का आदेश दे चुका है। समान नागरिक संहिता न बनने से अल्पसंख्यकों के प्रति बहुसंख्यक समाज के मन में असंतोष, नाराजगी कायम रहने की स्थिति दिखती है। लेकिन उससे ज्यादा अल्पसंख्यक वर्ग राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में अलग पड़ता दिखाई देता है। समाज, घर, कुटुम्ब, व्यक्ति के जीवन को सुचारू रूप से चलने के लिए जो कानून बनाए गए हैं उनके अलावा कालचक्र के विपरीत पंथीय कल्पनाओं को गले लगाने से अल्पसंख्यक वर्ग का नुकसान ही हो रहा है। कानून अगर एक सामाजिक करार है तो समय जैसा बीतता है तब नयी कल्पना को स्वीकारना हितकारी होता है। अगर हम इस तथ्य को नकारते हैं तो समाज से अलग पड़ जाते हैं। नई परिस्थिति में जीवन को सुखदायी बनाने के मार्ग को हमारे लिए बंद कर देतें हैं।

शिक्षा संस्थाओं में हिन्दुओं को धार्मिक शिक्षा देने पर पाबंदी, किन्तु गैर-हिन्दुओं को स्वतंत्रता। इसकी व्यवस्था भारत के संविधान की धारा 20, 29 और 30 में ही कर दी गई। इतना ही नहीं सोनिया गांधी की यूपीए सरकार तो इस्लामी शिक्षा एवं कट्टरवाद को अत्यधिक प्रसारित करने के लिए अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की पांच शाखाएं खोल रही है। इसके अतिरिक्त इस्लामी मदरसों को अत्यधिक धन का आवंटन भारत सरकार द्वारा किया जा रहा है। जहां अलीगढ विश्वविद्यालय की शाखाएं खोलने का प्रयास चल रहा है वहां बड़ी मात्रा में विरोध और गुस्सा झेलना पड़ रहा है। महाराष्ट्र में औरंगाबाद से 11 किलोमीटर दूर शूलीभंजन में अलीगढ विश्वविद्यालय की शाखा खोलने का संकल्प किया गया है। सवाल उठने लगा है कि औरंगाबाद में विश्वविद्यालय शिक्षा की अच्छी व्यवस्था है। सक्षम उर्दू विभाग का निर्माण किया गया है। अभी तक किसी मुस्लिम तबके ने इस विश्वविद्यालय में किसी समय कोई दिक्कत होने की शिकायत नहीं की है। ऐसे में अलीगढ़ विश्वविद्यालय की शाखा डॉ. आंबेडकर मराठवाडा विश्वविद्यालय से महज 11 किलोमीटर पर शुरू करने का क्या मतलब है? सियासी खेल के अलावा कुछ नहीं। तुष्टिकरण की इस राजनीति ने औरंगाबाद का सामाजिक स्वास्थ्य खतरे में डाल दिया है।

अल्पसंख्यक आयोग अनेक संवेदनशील मामलों में हिन्दू विरोध और अल्पसंख्यकों के प्रति पक्षपाती तरीके से काम करता है। भारत में हिन्दुओं को नकारते हुए गैर-हिन्दुओं (मुसलमान, ईसाई आदि) की आर्थिक शक्ति को अधिक बढ़ाने के लिए सरकारी खजाना लुटाया जा रहा है। हर चीज में छूट दी जा रही है। 3 प्रतिशत ब्याज दर पर ऋण दिया जाता है। इस प्रकार गैर-हिन्दुओं के मुकाबले में हिन्दू उद्योग और व्यवसाय में पिछड़ रहे हैं। गैर-हिन्दुओं की आर्थिक सहायता और उन्नति के लिए राष्ट्रीय अल्पसंख्यक विकास एवं वित्त निगम का निर्माण किया गया है।

संप्रग सरकार द्वारा केवल गैर-हिन्दुओं के हित साधने के लिए एक अलग अल्पसंख्यक मंत्रालय भी बना दिया गया है, जिसने मुख्य रूप से मुसलमानों को आर्थिक सहायता देने की योजनाएं बनाई हैं। दक्षिण भारत के सभी विशाल हिन्दू मंदिरों का प्रबंधन सरकार द्वारा अपने हाथों में लिया जा चुका है और इन मंदिरों की आय का आधे से अधिक धन ईसाई और मुस्लिम संस्थाओं में बांटा जा रहा है। भारत सरकार द्वारा मुसलमानों को हज यात्रा के लिए करोड़ों रुपए सरकारी कोष से दिये जाते हैं, जबकि संसार का अन्य कोई भी देश यहां तक कि सऊदी अरब या पाकिस्तान भी हज यात्रा के लिए धन नहीं देता। भारत में हिन्दू करदाता पर यह एक तरह से जुर्माना ही है।

अब इस प्रकार के प्रावधान का कितना फायदा अल्पसंख्यक समाज को हो रहा है? अल्पसंख्यक समाज में शिक्षा की कमी के कारण इन सभी योजनाओं का लाभ चंद शिक्षित लोगों को मिलता है। इन सभी योजनाओं मे बड़ी मात्रा में भ्रष्टाचार होता है।
अल्पसंख्यक मंत्रालय एवं प्रधानमंत्री की 15 सूत्री योजनाओं द्वारा ईसाई, मुसलमान आदि के बच्चों को लाखों रु. छात्रवृत्तियां दी जाती हैं, किन्तु हिन्दू बच्चों को अधिक अंक लाने पर भी इन छात्रवृत्तियों से वंचित रखा जाता है। यह सब इसीलिए हो रहा है कि हिन्दू अपने ऊपर हो रहे अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध आवाज नहीं उठाते, जबकि भारत सरकार को जो कर प्राप्त होता है उसमें से 95 प्रतिशत कर तो हिन्दुओं द्वारा ही दिया जाता है।

अल्पसंख्यक वर्ग के लिए ये सारी योजनाएं केवल वोट बैंक की राजनीति करने के लिए बनायी गयी है। वास्तव में अल्पसंख्यक वर्ग का भला होने की चिंता इसमें कहीं दिखाई नहीं पडती। अल्पसंख्यक वर्ग के पिछडे वर्ग को शिक्षित, प्रशिक्षित कर उनके स्वभाव, कला, कौशल्य के अनुसार उन्हें अच्छी शिक्षा दे कर समाज में प्रतिष्ठित करने के बजाए उनके लिए केवल आकर्षित करनेवाली खोखली योजनाओं को घोषित किया जाता है। विश्व में आधुनिक शिक्षा उन्हें मुहैया कराने के बजाए अगर उन्हें धार्मिक शिक्षा (जो व्यावसायिक, आर्थिक आय के लिए उतनी उपयुक्त नहीं) देकर बेहतर जिंदगी के सपने कैसे साकार किये जा सकते हैं?

कुछ इसी तरह की नीति कांग्रेस समेत सभी छद्म-धर्मनिरपेक्षवादी दलों की भारत में रही है। आजादी के पहले इसी नीति के कारण हिंदुस्थान का बंटवारा हुआ। लेकिन कांग्रेस आजादी के बाद से ही मुस्लिम वोट बैंक को खुश रखने के लिए तुष्टिकरण की नीति की पोषक रही है। इसी नीति के तहत अतीत में कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया, आज तक समान सिविल संहिता लागू नहीं होने दी गई। जब भी किसी आतंकी घटना में किसी भारतीय मुस्लिम का नाम आता है तो कांग्रेस पार्टी की वर्तमान केंद्र सरकार तटस्थ होकर उनके खिलाफ कदम नहीं उठा पाती। उसे डर लगता है कि कहीं कार्रवाई करने से मुसलमान नाराज न हो जाए। बटाला हाउस मुठभेड़ के बाद कांग्रेसी सरकार और पार्टी नेताओं के आचरण पर तो सिर्फ शर्मिंदा हुआ जा सकता है। अब तो यह राजनीति बहुसंख्यक समाज को उग्रवादी करार देने के चक्कर में लगी है।

अब कांग्रेस समेत सभी कथित धर्मनिरपेक्षतावादी मुसलमानों को आरक्षण देने को व्याकुल हुए जा रहे हैं जबकि हमारा संविधान धर्म-संप्रदाय के आधार पर किसी भी तरह के आरक्षण का निषेध करता है। इन राजनीतिक नेताओं को अल्पसंख्यक वर्ग का भला करने का दिखावा करने में ज्यादा रूचि है। मुसलमानों को आरक्षण किस आधार पर दिया जाए? क्या बहुसंख्यक हिन्दू उनके पिछड़ेपन के लिए जिम्मेदार है? जितनी नौकरियां, शिक्षा के प्रावधान अल्पसंख्यकों को मुहैया किए जातेे हैं उसका कितनी हद तक वे लाभ उठाते हैं? सरकारी नौकरियों में मुस्लिमों का प्रतिशत बढने के बजाए कम होता गया है क्योंकि इन नौकरियों में जाने की क्षमता मुस्लिम समाज में निर्माण करने के कुछ भी प्रयास नहीं किए गए हैं। केवल घोषणा करने के अलावा कुछ नहीं हुआ है। यह संप्रदाय अति रूढ़िवादी है और यही इसके पिछड़ेपन का कारण भी है।

सोच बदलना आवश्यक

इतने सालों के अल्पसंख्यक वर्ग के तिुष्टकरण की राजनीति के बावजूद अब भी अल्पसंख्यक वर्ग की हालात बिगड़ती ही जा रही है। इसके पीछे छिपे तथ्य एवं कारण क्या है यह देखना चाहिए। राजनीतिक दलों से ज्यादा अल्पसंख्यक वर्ग को इस बारे में चिंतन करना चाहिए। संप्रदायनिरपेक्ष होकर आतंकवाद पर मरणान्तक प्रहार किया जाए। मदरसों का आधुनिकीकरण किया जाए, मुस्लिमों की सोच को आधुनिक बनाया जाए, समान सिविल संहिता को कश्मीर समेत पूरे देश में लागू किया जाए क्योंकि इससे देश मजबूत होगा। तुर्की में तुर्क मुस्तफा कमाल पाशा का भी विरोध हुआ था। अगर पाशा विरोध से घबरा जाता तो तुर्की का आधुनिकीकरण संभव नहीं हो पाता और वह विकसित देशों की जमात में शामिल नहीं हो पाता। भारत को भी तो विकसित देशों के क्लब में शामिल होना है।

सभी धर्मनिरपेक्षतावादी दल जितनी जल्दी हो सके अपनी नीतियां बदल लें अन्यथा देश फ़िर से बंटवारे की तरह अग्रसर हो जायेगा। देशहित सबसे ऊपर है और अल्पसंख्यक तुष्टिकरण कभी देशहित में नहीं रहा है यह हमारे देश के इतिहास से भी स्पष्ट है। तुष्टिकरण की नीति से न तो देश का भला हुआ है न अल्पसंख्यक वर्ग का। तुष्टिकरण की नीति ने देश को बंटवारे की ओर ही ले जाने का काम किया है यह देश के इतिहास में अंकित हो चुका है। उससे सीख लेकर हमें अपनी नीति का निर्धारण करना होगा।

अल्पसंख्यकों को इस बात पर गंभीरता से सोचना होगा कि उनका महज वोट बैंक की तरह इस्तेमाल न हो। मुस्लिम समाज के युवा व्यक्तियों पर यह जिम्मेदारी है। यह सोच आगामी चुनावों में भी मायने रखती है। उन्हें उचित व्यक्ति व उचित दल को ही चुनना चाहिए ताकि देश का विकास हो और साथ में उनका भी विकास हो। आरक्षण अथवा सुविधाओं की बैसाखी पर चलने वाले किसी भी समुदाय की प्रगति नहीं होती। उन्हें स्वबल पर उठ खड़ा होना चाहिए कट्टरता की अपेक्षा देश की मुख्य धारा में समाहित होने पर सोचना चाहिए।

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Comments 2

  1. Sandeep Kumar says:
    2 years ago

    तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले राजनीतिक दलों का बहिष्कार होना चाहिए। तुष्टिकरण की राजनीति समाज को आगे बढ़ाने में अड़ंगा पैदा करता है। तुष्टिकरण को खत्म करने के लिए मीडिया ओर लोगों को आगे आकर विरोध करना चाहिए। इससे देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान होगा। 9812744483

    Reply
    • Sandeep Kumar says:
      2 years ago

      तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले राजनीतिक दलों का बहिष्कार होना चाहिए। तुष्टिकरण की राजनीति समाज को आगे बढ़ाने में अड़ंगा पैदा करता है। तुष्टिकरण को खत्म करने के लिए मीडिया ओर लोगों को आगे आकर विरोध करना चाहिए। इससे देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान होगा। 9812744483.

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