क्या है इस बजट में नया?

अरुण जेटली का तीसरा बजट जटिल राजकोषीय परिस्थितियों और वैश्विक चुनौतियों के बीच शानदार राजनीति और बेहतरीन अर्थशास्त्र का मिश्रण है। ….देश में कुछ ही वित्त मंत्री ऐसे हैं जो ऐसी उपलब्धि का दावा कर सकते हैं, इसलिए यह बजट खास है

केंद्र में पहली बार बहुमत के साथ बनी भारतीय जनता पार्टी सरकार के वित्त मंत्री अरुण जेटली के सामने अपना तीसरा बजट पेश करते हुए काफी कुछ नया करने की चुनौती थी। यूं तो हर बजट में वित्त मंत्री कुछ खास घोषणाएं करने की कोशिश करते ही हैं; लेकिन वित्त वर्ष 2016-17 के बजट में कई ऐसी चीजें हैं जो इस बजट को खास बनाती हैं।

इस बजट में पहली बार देश को तरक्की की राह पर आगे ले जाने के लिए वित्त मंत्री ने “नौ स्तंभों” का उल्लेेख किया, जिनके तहत कर सुधार, कारोबार करने की सुगमता, राजकोषीय अनुशासन, सामाजिक क्षेत्र, शिक्षा, कौशल विकास और रोजगार सृजन जैसे अहम मसले बजट के केंद्र में रहे।

इस लिहाज से बजट की सबसे अहम घोषणाओं में से एक थी ग्रामीण एवं कृषि क्षेत्र के बजट में बढ़ोतरी। ग्रामीण भारत पिछले दो वर्षों से मंदी का सामना कर रहा था। वैश्विक स्तर पर जिंसों की कीमतों में गिरावट और कम बारिश की वजह से कृषि क्षेत्र पर भी दबाव लगातार बढ़ रहा था। इसी तरह गैर-कृषि ग्रामीण क्षेत्र में भी विनिर्माण एवं ग्रामीण सेवा क्षेत्र से कम होती मांग का असर देखने को मिल रहा था। ऐसे में सभी वित्त मंत्री से आस लगाए बैठे थे। लेकिन तमाम राजकोषीय चुनौतियों के बावजूद जेटली ने ग्रामीण भारत के लिए खजाना खोल दिया। किसानों के कल्याण के लिए बजट में 35,984 करोड़ रुपये आवंटित किए गए। मृदा स्वास्थ्य कार्ड और सिंचाई की ओर ध्यान केंद्रित करना भी सही दिशा में उठाया गया कदम है। नाबार्ड के अंतर्गत 20,000 करोड़ रुपये की पूंजी के साथ सिंचाई के लिए विशेष कोष स्थापित करने की पहल भी स्वागतयोग्य है। चालू वित्त वर्ष में 28.5 लाख एकड़ जमीन को प्रधान मंत्री सिंचाई कृषि सिंचाई योजना के दायरे में लाने का लक्ष्य रखा गया है। सिंचाई के अलावा भूमिगत जलस्तर की ओर ध्यान देना इस बात की ओर स्पष्ट संकेत है कि दो साल सूखे की मार झेल चुकी सरकार इससे उबरने की पुरजोर कोशिश कर रही है। इसके अलावा फसल बीमा, एक एकीकृत कृषि विपणन ई-प्लेटफॉर्म, जमीन के रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण, खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को अनुमति, डेयरी क्षेत्र पर खास जोर और उर्वरक सब्सिडी सीधे किसानों के खाते में पहुंचाने की पायलट परियोजना जैसे कई उपायों के साथ यह बजट कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्र के लिए ढेरों सौगात लेकर आया है।

यह पहला मौका है जब बजट में किसानों की आय दोगुनी करने की बात कही गई है। हालांकि जेटली के इस सपने पर विमर्शों का दौर जारी है और इसकी तार्किकता के पक्ष और विपक्ष में तमाम तर्क गढ़े जा रहे हैं; लेकिन आशावादी रुख का स्वागत जरूर किया जाना चाहिए।

ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार सृजन में अहम भूमिका निभाने वाली महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना यानी मनरेगा के लिए आवंटन करते वक्त भी जेटली ने राजग और संप्रग का कोई भेदभाव नहीं किया। इस योजना के मद में किए गए आवंटन का रिकॉर्ड बनाते हुए इस योजना के लिए कुल 38,500 करोड़ रुपये आवंटित किए गए।

विकास की बुनियाद को मजबूत करने की दिशा में भी यह बजट खास रहा। बुनियादी ढांचा क्षेत्र के लिए कुल 2.21 लाख करोड़ रुपये खर्च करने की योजना पेश की गई है, जिसमें करीब 55,000 करोड़ रुपये सिर्फ सड़कों पर खर्च किए जाने हैं।

इस बजट में खास बात यह है कि मनरेगा और बुनियादी ढांचा क्षेत्र का खर्च बढ़ा कर सरकार बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन का लक्ष्य हासिल करना चाहती है। लेकिन नौकरियां पैदा करने के लिए सरकार सिर्फ इन्हीं योजनाओं पर निर्भर हो, ऐसा कतई नहीं है; क्योंकि गांवों में डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देने के साथ ही कौशल विकास को प्रोत्साहित करने को लेकर भी बजट में पूरी तैयारी की गई है जो कि एक नई पहल है। कौशल विकास के लिए मंत्रालय का गठन कर यह सरकार पहले ही इसके प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर कर चुकी है। वित्त वर्ष 2016-17 के बजट में 1,804 करोड़ रुपये का आवंटन और 1,500 बहु कौशल विकास केंद्रों की स्थापना का लक्ष्य इस प्रतिबद्धता की पुष्टि करते हैं।

स्टार्ट-अप कंपनियों को सहारा देने का निर्णय भी इस बजट को खास बनाता है। तीन वर्षों तक करों से मुक्ति और 500 करोड़ रुपये के कोष से स्टार्ट-अप कंपनियों को मदद देने की सरकार की योजना उद्यमियों को प्रोत्साहन देने के लिहाज से दूरगामी परिणाम दे सकती है।

एक अहम बात जो इस बजट को अलग करती है वह कानूनों में फेरबदल। जेटली ने माना कि देश के आर्थिक विकास को गति देने के लिए कानूनी दांवपेचों की नकेल कसनी बहुत ही आवश्यक है। संभवत: एक वकील होने के नाते वह इन खामियों को अच्छी तरह समझते होंगे। इस लिहाज से जेटली ने व्यापक द़ृष्टिकोण अपनाया है। कारोबारी सुगमता के मद्देनजर कंपनी अधिनियम में संशोधन से लेकर, विदेशी निवेशकों का हित साधने के लिए सरफेसी अधिनियम में संशोधन, पूंजी बाजार से संबंधित विवादों को जल्दी निपटाने के उद्देश्य से प्रतिभूति अपीलीय पंचाट की पीठों की संख्या बढ़ाने के लिए सेबी अधिनियम में संशोधन, सार्वजनिक परिवहन में निजी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए मोटर वाहन अधिनियम में संशोधन और वित्तीय क्षेत्र की इकाइयों की हालत सुधारने के लिए एक व्यापक दिवालिया संहिता तक सरकार कई ऐसे साहसिक कदम उठाने की कोशिश करती नजर आ रही है जिसके व्यापक परिणाम आने वाले समय में दिखाई देंगे।

इसके अलावा आधार को कानूनी मान्यता दिलाने की पहल भी स्वागतयोग्य है। हालांकि इस कदम को अनोखा और नया तो नहीं कहा जा सकता; क्योंकि पूर्ववर्ती संप्रग सरकार भी कोशिश कर चुकी है लेकिन वित्त विधेयक के रूप में बजट सत्र में ही लोकसभा से इसे मंजूरी दिला कर सरकार ने इस घोषणा के प्रति अपनी गंभीरता जाहिर कर दी है।

देश की तरक्की में सरकार के साथ कंधे से कंधा मिला कर चलने वाले मध्यम वर्ग के लिए भी यह बजट कई मायनों में खास रहा। आम तौर पर सरकारें आर्थिक और राजनीतिक रूप से सक्रिय इस तबके को साधने की कोशिश में रहती हैं और इसके लिए फौरी तौर पर आयकर दायरे यानी इनकम टैक्स स्लैब में वृद्धि कर दी जाती है। लेकिन जेटली ने छोटे करदाताओं की श्रेणी में आने वाले इस समूह को ऐसी कोई भी सौगात देने से परहेज किया। हालांकि कर सुधारों की दिशा में कदम बढ़ाते हुए उन्होंने करदाताओं और कर अधिकारियों के संबंधों को मधुर बनाने की पहल जरूर की लेकिन कृषि कल्याण उपकर के नाम पर सेवा कर में बढ़ोतरी, गाड़ियों पर बुनियादी ढांचा उपकर, आभूषणों पर उत्पाद शुल्क में बढ़ोतरी, महंगे रेडिमेड कपड़ों की कीमत बढ़ाकर यह स्पष्ट संकेत दे दिया कि मध्यम वर्ग को तरक्की में हाथ बंटाने के लिए आगे भी तैयार रहना होगा। बजट भाषण में स्वेच्छा से गैस सब्सिडी छोड़ने के मामले में मध्यम वर्ग के उल्लेख को भी ऐसे ही संकेत के तौर पर देखा जाना चाहिए।

हालांकि कर्मचारी भविष्य निधि की निकासी पर लगाए जाने वाले कर संबंधी प्रावधान को लेकर सरकार की काफी किरकिरी हुई और इसे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के हस्तक्षेप के बाद वापस ले लिया गया। यहां हम बजट पर प्रधान मंत्री के प्रभाव का भी आकलन कर सकते हैं जो कि बहुत ही दिलचस्प और इस बजट का एक बिल्कुल नया पहलू है। बजट से ठीक एक दिन पहले “मन की बात” कार्यक्रम में मोदी ने बजट को अपने लिए परीक्षा बताया। संभवत: उनके इस बयान से वित्त मंत्री और उनकी टीम पर दबाव बढ़ा होगा। सभी पैमानों पर प्रधान मंत्री ने बजट की प्रमुख कवायदों में अहम भूमिका अदा की। स्टार्ट अप इंडिया, स्टैंड अप इंडिया से लेकर मेक इन इंडिया और एक भारत, श्रेष्ठ भारत जैसे कार्यक्रमों पर जोर देना इसकी बानगी हैं। संभवत: यही वजह है कि वित्त मंत्री ने भविष्य निधि पर कराधान के प्रस्तावों को लेकर हो रहे विरोध पर अपनी त्वरित प्रतिक्रिया में कहा कि इसका निर्णय प्रधान मंत्री करेंगे। यह बात इस बजट को निश्चित रूप से खास बनाती है क्योंकि अमूमन ऐसा विरले ही होता है कि बजट पर उपजी आलोचना को लेकर सरकारी प्रतिक्रिया के तौर पर वित्त मंत्री खुल कर यह कहें कि इसका फैसला प्रधान मंत्री करेंगे। इस क्रम में एक दिलचस्प तथ्य यह भी जोड़ा जा सकता है कि इस वर्ष के बजट में वित्त मंत्री ने एक बार भी प्रधान मंत्री मोदी का जिक्र नहीं किया जबकि पिछले साल दो बार मोदी का नाम लिया गया था।

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि अरुण जेटली का तीसरा बजट जटिल राजकोषीय परिस्थितियों और वैश्विक चुनौतियों के बीच शानदार राजनीति और बेहतरीन अर्थशास्त्र का मिश्रण है। इस दौर में भी वह लगातार तीसरे साल वित्तीय अनुशासन का अपना मूल दायित्व निभाने में सफल रहे हैं। राजनीतिक रूप से देखें तो जेटली ने 2019 के चुनाव में उतरने के लिए बिजली, सड़क और रसोई गैस जैसे आधार तैयार करने की कोशिश शुरू कर दी है जो 2019 तक सभी को रसोई गैस मुहैया कराने के लक्ष्य को देखते हुए एक खास उपलब्धि होगी।

देश में कुछ ही वित्त मंत्री ऐसे हैं जो ऐसी उपलब्धि का दावा कर सकते हैं, इसलिए यह बजट खास है।
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