महिलाएं राजनीति को भी अपना क्षेत्र मानेंः सुमित्रा महाजन

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महाराष्ट्र के चिपलूण शहर से अपनी जीवन यात्रा प्रारंभ करके इंदौर होते हुए दिल्ली तक पहुंचने वाली सभी की आत्मीय ‘ताई’ अर्थात सुमित्रा महाजन। राजनीति की कोई पारिवारिक पृष्ठभूमि न होते हुए भी सुमित्रा महाजन आज देश के सर्वोच्च पदों में से एक लोकसभा के अध्यक्ष पद पर आसीन हैं। वे एक सशक्त महिला रूप में जानी जाती हैं। प्रस्तुत है उनकी अब तक की जीवन यात्रा के कुछ पड़ाव और महिलाओं से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों पर उनकी राय।

मजबूत इरादों से बनी पहचान

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नलिनी हावरे महिलाओं के आर्थिक रूप से सक्षम होने पर विश्वास रखती हैं। उनके द्वारा संचालित डेली बजार में कर्मचारी वर्ग से लेकर मैनेजर, सीए स्तर पर भी महिलाएं हैं। इनमें कई महिलाएं उनके साथ तब सेे हैं जब से डेली बजार की नींव रखी गई। उनकी सुविधा की दृष्टि से डेली बजार में दो शिफ्ट में काम होता है।

 अनूठी पहल

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****सायली साटम**** अंग्रेजों के आने के पहले सभी भारतीय गांव स्वावलंबी थे। गांव की, जलस्रोतों की स्वच्छता रखना वे अपना कर्तव्य समझते थे। ग्रामीण समाज शारीरिक मेहनत करने के कारण स्वस्थ तथा बलवान हुआ करता था। अंग्रजों ने सोचा अगर गावों की इस स्वावलंबन रूपी र

भारत की नारी, फूल और चिंगारी- मृदुला सिन्हा

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गोवा की राज्यपाल मा. मृदुला सिन्हा साहित्यकार और राजनीतिक हस्ती हैं। उनकी जीवन यात्रा तथा भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति के सम्बंध में लिए गए साक्षात्कार के कुछ अंश-

योग आधारित जीवन

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योग का हमारे जीवन से बहुत गहरा संबंध है। ऐसा कहा जाता है कि योग करने से मन को सुकून मिलता है। सुबह उठकर योग करने से हमारा शरीर मजबूत, सदृढ होता है। साथ ही सबसे महत्तवपूर्ण बात है कि हम दिनभर प्रसन्न, तरोताजा रहते है। ये विचार हैं योग का प्रशिक्षण देने वाली श्रीमती रेखा काले के। रेखा पुलिस विभाग में कार्यरत हैं ।इनकी विशेषता यह है कि कैदियों को योग का प्रशिक्षण देती हैं और योग के माध्यम से उनकी आपराधिक मानसिकता बदलने का प्रयास करती हैं। प्रस्तुत हैं उनके साक्षात्कार के प्रमुख अंश-

….उसकी तस्वीर पर माला नहीं चढ़ाऊंगी!

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“आशा (निर्भया की मां) ने ज्योति (निर्भया का असली नाम) की तस्वीर पर आज तक माला नहीं चढ़ाने दी। वह कहती है-मैं कुछ भी भूलना नहीं चाहती। मैं उस हादसे को जिंदा रखना चाहती हूं। मैं चाहती हूं कि मेरा ज़ख्म हमेशा रिसता रहे... नहीं तो मैं लड़ना भूल जाऊंगी। नहीं चाहती कि ऐसा भीषण बलात्कारी कांड किसी की बेटी के साथ फिर हो।”

हिंदू हिंदू मेरा अपना

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1936 में वं. मौसी जी ने समाज स्थिति का अवलोकन कर राष्ट्र सेविका समिति की नींव रखी और महिलाओं का एक राष्ट्रव्यापी संगठन धीरे-धीरे संपूर्ण देश में कार्यरत हुआ। शाखा में तैयार हुई मानसिकता -हिंदू हिंदू मेरा अपना इस एकात्म भाव से अनेकविध सेवा प्रकल्पों के माध्यम से- कृतिरूप धारण करने लगी।

सहेलियां

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“आजकल की मांएं लड़कियों को सिर पर चढ़ा रखती हैं... वे भी कुछ पूछना हो तो मां से ही पूछती हैं, सास से नहीं। मां भी बेटी की घर गृहस्थी में टांग अड़ाती है। मियां-बीवी में, सास -बहू के रिश्ते में इगो आड़े आता है। इससे रिश्ते हद तक बिगड़ जाते हैं।”

बढ़ती उम्र – बढ़ती बीमारी

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कुछ शारीरिक कष्ट ऐसे हैं जिन्हें रोका जा सकता है और कुछ ऐसे हैं जो हो जाएं तो उनसे मुकाबला किया जा सकता है। ....धैर्य से हर परिस्थिति का सामना हो सकता है, चाहिए सिर्फ थोड़ी-सी जानकारी, जागरूकता, हिम्मत और साथ!

चालीसी के बाद का जादुई सफ़र

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अपनी मंजिल खुद होती है, अपना पड़ाव खुद पार करना होता है और अपनी स्पेस खुद निर्माण करनी होती है। महिलाओं के लिए चालीसी के बाद के जादुई सफ़र का यही मूलमंत्र है!

महिलाओं का आर्थिक सशक्तिकरण

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सब से बड़ी बात यह है कि महिलाएं अपनी लड़कियों को शिक्षित कर, उन्हें बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान कर अपनी सहायता खुद ही कर सकती हैं, ताकि वे विकास की प्रक्रिया में सक्रिय एवं स्वस्थ भागीदार बन सके। महिलाओं को अपनी मानसिकता भी बदलनी चाहिए और राजनीतिक एवं आर्थिक मामलों में अपने को पुरुषों की बराबरी का सक्षम भागीदार मानना चाहिए।

वैदिक विवाह परम्परा की सूत्रधार

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घोषा, विश्वबारा और अपाला जैसी मंत्रकारा ऋषियों की परंपरा में सूर्या सावित्री ने 47 मंत्रों के विवाह सूक्त को लिख कर सम्पूर्ण हिंदू समाज को एक उपहार दिया है। यह विवाह सूक्त ऋग्वेद में (10.85) में संकलित हैं और गत 5100 वर्षों से आज तक हिंदू विवाह पद्धति का अभिन्न अंग बन चुका है। इसके बाद सुवर्चला नामक विदुषी ने सूर्या सावित्री द्वारा प्रदत्त विवाह संस्कार का कायाकल्प कर दिया था। विवाह संस्कार को विधिवत स्वरूप देने वाली दोनों महिलाएं ही थीं, यह उल्ल्ेखनीय है।

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