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विश्वविद्या की राजधानी

विश्वविद्या की राजधानी

by डॉ.मनोज चतुर्वेदी
in मार्च २०१६, सामाजिक
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महामना पं. मदनमोहन मालवीय ने आधुनिकता एवं प्राचीनता को समेटे एक अनूठे विश्वविद्यालय की स्थापना की। सन् 1916 में बसंत पंचमी के दिन महात्मा गांधी की मौजूदगी में ‘बनारस यूनिवर्सिटी’ का शिलान्यास किया गया। बाद में सन् 1942 में महात्मा गांधी के ही सुझाव पर मालवीय जी ने इस विश्वविद्यालय का नाम ‘काशी हिन्दू विश्वविद्यालय’ रखा, जो बीएचयू के संक्षिप्त नाम से भी प्रसिद्ध है। इस वर्ष इसे 100 साल पूरे हो रहे हैं। इस महान कार्य के लिए केंद्र की भाजपा सरकार ने मालवीय जी को मरणोत्तर ‘भारत रत्न’ अलंकार से भी सम्मानित किया है।

न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्ग नाघ्पुनर्भवम्।
कामये दु:खतप्तानां प्राणिनामार्तिनाशनम्॥

अर्थात् मुझे न तो राज्य की कामना है और न स्वर्ग की और न मैं पुनर्जन्म से मुक्ति चाहता हूं। दु:ख से पीड़ित प्राणियों के कष्ट दूर करने में मैं सहायक हो सकूं , यही मेरी कामना है। आधुनिक भारत के युगद़ृष्टा, मानवता के संचारक एवं युग निर्माता, विश्वविख्यात शैक्षणिक संस्था-काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक महामना पंडित मदनमोहन मालवीय जी का व्यक्तित्व अत्यंत प्रभावशाली था।

25 दिसम्बर 1861 में इलाहाबाद जिले के एक सनातनी हिन्दू ब्राह्मण परिवार में महामना पं.मदनमोहन मालवीय का जन्म हुआ। इनका बहुआयामी व्यक्तित्व एक आदर्श अध्यापक, प्रखर वक्ता, लेखक, सफल सम्पादक, कुशल अधिवक्ता, देशभक्त राष्ट्रनेता, उदार मानवतावादी, धर्म प्रचारक, महान समाजसेवी, हिन्दी भाषा एवं साहित्य के उन्नायक एवं भारतीय संस्कृति के संवाहक के रूप में मुखरित हुआ, जो आज के जनमानस के लिए प्रेरक है।

सन् 1904 में उत्कृष्ट ज्ञान-विज्ञान, धर्म चिकित्सा, कृषि, साहित्य, कला और संस्कृति आदि विभिन्न विषयों के अध्ययन-अध्यापन हेतु महामना पं. मदनमोहन मालवीय ने एक स्वप्न देखा था। आधुनिकता एवं प्राचीनता को समेटे एक अनूठे विश्वविद्यालय की स्थापना की इच्छा को उन्होंने 1905 में महाराजा काशी के सम्मुख रखा। अनेक बाधाओं को पार करते हुए अनवरत प्रयास के फलस्वरूप सन् 1916 में बसंत पंचमी के दिन महात्मा गांधी की मौजूदगी में ‘बनारस यूनिवर्सिटी’ का शिलान्यास किया गया। बाद में सन् 1942 में महात्मा गांधी के ही सुझाव पर मालवीय जी ने इस विश्वविद्यालय का नाम ‘काशी हिन्दू विश्वविद्यालय’ रखा।

1360 एकड़ में फैला यह विश्वविद्यालय मदनमोहन मालवीय की दूरदर्शिता एवं वास्तुकला में उनकी सजीव अभिरूचि का प्रमाण देता हुआ, देश के श्रेष्ठ 10 विश्वविद्यालयों में सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय है।

भारतीय संस्कृति के आधार पर नई पीढ़ी को आधुनिक शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से ही मालवीय जी ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के मुख्य परिसर के अलावा यहां से लगभग 80 किमी दूर बरकछा (मिर्जापुर) में 2600 एकड़ भ्ाू-क्षेत्र में भी एक परिसर है। यहां आधुनिक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तक के सभी शैक्षणिक विषयों में शिक्षा एवं अनुसंधान एक ही परिसर में होते हैं। मालवीय भवन के निदेशक और संस्कृत विद्या धर्म-विज्ञान संकाय में वेद विभाग के सह आचार्य डॉ. उपेन्द्र त्रिपाठी ने बताया कि मालवीय भवन में प्रत्येक रविवार को प्रात: 10 से 11:30 बजे तक गीता प्रवचन होता है। यह भवन विश्वविद्यालय की सांस्कृतिक चेतना का केन्द्रीय स्थल है। यहां बाल गंगाधर तिलक, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, संत मोरारी बापू, स्वामी ज्ञानानंद सरस्वती, स्वामी निश्चलानंद सरस्वती तथा स्वामी करपात्री जी महाराज जैसी विभ्ाूतियों ने गीता पर प्रवचन किया है। मालवीय भवन स्थित योग साधना केन्द्र द्वारा प्रति वर्ष 1,000 विद्यार्थियों को प्रमाण पत्र तथा डिप्लोमा पाठ्यक्रम कराए जाते हैं। प्रति वर्ष मालवीय जयंती पर श्रीमद्भागवत का परायण भी होता है जो महामना का सबसे प्रिय कार्यक्रम था।

मालवीय जी ने हिन्दी भाषा, देवनागरी लिपि शिक्षा का भविष्य और भविष्य की शिक्षा को ध्यान में रख कर ही इस विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने महामना के प्रति सत्य ही कहा था कि-’जिस प्रकार सरस्वती धारा प्रयाग में गुप्त रही और काशी में प्रकट हुई। उसी प्रकार मालवीय जी की लेखनी और वाणी सरस्वती प्रयाग में गुप्त होकर काशी में प्रकट हुई। मालवीय जी की वाणी एवं लेखनी में साक्षात सरस्वती विराजती थीं।
डॉ. शान्तिस्वरूप भटनागर द्वारा रचित काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का कुलगीत –

‘मधुर मनोहर अतीव सुंंदर
यह सर्वविद्या की राजधानी।’

अक्षरश: सत्य है। आज काशी हिन्दू विश्वविद्यालय एशिया का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय माना जाता है। इसमें करीब 3 हजार विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान की जा रही है। अब तक करीब 1 लाख विद्यार्थी भारत ही नहीं विश्व के कोने-कोने में अपनी विशिष्ट उपलब्धियों से कीर्ति व आभा बिखेर रहे हैं।

सनातनधर्मी मालवीय जी की वेशभ्ाूषा से भारतीयता स्पष्ट रूप से झलकती थी। उनका श्वेत परिधान पवित्र एवं सात्विक व्यक्तित्व एवं पगड़ी दुपट्टा और प्रशस्त ललाट एवं माथे पर चंदन का टीका उनके शुभ एवं निर्मल व्यक्तित्व के प्रतीक थे। वस्तुत: मालवीय जी इस ज्ञान केन्द्र के माध्यम से युवाओं को आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ अपनी संस्कृति, धर्म, मातृभ्ाूमि एवं भाषा सब में पारंगत करना चाहते थे। इसीलिए उन्होंने आधुनिक शिक्षा का भारतीयकरण कर स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप ढालने के लिए विश्वविद्यालय में इंजीनियरिंग, मेडिकल एवं कृषि संकायाेंं की स्थापना के साथ ही संस्कृत विद्या एवं धर्म-विज्ञान संकाय की नींव डाली। मालवीय जी एक विकासोन्मुख व्यक्ति थे, उनका व्यक्तित्व आत्म-निर्देशित था। उनका ‘व्यक्ति’ धर्म परम्परा तथा मानवीय सच्चरित्रता का पुंज था। मालवीय जी सामाजिक मूल्यों के अनुरूप ‘व्यक्ति’ का पूर्णरूपेण संस्करण करना चाहते थे। मालवीय जी का व्यक्तित्व आत्मनिर्देशित और भारतीय परंपरा एवं आधुनिकीकरण का अत्यंत प्रकार्यवादी सम्मिश्रण था। उनकी मान्यता थी, कि विद्यार्थियों का चरित्रगठन शिक्षा का प्राथमिक लक्ष्य है। वह शिक्षा के माध्यम से भारत में ऐसे व्यक्ति के निर्माण के पक्षपाती थे, जो चरित्रवान होने के साथ ही साथ आर्थिक प्राविधिक, राजनीतिक एवं आध्यात्मिक ज्ञान से परिपूर्ण एवं अपना जीविकोपार्जन करने के योग्य हो। इसीलिए उन्होंने इंजीनियरिंग उपकरण, कृषि, साहित्य, कला, विज्ञान, गोपालन तथा आधुनिक एवं आयुर्वेदिक औषधियों के उत्पादन के साथ ही स्वदेशी आदि आवश्यक वस्तुओं का अधिकाधिक उत्पादन कर देश समाज की आवश्यकता की सामग्रियों की आपूर्ति करना भी लक्ष्य रखा।

मालवीय जी के सपनों के अनुरूप ही इस समय विश्वविद्यालय में 5 संस्थान (चिकित्सा विज्ञान संस्थान, विज्ञान संस्थान, प्रौद्योगिकी संस्थान, कृषि संस्थान, प्रबंध संस्थान), 200 विभागों पर-औषधि आयुर्वेद, दन्त चिकित्सा आभियांत्रिकी, प्रौद्योगिकीय, कृषि पर्यावरण, सम्पोष्य विकास, कला, वाणिज्य, विज्ञान, धर्मविज्ञान, सामाजिक विज्ञान, द़ृश्य कला)। 1 महिला महाविद्यालय (वुमेन्स कालेज, जैव चिकित्सकीय अभियांत्रिकी, जैव रसायन अभियांत्रिकी, जैव प्रौद्योगिकीय व जीव विज्ञान) से मिलकर उच्चीकृत किए गए हैं।

इस विश्वविद्यालय में धर्मागम, आयुर्वेद इत्यादि से लेकर आधुनिक विषयों जैसे औषधि, शल्य, जैव प्रौद्योगिकी, बायोइन्फार्मेंटिक विज्ञान विषयों, कृषि, अभियांत्रिकी प्रबंधन इत्यादि के विभिन्न विभाग उत्तम शैक्षिणिक व्यवस्था के साथ उपलब्ध हैं।

मालवीय जी ने 14 दिसम्बर, 1929 को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में अपने दीक्षांत भाषण में शिक्षा के उद्देश्य पर प्रकाश डलते हुए कहा था कि-’विद्यार्थियों को प्रयोगात्मक ज्ञान के साथ विज्ञान, कला कौशल और व्यवसाय संबंधी ऐसी शिक्षा दी जाए जिससे देशी व्यवसाय तथा घरेलू धंधों की उन्नति हो।’

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रमुख उद्देश्यों में भी भारतीय घरेलू उद्योगों की उन्नति और भारत की द्रव्य संपदा, तकनीकी तथा व्यावसायिक ज्ञान का प्रचार और प्रसार करना है। इस विश्वविद्यालय की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां नर्सरी से लेकर डॉक्टरेट तक की शिक्षा दी जाती है। विश्व का शायद ही कोई विषय ऐसा हो जिसका अध्ययन-अध्यापन यहां न होता हो। यहां प्राच्य विद्या और आधुनिक शिक्षा का अद्भुत समावेश है।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ने अनुसंधान एवं विस्तार के एकीकृत द़ृष्टिकोण के माध्यम से स्वतंत्रता, सुरक्षा एवं समृद्धि के द्वारा मानव संसाधन का विकास करना, फसलों, सब्जियों, फलों, पशुओं, मुर्गी, मछली उत्पादन, गुणवत्तायुक्त बीज उत्पादन एवं सुधार, आजीविका सुरक्षा में सुधार और भ्ाुखमरीमुक्त समाज के सपने को साकार करने की दिशा में उपलब्ध संसाधनों एवं विशेषताओं के सहयोग से शिक्षा (खेल एवं सांस्कृतिक गतिविधियों सहित) और अनुसंधान के क्षेत्र में विशिष्ट उपलब्धियां प्राप्त की हैं।

मानव जीवन की सर्वाधिक महत्वपूर्ण आवश्यकताओं में चिकित्सा व्यवस्था भी शामिल है। विश्वविद्यालय द्वारा देश भर के मरीजों के लिए सस्ती चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करायी जा रही है। अभी हाल ही में ‘प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना’ के अन्तर्गत ”ट्रामा सेन्टर” का निर्माण किया गया है तथा इसके द्वारा वृहद स्तर पर चिकित्सा सुविधा सहित शोध एवं अध्ययन-अध्यापन का कार्य हो रहा है। लगभग 165 करोड़ की लागत से निर्मित इस ट्रामा सेन्टर में 334 बेड, 13 अत्याधुनिक ऑपरेशन थियेटर एवं 27 बेड का आईसीयू उपलब्ध है। 24 घंटे मरीजों को सेवाएं प्रदान करने वाले ट्रामा सेन्टर में मरीजों की सुविधा हेतु परिसर में ही बैंक, कैन्टीन, वाहन स्टैण्ड आदि स्थापित है। ट्रामा सेन्टर परिसर 35 एकड़ क्षेत्रफल में स्थित है।
विज्ञान के बढ़ते कदम से वैश्विक भ्ाूमण्डलीय पर्यावरण का संतुलन बिगड़ गया है। इस दिशा में भी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में अध्ययन एवं शोध की द़ृष्टि से वर्ष 2010 में एक राष्ट्रस्तरीय पर्यावरण एवं धारणीय विकास संस्थान स्थापित किया गया है। इस संस्थान का मुख्य उद्देश्य ऐसा शिक्षण, शोध व विस्तार करना है, जिससे भविष्योन्मुख भारत का विकास हो, गरीबी मिटे और देश के प्राकृतिक संसाधनों का कुशल व समुचित प्रबंधन बरकरार रहे।

यह विश्वविद्यालय एशिया का सबसे बड़ा आवासीय विश्वविद्यालय है। इसमें भारत एवं विश्व के 65 देशों- यूएसए, यूके, कनाडा, जर्मनी, आस्ट्रिया, आस्ट्रेलिया, इराक, मॉरिशस, तुर्की, यूक्रेन, पोलैण्ड आदि के लगभग 30,000 छात्र-छात्राएं विभिन्न विषयों में अध्ययनरत हैं। इस समय विश्वविद्यालय 45 देशों के विश्वविद्यालयों से सम्बद्ध है। लगभग 12 हजार अन्त:वासी छात्र-छात्राओं के लिए इण्टरनेट सहित सभी आधुनिक सुविधाओं से युक्त 64 छात्रावास (25 छात्राओं के लिए व 39 छात्रों के लिए) उपलब्ध हैं। यहां 1400 कर्मचारी आवास एवं 7 अतिथिगृह भी हैं।

विचारों के युद्ध में पुस्तकें ही अस्त्र हैं। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रत्येक विभाग का अपना निजी पुस्तकालय है तथापि एक केन्द्रीय ग्रंथालय भी है। इसमें 13 हजार ऑनलाइन शोधपत्रिकाओं, 50 हजार ई-पुस्तकों, डिजिटलाइज्ड पांडुलिपियों सहित 15 लाख पुस्तकों का विशाल संग्रह है। इसके अतिरिक्त दिन-रात कार्यरत 200 से अधिक सीटों की एक वातानुकूलित साइबर लाइब्रेरी है, जो गरीब छात्रों के लिए देर रात्रि तक अध्ययन की सुविधा देती है।

यह एक ऐसा विश्वविद्यालय है जिसके पास अपनी हवाई पट्टी एवं तीन हैलीपैड हैं। इनका उपयोग एनसीसी प्रशिक्षण के लिए किया जाता है।

आधुनिक युग संचार का युग है। इस आवश्यकता एवं महत्व को समझते हुए विश्वविद्यालय में संचार नेटवर्क का जाल बिछाया गया है। यहां 100 किलोमीटर लम्बा फाइबर ऑप्टिक नेटवर्क है जो समस्त शैक्षणिक एवं प्रशासनिक भवनों तथा छात्रावासों को लोकल एरिया नेटवर्क द्वारा संगणक केन्द्र से जोड़ता है। यह उच्च क्षमता की संगणना एवं प्रशिक्षण की सुविधाओं से युक्त है। विश्वविद्यालय को एन.एम.ई.आई.सी.टी. के अंतर्गत नेशनल नालेज नेटवर्क के तीन 9 जीबीपीएस नोड उपलब्ध है।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में देश हीं नही अपितु विश्व का सबसे बड़ा भारत कला भवन संग्रहालय है। इसकी स्थापना 1 जनवरी, 1920 में ’भारत कला परिषद’ के अंग के रूप में हुई। सन् 1929 में भारत कला परिषद् का नाम बदलकर ’भारत कला भवन’ रखा गया। इस संग्रहालय में एक लाख से भी अधिक कलाकृतियों का संग्रह है जिसमें प्रस्तर मूर्तियां, सिक्के, चित्र, वसन, मनके, शाही फरमान, आभ्ाूषण, हाथी का दांत की कृतियां, धातु की वस्तुएं, नक्काशीयुक्त काष्ठ, मुद्राएं, प्रागैतिहासिक उपकरण, मृदाभाण्ड, अस्त्र-शस्त्र एवं साहित्यिक सामग्री इत्यादि है। भारत कला भवन के निदेशक डॉ. अजय कुमार सिंह ने बताया कि पहले भारत कला परिषद गोदवलिया में था। मालवीय जी की प्रेरणा से यह संस्था काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में स्थानांतरित हुई। मालवीय जी का मानना था कि आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ प्राचीन कला व संस्कृति का अध्ययन करना जरूरी है। प्राचीन कलाओं में भारतीय संस्कृति के समृद्ध तत्व निहित हैं। अत: काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का कला भवन प्रमुख अध्ययन स्थल होगा, जहां देश की युवा पीढ़ी प्राचीन इतिहास, संस्कृति और कला का अध्ययन करेगी। यहां तक भारत कला परिषद (भारत कला भवन) से रामकृष्ण दास, प्रो. नंदलाल बोस और विश्वप्रसिद्ध कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर भी जुड़े थे। महामना ने संस्कृत विद्या धर्म-विज्ञान संकाय के साथ प्राचीन इतिहास, कला और संस्कृति अध्ययन विभाग को भी स्थापित कराया।

भारतरत्न महामना पंडित मदनमोहन मालवीय बाबा विश्वनाथ के अनन्य उपासक थे। उनका मानना था कि बाबा विश्वनाथ की कृपा के बिना विश्व में कोई भी कार्य पूर्ण अथवा सफल नहीं हो सकता। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय को विश्व को आर्य बनाने के अपने संकल्प को सफल बनाना है। इस ध्येय को केन्द्र में रखकर बाबा विश्वनाथ मंदिर बनाने की योजना बनायी। सफेद संगमरमर से निर्मित इस मंदिर का विस्तृत ले-आउट नक्शा एवं शिलान्यास उनकी ही देखरेख में तैयार हुआ था। हरीतिमा युक्त मंदिर परिसर तथा उद्यान दर्शनार्थियों के नेत्रों को ठंडक तथा मन को शांति प्रदान करता है। मंदिर के केन्द्र में शिवलिंग तथा दीवारों पर ॠषि मुनियों की सूक्तियां एवं हिन्दू शास्त्रों के श्लोक चित्रों सहित उत्कीर्ण हैं। प्रमुख विद्वान एवं श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के मानद प्रबंधक आचार्य चंदमौली उपाध्याय ने बताया कि महामना का यह संकल्प था कि मेरे जीते-जी श्री काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण हो। जनसामान्य की यह धारणा है कि महामना जी काफी अस्वस्थ थे। उसी समय देश के प्रमुख उद्योगपति और समाजसेवी माननीय बलदेव दास बिड़ला जी ने महामना को आश्वस्त किया कि मैं तन, मन एवं धन के साथ इस संकल्प में शामिल रहूंगा। इसके बाद ही महामना मदनमोहन मालवीय जी का शरीर शांत हुआ। महामना जी यह चाहते थे कि विश्वविद्यालय परिसर के समस्त छात्र इस पवित्र मंदिर में आकर दर्शन, पूजन तथा सांध्योपासनादि करें।”

विश्वविद्यालय में एक प्रेस एवं प्रकाशन सेल है जो 80,000 वर्ग फीट में फैला है तथा इसका भीतरी तल 25000 वर्गफीट में है। यह सेल काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के लगभग 200 विभागों के लिए पेम्पलेट, फोल्डर, पोस्टर, लेटर पैड, प्रवेशपत्र, उत्तरपुस्तिका, विजिटिंग कार्ड, लिफाफा, पुस्तकें एवं पत्र/पत्रिकाओं के प्रकाशन में सहयोग करते हैं।

विश्वविद्यालय का एक सूचना एवं जनसंपर्क कार्यालय भी है, जो काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में होने वाली विविध गतिविधियों का, देशभर के 400 मीडिया संस्थाओं को पल भर में खबरें प्रेषित करता है। विश्वविद्यालय के सहायक जनसंपर्क अधिकारी डॉ. राजेश सिंह का कहना है कि मैं यह चाहता हूं कि विश्वविद्यालय की छोटी से छोटी खबर भी मीडिया में स्थान पाए। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय महामना की तपोस्थली है। इसके एक-एक संदेशों का प्रकाशन-प्रसारण बहुत ही उपयोगी है। क्योंकि यहां की प्रत्येक गतिविधि पर भारत के बुद्धिजीवियों के नजरें लगी रहती हैं।

महामना का स्वप्न था कि-भारत केवल हिन्दुओं का देश नहीं है बल्कि यह मुस्लिम, ईसाई और पारसियों का भी देश है। देश तभी विकास और शक्ति प्राप्त कर सकता है, जब विभिन्न समुदाय के लोग परस्पर प्रेम और भाईचारे के साथ जीवन व्यतीत करेंगे। यह मेरी इच्छा और प्रार्थना है कि प्रकाश और जीवन का यह केन्द्र जो अस्तित्व में आ रहा है वह ऐसे छात्र प्रदान करेगा जो अपने बौद्धिक रूप से संसार के दूसरे श्रेष्ठ छात्रों के न केवल बराबर होंगे, बल्कि एक श्रेष्ठ जीवन व्यतीत करेंगे, अपने देश से प्यार करेंगे तथा परम पिता के प्रति ईमानदार रहेंगे। आज कहा जा सकता है कि महामना के स्वप्न, इच्छा एवं प्रार्थना को पूरा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय कृत संकल्पित है। समाजशास्त्र विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ. डी.के. सिंह का कहना है कि महामना की शिक्षा पद्धति में किसी भी जाति, वर्ग, क्षेत्र एवं संप्रदाय के साथ भेदभाव नहीं है। वे चाहते थे कि देश का प्रत्येक नागरिक नैतिक मूल्यों के साथ शारीरिक रूप से सबल हो क्योंकि कहा गया है ’वीर भोग्या वसुंधरा’ अर्थात् इस पृथ्वी का सुख वीर पुरूष ही भोग सकते हैं। यदि हम कायर, दुर्बल तथा डरपोक हैं तो हमसे रोटी कोई भी छिन जा सकता है। इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर इस विद्यालय परिसर में व्यायामशाला का भी ध्यान रखा गया था लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में इसे शासन ने ध्वस्त करा दिया।

’ज़र्रा-ज़र्रा इस ज़मीने प़ाक़ है अब ग़वाह
देख लो काशी में तुम जाकर निशाने मालवीय।’

प्रो. गिरीश चन्द्र त्रिपाठी: महामना पंडित मदनमोहन मालवीय जी को भारतरत्न दिया जाना बेहद स्वागत योग्य निर्णय है। इसके लिए काशी हिन्दू विश्वविद्यालय परिवार प्रधान मंत्री नरेन्द्र भाई मोदी तथा भारत सरकार के प्रति कृतज्ञ है। वैसे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से जुड़े पांच व्यक्तियों को भारतरत्न से पहले ही सम्मानित किया जा चुका है। महामना को यह सम्मान पहले ही दिया जाना चाहिए था, ऐसी जनभावनाएं पूर्व से ही थीं। पर, जनभावनाओं को वर्तमान सरकार ने समझा एवं उसका सम्मान किया। इससे सम्मान की गरिमा तो बढ़ी है, लेकिन उससे ज्यादा भारतरत्न की गरिमा बढ़ी है। कुछ लोग सम्मान पाकर गौरवान्वित होते हैं और कुछ लोगों को सम्मान देकर सम्मान देने वाला गौरवान्वित होता है। भारतरत्न महामना पंडित मदनमोहन मालवीय जी ऐसी ही विभ्ाूति थे।
——–

डॉ.मनोज चतुर्वेदी

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