इस बार के केंद्रीय बजट में सरकार ने कृषि के लिए एक बड़ा हिस्सा आबंटित किया है। कृषि आज सामूहिक प्रयासों से उद्योग का रूप ले चुकी है और भारत के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निर्वहन कर रही है।
आजादी के बाद भारत की कुल आबादी के 90 प्रतिशत की कृषि पर निर्भरता रही है और यही वजह थी कि सरकार ने पहली पंचवर्षीय योजना 1 अप्रैल 1951 में तैयार कर कृषि विकास के लिए 37 प्रतिशत बजट का प्रावधान रखा था। यही वजह है कि 1950-1951 में खाद्यान्न उत्पादन मात्र 5 करोड़ टन था, जो आज 2016 में 100 करोड़ टन तक पहुंच गया है। भारत में कृषि अब उद्योग का स्वरूप ले चुकी है। अत्याधुनिक फसलोत्पादन से आज करोड़ों लोगों को रोजगार कृषि क्षेत्र से मिल रहा है। भारत में उत्पादित फसलें एक ओर जहां भारतीयों के उदर पोषण का कार्य कर रही हैं वहीं दूसरे देशों में बड़े स्तर पर निर्यात हो रहा है। सरकार एवं समाजसेवी संस्थाओं के प्रयास से भारतीय कृषक अब जागरूक हो चुका है। परंपरागत खेती का स्थान अब व्यावसायिक फसलों ने ले लिया है। इतना ही नहीं कृषि आधारित पशुपालन, पोल्ट्री फार्मिंग और मछलीपालन के क्षेत्र में भी क्रांतिकारी बदलाव आया है।
भारत मेें लंबे समय से कृषि को लाभ का व्यवसाय बनाए जाने की बात कही जाती रही है। समय के साथ-साथ भारतीय किसानों में जागरुकता की वजह से अब भारत में ‘कृषि’ ने भी बड़ा व्यवसाय का स्वरूप प्राप्त कर लिया है। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, झारखंड जैसे बीमारू कहे जाने वाले राज्यों को प्रगति के पथ पर लाने में कृषि का ही महत्वपूर्ण स्थान है। कृषि विकास दर में लगातार बढ़ोत्तरी से मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य भी हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों से आगे निकल गए है। गेहूं उत्पादन में मध्यप्रदेश ने लगातार सफलता प्राप्त की है, वहीं छत्तीसगढ़ राज्य ने धान उत्पादन के मामले में अपने को उक्त राज्यों से आगे रखा है। पश्चिम बंगाल जो गन्ना उत्पादन में कभी अपना स्वाधिकार स्थापित किया हुआ था उससे भी मध्यप्रदेश बराबरी से मुकाबला कर रहा है। मध्यप्रदेश में परंपरागत फसलों का उत्पादन करने वाले किसान अब गन्ना का उत्पादन कर अपनी आमदनी में लगातार वृद्धि कर रहे है। उन्हें प्रोत्साहित करने का कार्य शक्कर मिलें कर रही हैं। इतना ही नहीं किसानों द्वारा तैयार गुड़ देशभर में सराहा जा रहा है। किसान गुड़ उत्पादन में निरंतर नए नए प्रयोग कर रहे हैं।
वर्तमान में प्राकृतिक मार से किसानों को जूझना पड़ रहा है। पंजाब जैसे कृषि के क्षेत्र में अग्रणी राज्यों में भी किसानों के द्वारा आत्महत्या की खबरें आए दिन सामने आ रही हैं। मध्यप्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भी प्राकृतिक आपदाओं से पीड़ित किसानों द्वारा आत्महत्या की खबरें आ रही हैं। राज्य सरकारें अपने स्तर पर आत्महत्या रोकने का प्रयास कर रही हैं, साथ ही राहत के तौर पर सरकारी कोष का बड़ा हिस्सा बांट रही हैं। इन्हीं समस्याओं को ध्यान में रखकर प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने फसल बीमा योजना की शुरुआत की है। इस योजना से एक तरफ जहां किसानों को प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में सहायता मिलेगी वहीं उन्हें बीमा के माध्यम से फसल के नुकसान का उचित मूल्य भी प्राप्त हो सकेगा। भारत में फसलों की पैदावार तो बढ़ी है; साथ ही इनकी गुणवत्ता में भी काफी सुधार आया है। यही वजह है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी भारतीय फसलों की उपज को अच्छे दाम मिल रहे हैं। हमारी फसलों की गुणवत्ता बढ़ाने में नई तकनीकों ने अहम भूमिका का निर्वहन किया है। साथ ही उत्तम किस्म के बीज जो राज्य एवं केन्द्र सरकार द्वारा सस्ते दर पर उपलब्ध कराए गए उसका भी काफी प्रभाव कृषि क्षेत्र पर पड़ा है। देश में फूलों, और सब्जियों के उत्पादन में भी काफी प्रगति हुई है और इसका निर्यात भी बड़े पैमाने पर पड़ोसी राज्य कर रहे हैं। पंजाब, उत्तर प्रदेश और हरियाणा जैसे इलाकों में फसलों में विविधीकरण देखने को मिल रहा है। इन राज्यों में पशुपालन, मुर्गीपालन और मछली पालन जैसे कृषि आधारित कामों से भी किसानों को आमदनी हो रही है। कृषि आधारित काम भी एक बड़ा उद्योग का रूप ले चुके हैं। एक अनुमान के मुताबिक पोल्ट्री उद्योग से 40 लाख लोगों को रोजगार मिलता है, जबकि मछली पालन से सवा करोड़ लोग रोजगार प्रापत कर रहे हैं। पशुपालन से भी देश के तीन करोड़ लोग लाभान्वित हो रहे हैं। भारत की राष्ट्रीय आय में पोल्ट्री, मछली पालन और पशुपालन का महत्वपूर्ण योगदान तो है ही ये काम न सिर्फ लोगों के लिए अतिरिक्त आय का जरिया है बल्कि जिस दौरान खेती का काम ना हो या फसल खराब हो जाए तो किसानों की रोजी रोटी का मुख्य साधन बन जाती है।
देश में पिछड़ी हुई कृषि को गति प्रदान करने के लिए आजादी के बाद से ही विशेष ध्यान दिया गया। भारत में पहली पंचवर्षीय योजना 13 अप्रैल 1951 से प्रारंभ की गई जिसमें कृषि के विकस को सर्वोच्च वरीयता प्रदान की गई तथा इसके लिए पूरी योजना पर होने वाले कुल परिव्यय का 37 प्रतिशत रखा गया। दूसरी ओर तीसरी योजना में व्यय में कुछ कमी हुई परन्तु उसके पश्चात कृषि क्षेत्र के विकास के लिए योजना परिव्यय में वृद्धि होती गई। इस बार के बजट में भी सरकार ने कृषि के लिए एक बड़ा हिस्सा कुल बजट में से स्वीकृत किया है। आज सामूहिक प्रयासों से कृषि उद्योग का रूप ले चुकी है और भारत के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निर्वहन कर रही है।
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