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आधुनिक ॠषी

आधुनिक ॠषी

by डॉ. प्रसन्न सप्रे
in सामाजिक, सितंबर- २०१५
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इस वर्ष २७ जुलाई को हमारे पूर्व राष्ट्रपति महामहिम डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम के अचानक निधन के समाचार को सुनकर हृदय पीड़ा से भर गया। वे मनुष्य में उत्तमोत्तम गुणों की साकार मूर्ति थे। उनका सम्पूर्ण जीवन गीता में उल्लेखित आदर्श कर्मयोगी का जीवन था। प्रबोधन के अपने कर्म में अति व्यस्त रहा करते थे। उन्हें मंच पर ही दिल का दौरा पड़ा, बेहोश हो कर वहीं गिरे और शिलांग के चिकित्सालय में मृत्यु का वरण किया।

उनका जीवन प्रेरणाप्रद था। पैतृक गांव में, रामेश्वरम में दि. १५-१०-१९३१ को अति सामान्य परिवार में जन्म हुआ। पिता रामेश्वर के सार्वजनिक जीवन में सक्रिय थे, वे इस्लाम के श्रध्दावान और जागृत अनुयायी थे। वे मजहबी जीवन और सार्वजानिक जीवन में शुध्द, आदर्शवादी, समझदार, जागृत और सर्वसमावेशी नेता थे। उनके घर में शाम के फुरसत के समय में रामेश्वरम् मंदिर के उदार हृदयी पुजारी और रामेश्वर में प्रथम चर्च स्थापित करने वाले उदार पादरी आया करते थे। तीनों समाज की समस्याओं और प्रश्नों पर भी चर्चा करते थे। बालक अब्दुल कलाम के ऊपर पिता की सर्वसमावेशी उदार वृत्ति, गांव के पंचायत प्रमुख होने पर भी उनकी उज्ज्वल प्रामाणिकता, गांव की समस्याओं को सुलझाने वाली वृत्ति, अत्यंत सामान्य आर्थिक स्थिति होने पर भी उसी में सानंद जीवन निर्वाह की उनकी वृत्ति आदि का गहरा संस्कार उनके जीवन पर कैसे न होता?

अब्दुल बचपन से ही मेहनती थे। शालेय अध्ययन में रुचि रखते थे। घर की आर्थिक स्थिति तंग रहने के कारण बाल्यावस्था में भी समाचार पत्र घर-घर में बांट कर अपनी पढ़ाई का खर्च निकालते थे। पढ़ाई में अव्वल रहते थे। मित्रों के बीच में भी मैत्रीभाव से रहते थे। अत: वे घर, बाहर, शाला के सभी लोगों में प्रिय थे।

तिरूअनंतपुरम् और चेन्नई में उच्च शिक्षा ग्रहण की और विमानविज्ञान के वैज्ञानिक बनकर जीवन में उतरे। सेना के शोध संस्थान में वैज्ञानिक रहे। अंतरिक्ष संस्थान में भी रहे। कुशाग्र बुध्दि के, मिलनसार, सदैव आनंदी और जागरूक उच्च श्रेणी के वैज्ञानिक तो थे ही, अपने शाला व महाविद्यालयीन शिक्षकों-प्राध्यापकों के गुणों का अनुसरण भी करते रहे। शासकीय सेवा में रहते तत्कालीन प्रसिध्द वैज्ञानिकों के साथ काम किया और उनके उच्च मानवीय गुणों को उतारने का सफलता के साथ प्रयास भी करते रहे। उनकी मेधा और परिश्रम के कारण भारत ने, अपनी देशीय तकनीक के आधार पर बने पहले प्रक्षेपास्त्र का सफल परीक्षण किया जिससे भारत अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में आत्मनिर्भर विश्व का पांचवां राष्ट्र बना।

मा. प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी परमाणु बम का सफल परीक्षण करवा कर विश्व को आश्चर्यचकित कर सके उसके पीछे डॉ. अब्दुल कलाम के कुशल कार्य को विशेष महत्व देना ही होगा। इस प्रकार उन्होंने अपनी बुध्दिमत्ता, टीम-वर्क, नेतृत्व और उत्तम सदगुणों की छाप देश भर में छोड़ी। विश्व ने भी उनका लोहा माना। यह सद्गुण सा सदाचार, जिसे भारत में ‘धर्मयुक्त आचरण’ कहा जाता है, के कारण वे, भारत में सभी का आदर प्राप्त करने में सफल रहे।

वे व्यक्ति के रूप में इन्हीं गुणों में सीमित नहीं रहे। वे प्रखर देशभक्त थे। भारत विश्व में २०२० तक सबसे आगे कैसे आ सकता है इस पर वे सदैव ही सोचा करते थे। इसके लिए भारत की जनता, शासन और नेताओं को क्या करना चाहिए इस पर मार्गदर्शनपरक पुस्तक लिखी। उन्होंने भारतीय युवाओं और नागरिकों ने कैसी सोच रखनी चाहिए आदि के संबंध में भी प्रेरणाप्रद पुस्तकें लिखीं। यह केवल लिखना ही नहीं था, उनका संपूर्ण जीवन भी वैसे ही था। बच्चों से लेकर बूढ़ों तक और भारतीयों से लेकर विश्व समुदाय के लोगों के बीच में भी उनका व्यक्तित्व आकर्षक और लोकप्रिय था इसे भी स्मरण रखना होगा। वे अच्छे कवि भी थे!

उपरोक्त सारे गुणों के साथ एक और ऐसा गुण था उनमें, जो अत्यंत थोड़े लोगों में देखने में आता है जिसके कारण उनका जीवन पवित्र, नम्र, सब का समादर करने वाला आध्यात्मिकता से सराबोर था। देश के बड़े-बड़े संतों को आदर के साथ मिलते थे, विचार-विमर्श करते थे, प्रश्न पूछते थे और सुझाव भी मांगते थे। वे भारत के विभिन्न संप्रदायों के ही नहीं, बाहर निर्मित संप्रदायों के पवित्र लोगों-संतों के साथ भी गहरे संपर्क रखते थे। उनसे आध्यत्मिकता ग्रहण करते थे। ऐसे लोगों के पास वे जाते थे तो राष्ट्रपति पद पर रहतेे हुए भी उनके सामने नम्रता के साथ नीचे दरी पर बैठ जाते थे। सचमुच ऐसी नम्रता, शिष्य के समान वृत्ति दिखना, कितनी दुर्लभ है यह बताने की आवश्यकता नहीं है। भारत के एक बहुत बड़े संत बोचासणवासी स्वामिनारायण संस्था के अध्यक्ष एवं गुरू पूज्य श्री प्रमुख स्वामी का अपनी २०२० वाली पुस्तक पर अभिप्राय मांगा। इस पुस्तक में भारत को पांच विभिन्न क्षेत्र में ऊंचा उठने के लिए क्या करना होगा इसका मार्गदर्शन है – यथा सबको उत्तम शिक्षा, सबको उत्तम स्वास्थ्य, पर्यावरण रक्षा एवं कृषि, उत्तम आत्मनिर्भर तकनीकी और प्दतिंेजतनबजनतम सुदृढ़ और व्यापक हो ऐसे चाक चौबंद प्रायासों पर जोर दिया था। पू. प्रमुख स्वामी ने तुरंत बताया कि वे सभी बातें ठीक से कार्यान्वित कर सके तो भी देश सुखी-संपन्न-उच्च चरित्रयुक्त तब तक नहीं बन सकता जब तक कि देश के नागरिकों का स्तर उच्च आध्यात्मिक गुणों से परिपूर्ण न हो। इसके लिए प्रयास करना अतीव आवश्यक है, ऐसा यह छठवां बिंदु है। डॉ. अब्दुल कलाम ने इसको तुरंत ही स्वीकार किया और कहा कि आगे इस कमी की पूर्ति करना भी आवश्यक है यह बताता रहूंगा। वास्तव में भारतरत्न डॉ. अब्दुल कलाम ने ऐसे अनेक आध्यात्मिक गुणों को आत्मसात किया था जिसके कारण वे अपना संपूर्ण जीवन नि:स्वार्थ, कर्ममय, मैत्रीभाव से परिपूर्ण, सभी संप्रदायों के प्रति नितांत आदरभाव रखने वाला और शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ और संतुष्ट जीवन जी सके। उनकी अंतिम पुस्तक ‘अध्यात्म’ विषय को लेकर थी, जिसका विमोचन इसी मास में मुंबई में हुआ था, नाम था ज्तंदेबमदकमदबमण्।

भारतरत्न डॉ. अब्दुल कलाम ने भारत के एक विशिष्ट जनजातीय अंचल, केरल की अट्टापाडी घाटी में दि. १७/१८ नवंबर २००० को पहुंच कर वनवासियों का जीवन देखा और अपने स्वभाव के अनुरूप, सुरक्षा कवच से बाहर निकल कर, वनवासियों के पारंपरिक नृत्य में सम्मिलित हुए। बाद में उन्होंने स्थानीय वनवासियों की तमिल भाषा में ही २० मिनट का भाषण दिया। अट्टापाड़ी घाटी ैपसमदज टंससल – स्तब्ध घाटी – के नाम से प्रसिध्द है। भारत में मात्र इसी घाटी में उष्णकटिबंधीय वन क्षेत्र है, अत: पर्यावरण की दृष्टि से अति संवेदनशील है। उन्होंने दो हजार वर्ष पूर्व हुए तमिल संतश्रेष्ठ तिरूवल्लूवर के तिरूक्कुरल काव्य ग्रंथ के एक श्लोक को जीवन में उतारने के लिए प्रेरणा दी जिसमें स्वास्थ्य, संपत्ति, संगठन (एकता), शांति और शक्ति इन पांच गुणों का समावेश होता है। उन्होंने कहा कि भारत की सौ करोड़ जनता संगठित रहेगी तो भारत विश्व का सर्वश्रेष्ठ विकसित राष्ट्र बीस वर्षों में हो सकता है। आपने पर्यावरण के रक्षार्थ आवश्यक सात प्रतिज्ञाएं से बुलवाई। भारत के हम लोग सब एक हैं इस भाव को दृढ़ करने का आवाहन किया।

डॉ. अब्दुल कलाम कर्नाटक के वनवासी क्षेत्र के एक सुप्रसिध्द कार्यकर्ता डॉ. सुदर्शन के बी. आर. पहाड़ों में स्थित वनवासी केंद्र में दि. १५.१०.२००८ को गए। विवेकानंद का एक स्फूर्तिदायी वाक्य – ‘वही मनुष्य जिंदा कहा जाएगा जो दूसरों की सेवार्थ जीता है’ से प्रेरणा लेकर उन्होंने ‘विवेकानंद गिरिजन कल्याण केंद्र’ की स्थापना करके चिकित्सा केंद्र, शाला, छात्रावास एवं वनवासी समाज को जागृत करने के लिए विभिन्न प्रकार के उपक्रम चलाए। डॉ. कलाम ने डॉ. सुदर्शन द्वारा समाज में जो परिणामकारी कार्य किया गया उसकी भूरी-भूरी प्रशंसा की। यहां पर उपस्थितों को प्रतिज्ञा भी दिलाई। इस प्रतिज्ञा में उन्होंने कहा कि बच्चे हमारी मूल्यवान संपत्ति है, बच्चियों से भेदभाव न करते हुए उनको उच्च शिक्षा दिलवाएंगे, स्वास्थ व सुखी जीवन के लिए छोटा परिवार रखेंगे, श्रम से संपत्ति का अर्जन करते हैं उसे जुआ या नशाखोरी (दारू, तंबाकू आदि) में नहीं लगाएंगे, सफलता प्राप्त करने के लिए शिक्षित होंगे, हम वनों-वृक्षों की रक्षा करते हुए परिसर को प्रदूषण मुक्त रखेंगे और प्रौढ़ व्यक्ति अपने बच्चों के समक्ष अपना जीवन आदर्श एवं शुध्द रखेंगे।

अंत में उनके राष्ट्रपति के रूप में जीवन के संबंध में थोड़ा सा लिखूंगा। राष्ट्रपति वे थे तब उनके भवन में शालेय और महाविद्यालयीन छात्रों का समूह में आना जाना जैसा रहा, वैसा कभी भी देखा नहीं गया। उनका शिलांग का अंतिम भाषण भी वहां के आई. आई. एम. के महाविद्यालयीन छात्रों के बीच में ही रहा था। ङ्गब्ंजबी जीमउ लवनदहफ ऐसा कहा जाता है। डॉ. कलाम यही करते रहे। सामान्य और विशिष्ट जन, देश के और विदेशी जन, उनको राष्ट्रपति भवन में मिलने के लिए आते रहते थे। उनका ऐसा सार्वजानिक जीवन था। उन्होंने अपने लिए राष्ट्रपति भवन के एक-दो कक्षों को ही निजी कार्यार्थ उपयोग में लाया। वे राष्ट्रपति भवन के अंदर गए तो साथ में दो सूटकेस ही थे। जब इस भवन से विदा हुए तो उनके साथ में वही दो सूटकेस थे। जब राष्ट्रपति हुए तो उनके भाई-भाभियां, नाती-पोते, बहनें आदि रिश्तेदार दिल्ली में आए। उनके जाने के बाद आपने अपने निजी सचिव से कहा कि रिश्तेदारों पर भोजन, रहना, वाहन खर्च आदि जो हुआ है वह मुझे लिख कर दो। उन्होंने उतने धन का चेक सचिव को दिया और कहा कि यह खर्च शासकीय खर्चेमें नहीं डालना। इस बात को किसी से कहना भी नहीं। उनकी मृत्यु के बाद ही उनके निजी सचिव ने दो दिन पहले ही यह बात कही है। आज ऐसी प्रमाणिकता देखने को कम ही मिलती है। कैसा आदर्श जीवन!

एक बात और। पहला राष्ट्रपति पद का कार्यकाल पूरा हो रहा था। विभिन्न दलों के लोगों ने कहा कि आप दूसरी बार राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार रहेंगे तो हम आपको ही मत देंगे। डॉ. कलाम ने पू. प्रमुख स्वामी से क्या करना चाहिए इस पर सलाह मांगी। स्वामीजी ने कहा कि अब राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार नहीं बनना। इसके स्थान पर शेष जीवन जनता के बीच में जाकर उनके लिए कार्य करो, मार्गदर्शन दो, तो जनता का अधिक भला होगा। उन्होंने इसे माना और राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार नहीं बने और जनता के लिए, उनकी सेवा के लिए, अखंड प्रवास करते रहे यह हम जानते ही हैं। उनका जीवन छात्र, सामान्य जन, विविष्ट जन, राजनेता आदि के लिए उच्चादर्श छोड़ कर गया है। हम उनका अनुकरण करें, ऐसा प्रयास करते रहें, यही उनको सच्ची श्रध्दांजलि होगी। उनकी आत्मा को परमेश्वर चिरशांति प्रदान करे यही नम्र प्रार्थना है।

डॉ. प्रसन्न सप्रे

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