हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
आसागि-बैसागि

आसागि-बैसागि

by राजू बर
in नवम्बर २०१५, सामाजिक
0

बोडो जाति के पूर्वज कहा करते थे कि आंधी व तूफान आने पर और बादल गरजकर वज्रपात होने पर बुनाई-कटाई की सामग्रियों जैसे शाल, मासु इत्यादि को आंगन में फेंक देना चाहिए। तब वज्रपात थम जाता है। क्योंकि बुनाई-कटाई की शुरुआत उनसे ही हुई थी। वे उनके अपने हैं। सामग्रियों को देखकर उनके मन में नम्रता आ जाती है।

बोडो अपनीसंस्कृति से प्रेम करने वाली जाति है। उसमें संस्कृति के एक-एक अंग का प्रवाह वर्षों से चली आ रही लोककथाओं के माध्यम से सुनने को मिलता है। ‘‘आसागि-बैसागि‘‘ भी बोडो समाज में वर्षों से प्रचलित एक लोककथा है। यह लोककथा वैशाख महीने और बुनाई-कटाई से जुडी हुई है।

बोडो की परंपरागत पोशाक विशिष्ट प्रकार से बुनी जाती है। इसके लिए वे किसी पर भी निर्भर नहीं होते। सदियों से बोडो ‘‘यावखि’’ बुनकर सूत कातकर प्रयोजन अनुसार कपड़े बुनते हैं। बोडो के बीच प्रचलित लोककथाओं में कहा जाता है कि उनके बीच बुनाई कटाई की शुरुआत ‘‘आसागि बैसागि ‘‘के दिनों से हुई है। कपडा बुनने की संस्कृति का आज भी बोडो ने त्याग नहीं किया है। वे विश्वास करते हैं कि इसका जन्मदाता आज भी हमारे बीच आंधी तूफान और वज्रपात के रुप में है। जिसे हम ‘‘बरदैसिला ‘‘के नाम से जानते हैं।

आसागि-बैसागि का हृदय वैशाख के मौसम में उन्माद पैदा करता है और मन दु:ख से भीग जाता है। इसी कारण आंधी -तूफान आते हैं और वज्रपात होते हैं।

‘‘आसागि-बैसागि’’ बरदैसिता और वज्रपात होने के कारण की लोककथा इस तरह है।

किसी समय बोडो गांव के एक परिवार में एक बेटा और दो बेटियां थीं। लड़कियों के नाम क्रमश: आसागि और बैसागि थे। लड़का दोनों लडकियों से बड़ा था। वह दोनों से बहुत प्यार करता था और उनके लिए कपड़ा बुनने के औजारों को जुटा देता था। आसागि और बैसागि बुनाई कटाई और खाना बनाने में माहिर होने के साथ-साथ देखने में भी अति सुंदर थीं। उनकी सुंदरता को निहारते-निहारते भाई का मन उतावला हो उठता था। धीरे-धीरे उसका मन परिवर्तित होने लगा। वह उनको बहुत चाहने और प्यार करने लगा। लेकिन मन ही मन चुपके चुपके। एक कहावत है खिले हुए सुमन को कोई छुपाकर नहीं रख सकता। उसकी खुशबू से सभी को उसका पता चल जाता है। उसी तरह भाई भले ही आसागि और बैसीगि को मन ही मन, चुपके-चुपके प्रेम करता था परंतु एक समय आया जब उनको यह बात मालूम हो गई। भाई की बेहूदा हरकतों को जानकर उनका हृदय छिन्न-भिन्न हो गया। दु:ख से आंसुओं की धारा बहने लगे। जिस भाई को वे पूजती थीं, उसका इस तरह का प्रेम वे सहन नहीं कर पाईं। एक दिन आसागि और बैसागि दोनों घर से निकल गईं। भाई को पता चलने पर वह उनको रोकने के लिए उनके पीछे-पीछे दौड़ा। लेकिन दु:ख से भरा मन लिए वे भयभीत कदमों से तीव्र गति से दौड़ती रही थीं। भयभीत गति के कारण वे हवा में घुलमिल गई और एक वक्त ऐसा अया कि वे बादलों में समा गईं।

उस दिन से वे बादल से मिली हुई हैं। वैशाख मौसम में आसागि और बैसागि का हृदय दुख से भर जाता है। जिससे आंधी-तूफान आते हैं। बिजली चमकती है। बादल गरजता है और वज्रपात होता है।

राजू बर

Next Post
ठादाम और याचुमी

ठादाम और याचुमी

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0