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विश्व हिंदू परिषद-सुवर्ण जयंती महोत्सव

विश्व हिंदू परिषद-सुवर्ण जयंती महोत्सव

by कल्पना अनवेकर
in अक्टूबर-२०१४, सामाजिक
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विश्व हिंदू परिषद विश्वव्यापी संगठन है। उसने समस्त विश्व में बसेे हिंदुओं को एकात्मता की भावना में पिरोने का कार्य किया है। वि.हि.प. ने संस्कृति, धर्म, राष्ट्र के प्रति श्रद्धा एवं आस्था जागृत करने का कार्य किया है। अनेक देशों में हिंदू संमेलन हुए, जिनमें महिलाओं का भी योगदान रहा।

सम्भवामि युगे युगे……श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 29 अगस्त 1964 मुंबई में पवई स्थित स्वामी चिन्मयानन्दजी के सांदिपनी आश्रम में ‘विश्व हिंदू’ परिषद की स्थापना हुई। प्रमुख संस्थापक, रा. से. संघ के द्वितीय संघचालक श्री माधवराव सदाशिव गोवलकर (प. पू. गुरुजी), एडवोकेट एवं श्रेष्ठ पत्रकार दादासाहेब आपटे, स्वामी चिन्मयानन्दजी, राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज, जैन संत सुशील मुनिजी, दलाई लामा, मास्टर तारासिंह, करपात्रीजी महाराज, श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार, अन्य संतगण व श्रेष्ठ समाज चिंतक आदि के अथक प्रयास से यह कार्य सम्पन्न हुआ।

विश्व हिंदू परिषद विश्वव्यापी संगठन है। वि.हि.प. ने समस्त विश्व में बसेे हिंदुओं को एकात्मता की भावना में पिरोने का कार्य किया है। वि.हि.प. ने संस्कृति, धर्म, राष्ट्र के प्रति श्रद्धा एवं आस्था जागृत करने का कार्य किया है। अनेक देशों में हिंदू संमेलन हुए जिसमें महिलाओं का भी योगदान रहा। 80 देशों से वि.हि.प. का सम्पर्क है, जिसमें से 40 देशों में वि.हि.प. के सभी कार्यक्रम प्रत्यक्ष रूप से चल रहे हैं।
हिंदू समाज को गतिशील, सक्रिय और सुधरे रूप में प्रतिष्ठापित करने हेतु निम्न घोषणावाक्य है।

‘हिंदवा: सोदरा: सर्वे, ना हिन्दू पतितो: भवेत।
मम दीक्षा हिन्दू रक्षा, मम मंत्र समानता॥

वि.हि.प. के उद्देश्य
1. विश्व के हिंदुओं में भाषा, क्षेत्र, मत, एवं संप्रदायों के आधार पर उत्पन्न भेदों को मिटाकर उन्हें सुदृढ़ एवं अखंड समाज के रूप में खड़ा करना।

– हिंदुओं में संस्कृति एवं धर्म के प्रति निष्ठा उत्पन्न करना।
– हिंदुओं के नैतिक एवं आध्यात्मिक जीवन मूल्यों को सुरक्षा प्रदान करना।
– छुआ-छूत की भावना समाप्त करके समाजिक समरसता निर्माण करना।
– विश्व में बसे अनेकानेक हिंदुओं को धार्मिक और सांस्कृतिक आधार पर परस्पर स्नेह सूत्र में बांधकर हिंदू समाज में इनके प्रति विश्वास पैदा करने के लिए समुचित सहायता व मार्गदर्शन प्रदान करना।
– मानवता के कल्याण के लिए हिंदू धर्म के सिद्धांतों और व्यवहारों की युगानुकूल व्याख्या का प्रचार करना।
– धर्मांतरित किंतु हिंदू जीवन दर्शन के प्रति लगाव रखने वाले बंधुओं को हिंदू धर्म में वापस लाकर उनका पुनर्वास करना।

देश में चल रहे कार्य संख्यात्मक

देश में कुल समिति- 63931
बजरंग दल समिति- 37934
मातृशक्ति समिति- 5510
साप्ताहिक सत्संग- 26879
पूर्ण कालिक वानप्रस्थी- 4000
दुर्गा वाहिनी संयोजिका- 2844

भारतीय संस्कृति में स्त्री का स्थान अतिशय महत्वपूर्ण है। स्त्री साक्षात दुर्गाशक्ति है। भारतीय संस्कृति एवं धर्म जीवित रखने का कार्य महिलाओं द्वारा ही होता है। भारतीय परिवार में प्रेरणास्थान एवं मार्गदर्शक स्त्री ही होती है। कोई भी धार्मिक, सामाजिक, पारिवारिक कार्य स्त्री के बिना पूर्ण नहीं होता। परंतु आज पाश्चात्य अंधानुकरण के कारण स्त्री को अपने स्वत्व एवं दायित्व की विस्मृति हुई है। उनकी आत्मशक्ति जागृत कर उन्हें तेजस्वी और प्रखर बनाने का कार्य वि.हि.प. कर रही है। वह अबला नहीं सबला हैं और राष्ट्र की धुरी उनके ही हाथ में है। राष्ट्र का भविष्य भी उज्ज्वल हो इस दृष्टि से महिलाओं को दो भागों में कार्यक्रम दिए हैं।

दुर्गा वाहिनी

‘सेवा, सुरक्षा, संस्कार’ यह ध्येय सामने रखकर 15 से 35 वर्ष आयु की युवतियों का कार्य कर रही है। आत्मरक्षक हिंदू युवती खड़ी करना, अश्लीलता, महिला अत्याचार, कुप्रथा दूर करना। बौद्धिक, शारीरिक, सामाजिक, व्यावहारिक क्षमता बढ़ाना और संस्कृति, धर्म के प्रति निष्ठा, आस्था बढ़ाना और स्वयं को स्वस्थ रखने की दृष्टि से युवतियों के प्रशिक्षण वर्ग दीपावली एवं गर्मी की छुट्टियों में लगाए जाते हैं। वर्ग में स्वसुरक्षा के लिए शारीरिक प्रशिक्षण, योगासन, नियुद्ध दंड चलाना, रायफल, तलवार, छुरिका चलाना आदि का प्रशिक्षण दिया जाता है। साथ ही कलात्मक प्रशिक्षण भी दिया जाता है। ‘बिनु सत संग विवेक न होई’…यह ध्यान में रखते हुए 35 वर्ष से अधिक आयु की महिलाओं के एकत्रीकरण के माध्यम से सत्संग बनाया है। जीवन नश्वर है, इसलिए जीवन के एक-एक पल को हमें सार्थक जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए। किसी भी राष्ट्र की पहचान (राष्ट्र की) नैतिकता से होती है। राष्ट्र का मानबिंदु परिवार है और परिवार का केन्द्रबिंदु गृहिणी है। गृहिणी आध्यात्मिक, बौद्धिक, शारीरिक, व्यावहारिक दृष्टि से सक्षम हो और समाज और परिवार के प्रति अपने दायित्व को समझे, तभी राष्ट्र प्रगति पथ पर अग्रसर होगा।

सत्संग की महिलाओं के द्वारा अनेक सेवा कार्य भी चलते हैं। समाज और परिवार के प्रति अपने दायित्व के विषय में सत्संग में चिंतन किया जाता है। सप्ताह में एक दिन डेढ़ या दो घंटे का एकत्रीकरण रहता है।

बाल संस्कार केन्द्र

महिलाएं एवं युवतियों द्वारा बालकों का सर्वांगीण विकास- आध्यात्मिक, बौद्धिक, शारीरिक, मानसिक, नैतिक विकास होता है और तेजस्वी, प्रखर, सशक्त, देशप्रेमी, मातृ-पितृ प्रेमी व समाज में सभी से स्नेह और सहानुभूति रखने वाले बालकों का निर्माण किया जाता है, ताकि वह देश का श्रेष्ठ नागरिक बनकर राष्ट्र का गौरव बने।

साध्वी सम्मेलन

महिला संतों के सम्मेलन भी होते हैं। अभी 2014 हरिद्वार में अखिल भारतीय साध्वी सम्मेलन हुआ। जिसमें साध्वियों ने संकल्प किया कि वे भी समाज में गांव-गांव जाकर महिला जागरण करेंगी। संत समाज मार्गदर्शक बनकर विश्व हिंदू परिषद से जुड़ा है।

मातृशक्ति द्वारा चलाए जानेवाले सेवा कार्य

1) शिक्षा क्षेत्र में- बालवाडी, बालसंस्कार केन्द्र, प्राथमिक विद्यालय, छात्रावास, कोचिंग सेंटर, पुस्तकालय, संस्कृत, वेद, पाठशाला, अन्य शिक्षा प्रकल्प।

2) चिकित्सा क्षेत्र- चिकित्सा शिविरे लगाना, दवाइयां बांटना, असहाय की सहायता करना।

3) स्वावलंबन- सिलाई प्रशिक्षण, कम्पूटर प्रशिक्षण, अन्य कलात्मक प्रशिक्षण केन्द्र चलाना।

4) सामाजिक क्षेत्र के सेवा कार्य- निराश्रित बालक बालिकाओं के आश्रम, कानूनी सहायता केन्द्र, महिला संरक्षण केन्द्र, अन्य सेवा कार्य समयानुसार।

5) अन्य सेवा कार्य- धार्मिक यात्राओं में सेवा कार्य, प्राकृतिक आपदा में सेवा कार्य, ग्राम विकास केन्द्र, मंदिर निर्माण, वृक्षारोपण, संस्कृत संभाषण वर्ग आदि।

विहिप का बाहुबलः बजरंग दल

बजरंग दल युवाओं का संगठन हैं। सेवा, सुरक्षा, संस्कार का ध्येय, युवाओं का सप्ताह में एक दिन एक घंटा एकत्रित आना। हनुमान का आदर्श लेकर श्री हनुमान चालिसा बोलना। नियुद्ध, शारीरिक व्यायाम, दंड घुरिका आदि चलाने का अभ्यास करना।

बजरंग दल का प्रशिक्षण दीपावली की छुट्टियों में और गर्मी की छुट्टियों में होता है। भारत भर में लाखों युवा बजरंग दल सदस्य हैं। बजरंग दल के कार्यकर्ता गोरक्षा के लिए, धर्म या मंदिर की रक्षा या समाज, युवतियों की रक्षा के लिए सजग प्रहरी की तरह रहते हैं। अपनी जान की भी परवाह न करते हुए अपना दायित्व निभाते हैं। कोई भी नैसर्गिक आपदा आने पर सेवा में सबसे आगे रहते हैं।

विहिप द्वारा किए गए कुछ प्रमुख कार्य

– पंथ, संप्रदायों की समन्वय व्यवस्था को कायम रखने के लिए सम्राट हर्षवर्धन काल के बाद लुप्त हुए हिंदू सम्मेलनों को प्रारंभ कर विश्व हिन्दू सम्मेलन एवं धर्म संसद की श्रृंखला प्रारंभ की।

– सभी पूजा शंकाराचार्यों एवं सभी पंथों के पूज्य संतों को एक मंच पर लाकर उनके मार्गदर्शन में सामाजिक समरसता के माध्यम से समाज में जातीय आधार पर फैली विषमताओं को समाप्त करने हेतु विहिप निरंतर प्रयत्नशील है।

– धर्मांतरण के विषय में समाज को जागृत करने का प्रयास करते हैं। विहिप के प्रमुख से अब तक 7 लाख बंधुओं का हिंदू धर्म में परावर्तन हुआ। चालीस लाख हिंदुओं का धर्मांतरण रोका गया। ‘लव जिहाद’ में फंसी हजारों हिंदू लड़कियों को अपने धर्म में वापस लाया गया और उनका विवाह हिंदू युवकों के साथ कराया गया।

– संपूर्ण देश को एकता के सूत्र में पिरोने के लिए 1983 में प्रथम एकात्मता यात्रा भारत माता एवं गंगा माता के रूप में निकली।

– 1995 में दूसरी एकात्मता यात्रा का आयोजन किया गया। इन यात्राओं का 7 करोड़ लोगों को लाभ हुआ और 3 लाख गांवों से सम्पर्क हुआ।

– 1984 में श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन प्रारंभ किया। जन्म भूमि पर लगा ताला खुला। श्रीराम जानकी रथ यात्रा, शिला पूजन, रामज्योति यात्रा, चरण पादुका, प्रथम कार सेवा, 1990 दिल्ली बोट क्लब में 25 लाख लोगों की ऐतिहासिक रैली, 6 दिसम्बर 1992 को जन्मभूमि पर बना बाबरी ढांचा धराशायी हुआ। भव्य मंदिर निर्माण का कार्य जारी है।

– गौरक्षा हेतु जनजागरण द्वारा 15 लाख गोवंश को कसाइयों के चंगुल से मुक्त कराया गया। 400 नई गौशालाएं स्थापित की गईं। नागपुर के निकट देवलापार से प्रारंभ कर विभिन्न गौशालाओं में 400 जैविक खाद केन्द्र व 300 गौ विज्ञान केन्द्र स्थापित हुए।

– 51 हजार एकल विद्यालय, 125 छात्रावास, 1100 स्वास्थ्य केन्द्र व अन्य 7 हजार सेवा कार्यों द्वारा अनुसूचित जाति एवं जन जाति के विकास के लिए शिक्षा, संस्कार, स्वास्थ्य के विविध कार्यक्रम चला रहे हैं।

– हिंदू हेल्पलाइन के द्वारा देश के 500 जिलों में विविध प्रकार की जानकारी व सहायता का निर्माण हुआ। अभी-अभी हेल्पलाइन के द्वारा स्वास्थ्य के लिए भी काम शुरू हो गया है।

इस प्रकार विश्व हिंदू परिषद द्वारा विगत वर्षों में कार्यकर्ताओं की साधना एवं समाज के सहयोग से अनेक कार्य सम्पन्न हुए। सारे समाज में वास्तविक एकता और अखंडता का भाव जागृत हुआ।
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कल्पना अनवेकर

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