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मां आप भी जीजाऊ बनना!

मां आप भी जीजाऊ बनना!

by अपर्णा रामतीर्थकर
in मई -२०१४, सामाजिक
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पुणे में एक ‘बर्थ डे’ पार्टी के लिए मैं गई थी। मन से मुझे ये चीजें अच्छी नहीं लगतीं। लेकिन घर के पास वालों का ही कार्यक्रम था, इसलिए जाना पड़ा। इस कार्यक्रम में दो वर्ष के बच्चे की मां ही नहीं चार वर्ष के बच्चे की मां भी जीन-पैंट पहनी थीं। इतनी टाइट जीन-पैंट और ऊपर छोटा टी-शर्ट, बाल कटे, माथे पर बिंदी नहीं, हाथ में कंगन नहीं यह उनकी अवस्था थी। मैं कुछ अस्वस्थ हुई। तिस पर दो वर्ष का बच्चा रोने लगा- मम्मी… मम्मी। आंचल तो है ही नहीं। उस बच्चे को समझ में नहीं आ रहा था कि मां को किस जगह से पकड़े। एक बार वह पैंट की बेल्ट में लटक गया, अगली बार उसने पैंट की जेब पकड़ी। मैंने कहा, अरी जरा उसे उठा लें। वह कुछ शरमा गई और कहा, पैंट के कारण एकदम झुक नहीं सकती। पैंट फट जाती है। क्या जवाब है? मां का आंचल इस मां ने खत्म कर दिया। भारत में मां का आंचल महत्व रखता है। उस आंचल की अमृतधाराएं पीकर ही महापुरुष बनते हैं। मां का आंचल खत्म होने पर हमारी पीढ़ी को दुख होता है। इस आंचल की विशेषता क्या है? यह पल्लू जब मां मुंह पर फेरती है तब जीने का आत्मविश्वास बढ़ता है। इसलिए मुझे लगता है कि भारतीय मां वाकई मां जैसी ही दिखनी चाहिए। उसके एक एक शब्द से संस्कार की जन्मघुट्टी उसे मिलती है। बच्चे संस्कारित होते हैं। धर्म की शिक्षा देने वाली मां घर में होनी चाहिए। मां से घर को अपनापन मिलता है। बच्चों को सुसंस्कार देने वाली मां कहां है? लड़कियों के दिमाग में फिलहाल हम केवल ‘करिअर’ शब्द ही घुसाते हैं। लेकिन करिअर और घर का समन्वय करना आना चाहिए। चूल्हे-चौके से स्त्री बाहर निकलनी चाहिए। किस तरह?

अमेरिका में हो तो बिजली के चूल्हे पर रसोई बनानी होती है। लेकिन बच्चों से मन कैसे दूर होगा? मेरी 90 साल की सासू-मां चल नहीं सकती थी परंतु लंगडाते हुए दरवाजे तक जाती थी और मैं कहती थी कि मां दरवाजे तक न जायें। पैरों में खून आ जाएगा। वह कहती, बेटा अभी नहीं आया है न्। 90 वर्ष की मां की जान 62 वर्ष के लड़के के लिए टूट रही थी। ऐसा केवल भारत में ही होता है। इसलिए वर्तमान मां को करिअर का सही अर्थ समझाना होगा- यह मातृत्व वास्तव में क्या होता है? मां के हर शब्द का बच्चों पर क्या असर होता है? इस एक एक शब्द से बच्चे किस तरह संवर्धित होते हैं? मां के हर शब्द का महत्व समझाने की जरूरत है।

श्री गुरुजी की मां को उनका चरित्र विकसित करने में श्रीकृष्ण के चरित्र का बहुत उपयोग हुआ। रा.स्व.संघ जैसे विशाल हिंदू संगठन का नेतृत्व करते समय उन्हें श्रीकृष्ण के चरित्र का अध्ययन एक प्रत्यक्ष अनुभूति साबित हुई। विवेकानंद की मां भुवनेश्वरी ने छोटे नरेंद्र से कहा कि तुम्हें घोड़ेवाला होना अच्छा लगता है न, फिर कृष्ण जैसा घोड़ेवाला बनना, जो सात समंदर पार अपने धर्म के दर्शन को बताएगा। सामाजिक भान देने वाली ‘श्याम की मां’ हम सभी खोज रहे हैं। वह नहीं मिलती। हर दरवाजे पर दस्तक दो तो श्याम की मम्मी ही द्वार खोलती है! पश्चिम का अंधानुकरण करते समय अपना मूल सत्व छोड़कर ही आज की मां केवल आधुनिकता का ही विचार करती है। मैकाले की अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली का क्या यह परिणाम है? सावित्रीबाई ने शिक्षा का द्वार महिलाओं के लिए खोल दिया। लेकिन उस सावित्री की शालिनता, पवित्रता, पतिव्रत की संकल्पना कहां खो गई? ज्योतिबा के कंधे से कंधा लगाकर काम करते समय ज्योतिबा का उन्होंने सम्मान रखा। हमें हर चीज संस्कृति के चौखट में रखनी चाहिए। इस समय धर्मातरण के जिस खतरे की लड़कियां बलि चढ़ रही है उस खतरे को मां लड़कियों को नहीं बता रही है। नगर में भरे बाजार में मुसलमान पुरुष से हमारी सुविद्य मां उंगली से लेकर कंधों तक मेंहदी लगवा लेती है। कई बड़े-बड़े मॉल में आज की मां पुरुषों से बाल कटवा लेती हैै। पुरुषों से बदन का मसाज करवा लेती है। भारतीय मां से क्या ये बातें अपेक्षित हैं? यही नहीं, आकोट के मुस्लिम लड़कों का समूह अकोला आकर विवाह में स्त्रियों को साड़ियां पहनाने का ठेका लेता है। साड़ियां पहनाने के लिए पुरुष? चाहे जैसे नृत्य की कम्पोजिशन के लिए पुरुष? ‘महिला दिन’ की नृत्य स्पर्धा में मां ‘शीला की जवानी’ पर नृत्य करें? कैसी दिशा है यह? आज सभी दिशाओं से देश संकट में, धर्म संकट में, लड़कियां खतरे में, फिर भी इन खतरों की घंटा मां को सुनाई नहीं देती? अब घरों में केवल ‘शिवबा की मां’ होनी चाहिए। जीजाऊ को जन्म देना होगा? अन्यथा बहुत कठिन है।
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