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बहुमुखी प्रतिभा के धनीआलोक जी

बहुमुखी प्रतिभा के धनीआलोक जी

by आबासाहेब पटवारी
in सामाजिक, सितंबर- २०१५
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राष्ट्रीय स्तर के हिंदी कवि आलोक भट्टाचार्य की काव्य सम्पदा विविधताओं से भरी है। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की कविताओं का संपादन साप्ताहिक विवेक ने किया था। उन कविताओं का हिंदी अनुवाद आलोक जी ने किया था। इस पुस्तक के लिए पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का शुभकामना संदेश प्राप्त हुआ था। उसमें अटल बिहारी वाजपेयी ने लिखा था कि आलोक जी द्वारा किया गया अनुवाद इतना उत्तम है कि वह अनुवाद नहीं वरन् स्वतंत्र कविता ही लगती है। डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के साथ राष्ट्रपति भवन में हुई चर्चा के दौरान उन्होंने भी राष्ट्रपति पुरस्कार विजेता आलोक जी की तारीफ की थी।

आलोक जी के परिवार के सभी भाई-बहन अपने-अपने क्षेत्र में निपुण हैं। उनकी बहन कुमकुम योग विशेषज्ञ, काजोल नृत्य में निपुण तथा बुलबुल मानव संसाधन क्षेत्र में विशेषज्ञ हैं। उनके छोटे भाई तुषार नागपुर में फ्रीलांसिंग पत्रकार के रूप में कार्यरत हैं तथा बडे भाई कल्लोल भारतीय मजदूर संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता हैं। आलोक जी मूलत: साम्यवादी विचारधारा के थे; परंतु बाद में उनकी प्रवृत्ति धार्मिक होती गई।
कागजनगर और नागपुर में कई वर्ष रहने के बाद वे अपने भाई के यहां डोंबिवली आए और यहीं रम गए। शुरूआत में डोंबिवली की सामाजिक गतिविधियों से आलोक जी को जोड़ने वालों में प्रमुख हैं गयाचरण त्रिवेदी, सुरेन्द्र वाजपेयी तथा अन्य साहित्यिक कवि। उनकी प्रतिभा सर्वप्रथम डोंबिवली में ही निखरी। देशभर से कविता वाचन के कार्यक्रमों के लिए आलोक जी को आमंत्रण मिलने लगे। उनके पहले काव्य संग्रह ‘भाषा नहीं है बैसाखी शब्दों की’ को महाराष्ट्र हिंदी अकादमी का ‘संत नामदेव’ पुरस्कार मिला। तब अटल बिहारी वाजपेयी के द्वारा आठ-दस हजार लोगों की उपस्थिति में आलोक जी के लिए भव्य सम्मान समारोह आयोजित किया गया था।

लेखक होने के कारण आलोक स्वाभाविक ही साप्ताहिक विवेक से जुड़ गए। वे विवेक के लिए लिखने लगे, अनुवाद करने लगे। उनके लेखन को पूरे महाराष्ट्र में पहचान मिल गई। उनकी एक और किताब ‘अपना ही चेहरा’ को भी राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। अनेक हिंदी मासिक एवं दैनिक पत्र-पत्रिकाओं के संपादक, उपसंपादक, समाचार संपादक आदि पदों पर आलोक जी ने कार्य किया। परंतु वे किसी भी जगह स्थिर नहीं हुए। वे फ्रीलांसर के तौर पर ही अधिक सक्रिय रहे।

डोंबिवली में अनेक क्षेत्रों में कार्य करते-करते उनकी विचारधारा में भी परिवर्तन आने लगा। शिवानंद संगीत प्रतिष्ठान, गणेश मंदिर संस्थान इत्यादि अनेक संस्थाओं के कार्यक्रम उनके सूत्रसंचालन के कारण लोगों को याद रहे। साथ ही हमारे डोंबिवली के मित्र रोशन लाल, रमेश मादरेचा, सोहनलाल सिंघवी, पुखराज राठोड, इत्यादि जैन तेरापंथी कार्यकर्ताओं के माध्यम से आलोक तेरापंथ के कार्यों से जुड़ गए। तेरापंथ के महान आचार्य- आचार्य तुलसी, आचार्य महाप्रज्ञ, युवाचार्य आदि से उनका व्यक्तिगत परिचय हुआ और इन आचार्यों का अनुग्रह उन्हें प्राप्त हुआ।

हाल ही में मराठी के वरिष्ठ गायक अनंतबुवा भोईर का लगातार चार दिन हिंदी में गीत रामायण का भव्य कार्यक्रम हुआ। इस कार्यक्रम का सूत्रसंचालन भी आलोक जी ने ही किया था। दर्शकों -श्रोताओं ने गीत रामायण की तरह ही सूत्रसंचालन को भी बहुत सराहा।
का समय आया ठीक उसी समय वे संसार से विदा हो गए। उनका यूंं चले जाना सभी के लिए अत्यंत क्लेशदायक है। विवेक परिवार की ओर से उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि।

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‘हिंदी विवेक’ और आलोक जी

‘हिंदी विवेक’ से आलोक जी का रिश्ता हिंदी विवेक की शुरुआत से ही जुड़ गया था। जब हिंदी विवेक शुरू करने का निर्णय किया गया तो हिंदी क्षेत्र के साहित्यकारों, पत्रकारों से चर्चा का दौर चलता था। तभी आलोक जी का नाम सामने आया और निर्णय हुआ कि उनसे मिला जाए। ‘हिंदी विवेक’ के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमोल पेडणेकर आलोक जी से मिलने उनके घर पहुंचे तो आलोक जी ने बहुत गर्मजोशी से उनका स्वागत किया तथा आने का प्रयोजन पता चलते ही यह विश्वास दिलाया कि वे हर तरह से ‘हिंदी विवेक’ का सहयोग करेंगे।
आलोक जी की कथनी और करनी में कभी भी अंतर नहीं रहा। उन्होंने अपने वादे के अनुरूप ही ‘हिंदी विवेक’ को भरपूर सहयोग दिया। चाहे वह हिंदी पाठकों की मानसिकता के अनुरूप विषयों का चुनाव करना हो या फिर पत्रिका के लिए कागज का निर्धारण करना हो, आलोक जी ने हर तरह से ‘हिंदी विवेक’ का मार्गदर्शन किया।

‘हिंदी विवेक’ को आर्थिक सहायता की आवश्यकता हमेशा ही रहती है। इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए विशेषांकों के प्रकाशन की नींव भी आलोक जी ने ही रखी। विशेषांकों के प्रकाशन की श्रृंखला की पहली कड़ी ‘जैन तेरापंथ विशेषांक’ का प्रकाशन भी उन्हीं की देखरेख में हुआ। आलोक जी ने इस विशेषांक के लिए सम्पादकीय और आर्थिक दोनों दृष्टिकोण से बहुत सहायता की थी। इस विशेषांक का प्रकाशन कार्यक्रम राजस्थान के मेवाड में लगभग १० हजार जैन तेरापंथी लोगों तथा समाज के गुरुओं के समक्ष सम्पन्न हुआ। सितंबर में प्रकाशित होनेवाले हिंदी दिवस विशेषांक की कल्पना भी उन्हीं की है। आज पांच वर्ष पूर्ण कर हिंदी विवेक जिस पायदान पर खड़ा है, उसे वहां तक पहुंचाने में आलोक जी का बहुत बड़ा योगदान है।

अमूमन यह देखा जाता है कि साहित्यकार गंभीर होते हैं। परंतु आलोक जी के साथ समय व्यतीत करने के दौरान यह ज्ञात हुआ कि वे जितने अच्छे वक्ता, सूत्रसंचालक थे उतने ही खुशमिजाज व्यक्ति भी थे। उनकी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने की क्षमता गजब की थी।
अपने जीवन में सभी को कुछ न कुछ देनेवाले आलोक जी अपने अंतिम समय में समाज को अपना देह दान कर गए। उन्होंने कभी भी इस संबंध में किसी से ज्यादा बात नहीं की और न ही इस संबंध में बड़बोलापन दिखाया।

आलोक जी के परिवार में उनकी ९० वर्षीय मां, पत्नी, बेटा और बहू हैं। आज भी उनकी मां के हाथ में लाठी नहीं वरन् किताब होती है। आलोक जी को पढ़ने की जनम घूंटी अपनी मां से मिली है। आलोक जी भी अपने सारे गुणों का श्रेय अपनी मां को ही देते थे।
आज ‘हिंदी विवेक’ के पंखों में उड़ने का सामर्थ्य आ रहा है। परंतु भविष्य में आलोक जी का स्मरण सदैव पूरे विवेक परिवार को रहेगा। विवेक परिवार की ओर से आलोक जी को भावपूर्ण श्रद्धांजलि।

आबासाहेब पटवारी

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