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मां का प्रेम ही शाश्वत ऊर्जा

मां का प्रेम ही शाश्वत ऊर्जा

by हरिप्रसाद चौरसिया
in मई -२०१४, सामाजिक
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मंदिर में भगवान की आराधना करने के पूर्व, उस मूर्ति की पूजा करने के पूर्व हमारे आसपास होने वाली और जिन्हें हम भूल गए हैं उस मां की पूजा करें। उसे आपका धन नहीं चाहिए, आपका प्रेम चाहिए। आपके बचपन से ही उसने आप पर प्रेम की वर्षा की है। घर से बाहर निकलने के पूर्व उसके पास जाकर ‘मां कैसी हो?’ इतना ही पूछें, उसे सब कुछ मिल जाएगा।

वास्तव में हर सांस ही मातृ-उत्सव होता है। जब मैं मात्र पांच साल का था तभी दुर्भाग्य से मेरी मां का निधन हुआ; लेकिन उस समय का उसका प्रेम मैं कदापि नहीं भूल पाऊंगा। उसका आशीर्वाद सदैव मेरे साथ रहा। गुरुमूर्ति अन्नपूर्णा मां को भी मैं अपनी मां ही मानता हूं। इसी तरह दुनिया की प्रत्येक नारी मेरे लिए मां ही है। यह धरती, गंगा हमारी माताएं ही हैं। भगवान की मूर्ति में भी मुझे मां के ही दर्शन होते हैं।

मुझे हर भगवान में मां का ही दर्शन होता है। ईश्वर के अलावा भी हमारी अनेक माताएं हैं। पृथ्वी अर्थात धरती हमारी माता हैं। पवित्र गंगा नदी भी हमारी माता ही हैं। मां के मुकाबले कोई बड़ा नहीं है। मां का मूल्य किसी भी रूप में तौला नहीं जा सकता। मां हमें जन्म देती है। इसके लिए अपार वेदनाएं सहती है। जन्म के बाद भी प्रेम का साथ हमारे साथ होता है। मेरे जीवन में भी, मेरे कुल कार्यों में भी मां का योगदान मूल्यवान है। उसके प्रेम की कृतज्ञता मैं कभी भूल नहीं सकता। मैं पांच साल का था तब भी बांसुरी से खेला करता था… कुछ सुर निकालता था… उस समय मां गुनगुनाती होती थी। उसके गुनगुनाने पर मैं बांसुरी बजाने की कोशिश करता था। मैं बड़ा बांसुरी वादक बनूं ऐसा वे तब भी कहती थीं। उसके आशीर्वाद से, ईश्वर की कृपा से और रसिकों के स्नेह से यह सपना पूरा हुआ। आज भी उसकी प्रेममयी यादें मेरे मन में ताजा हैं। मां का प्रेम ही एक शाश्वत ऊर्जा होती है।

हर साल ‘मदर डे’ आता है; लेकिन उस दिन मेरी मां मेरे पास नहीं होती। दुनिया में अनेक लोग यह दिन मनाते होंगे लेकिन उस दिन उनकी माताएं उनके साथ नहीं होंगी। खुद कांटों पर चलकर बच्चे के लिए गुलाब की पंखु़िडयां बिखेरने का काम मां करती है। अनेक लोग ऐसे होंगे जिनके पास बचपन में भोजन के लिए पर्याप्त अन्न भी नहीं रहता होगा। ऐसे समय उनकी माताएं खुद भूखी रहकर अपने बच्चों को पेटभर खाना मिले इसकी जुगत करती रहती हैं। भविष्य में बच्चे बड़े होते हैं, भरपूर अनाज भी उनके पास जमा होता है; लेकिन जिसे उसका एक कौर दे सके ऐसी मां उस समय नहीं होती।

मैं अपनी मां के अलावा दुनिया की हर मां को अपना प्रेम अर्पित करना चाहता हूं। उसके प्रेम को प्रणाम करना चाहता हूं। मंदिर में भगवान की आराधना करने के पूर्व, उस मूर्ति की पूजा करने के पूर्व हमारे आसपास होने वाली और जिन्हें हम भूल गए हैं उस मां की पूजा करें। उसे आपका धन नहीं चाहिए, आपका प्रेम चाहिए। आपके बचपन से ही उसने आप पर प्रेम की वर्षा की है। घर से बाहर निकलने के पूर्व उसके पास जाकर ‘मां कैसी हो?’ इतना ही पूछें उसे सब कुछ मिल जाएगा।

मातृ दिवस साल में एक बार न होकर वह हर दिन, हर क्षण होता है। हम मां के ॠण से मुक्त हुए ऐसा कभी न समझें। क्योंकि मां के ॠण से कभी उॠण नहीं हो सकते। हम घर से बाहर निकलने के पूर्व मां का आशीर्वाद लेकर ही घर का दरवाजा लांघें। मां न हो तो उसकी फोटो के सामने खड़े होकर उससे आशीर्वाद मांगे। ऐसा करने पर किसी बात में पिछड़ने पर भी हमें नैराश्य नहीं आएगा।

मां का यह अमूल्य प्रेम देखें तो उसके लिए कोई एक दिन मनाएं यह ठीक नहीं लगता। इसलिए मैंने कभी ‘मदर्स डे’ नहीं मनाया। मैं रोज ही मातृ दिवस मनाता हूं। मेरे लिए किसी खास दिन की आवश्यकता नहीं है। हमें हर संकट से बचाने में मां ही आगे होती है। हर सफल व्यक्ति के पीछे एक स्त्री होती है ऐसा कहते हैं। वह मां हो तो उसका शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकेगा।

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