पूर्वोत्तर में अरूणोदय अवश्य होगा– राज्यपाल पद्मनाभ आचार्य

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हिंदी विवेक द्वारा सन २०१५ में प्रकाशित 'अष्टलक्ष्मी पूर्वोत्तर' दीपावली विशेषांक में तत्कालीन राज्यपाल मा. पद्मनाभ आचार्य जी का साक्षात्कार लिया गया था जिसमें पूर्वोत्तर की तत्कालीन परिस्थिति, वहां की नैसर्गिक सम्पदा तथा वहां के समस्याओं के बारे में उनकी चिंता एवं चिंतन प्रस्तुत हुआ हैं.

व्यावसायिक दृष्टि से पूर्वोत्तर

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सम, मेघालय, नगालैंड, मणिपुर,मिजोरम, त्रिपुरा और अरुणाचल प्रदेश इन सात राज्यों को संयुक्त रूप से पूर्वोत्तर के नाम से जाना जाता है। यह इलाका प्रकृति की अप्रतीम सुंदरता से ओतप्रोत है। वहां के खेतों, बागानों, पर्वतों,

परिवर्तन के पदचिह्न

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सूरज की पहली किरण भारत के जिस प्रदेश को सबसे पहले प्रकाशित करती है, वह है पूर्वोत्तर। भारत का सबसे अधिक प्रकृति सम्पन्न प्रदेश है पूर्वोत्तर। यहां सबसे अधिक जंगल, खनिज सम्पदा, मसाले तथा मन को प्रसन्न कर देनेवाली नदियां हैं। कई जनजातियां और विविधताओं के

एकात्म मानव दर्शन के प्रणेता पं. दीनदयाल उपाध्याय

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दीनदयाल उपाध्याय ने शून्य से शुरूआत एक सशक्त राजनितिक दल खड़ा किया। इस काम का जैसा मूल्यांकन होना चाहिए था नहीं हो सका। भारत में एक अखिल भारतीय दल खड़ा करना कोई साधारण काम नहीं है। दीनदयालजी के पास जब जनसंघ की जिम्मेदारी आई तब कांग्रेस

पांच पर्वों का महापर्व

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दीपावली की रात्रि को यक्ष रात्रि भी कहा जाता है। वराह पुराण एवं वात्स्यायन के कामसूत्र में भी इसका उल्लेख है। बाद में शुभ्र ज्योत्सना के पर्व दीपावली से अनेक संदर्भ जुड़ते चले गए।ज्योति पर्व दीपावली अ

अष्टलक्ष्मी

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पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में प्रकृति ने दिल खोल कर अपनी दौलत बिखेरी है। पूर्वोत्तर में पहले असम, अरुणाचल, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, नगालैण्ड, त्रिपुरा ये सात राज्य थे, इसलिए उन्हें ‘सप्त-भगिनी’ कहा जाता था; ल

पौराणिक संबंध

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सामान्य रूप से यात्रा पर जाना वहां के समाज में घुलमिल जाने की एक अनौपचारिक शिक्षा ही थी जिसने इस भूमि को युगों से आत्मीय, अक्षुण्ण, अभंग और एकात्म रखा है। ऐसे हमारे अनेक धागे पूर्वांचल के साथ जुड़े हुए हैं- सृष्टि उत्पत्ति के समय से, रामायण, महाभारत काल से। आज पूर्वांचल नाम से प्रचलित भूभाग देश का ईशान (मराठी में ‘ईशान्य’) -पूर्वोत्तर कोना है- ईश्वर की दिशा, जहां ईश्वर का निवास है ऐसा स्थान।

पूर्वोत्तर उपेक्षित क्यों?

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वर्तमान भारत सरकार की दृष्टि पूर्वोत्तर की तरफ सकारात्मक लग रही है, परन्तु त्रिपुरा को छोड़ कर शेष राज्यों की सरकारें ठीक से काम नहीं कर रही हैं। फिर विकास कैसे होगा? यही क्यों, शासकीय स्तर पर इतना भ्रष्टाचार है

पूर्वोत्तर की आस्थाएं

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भारत के सुदूर पूर्व में होने से उसे पूर्वोत्तर कहा जाता है।  इनमें से हर राज्य के किसी एकाध कबीले के आध्यात्मिक चिंतन पर भी गौर करें तो पता चलेगा कि पूरा भारत वर्ष किस तरह एक सूत्र में बंधा था।  

पूर्वोतर की समृद्ध साहित्य परंपरा

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पूर्वांचल के सातों राज्योें में अनेक बोली भाषाएं हैं। अकेले आसाम में २०० से ज्यादा बोलियॉं बोली जाती हैं। इन सभी बोली भाषाओं में समृध्द साहित्य हैं। किन्तु इन अनेक भाषाओं को आज भी लिपि नहीं हैं। मौखिक परंपरा से ही यह भाषाएं आज इक्कीसवी सदी में भी जीवित हैं। इस समृध्द मौखिक साहित्य को छपवाकर उसका अनुवाद बाकी भाषाओं में करने का काम ‘‘साहित्य अकादमी’’ द्वारा किया जा रहा हैं.

पूर्वोत्तर में हिंदी

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विविधता में एकता भारतवर्ष की प्रमुख   विशेषता है। यह एकता धर्म, संस्कृति, राजनीति आदि में निहित है, तो विविधता इसकी बहुभाषिकता में परिलक्षित होती है। हमारे देश में लगभग १७१ भाषाएं एवं ५४४ बोलियां अस्तित्व में हैं। अनेकता में एकता के तार पिरोने के लिए हिंदी को राष्ट्रभाषा का पद प्रदान किया गया।

सात बहनों की कहानी      

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      हिंदी साहित्य के छायावादी कवि श्री जयशंकर प्रसाद की इस कविता में हिमाद्री तुंग का सौंदर्य और ओजस्वी गुण का सुंदर वर्णन है। यह संदेश प्रसादजी की कविता में स्पष्ट रूप से ज्ञात होता है कि हिमाद्री तुंग स्वतंत्र है। स्वप्रभा और समुज्जल का प्रतीक है। हमेशा उनकी ओर आगे बढ़ चले - बढ़ चले।

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