अलग नेतृत्व समान चुनौतियां

हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनावों में भाजपा ने कमल खिलाकर मोदी के कांग्रेस मुक्त भारत अभियान को जारी रखा है। केन्द्र की तरह ही इन दोनों राज्यों की जनता भी उनके तत्कालीन नेतृत्व से परेशान थी। भूगोल की दृष्टि से अधिक समानताएं न होने के बावजूद भी इन दोनों राज्यों के चुनावों पर नजर डालें तो कई समानताएं दिखाई देती हैं। भाजपा के विकास के मुद्दों और प्रधान मंत्री मोदी द्वारा दिखाए गए आशादायक सपनों पर विश्वास करते हुए लोगों ने इन दोनों राज्यों की सत्ता की कमान भाजपा के हाथ में दी।

भाजपा ने महाराष्ट्र में जहां अपने पुरानी साथी शिवसेना को साथ लिए बिना अपना परचम लहराया, वहीं हरियाणा चुनाव में भी उसे शिवसेना जैसे अपने पुराने मित्र अकाली दल का विरोध सहना पड़ा। इन सभी के बावजूद भी भाजपा ने हरियाणा में पूर्ण बहुमत और महाराष्ट्र में सबसे अधिक सीटें प्राप्त कीं। चुनाव परिणामों के कई दिनों बाद तक भी शिवसेना इसी पसोपेश में थी कि भाजपा को समर्थन दिया जाए या नहीं। दोनों पार्टियों के आलाकमान के बीच कई दिनों तक लंबी चर्चाएं हुईं और अंत में शिवसेना ने विपक्ष में बैठने का निर्णय लिया।

शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने भाजपा को बाहर से समर्थन देने का निर्णय लिया। हालांकि समर्थन लेने और देने के कारण दोनों ही पार्टियों को तल्ख आलोचनाओं का शिकार होना पड़ा था। परंतु यह सच है कि राजनीति में कोई भी स्थायी मित्र या शत्रु नहीं होता।
इस पूरी कवायद के बीच भाजपा के मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदारों देवेन्द्र फडणवीस, एकनाथ खडसे, भाजपा के पूर्व कद्दावर नेता गोपीनाथ मुंडे की बेटी पंकजा मुंडे में से देवेन्द्र फडणवीस ने बाजी मारी। देवेन्द्र फडणवीस के मुख्यमंत्री बनते ही सोशल मीडिया पर घूमनेवाला संदेश ‘देश में नरेन्द्र, राज्य में देवेन्द्र’ सच हो गया। अल्पमत की ही सही परंतु देवेन्द्र इस सरकार के मुखिया बन गए।

देवेन्द्र को मुख्यमंत्री चुने जाने के कारणों की भी खूब मीमांसा हुई। किसी ने कहा वे संघ के करीबी हैं, तो किसी ने उन्हें मोदी का करीबी बताया। कुछ लोगों का यह भी मत रहा कि विदर्भ वासियों को खुश करने के लिए देवेन्द्र को मुख्यमंत्री बनाया गया है। कारण जो भी हो पर अब यह सच है कि वे महाराष्ट्र के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री हैं।

अपनी आयु के 21वें वर्ष में उन्होंने राजनीति में कदम रखा। वे देश के सबसे कम उम्र के नगर सेवक रहे हैं। लगातार 10 सालों तक वे इस पद पर बने रहे। सम 1997 में जब वे मेयर बने तब भी वे देश के दूसरे सब से कम उम्र के मेयर थे। सन 1999 में वे पहली बार विधायक के रूप में चुने गए और सन 2014 तक 4 टर्म तक विधायक रहे हैं। वे संघ स्वयंसेवक हैं तथा साधारण जीवन व्यतीत करना पसंद करते हैं।
मुख्यमंत्री बनने के बाद भी जब वे पहली बार अपने गृहनगर नागपुर गए तो उन्होंने हवाई जहाज के इकोनामी क्लास में सफर किया।
भारत के रक्षा मंत्री और गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर पर्रीकर अपनी सादगी के लिए जाने जाते हैं और अब महाराष्ट्र तथा हरियाणा के मुख्यमंत्री भी इस तर्ज पर हैं।

हरियाणा के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की जीवनशैली भी अत्यंत साधारण है। बचपन से संघ स्वयंसेवक को और प्रचारक रहे मनोहर लाल खट्टर हरियाणा की कर्नाल विधान सभा सीट से आते हैं। सन 1993 तक संघ के प्रचारक रहे मनोहर लाल खट्टर सन 1994 में भाजपा में शामिल हुए। वे सन 2000 से 2014 तक भाजपा की हरियाणा इकाई के जनरल सेक्रेटरी रहे। सन 2014 के लोकसभा चुनावों के लिये भी उन्हें हरियाणा की चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाया गया था। अपने प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के सुरेन्द्र सिंह नरवाल को साठ हजार से अधिक मतों से हरानेवाले खट्टर को मुख्यमंत्री पद के लिए भी अपनी ही पार्टी के अभिमन्यु सिंह सिंधू से भी कड़ी टक्कर मिली परंतु अंतत: वे इस दौड़ में जीत ही गए। मनोहर लाल खट्टर की सादगी के बारे में एक किस्सा प्रचलित हुआ है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद उनसे मिलने आनेवालों में एक बड़े उद्योगपति भी थे। वे उनके लिए मिठाई और उपहार लेकर आए थे। मनोहर लाल खट्टर ने जब उनसे उपहार के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि इसमें चांदी का ‘टी-सेट’ है। मनोहर लाल खट्टर ने उन्हें कहा कि मैं चाय ही नहीं पीता तो यह टी-सेट मेरे किस काम का और यह मिठाई यहां काम कर रहे कर्मचारियों में बांट दीजिए।

संघ स्वयंसेवक, सौम्य व्यक्तित्व और साधारण रहन-सहन के अलावा एक और बात देवेन्द्र फडणवीस और मनोहर लाल खट्टर मे समान है कि ये दोनों ही अपने अपने राज्य के भाजपा के पहले मुख्यमंत्री हैं। इसके पहले भाजपा गठबंधन करके सरकार में तो आई परंतु मुख्यमंत्री कभी भाजपा का नहीं था।

इन दोनों के सामने जो चुनौतियां हैं। वे भी काफी हद तक समान ही हैं। दोनों प्रदेशों की सबसे बड़ी समस्या है किसानों के संबंध में। महाराष्ट्र के कोंकण को छोड़कर अन्य सभी भागों के किसानों की स्थिति दयनीय है। विदर्भ और मराठवाडा में सिंचाई की उन्नत तकनीक न होने की वजह से और मौसम के असुंतलन के कारण वहां का किसान लगातार सूखे की मार झेल रहा है। आए दिन वहां से किसनों की आत्महत्या के नए-नए समाचार सामने आते हैं। हरियाणा की स्थिति भी कुछ इसी प्रकार है। यहां पानी का स्तर अत्यंत कम होने के कारण गहरी खुदाई करने के बाद भी पानी नहीं मिलता। अत: फसल के लिए आवश्यक पानी न मिलने के कारण पैदावार में दिनों दिन कमी हो रही है। जिससे राज्य की अर्थव्यवस्था डगमगा रही है।

किसान आजकल नए तरह के बीजों का प्रयोग कर रहे हैं। जिसकी सुरक्षा और वृद्धि के लिए रासायनिक खाद और कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है। ये दोनों ही अत्यंत खर्चीले होते हैं। इन्हें खरीदने के लिए किसानों को क्रेडिट सोसायटी से कर्ज लेना पड़ता है जिसे चुकाने में ही उनकी आमदनी खर्च हो जाती है। जिस तरह पहले किसान जमींदारों से परेशान थे उसी तरह अब वे क्रेडिट सोसायटियों से परेशान हैं। इनके चंगुल से किसानों को मुक्त करने के लिए भी दोनों राज्यों की नई सरकारों को प्रयास करने होंगे।

दूसरी बड़ी समस्या है शहरीकरण की। दोनों ही राज्यों में बड़े पैमाने पर उद्योगों की स्थापना की जा रही है। जिससे यहां पर भूमि की कमी महसूस होने लगी है। भूमि अधिग्रहण का नया कानून आने के बाद से यह प्रक्रिया अत्यंत धीमि गति से हो रही है।

तीसरी बड़ी समस्या है इन राज्यों में अन्य राज्यों से आनेवाले लोगों की। महाराष्ट्र खासकर मुंबई में उत्तर भारत के राज्यों से आनेवाले लोगों के कारण वहां के रहिवासियों को असुरक्षितता महसूस होती है। हरियाणा में भी दिल्ली और पंजाब से आनेवाले लोगों की संख्या बढ़ रही है। इसके कारण रहने की जगह से लेकर अन्य कई सुविधाओं में इन लोगों का सहभाग बढ़ रहा है। जिसके कारण स्थानीय निवासियों को कई मुश्किलों का सामना करना पड रहा है। हालांकि भाजपा का हमेशा यह रुख रहा है कि इस देश में रहनेवाला कोई भी व्यक्ति उपजीविका के लिये किसी भी राज्य में जा सकता है। परंतु स्थानीय लोगों को होनेवाली असुविधाओं का ठीकरा सरकार के सिर पर फोडने की मानसिकता का सामना इन दोनों सरकारों को करना होगा।

इसके अलावा बढते गुनाह और महिलाओं पर होनेवाले अत्याचारों पर नियंत्रण रखना भी इन दोनों सरकारों की प्रथमिकता होनी चाहिये। पिछले कुछ महीनों में इन दोनों ही राज्यों से कुकर्म एवं खाप पंचायत के अत्याचारों के मामले सामने आये हैं।

इन सारी समस्याओं के साथ ही एक सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण चुनौती है जिसका इन दोनों सरकारों को सामना करना पड़ेगा। वह चुनौती है पिछली सरकारों के कारण राज्य पर जो कई करोड़ रुपयों का कर्ज है उसे कम करते हुए राज्य की आय में वृद्धि करना।

अभी तक इन दोनों ही राज्यों के प्रशासन को सुशासन नहीं कहा जा सकता था। अब इन दोनों ही मुख्यमंत्रियों पर राज्यों में सुशासन लाने और राज्य का विकास करने का जिम्मा है जिसका वादा भाजपा ने चुनाव प्रचार के दौरान किया था।
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